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अपने बच्चों का वैक्सीनेशन करवाना उनके शुरुआती जीवन में लिए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण और प्रमुख फैसलों में से एक होता है। पेरेंट्स के लिए यह जरूरी है, कि वे बच्चों को लगने वाले विभिन्न वैक्सीन, बीमारी से बचाने के लिए उनके काम और अनिवार्य और वैकल्पिक वैक्सीनेशन के बीच के अंतर को समझें।
नीचे दी गई जानकारी वैक्सीनेशन के फायदों के बारे में आपका विस्तृत मार्गदर्शन करेगी और बच्चे को वैक्सीन लगाने के सही समय और सही तरीके के बारे में बताएगी। अगर आपको अपने बच्चे को लेकर कोई विशेष सवाल हैं, तो मार्गदर्शन के लिए कृपया डॉक्टर से परामर्श लें।
बचपन में लगाई जाने वाली वैक्सीन जरूरी क्यों होती हैं?
शुरुआत में वैक्सीन लगाना जरूरी क्यों होता है, यह समझने के लिए आपको इम्युनिटी के कांसेप्ट को समझने की जरूरत होगी। इम्युनिटी एक तरीका है, जिसके माध्यम से शरीर बीमारियों से बचता है और वैक्सीनेशन आपको कुछ निश्चित बीमारियों के प्रति इम्यूनाइज करता है।
अगर आपका इम्यून सिस्टम – जो कि सभी सेल्स, ग्लैंड्स और तरल पदार्थों से बना होता है – एक बाहरी जर्म (जिसे एंटीजन के नाम से जानते हैं) को नहीं पहचानता है, तो वह उन आक्रामक जर्म्स से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज नामक प्रोटीन भेजता है। जब एंटीबॉडीज जर्म से अधिक ताकतवर और प्रभावशाली होते हैं और एंटीजन को शरीर में प्रवेश करने और उस पर प्रभाव डालने से रोकने में सक्षम होते हैं, तब इम्युनिटी का विकास होना शुरू होता है। लेकिन अगर एंटीजन अत्यधिक शक्तिशाली हो – जो कि कुछ खास बीमारियों के मामले में होता है जो कि केवल एक आम जर्म नहीं होते हैं – तो एंटीबॉडीज यह नहीं समझ पाते हैं, कि एंटीजन से कैसे लड़ें और वह आपके स्वास्थ्य को एंटीजन से सुरक्षा देने में सक्षम नहीं होते हैं।
एंटीजन को शरीर को नुकसान पहुँचाने देना और इस प्रक्रिया में संभवत जान जाने से कहीं बेहतर और आसान होता है, कि इम्यूनाइजेशन के द्वारा बीमारी को रोका जाए। किसी को इम्यूनाइज करने के लिए, वैक्सीन एक नियंत्रित तरीके से शरीर में बीमारी का परिचय करवाती हैं। चूंकि शरीर को एंटीजन से लड़ने के लिए उसके संपर्क में लाने की जरूरत होती है, इसलिए ये वैक्सीन, मृत या कमजोर स्वरूप में इन बीमारियों का परिचय हमारे शरीर से कराती हैं, जो कि इम्यून सिस्टम को खराब करने और शरीर को नुकसान पहुँचाने में अक्षम होते हैं। इससे हमारा शरीर एंटीबॉडीज पैदा करने में सक्षम हो जाता है, जो कि भविष्य में इस बीमारी से बचाता है।
दुनिया भर में बीमारियों का इलाज किया गया है और अब इनकी रोकथाम बहुत आम हो चुकी है और ये बीमारियां दुर्लभ हो चुकी हैं। इसका श्रेय वैक्सीनेशन ड्राइव्स को जाता है, जो कि पूरे विश्व में बचपन में वैक्सीनेशन करवाने का प्रचार प्रसार करते हैं। ऐसी बीमारियों में पोलियो, मीजल्स, रूबेला, रोटावायरस, मम्प्स और स्मॉल पॉक्स जैसी और भी कई अन्य बीमारियां शामिल हैं।
क्या वैक्सीन सुरक्षित होती हैं?
आमतौर पर वैक्सीन बिल्कुल सुरक्षित होती हैं और इन्हें लेते समय अधिकतर बच्चों के लिए चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है। इन वैक्सीन से होने वाले कॉम्प्लीकेशंस बहुत ही कम होती हैं और इनके फायदों की तुलना में इनके गंभीर खतरों का अनुपात बहुत ही कम होता है। कुछ वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स होते हैं, पर ये साइड इफेक्ट्स आम तौर पर काफी माइल्ड और कम समय के लिए होते हैं। वैक्सीनेशन के कारण लंबी चलने वाली कोई समस्या या स्वास्थ्य पर पड़ने वाला कोई खतरनाक प्रभाव नहीं होता है और इसलिए इसके बारे में चिंता की जरूरत नहीं होती है।
वैक्सीनेशन के द्वारा इम्यूनाइजेशन विशेष रुप से बच्चों के लिए जरूरी होता है, क्योंकि उनका इम्यून सिस्टम अभी भी विकसित हो रहा होता है। चूंकि इन बीमारियों का इलाज करने से कहीं ज्यादा आसान इनसे बचाव होता है, इसलिए अविकसित इम्यून सिस्टम को नुकसान पहुँचाने वाली इन बीमारियों को रोकने के लिए, बचपन ही सबसे बेहतर समय होता है। इस समय बच्चे को भी बीमार होने का खतरा अधिक होता है, क्योंकि उसके आसपास और भी छोटे बच्चे होते हैं, जिनमें से कुछ का वैक्सीनेशन नहीं हुआ होता है।
इनके अलावा, नियंत्रित तरीके से बीमारी से परिचय और बचाव के लिए वैक्सीन सबसे बेहतर जरिया होते हैं। वैक्सीनेशन से न केवल आपके बच्चे का अच्छा स्वास्थ्य सुनिश्चित होता है, बल्कि इससे बड़ी आबादी के बेहतर स्वास्थ्य को भी जोड़ा जा सकता है, क्योंकि ऐसे में दूसरे बच्चों को संक्रामक बीमारी का खतरा नहीं होता है। चूंकि वैक्सीन आमतौर पर काफी सुरक्षित होते हैं, इसलिए बच्चों को इनसे मिलने वाली सुरक्षा की तुलना में इसकी जटिलताओं का खतरा बहुत कम होता है।
कुछ खास बीमारियां जो कि कभी पूरी दुनिया में फैली हुई थीं, आज या तो खत्म हो चुकी हैं या प्रभावी रूप से कम हो चुकी हैं। इसका खतरा शून्य के करीब पहुँच चुका है, जो कि मानव इतिहास में आज से पहले तक एक अनसुनी बात रही है। यह केवल उन पेरेंट्स के कारण संभव हो पाया है, जो कि अपने बच्चों का वैक्सीनेशन कराने का निर्णय लेते हैं और यही कारण है, कि बच्चों का वैक्सीनेशन कराना, उन सबसे महत्वपूर्ण और प्रमुख फैसलों में से एक है, जो कोई भी माता-पिता ले सकते हैं।
आपके बच्चे का वैक्सीनेशन कब किया जाना चाहिए?
आमतौर पर आपके बच्चे का वैक्सीनेशन काफी छोटी उम्र में हो जाता है। पर सही सलाह समय-समय पर बदल सकती है और यह इस बात पर निर्भर करती है, कि बच्चे को कौन सी वैक्सीन लगानी है। अधिकतर बच्चों को जन्म के बाद बहुत जल्द उनकी पहली वैक्सीन मिल जाती है और उनके शुरुआती बचपन में ही दूसरे टीके भी लगा दिए जाते हैं। आपको कोई भी निर्णय लेने से पहले हालिया अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय निर्देशों पर विचार करना चाहिए।
अगर आपको किसी भी तरह का संदेह है, तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें और अपने बच्चे को जरूरी वैक्सीनेशन लगाने के लिए सही समय और सही शेड्यूल तय करें।
वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स
आयु चाहे जो भी हो, कुछ वैक्सीन कुछ मौकों पर कुछ साइड इफेक्ट्स दे सकती हैं। ये प्रभाव आमतौर पर सौम्य और कम समय के लिए होते हैं, जैसे कि बुखार या दर्द और जल्दी ही ठीक भी हो जाते हैं। वैक्सीन के अनुसार आपको अपने डॉक्टर से उसके विशेष खतरों, साइड इफेक्ट्स और इनसे निपटने के तरीकों (अगर संभव हो तो) के बारे में बात करनी चाहिए।
कुछ मामलों में, बच्चों को उनके पहले वैक्सीनेशन के गंभीर रिएक्शन देखने को मिलते हैं। ऐसे में आपको अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए और उस वैक्सीन के आगे की खुराकों को जारी रखने के फायदे और नुकसान को लेकर जरूरी कदम के बारे में विचार करना चाहिए।
बच्चों को वैक्सीन कब नहीं लगानी चाहिए?
केवल कुछ बेहद खास परिस्थितियों में ही, बच्चों को वैक्सीन नहीं लगाई जाती है, जो कि आमतौर पर बच्चे के स्वास्थ्य और किसी गंभीर बीमारी की स्थिति पर निर्भर करती है। कई लोग सर्दी-जुकाम, एलर्जी या किसी अन्य मेडिकल समस्या में बच्चों को वैक्सीन लगाने के जटिल नतीजों को लेकर चिंतित होते हैं। लेकिन छोटी-मोटी बीमारियों से होने वाले कॉम्प्लीकेशंस काफी कम ही होते हैं।
जहाँ सभी बच्चों को वैक्सीन लगाई जानी चाहिए, वहीं, नीचे कुछ ऐसी परिस्थितियां दी गई हैं, जिनमें वैक्सीन को कुछ समय के लिए टाल देना चाहिए या परिस्थिति ज्यादा गंभीर हो तो वैक्सीन नहीं देनी चाहिए:
1. पहले दी गई वैक्सीन के प्रति रिएक्शन
अगर बच्चे को पहले लगाई गई किसी वैक्सीन के प्रति गंभीर रिएक्शन हुए हों, तो अपने डॉक्टर से परामर्श लें और बच्चे के लिए उचित कदम उठाने के बारे में बात करें। बच्चों में एलर्जिक रिएक्शन बहुत दुर्लभ होते हैं, पर इनमें हाइव्स, सांस लेने में दिक्कत, ब्लड प्रेशर में बदलाव, बुखार, सिर-दर्द और कन्फ्यूजन आदि शामिल हैं।
2. बुखार
अगर आपके बच्चे को 38 डिग्री सेल्सियस से अधिक बुखार है, तो वैक्सीन को टालने के बारे में अपने डॉक्टर से बात करें।
3. स्टेराइड की भारी खुराक का सेवन
अगर आपका बच्चा कॉर्टिकोस्टेरॉइड की भारी खुराक (जो कि इम्यून प्रतिक्रिया को दबाती है), एमएमआर जैसे लाइव वायरस वैक्सीनेशन और वेरीसैला ले रहा है, तो वैक्सीन लगाने के लिए उसे स्टेराइड बंद होने के बाद कई हफ्तों तक रुकना चाहिए।
4. इम्यूनोडिफिशिएंसी से ग्रस्त या कीमोथेरपी लेने वाले बच्चे
इम्यूनोडिफिशिएंसी से ग्रस्त बच्चे या कैंसर के इलाज से गुजर रहे बच्चों का इम्यून सिस्टम आमतौर पर कमजोर होता है और इसलिए लाइव वायरस वैक्सीन से बचना चाहिए।
5. एचआईवी पॉजिटिव बच्चे
आमतौर पर, जो बच्चे एचआईवी पॉजिटिव होते हैं, उनका इम्यून सिस्टम काफी कमजोर होता है और उन्हें वैक्सीन नहीं लगानी चाहिए। इसमें लाइव फ्लू वैक्सीन एक अपवाद है और कभी-कभी हाई टी-सेल काउंट वाले बच्चे एमएमआर, रोटावायरस और वेरीसैला जैसे लाइव वायरस वैक्सीन कही जाने वाली वैक्सीन ले सकते हैं।
6. अस्थमा
जहाँ अस्थमा और फेफड़ों की दूसरी बीमारियों से ग्रस्त बच्चों को फ्लू वैक्सीन हमेशा लगानी चाहिए, वहीं उन्हें आमतौर पर जीवित कमजोर वायरस युक्त वैक्सीन के नेजल वर्जन से बचना चाहिए, क्योंकि इनसे अस्थमा बिगड़ सकता है।
7. अंडे से एलर्जी
फ्लू और मीजल्स जैसी कुछ बीमारियों के वैक्सीन मुर्गी के अंडों में बनते हैं। इससे उन बच्चों को नुकसान हो सकता है, जिन्हें अंडे से एलर्जी होती है। हालांकि, इसमें इसकी मात्रा इतनी कम होती है, कि अंडे से एलर्जी वाले बच्चों को भी इसका कोई नुकसान नहीं होता है। कई मामलों में जिन बच्चों को अंडों से एलर्जी होती है, उन्हें फ्लू शॉट की खुराक को धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।
अपने बच्चे की स्थिति के अनुसार विशेष मार्गदर्शन के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
आपके बच्चे को किस बीमारी के प्रति इम्यूनाइज किया जाएगा?
पूरे विश्व में आमतौर पर बच्चों को लगाई जाने वाली सबसे आम वैक्सीन में डिप्थीरिया, टिटनेस, पोलियो, हेपेटाइटिस ए, हेपेटाइटिस बी, गैस्ट्रोएन्टराइटिस, मम्प्स, मीजल्स, रूबेला, निमोनिया, मेनिंजाइटिस, हिमोफिलस इनफ्लुएंजा टाइप बी (एचआईबी), चिकन पॉक्स, ट्यूबरक्लोसिस और हूपिंग कफ (परट्यूसिस) शामिल हैं। विशेष रूप से भारत में कुछ वैक्सीन जापानी इन्सेफेलाइटिस जैसी बीमारियों के लिए लगाई जाती हैं, जिसके कुछ मामले भारत के कुछ विशेष राज्यों और एशिया के दूसरे हिस्सों में देखे गए हैं।
1. डिप्थीरिया
एक बैक्टीरिया जो कि रेस्पिरेटरी सिस्टम की परत पर प्रभाव डालता है और सांस लेने में दिक्कत पैदा करता है।
2. टिटनेस
धूल-मिट्टी और गोबर की खाद से आने वाला बैक्टीरिया जो कि त्वचा के माध्यम से शरीर के अंदर प्रवेश कर जाता है और जबड़े में ऐठन और मांसपेशियों की ऐंठन से लेकर जकड़न और निगलने में कठिनाई तक कुछ भी पैदा कर सकता है।
3. पोलियो
यह अपंग बनाने वाली एक खतरनाक संक्रामक बीमारी है, जो कि व्यक्ति के मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड पर हमला करती है और अक्सर इससे लकवा हो जाता है।
4. हेपेटाइटिस ए
यह एक काफी संक्रामक बीमारी है, जो कि लिवर की काम करने की क्षमता पर प्रभाव डालती है। आमतौर पर यह दूषित भोजन और पानी या किसी दूसरे इन्फेक्टेड व्यक्ति से फैलती है।
5. हेपेटाइटिस बी
यह एक वायरल इंफेक्शन है, जो कि लिवर पर हमला करता है।
6. रोटावायरस
यह एक ऐसा वायरस है, जो कि आंतों और पेट में इन्फ्लेमेशन पैदा करता है, जिसे गैस्ट्रोएंट्राइटिस के नाम से जानते हैं।
7. मीजल्स
यह एक अत्यधिक संक्रामक वायरस है, जो कि आम सर्दी के लक्षणों से शुरू होता है और बाद में इसमें रैशेज हो जाते हैं, जो कि पूरे शरीर पर फैल जाते हैं।
8. मम्प्स
यह एक संक्रामक बीमारी है, जो कि बुखार, सिर-दर्द, मांसपेशियों में दर्द से शुरू होती है और अक्सर थकावट, भूख में कमी और सेलिवरी ग्लैंड्स में सूजन तक पहुँच जाती है।
9. रूबेला
यह एक संक्रामक वायरल इंफेक्शन है, जिसके लक्षण शुरुआत में सामान्य होते हैं और बाद में इसमें रैशेज हो जाते हैं।
10. मेनिंजाइटिस
यह मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड को घेरने वाली मेंब्रेन में इन्फ्लेमेशन पैदा करता है।
11. चिकन पॉक्स
इस बीमारी में बच्चों को अक्सर पूरे शरीर पर खुजली वाले लाल फफोले हो जाते हैं।
12. ट्यूबरक्लोसिस
यह एक संभावित गंभीर संक्रामक बीमारी है, जो कि मुख्य रूप से फेफड़ों पर प्रभाव डालती है और यह खाँसने और छींकने से दूसरों तक फैलती है।
13. हूपिंग कफ (परट्यूसिस)
यह एक बहुत ही संक्रामक रेस्पिरेटरी बीमारी है, जिसमें अत्यधिक खांसी होती है और सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है।
बच्चों के लिए आम वैक्सीन
भारत में, द यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम (यूआइपी) सरकार द्वारा चलाई जाने वाली एक योजना है, जिसमें 7 विभिन्न बीमारियों के लिए वैक्सीन दी जाती है और समय के साथ इसका विस्तार हुआ है। 1985 से यूआइपी के अंदर नेशनल इम्यूनाइजेशन शेड्यूल ने पेरेंट्स के लिए एक टाइम टेबल उपलब्ध कराया है, ताकि उन्हें पता चल सके, कि उनके बच्चों को कब और कैसे वैक्सीन लगाई जानी चाहिए, जिसे रूटीन इम्यूनाइजेशन (आरआई) के नाम से जानते हैं। भारत सरकार, वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) जैसे अंतरराष्ट्रीय निकायों के साथ मिलकर वैक्सीनेशन और वायरल स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दों पर नियमित रूप से काम करती है।
आरआई/यूआईपी शेड्यूल वर्तमान में बच्चों के लिए निम्नलिखित वैक्सीन उपलब्ध कराते हैं: बीसीजी (बेसिलस कैल्मेट गुएरिन), डीपीटी (डिप्थीरिया परट्यूसिस एंड टेटनस टॉक्सोइड), ओपीवी (ओरल पोलियो वैक्सीन), हेपेटाइटिस बी, मीजल्स-ल्योफिलाइज्ड, टीटी (टेटनेस टॉक्सोइड) और जापानी इन्सेफेलाइटिस (जेई)।
पूरे विश्व में बच्चों के लिए कुछ सबसे आम वैक्सीन इस प्रकार हैं:
- बीसीजी (बेसिलस कैल्मेट गुएरिन) – यह वैक्सीन ट्यूबरक्लोसिस से सुरक्षा देती है।
- डीपीटी – यह वैक्सीन डिप्थीरिया, परट्यूसिस और टिटनेस टॉक्सोइड से सुरक्षा देती है।
- ओपीवी (ओरल पोलियो वैक्सीन) – यह वैक्सीन पोलियो के प्रति सुरक्षा देती है।
- हेपिटाइटिस ए – यह वैक्सीन हेपेटाइटिस ए के प्रति सुरक्षा देती है।
- हेपिटाइटिस बी – यह वैक्सीन हेपेटाइटिस बी के प्रति सुरक्षा देती है।
- न्यूमोकोकल कन्ज्यूगेट – यह वैक्सीन निमोनिया और मेनिंजाइटिस के प्रति सुरक्षा देती है।
- डीटीएपी – यह वैक्सीन डिप्थीरिया, टिटनेस और परट्यूसिस से सुरक्षा देती है।
- एमएमआर – यह वैक्सीन मम्प्स, मीजल्स और रूबेला से सुरक्षा देती है।
- जापानी इन्सेफेलाइटिस (जेई) – यह वैक्सीन जापानी इन्सेफेलाइटिस से सुरक्षा देती है।
- वेरीसैला – यह वैक्सीन चिकन पॉक्स से सुरक्षा देती है।
ध्यान रखने वाली बातें
जब बच्चों के इम्यूनाइजेशन की बात आती है, तो ऐसी कई बातें हैं, जिनका ध्यान रखना जरूरी होता है।
सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है, कि इनमें से अधिकतर वैक्सीन सीरीज में दी जाती हैं और इनमें एक से अधिक खुराकों की जरूरत होती है। अगर इस सीरीज में से कोई एक खुराक छूट जाए, तो उसे दोबारा शुरू से शुरू करने की जरूरत नहीं होती है। शेड्यूल के अनुसार जितनी जल्दी संभव हो सके इम्यूनाइजेशन हो जाना चाहिए। खासकर शिशुओं के इंजेक्शन और वैक्सीनेशन जितनी जल्दी संभव हो सके, दे दिए जाने चाहिए। लेकिन शॉट लगाते समय बच्चे के स्वास्थ्य के ऊपर ध्यान देना भी जरूरी है।
इसके अलावा, इस बात का ध्यान रखा जाना जरूरी है, कि वैक्सीन किस तरह की इम्युनिटी देती है। इसमें इसके प्रभाव और इसकी अवधि भी शामिल है। अधिक पारदर्शिता के लिए अपने डॉक्टर से मिलकर इस बारे में बात करें। आजीवन इम्युनिटी को सुनिश्चित करने के लिए जरूरी सीरीज में अतिरिक्त खुराक को जोड़ने के बारे में अपने डॉक्टर से बात करें। इसके अलावा कुछ विशेष बीमारियों और उनके प्रभावों से बचने के लिए सप्लीमेंट्स के तौर पर अतिरिक्त वैक्सीन के ऊपर भी विचार करें।
वैक्सीनेशन आसानी से रोकथाम की जा सकने वाली बीमारियों का इलाज करने का एक जरूरी और आसान तरीका है, जिसके माध्यम से बीमारी से बचाव के लिए बीमारी से परिचय कराया जाता है। भारत में छोटी उम्र में इन बीमारियों की रोकथाम और इलाज को सुनिश्चित करने के लिए सरकार की तरफ से आरआई/यूआईपी योजनाएं काम कर रही हैं। आपको वैक्सीनेशन की प्रकृति, विभिन्न प्रकार और माता-पिता के तौर पर आपकी भूमिका के बारे में जानकारी होनी चाहिए। वैक्सीन आम तौर पर काफी सुरक्षित होती हैं और आपके बच्चे और उसके आसपास के अन्य बच्चों के स्वास्थ्य को अनगिनत फायदे पहुँचाती हैं।
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