भगवान गणेश के जीवन से प्रेरित बच्चों के लिए कुछ नैतिक कहानियां

भगवान गणेश के जीवन से प्रेरित बच्चों के लिए कुछ नैतिक कहानियां

हिन्दू धर्म के अनुसार 35 करोड़ देवी देवताओं में गणपति का स्थान सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। वैसे तो सभी देवीदेवता एक समान हैं किन्तु ब्रह्मा और विष्णु जी द्वारा दिए गए सर्वप्रथम पूजनीय देव के वरदान के कारण शिवपुत्र को सर्वश्रेष्ठ देव स्वरुप में पूजा जाता है। उनकी पूजा आज भी हर घर, हर मंदिर, किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले की जाती है । भगवान गणेश हर रूप में पूजनीय हैं, उन्हें एकदंत, सिद्धिविनायक, अष्टविनायक के रूप में भी पूजा जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्र्पदअश्विन माह में गणपति का सबसे बड़ा त्यौहार ‘गणेश चतुर्थी’ मनाया जाता है। इस त्यौहार में लगभग 10 दिनों तक श्री गणेश की पूजा अर्चना होती है और दसवें दिन उन्हें विसर्जित किया जाता है।

सभी देवों में भगवान गणेश एक ऐसे देव हैं जो बच्चे और बड़ों सबके प्रिय हैं और वे सभी आयुवर्ग के मनुष्यों में एक शुभ उदाहरण के रूप में पूजनीय भी हैं। उनके जीवन में घटित हर एक घटना हम सभी के लिए एक शिक्षाप्रद है।

भगवान गणेश के जीवन से प्रेरित कुछ नैतिक कहानियां

भगवान गणेश के प्ररेणादायक जीवन गाथा के अनुसार विनायक, विघ्नहर्ता, गजानन, गजराज, लंबोदर, गणपति, शिवांश और इत्यादि उनके अनेक नाम हैं। यदि विनायक नटखट हैं तो विघ्नहर्ता गणपति उतने ही दयालु और कष्टों को दूर करते हैं। गजराज के जीवन से जुड़ी ऐसी अनेकों प्रसिद्ध कहानियां हैं जो आज भी मनुष्य जीवन को प्रेरित करती हैं। भगवान गणेश के जन्म की एक अद्वितीय गाथाएं हैं जो अनंतकाल से पौराणिक कथाओं में सजोई गई है। भगवान गणेश की कहानियां सिर्फ बड़ों के ही नहीं बल्कि बच्चों के जीवन को भी एक शिक्षा प्रदान करती है, आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ कहानियां;

1. विनायक की जन्म कथा

यह कहानी उस समय की है जब भगवान शिव हजारों वर्षों से अपनी तपस्या में लीन थे और उस दौरान माँ पार्वती कैलाश पर्वत में अकेले ही निवास कर रहीं थी। एक बार स्नान से पहले माता पार्वती ने अपने शरीर के उबटन से एक बालक की मूर्ति का निर्माण किया और अपनी मंत्र विद्या की शक्ति से उस मूर्ति में प्राण डाल दिए। थोड़ी देर बाद वह मूर्ति एक बालक के रूप में जागृत हो गई, माता पार्वती ने उस बालक को अपने पुत्र ‘गणेश’ के रूप में स्वीकार किया और उन्हें कैलाश का द्वारपाल होने की जिम्मेदारी सौंपी और बिना अनुमति किसी को भी अंदर न आने का आदेश भी दिया।

आज्ञा का पालन करते हुए श्री गणेश द्वार पर खड़े थे कि इतने में भगवान शिव अपनी तपस्या पूर्ण करके कैलाश की ओर पधारने लगे। जैसा कि श्री गणेश अपनी माँ की आज्ञा का पालन कर रहे थे, उन्होंने महादेव को रास्ते में ही रोक लिया। ऐसे में भगवान शिव को क्रोध तो आया किन्तु उन्होंने अपने क्रोध को नियंत्रित करते हुए बालक गणेश को समझाया। परन्तु गणपति अपनी माता के आदेश की अवज्ञा करना नहीं चाहते थे । यह बात इतनी बढ़ गई थी कि शिवगणों के साथसाथ सभी देवता, श्री ब्रह्मा और श्री विष्णु व खुद महादेव भी बालक को समझाने में असमर्थ रहें। दूसरी ओर बालक गणेश युद्ध के लिए तत्पर थे, तब भगवान शिव ने क्रोधित होकर त्रिशूल से बालक गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। इतने में माता पार्वती बाहर आ गई और अपने पुत्र को इस हाल में देखकर क्रोधित हो उठीं । क्रोध में आकर देवी पार्वती माँ काली का रूप ले लिया और यह प्रतिज्ञा ली कि अगर भगवान शिव ने उनके पुत्र गणेश को पुनः जीवित नहीं किया तो वे सारी सृष्टि का विनाश कर देंगी। भगवान शिव के साथ सभी देवगण भी चिंतित हो उठे, तब श्री ब्रह्मा ने सलाह दी कि सबसे पहले मिले उस प्राणी के बालक का सिर, गणेश के शरीर से जोड़ा जा सकता है जो माँ अपने बच्चे की ओर पीठ करके सोई हुई हो । तब सबसे पहले एक हथिनी मिली जो अपने पुत्र की ओर पीठ करके सो रही थी। भगवान शिव ने उसी हथिनी के बच्चे का सिर मंत्रों की शक्ति से अपने पुत्र गणेश के शरीर में जोड़ दिया, तब से श्री गणेश को ‘गजानन’ के नाम से भी पुकारा जाता है।

प्रेरणा: इस कहानी के माध्यम से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमारे अनेक भावों में से क्रोध एक ऐसा घातक भाव है जिसमें किसी को भी अत्यधिक हानि पहुँच सकती है।

2. श्री विष्णु का खोया हुआ शंख

श्री विष्णु का खोया हुआ शंख

यह कहानी है उस समय की जब गणपति की नटखट शैतानियों से श्री विष्णु भी न बच पाए।

एक बार श्री विष्णु ध्यान में लीन थे और उनका शंख कहीं खो गया और लंबे अरसे के बाद जब वे अपने तप से जागे तो यह देख अत्यंत क्रोधित हो उठे। उन्होंने अपने शंख को हर जगह ढूंढ़ा, उन्होंने अपनी पूरी शक्ति लगा दी किंतु उनका शंख कहीं भी नहीं मिला। फिर अचानक उन्हें कैलाश पर्वत से एक ध्वनि सुनाई दी। वह ध्वनि उनके शंख की थी, श्री विष्णु तुरंत कैलाश पर्वत जा पहुँचे और वहाँ जाकर देखा कि गणपति वह शंख बजा रहे थे। भगवान विष्णु द्वारा बहुत देर तक मांगने पर भी श्री गणेश ने शंख उन्हें नहीं दिया तब भगवान विष्णु ने महादेव से निवेदन किया कि वे गणपति से शंख मांगे किन्तु गणेश भगवान ने महादेव की बात को भी अनसुना कर दिया। अब गणपति को मनाने के लिए श्री विष्णु ने गणपति का विधि विधान से पूजन किया और साथ ही शंख वापस देने का अनुग्रह भी किया तब जाकर गणपति ने खुश हो कर विष्णु जी का शंख वापस कर दिया।

प्रेरणा: यह कहानी श्री गणेश के नटखट स्वभाव को तो दर्शाती ही है और साथ ही यह कहानी हमें विनम्रता का संदेश भी देती है। जैसे विष्णु जी ने भगवान होते हुए भी गणपति का पूर्ण विनम्रता और विधि के साथ पूजन किया।

3. भगवान शिव की युद्ध की कहानी

भगवान शिव और श्री गणेश की एक साथ अनेक कहानियां हैं। यद्यपि यह कहानी पितापुत्र के रिश्ते से परे है और एक महत्वपूर्ण शिक्षा देती है।

जब श्री गणेश को हाथी का सिर दिया गया तब वे दोबारा जीवित हुए, भगवान शिव ने माता पार्वती की इच्छा को पूर्ण करते हुए यह नियम बनाया कि कोई भी नए काम की शुरुआत करने से पहले भगवान गणेश की पूजा करना और आशीर्वाद लेना आवश्यक है। हालांकि भगवान शिव वह नियम भूल गए थे जो उनपर भी लागू होता है। एक दिन भगवान शिव राक्षसों के संहार के लिए जा रहें थे, किंतु जाने से पहले वे श्री गणेश का पूजन करना भूल गए। इस कारण से भगवान शिव के रास्ते में कई मुश्किलें आई और युद्ध भूमी में पहुँचने से पहले ही उनके रथ के पहिये टूट गए और युद्ध में रुकावट आ गई। भगवान शिव को यह एक दैवीय हस्तक्षेप लग रहा था और उन्हें अचानक याद आया कि युद्ध के लिए जाने से पहले वे श्री गणेश की पूजा करना पूरी तरह से भूल गए हैं। भगवान शिव ने अपनी सेना को रोकते हुए रास्ते में ही विधि विधान से श्री गणेश की पूजा पूर्ण करके युद्ध की ओर प्रस्थान किया। भगवान गणेश की कृपा से शिव जी की सेना ने राक्षसों काविनाश किया।

प्रेरणा: यह कहानी दर्शाती है कि आप जो भी हैं किंतु यदि आपने एक बार जो नियम बना दिया है वह सभी पर समान रूप से लागू होता है।

भगवान शिव की युद्ध की कहानी

4. भगवान गणेश की बुद्धिमानी

यह उस समय की बात है जब पार्वतीपुत्र कार्तिकेय समेत सभी देवताओं में यह बहस छिड़ गई कि ब्रह्माण्ड में सर्वश्रेष्ठ देव कौन है। तब इस बहस का निष्कर्ष निकालने के लिए महादेव ने सभी देवों के बीच एक प्रतियोगिता रखी। जिस प्रतियोगिता में कार्तिकेय, इंद्र देव, सूर्य देव, वायु देव, अग्नि देव और अन्य सभी देव भाग लेने को आतुर थे तब ब्रह्मा देव और श्री विष्णु ने श्री गणेश को भी इस प्रतियोगिता में भाग लेने का आदेश दिया। प्रतियोगिता कुछ ऐसी थी कि जो भी देव, धरतीआकाश समेत पूर्ण ब्रह्माण्ड के 3 चक्कर लगा कर सबसे पहले कैलाश में प्रवेश करेगा, वही सर्वश्रेष्ठ देवता कहलाएगा । अब सभी देव अपने बड़े और शक्तिशाली वाहनों में सवार हो गए, जैसे कार्तिकेय ने मयूर की सवारी की, इंद्र देव अपने गज पर विराजे, वायु देव की तीव्रता से तो कोई भी अनजान नहीं था। ऐसी स्थिति में नन्हे गणेश सोच में पड़ गए कि उनका वाहन तो छोटा सा मूषक है और वो तो इतनी तेज दौड़ भी नहीं पाएगा, अब वे इस प्रतियोगिता में कैसे भाग लें। यह सोचतेसोचते वे अपने मातापिता शिव पार्वती के पास पहुँचे और उनके सामने दोनों हाथ जोड़कर खड़े हो गए। सभी देव अपनाअपना वाहन लेकर निकल चुके थे किंतु पुत्र गणेश ने कैलाश में ही अपने मातापिता दोनों को सर्व शक्तिशाली व पूर्ण ब्रह्माण्ड मानकर उनके चारों ओर ही 3 चक्कर लगा लिए।

सभी देवताओं में सबसे पहले पूर्ण ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाकर यह साबित किया कि वे सर्वश्रेष्ठ देव हैं । इस कार्य से श्री गणेश ने अपनी बुद्धि, चतुराई और मातापिता की ओर समर्पण का एक बड़ा उदाहरण दिया। यह देखकर माँ पार्वती ने खुश होकर श्री गणेश को सर्वश्रेष्ठ पुत्र होने का भी वरदान दिया।

प्रेरणा: जीवन में मातापिता से बड़ा व सर्वव्यापी कोई भी नहीं है और उनका सम्मान सर्वप्राथमिक भी है।

5. माता पार्वती के घाव की कहानी

यह कहानी संपूर्ण विश्व के पृथक होने का उदाहरण देती है।

श्री गणेश एक शरारती और नटखट बालक थे और वे ज्यादातर अपनी नटखट शरारतों में व्यस्त रहते थे। एक बार खेलतेखेलते वे एक बिल्ली के पास जा पहुँचे और उससे शरारत करने लगे। उन्होंने उस बिल्ली को उठाया और उसे जमीन में फेंक दिया, गणेश कभी उसकी पूंछ खींचते तो कभी उसके बाल खींच लेते और ऐसे में वह बिल्ली बेचारी दर्द से चिल्लाई। किन्तु गणेश ने उसकी आवाज को नजरअंदाज कर दिया और वे उसके साथ तब तक खेलते रहे जब तक थक नहीं गए और फिर घर वापस आ गए।

जब गणेश कैलाश पहुँचे तो यह देख कर चकित रह गए कि माता पार्वती जमीन में मूर्छित पड़ी हैं और उनके शरीर में अनेक घाव लगे हैं। गणेश जल्दी से माँ के पास पहुँचे और पूछने लगे कि किस ने उनकी ऐसी दशा की, तो माँ पार्वती ने जवाब दिया गणेश तुमने ही यह किया है। वास्तव में माँ पार्वती ने उस बिल्ली का रूप धारण किया हुआ था और वे अपने पुत्र गणेश के साथ खेलना चाहती थी। किंतु बिल्ली के साथ गणेश का व्यवहार गलत था जिस कारण उन्होंने अपनी माँ को ही हानि पहुँचाई थी।

गणेश को अपने इस व्यवहार पर दुःख था और उन्होंने अपनी माँ से क्षमा मांगी साथ ही किसी भी जानवर के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार करने का संकल्प भी लिया।

प्रेरणा: यह कहानी एक बहुत ही महत्वपूर्ण सबक देती है कि आप दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा आप दूसरों से अपेक्षा करते हैं और इसमें जानवर भी शामिल हैं, यदि आप जानवर से स्नेहपूर्ण और प्यार से पेश आएंगे तो वे भी आपको कोई हानि नहीं पहुंचाएंगे।

माता पार्वती के घाव की कहानी

6. कुबेर का घमंड

कुबेर एक प्रसिद्ध और ब्रह्माण्ड में सर्व समृद्ध देव थे। उनके पास अत्यधिक धन व संपदा होने के कारण खुद पर बहुत अभिमान था। एक दिन कुबेर ने सभी देवीदेवताओं समेत महादेव व उनकी पत्नी पार्वती को भी भोजन पर बुलाया। किन्तु महादेव व देवी पार्वती ने अपनी जगह श्री गणेश को कुबेर के यहाँ भेज दिया। गणपति को कुबेर का घमंडी व्यवहार अच्छा नहीं लगा और उन्होंने कुबेर का घमंड तोड़ने का निर्णय ले लिया। उस समय श्री गणेश कुबेर के महल में उपलब्ध सारा भोजन खा लिया और बाकी देवों के लिए कुछ भी नहीं छोड़ा। गणपति ने उस दिन कुबेर के महल का सारा भोजन ख़त्म कर दिया किन्तु फिर भी वे संतुष्ट नहीं हुए, यह देखकर कुबेर चिंतित हो गए और भगवान शिव के पास मदद के लिए पहुँच गए। गणपति की भूख अब तक शांत न हुई थी तब भगवान शिव ने गणपति को एक कटोरे में अनाज खाने के लिए दिया और तब जाकर उनकी भूख शांत हुई। कुबेर को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने अपनी संपन्नता को अन्य प्राणियों में बांटने का निर्णय किया।

प्रेरणा: कहानी बताती है कि लालच और अभिमान किसी भी व्यक्ति के लिए कैसे हानिकारक हो सकता है और हमें सभी के प्रति विचार करना चाहिए न कि सिर्फ अपने लिए।

7. कावेरी नदी के निर्माण की कहानी

यह कहानी ऋषि अगस्त्य की प्रार्थना से शुरू होती है जो दक्षिण में रह रहे लोगों के हित के लिए एक नदी का निर्माण चाहते थे। भगवान ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार की और उन्हें एक छोटे पात्र में पानी दिया और कहा कि आप जहाँ भी इस पानी को डालेंगे वहीं से नदी का निर्माण हो जाएगा।

ऋषि अगस्त्य ने निर्णय किया कि वे इस नदी का निर्माण कूर्ग के पर्वतों के ऊपर करेंगे और वहीं से इसका बहाव होगा। सफर के दौरान ऋषि थक गए और वे आराम करने के लिए कोई जगह ढूंढ़ने लगे। तभी रास्ते में उन्हें एक छोटा बच्चा मिला जो अकेला खड़ा हुआ था। ऋषि ने उस बच्चे से निवेदन किया कि वह उस पात्र को थोड़ी देर के लिए पकड़ ले ताकि ऋषि आराम कर सकें। वह बच्चा खुद श्री गणेश थे और उस पानी का रहस्य जानते थे और साथ श्री गणेश यह भी जानते थे कि वे जहाँ खड़े हैं वह स्थान भी उस नदी के प्रवाह के लिए उचित है इसलिए उन्होंने वह पात्र वहीं जमीन में रख दिया।

जब ऋषि अगस्त्य वापस आए तो उन्होंने देखा कि वह पात्र जमीन पर रखा है और एक कौवा उसमें पानी पी रहा है। ऋषि ने उस कौवे को उड़ाने का प्रयास किया, वह कौवा इससे पहले उड़ता उसने वह पानी जमीन में गिरा दिया और वहाँ से एक नदी प्रवाहित होने लगी जिसका नाम कावेरी है।

प्रेरणा: कभीकभी चीजें इच्छा अनुसार नहीं होती है किंतु जो भी होता है वह एक अच्छे कारण के लिए ही होता है।

8. एकदंत की कहानी

यह बहुत कम लोग जानते हैं कि श्री गणेश सुख व संपत्ति के स्वामी होने के साथसाथ एक लेखक भी हैं। पौराणिक कथाएं लुप्त न हों इसलिए गजानन ने महाभारत लिखने में श्री वेद व्यास जी की मदद की थी। उस समय पर वेदों, पौराणिक कथाओं का सिर्फ उच्चारण किया जाता था, इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं था। श्री ब्रह्मा ने जन कल्याण हेतु श्री वेद व्यास जी से महाभारत लिखने का अनुग्रह किया था तब वेद व्यास जी ने ब्रह्म देव से अनुरोध किया कि इस कार्य के लिए उन्हें एक लेखक की आवश्यकता होगी। तब श्री ब्रह्मा ने, श्री गणेश का स्मरण किया और उनसे प्रार्थना की कि वे महाभारत लिखने में वेद व्यास जी की सहायता करें। तब गजानन ने वेद व्यास जी के सामने एक शर्त रखी कि वे बिना रुके महाभारत के श्लोकों का उच्चारण करेंगे। ऐसे में श्री वेद व्यास ने भी श्री गणेश के सामने एक शर्त रखी कि वे महाभारत के किसी भी श्लोक को बिना समझे नहीं लिखेंगे और उन दोनों ने एक दूसरे की शर्तों को स्वीकार करके महाभारत लिखने की शुरुआत की। महाभारत के श्लोक लिखते समय श्री गणेश की कलम टूट गई और शर्त के अनुसार वेदव्यास जी को रुकना नहीं था इसलिए श्री गणेश ने समय नष्ट न करते हुए महाभारत को संपूर्ण करने के लिए अपने एक दांत का उपयोग किया था। तब श्री गणेश और श्री वेदव्यास ने इस ग्रंथ को मिलकर पूर्ण किया और उसी समय से श्री गणेश का नाम एक दंत पड़ा।

प्रेरणा: गणेश जी की यह कहानी बहुत स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि एक कार्य को पूरा करने के लिए अनुशासित होना कितना आवश्यक है और इसे पूरा करने के लिए दृढ़ संकल्प का होना अनिवार्य है। किसी महाकाव्य को पूरा करने के लिए एक व्यक्तिगत बलिदान भी आवश्यक हो सकता है।

एक-दंत की कहानी

9. शापित चन्द्रमा की कहानी

यह कथा कुबेर के यहाँ हुई दावत के तुरंत बाद की है, जब श्री गणेश भोजन ग्रहण करने के बाद कैलाश वापस जाने के लिए मूषक की सवारी कर रहे थे। मूषक के अत्यधिक हिलने डुलने के कारण गणपति अपने भारी शरीर के साथ उस पर सवार नहीं हो पाए और धरती पर गिर गए। चंद्र देव गणपति की उस स्थिति को देख कर हँस पड़े और अपनी ख़ूबसूरती पर इतराने लगे। गणपति ने जब उन्हें खुद पर हँसते हुए देखा तो गुस्से में चंद्र को विलुप्त होने का शाप दे दिया। इस दशा में चंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होने गजानन से क्षमा याचना की, तब दयालु विघ्नहर्ता ने उन्हें क्षमा करते हुए चंद्र को 15 दिन में एक बार विलुप्त होने का आदेश दिया। उस समय से आज तक हर 15 दिन का चक्र पूर्ण करने के बाद चंद्र विलुप्त होते हैं, जिस दिन को अमावस्या कहा जाता है।

प्रेरणा: जीवन में कभी भी किसी की परेशानी या विकृति का मजाक न उड़ाएं।

10. मीठे खीर की कहानी

एक दिन भगवान गणेश ने बच्चे का रूप बदला और एक हाथ में चावल और एक हाथ में दूध लेकर एक गाँव में जा पहुँचे। उन्होंने वहाँ हर किसी से निवेदन किया कि कोई उनके लिए खीर बना दे किन्तु सभी अपने कार्य में इतने व्यस्त थे कि किसी ने भी उनकी बात न सुनी। चलतेचलते वह बालक एक झोपड़ी में जा पहुँचा जहाँ एक गरीब औरत रहती थी। बच्चे ने उस औरत से भी निवेदन किया कि वे उनके लिए खीर बना दें। उस औरत ने बच्चे के लिए खीर बनाने के लिए हाँ की और तुरंत एक बर्तन में दूध चावल डालकर खीर बनने के लिए आंच में रख दिया। वह बच्चा बाहर खेलने चला गया और जब तक के लिए खीर पक रही है वह औरत भी सो गई। जागने पर उस औरत को महसूस हुआ कि खीर पक चुकी है और बहुत स्वादिष्ट भी है। उससे रुका न गया और उसने सबसे पहले थोड़ी खीर से गणपति की मूर्ति के आगे भोग लगाया और फिर खुद भी खाने लगी। उस औरत ने अत्यधिक खीर खा ली थी किन्तु वह खीर का बर्तन खाली नहीं हुआ। बच्चे के लौटने पर उस औरत ने बची हुई खीर बालक को देते हुए कहा कि वह अत्यधिक भूखी थी इसलिए उसने पहले ही खीर खा ली। तब उस बच्चे ने भी बड़ी विनम्रता से जवाब दिया कि आपने खुद के खाने से पहले ही गणेश मूर्ति को भोग लगाते समय मुझे भी खीर खिला दी थी। उस औरत की आँखों में आंसू आ गए और वह श्री गणेश के चरणों में नतमस्तक हो गई, गणपति ने खुश होकर उसे अच्छे स्वास्थ्य और संपन्नता का वरदान दिया।

प्रेरणा: अपनी आवश्यकताओं का खयाल करने से पहले भगवान को धन्यवाद जरूर करें और अन्य लोगों की भी मदद करें।

मीठे खीर की कहानी

हालांकि श्री गणेश की अनेकों नैतिक कहानियां हैं और उनका पूर्ण जीवन सभी प्राणियों के लिए प्रेरणादायक है, यही कारण है कि वे हमारे दिल में बसते हैं ।