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जीवन के शुरुआती 5 साल किसी भी बच्चे के लिए बेहद महत्वपूर्ण वर्ष होते हैं। इन्हीं सालों में ऐसी मजबूत नींव बनती है जिस पर बच्चे की प्रगति और उसका विकास पूरी तरह निर्भर करते हैं। इस दौरान बच्चा चीजों को समझना शुरू करता है और अपने आसपास की बातों पर ध्यान देने लगता है। इस पूरे समय में अगर उसे सही दिशा दिखाई जाए और सही ट्रेनिंग दी जाए तो ये बातें उसकी ग्रोथ और डेवलपमेंट में मददगार होती हैं। इसीलिए प्रीस्कूल एजुकेशन सबसे ज्यादा जरूरी होती है।
प्रीस्कूल एजुकेशन किसी भी बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए सीढ़ी बन सकती है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, प्रीस्कूल एजुकेशन न सिर्फ अच्छे सोशल स्किल, बेहतर सामंजस्य और एडजस्टमेंट में मदद कर सकती है, बल्कि आगे चलकर बच्चे के पढ़ाई में भी अच्छा करने में मदद करती है।
प्रीस्कूल बच्चे के संपूर्ण विकास में एक जरूरी भूमिका निभाते हैं। प्रीस्कूल बच्चों की एनर्जी को रचनात्मक तरीके से उभारने की कोशिश करते हैं और उनकी कल्पनाशक्ति को भी बढ़ाते हैं। इसके साथ ही प्रीस्कूल बच्चों के जिज्ञासु मन को संतुष्ट कर सकते हैं और सीखने का कॉन्सेप्ट भी समझा सकते हैं। कई रिसर्च में देखा गया है कि प्रीस्कूल में सीखने के बाद प्राइमरी स्कूल के कॉन्सेप्ट और ग्रेड को बच्चे अच्छे से समझ पाते हैं।
प्रीस्कूल वो पहली जगह होती है जहाँ एक बच्चा अपनी पहचान बनाता है, अपने परिवार के अलावा दूसरे लोगों के साथ बातचीत करना सीखता है, नए दोस्त बनाता है। इस पूरी प्रक्रिया में उसका आत्म्विश्वास भी बढ़ता है। एक प्रीस्कूल बच्चों में पॉजिटिव तरीके उनकी अभिवृत्ति और कौशल को आकार देकर उनकी पर्सनालिटी को विकसित करने में भी अहम भूमिका निभाता है।
इससे भी जरूरी बात ये है कि प्रीस्कूल में बच्चा मजेदार तरीके से खेल-खेल में कई बातें सीख लेता है। दरअसल ये पहली ऐसी जगह है जहाँ बच्चा नई चीजों को सीखता है जिसकी वजह से ये बच्चे के दिमाग में एक अच्छी छाप भी बनाती हैं। इसके अलावा प्रीस्कूल की मदद से पेरेंट्स को कुछ देर आराम करने का भी मौका मिल जाता है, और बच्चे मस्ती करते हुए काफी कुछ सीख लेते हैं।
प्री स्कूल एजुकेशन बच्चे को उनके शुरुआती कुछ सालों में दी जाती है, जिसमें 3-5 साल के बच्चों को मस्ती और खेल-खेल में बहुत कुछ सिखाया जाता है। प्रीस्कूल को प्री-प्राइमरी, प्ले वे या किंडरगार्टन भी कहा जाता है। नीचे प्रीस्कूल एजुकेशन के कुछ फायदे दिए गए हैं:
सबसे जरूरी चीज जो एक बच्चा प्रीस्कूल में सीखता है वो सोशल स्किल यानी सामाजिक गुण और व्यवहार है। प्रीस्कूल एजुकेशन एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहाँ बच्चों को दूसरे बच्चों और टीचर्स से बात करने का मौका मिलता है। बच्चे स्कूल में कई ग्रुप एक्टिविटी में शामिल होते हैं और प्रतियोगिता का हिस्सा बनते हैं। इसके अलावा उनकी अपनी उम्र के बच्चों के साथ बॉन्डिंग भी बनती जाती है और वो प्रभावी रूप एक-दूसरे से बातें करना सीखते हैं, साथ ही आपके द्वारा दी जाने वाली कमांड को समझते हैं और उनके अनुसार काम करते हैं और खुद को दिखाते हैं। प्रीस्कूल एजुकेशन उन बच्चों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है जो स्वभाव से शर्मीले होते हैं। दरअसल ऐसे बच्चों को प्रीस्कूल में दूसरे से बात करने का मौका मिलता है जिससे वो इंट्रोवर्ट नहीं रह पाते।
प्रीस्कूल में बच्चों को खेल-खेल में सीखने के साथ काफी ज्ञान भी मिलता है। जिससे उनके लिए सीखना मजेदार हो जाता है। इसमें कई एक्टिविटीज के द्वारा रंग, आकार, अक्षर, नंबर जैसी बेसिक बातों को मजेदार और दिलचस्प तरीके से सिखाया जाता है। इसके अलावा ड्राइंग और फिंगर पेंटिंग, डांसिंग और सिंगिंग, क्ले मॉडलिंग, ब्लॉक बिल्डिंग एंड काउंटिंग, स्टोरीटेलिंग, नेचर वॉक, एक्टिविटी बुक्स आदि की मदद से बच्चों को मजेदार तरीके से सब कुछ समझाया जाता है और बच्चे बोर या चिड़चिड़े भी नहीं होते हैं।
प्रीस्कूल में दी जाने वाली सभी आविष्कारक एक्टिविटीज का उद्देश्य बच्चों में कल्पनाशीलता और रचनात्मकता को बढ़ावा देना होता है। यहाँ उन्हें क्रिएटिव कॉन्सेप्ट की मदद से कुछ नया ढूंढने, जानने या सीखने को मिलता है। साथ ही आर्टिस्टिक एक्टिविटीज की वजह से बच्चों को सीखने और समझने में आसानी तो होती ही है इसके अलावा कई चीजों पर बच्चों की पकड़ भी मजबूत होती है।
प्रीस्कूल में कई इंटरैक्टिव और फिजिकल एक्टिविटीज से बच्चों में मोटर स्किल विकसित होती है, साथ ही उन्हें बढ़ने में भी मदद मिलती है। बॉल पकड़ना और उसे घुमाना, बीड थ्रेडिंग, बिल्डिंग ब्लॉक्स, साधारण पेपर फोल्डिंग तकनीक, रंग, ग्लू के साथ चीजों को चिपकाना, खाली जगह में सही शेप्स डालने जैसी खेल खेल में होने वाली एक्टिविटीज बच्चे के मोटर स्किल और हाथ और आँखों के बीच कॉर्डिनेशन को बेहतर करने में अहम भूमिका निभाती है। वहीं अलग-अलग तरह के जिगसॉ पजल्स और बच्चों की उम्र के हिसाब के खिलौने उनके दिमाग के कॉग्निटिव विकास में मदद करते हैं।
प्रीस्कूल बच्चे को आने वाले सालों के लिए और स्कूली जीवन के लिए काफी कुछ सिखाता है। इसकी मदद से पेरेंट्स को कुछ समय का आराम तो मिलता ही है, इसी के साथ सुरक्षा और एक सही वातावरण मिलता है जो बच्चों में जागरूकता पैदा करता है। यहाँ बच्चे प्लेफुल और क्रिएटिव तरीके से नई-नई बातों और चीजों को समझते हैं और साथ ही एन्जॉय भी करते हैं। दरअसल प्रीस्कूल जाने से बच्चे का रूटीन बन जाता है, जिसकी वजह से आगे चलकर एलिमेंट्री स्कूल में पढाई और अन्य बातों को समझने में उसे आसानी होती है।
चाइल्ड केयर या डे केयर सेंटर या क्रैश एक तरह की कमर्शियल जगह होती है जहाँ वर्किंग पेरेंट्स अपने बच्चों को कुछ घंटों (ऑफिस के समय) के लिए छोड़ सकते हैं। यहाँ बेबीसिटर या फिर नैनी उनकी देखभाल करती हैं। जब पेरेंट्स अपने काम पर होते हैं तो यहाँ बच्चों का ध्यान रखा जाता है।
प्रीस्कूल एक तरह की शैक्षिक संस्था ही है जो 3 से 4 साल से कम उम्र के उन बच्चों को शुरुआती दौर में शिक्षा देती है जिनकी उम्र प्राइमरी स्कूल जाने के लिए अभी छोटी है। यहाँ प्रोफेशनली क्वालिफाइड और ट्रेंड टीचर ही बच्चों को खेल-खेल में अलग-अलग एक्टिविटी कराते हैं और उन्हें पढ़ाते हैं।
हालांकि, इन दोनों ही जगह को एक जैसा कहा जा सकता है। चाइल्ड केयर सेंटर में प्रोफेशनल टीचर एक्साइटिंग एक्टिविटी और खेल-खेल में बच्चों को वही सब सिखाते हैं जो एक प्रीस्कूल में भी सिखाया जाता है।
कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि प्रीस्कूल एजुकेशन सिर्फ एक अच्छा कॉन्सेप्ट ही नहीं है बल्कि आगे चलकर बच्चे की पढ़ाई में भी इससे काफी मदद मिलती है। प्रीस्कूल को सिर्फ पढ़ाई के लिहाज से ही नहीं देखा जाना चाहिए, जब बच्चा यहाँ आता है तो वो खेल-खेल में पढ़ाई में तो काफी कुछ सीखता ही है इसी के साथ उसमें सामाजिक, भावनात्मक, मानसिक और व्यक्तिगत विकास भी होता है। प्रीस्कूल एजुकेशन अलग-अलग तरह की मोटर और फिजिकल स्किल को भी बढ़ाने में मदद करता है, जिससे बच्चा लिखना, बोलना और सीखना शुरू कर देता है।
इसके अलावा ज्यादातर पेरेंट्स इन दिनों वर्किंग होते हैं, ऐसे में उनके लिए अपने बच्चे के साथ क्वालिटी टाइम निकालना काफी मुश्किल हो जाता है जिससे कि वो बच्चों को कुछ सिखा पाएं। बच्चों को अक्सर उनके दादा-दादी या फिर कुछ ऐसे लोगों के साथ देखभाल के लिए छोड़ दिया जाता है जो शायद बच्चों को सही से गाइड नहीं कर पाते।
कई प्रीस्कूल बच्चों को ढाई साल की उम्र में दाखिला देते हैं जबकि कुछ तभी एडमिशन करते हैं जब बच्चा तीन साल का हो जाता है। दरअसल बच्चों को कब प्रीस्कूल में डालना है ये पूरी तरह पेरेंट्स पर ही निर्भर करता है। अगर पेरेंट्स कामकाजी हैं और अपने बच्चे से दूर रहने के लिए तैयार हैं, या फिर वो चाहते हैं कि उनका बच्चा खुद को तलाशने के लिए तैयार हैं तो वो प्रीस्कूल में अपने बच्चे का दाखिला करवा सकते हैं। बच्चों को यहां पार्ट टाइम या फुल टाइम के लिए भी रखा जा सकता है।
प्रीस्कूल बच्चों के विकास पर पूरी तरह से प्रभाव डाल सकता है। प्रीस्कूल शिक्षा काफी जरूरी होती है। इसलिए पेरेंट्स को अपने बच्चे के लिए प्रीस्कूल का चयन करते हुए सावधानी बरतने की जरूरत होती है। दरअसल ये पहली बार होगा जब आपका बच्चा आपसे और घर के कंफर्ट जोन से दूर होगा। इसलिए प्रीस्कूल भी बच्चे को अपने दूसरे घर की ही तरह लगना चाहिए, जहाँ वो घर की ही तरह महसूस करे और आराम से खुश रह सके। प्रीस्कूल का चयन करते वक्त कुछ जरूरी बातों को भी ध्यान में रखें:
पेरेंट्स को अपने बच्चे के स्वभाव, उत्साह और उम्र के हिसाब से सही शेड्यूल चुनना चाहिए। मतलब आप अपने बच्चे को उसके हिसाब से एक हफ्ते में पार्ट टाइम जैसे 2-3 घंटे या फिर हफ्ते में 5 दिन फुल टाइम भी भेज सकते हैं। इसके अलावा कुछ लोग अपने घर के आसपास ही प्रीस्कूल देखना पसंद करते है, ताकि घर से प्रीस्कूल तक जाने में बच्चे को ज्यादा सफर न करना पड़े।
प्रीस्कूल के लाइसेंस की जांच करना काफी जरूरी है। स्कूल के पास मान्यता प्राप्त सर्टिफाइड लाइसेंस होना चाहिए, जिससे पता चलता है कि ये पढ़ाई, पाठ्यक्रम, सुरक्षा, हेल्थ केयर, साफ-सफाई और चाइल्ड केयर से जुड़ी सभी सुविधाएं दे रहा है या नहीं।
प्रीस्कूल में पढ़ाने वाले टीचिंग स्टाफ की शैक्षिक योग्यता की जांच करना भी बहुत जरूरी है। अच्छी शिक्षा वाले और ट्रेंड टीचर ही बच्चों को बेहतर तरीके से पढ़ाने के साथ-साथ उनकी देखभाल भी कर पाएंगे।
इस बात का ध्यान रखें कि प्रीस्कूल में आपके बच्चे को किस तरह की एक्टिविटी और सुविधाएं दी जाती हैं। पेरेंट्स, टीचर्स द्वारा बच्चों को पढ़ाने के लिए किस एक्टिविटी और मेथड का इस्तेमाल करते हैं इस विषय में पूछ सकते हैं। अगर आप ऐसा नहीं करते तो शायद टीचर बच्चे पर अच्छे से ध्यान न दे। दरअसल बच्चे की उम्र के हिसाब से करिकुलम बनाया जाता है जिसके अंतर्गत बच्चों को एक्टिविटी करवाई जाती हैं, इसलिए आपके बच्चे को प्रीस्कूल में क्या सिखाया जा रहा है इस पर ध्यान देना भी जरूरी है।
हालांकि, ये किसी भी स्कूल या प्रीस्कूल में पूछे जाने की सलाह दी जाती है कि वहाँ कितनी पेरेंट्स-टीचर्स मीटिंग होती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे पता चलता है कि आपके बच्चे की प्रगति क्या है साथ ही इसमें स्कूल की ओर से बच्चे का फीडबैक भी तैयार किया जाता है। कई प्रीस्कूल ओपन हाउस मीटिंग भी रखते हैं जहाँ पेरेंट्स क्लास में पढ़ाने वाले टीचर्स, स्कूल के कामकाज और प्रीस्कूल के माहौल को भी देख सकते हैं।
बच्चे समाज का भविष्य होते हैं। माता-पता अपने बच्चे को एक अच्छी प्रीस्कूल एजुकेशन देकर न केवल उसके लिए अच्छा करते हैं बल्कि पूरी सोसाइटी के हित में काम करते हैं। प्रीस्कूल एजुकेशन के कारण बच्चे पढ़ाई में अच्छा कर पाते हैं और साथ ही अपनी स्कूल लाइफ को एन्जॉय भी करते हैं।
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