गर्भावस्था

गर्भपात के प्रकार, तरीके व प्रक्रिया

एक गर्भवती महिला अपनी गर्भावस्था के दौरान अनेक समस्याओं का सामना करने में सक्षम होती है किंतु गर्भधारण के बाद किसी भी कारण से यदि गर्भपात की स्थिति उत्पन्न हो जाए तो यह समस्या उसके लिए अत्यधिक असहनीय हो जाती है। हालांकि पति-पत्नी दोनों के लिए गर्भपात का निर्णय ले पाना बहुत मुश्किल होता है।गर्भपात अनेक कारणों से हो सकता है और इसे करने के कई तरीके व दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। गर्भपात के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लेख को पूरा पढ़ें।

गर्भपात क्या है?

गर्भ में पल रहे भ्रूण या गर्भावस्था को खत्म करने को ‘गर्भपात’ कहते हैं और यह क्रिया एक माँ के लिए मानसिक व शारीरिक रूप से अधिक पीड़ादायक होती है। गर्भपात करने के लिए डॉक्टर दवाओं व सर्जरी का उपयोग करते हैं। गर्भ में पल रहे शिशु की अनायास या प्राकृतिक रूप से मृत्यु हो जाने पर भी गर्भपात हो सकता है जिसे आम भाषा में ‘मिसकैरेज’ कहते हैं।

गर्भपात के बाद महिलाओं को इसके दुष्प्रभावों का भी सामना करना पड़ सकता है, जिसमें शामिल हैं अत्यधिक रक्तस्राव, श्रोणि में ऐंठन या दर्द महसूस होना, जी मिचलाना और उल्टी होना। गर्भपात के बाद यदि आप इन लक्षणों का सामना करती हैं तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

गर्भपात के प्रकार

महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए गर्भपात की प्रक्रिया गर्भावस्था के विभिन्न चरण पर निर्भर करती है। गर्भावस्था के शुरूआती दिनों में गर्भपात सरल होता है और इसे दवाओं के सेवन से भी किया जा सकता है। किंतु यदि किसी महिला की गर्भावधि अधिक हो चुकी है तो डॉक्टर ज्यादातर सर्जरी करवाने की सलाह देते हैं। गर्भावस्था के चरण के आधार पर गर्भपात निम्नलिखित समय के दौरान किया जा सकता है;

  • पहली तिमाही अर्थात 1-3 महीनों में गर्भपात करवाया जा सकता है जो सरल होता है और इसे दवाओं के माध्यम से भी किया जा सकता है।
  • दूसरी तिमाही के अंतराल में 4-6 महीनों के बीच गर्भपात करवाया जा सकता है।
  • गर्भपात की यह प्रक्रिया तीसरी तिमाही में 7-9 महीनों के बीच सर्जरी द्वारा करवाने की सलाह दी जाती है।

गर्भावधि के अनुसार गर्भपात करवाने के अलग-अलग तरीके होते हैं जिन्हें निम्नलिखित अनुसार उपयोग करने की सलाह दी जाती है।

  • चिकित्सीय गर्भपात: चिकित्सीय प्रक्रिया में गर्भपात कराने के लिए कुछ दवाओं व इंजेक्शन द्वारा हॉर्मोन या रसायन का उपयोग किया जाता है। मिफेप्रिस्टोन (Mifepristone) और मिसोप्रोस्टोल (Misoprostol) दो सामान्य रूप से उपयोग किए जाने वाले तत्व हैं जो RU- 486, गर्भपात की गोली/पिल या मिफेप्रैक्स (Mifeprex) के रूप में उपलब्ध हैं।गर्भपात के लिए इन तरीकों का उपयोग आमतौर पर गर्भावस्था की पहली तिमाही की शुरुआत से लेकर मध्य तक किया जाता है।
  • सर्जरी के द्वारा गर्भपात: इनवेसिव या सर्जरी के कुछ तरीके हैं जैसे मैनुअल वैक्यूम एस्पिरेशन, डायलेटेशन व क्यूरेटेज। दूसरी तिमाही में गर्भपात या चिकित्सा द्वारा किए गए असफल गर्भपात के लिए डायलेटेशन या इवैक्युएशन का उपयोग किया जा सकता है।

पहली तिमाही में किए जाने वाले गर्भपात के तरीके

गर्भवती महिला के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए पहली तिमाही में गर्भपात करवाना सुरक्षित माना जाता है। इस दौरान गर्भपात दवाओं/चिकित्सीय या सर्जरी, दोनों तरीकों के माध्यम से किया जा सकता है। हालांकि, गर्भावस्था के शुरूआती माह से लेकर अंतिम माह तक गर्भपात हमेशा चिकित्सीय ही होना चाहिए।

चिकित्सीय गर्भपात करने के दो सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाले तरीके निम्नलिखित हैं:

1. मिथोट्रेक्सेट (एम.टी.एक्स.) और मिसोप्रोस्टोल :

गर्भावस्था के पहले 7 हफ्तों तक गर्भपात के इस तरीके का अधिक उपयोग किया जाता है। मिथोट्रेक्सेट की पिल या लिक्विड, डीहाइड्रोफोलेट रेडक्टेस के एंजाइम को अवरुद्ध करती है और डी.एन.ए. सिंथेसिस के लिए उपयुक्त थाइमिडीन के उत्पादन को रोकती है। यह गर्भ में पल रहे भ्रूण के लिए विषाक्त होती है, इसकी लगभग 75 मि.ग्रा. की मात्रा गर्भावस्था को खत्म करने में सक्षम है। मिसोप्रोस्टोल एक प्रोस्टाग्लैंडीन होता है जो गर्भाशय के लिए एक यूटेरोटॉनिक की तरह कार्य करता है और गर्भाशय के संकुचन को उत्तेजित करके भ्रूण को बाहर निकालता है।

2. मिफेप्रिस्टोन और मिसोप्रोस्टोल:

मिफेप्रिस्टोन नामक पहली पिल, गर्भावस्था को सक्रीय करने वाले आवश्यक हॉर्मोन को अवरुद्ध करती है। मिसोप्रोस्टोल नामक दूसरी पिल गर्भाशय की ऐंठन को बढ़ाती है जिससे रक्त-स्राव होता है और इस प्रकार से गर्भपात हो जाता है (यह मिसकैरेज के समान होता है)।

गर्भावस्था की पहली तिमाही के अंत में गर्भपात या चिकित्सीय तरीकों द्वारा असफल गर्भपात में सर्जरी के निम्नलिखित तरीकों का उपयोग किया जा सकता है:

  • मैनुअल एस्पिरेशन

एम.वी.ए. या मैनुअल वैक्यूम एस्पिरेशन सर्जरी का सबसे कम प्रभावी तरीका है जिसका उपयोग गर्भधारण के दूसरे से तीसरे महीने में गर्भपात के लिए किया जाता है। सर्जरी की इस प्रक्रिया में दर्द न हो इसलिए महिला को एनेस्थीसिया देकर गर्भ में पल रहे भ्रूण को सक्शन ट्यूब के जरिए गर्भाशय ग्रीवा से बाहर खींचा जाता है।

  • डायलेटेशन व क्यूरेटेज (डी. एंड. सी.)

डॉक्टर द्वारा स्टील के चम्मच जैसे आकार के यंत्र की मदद से गर्भनाल को अलग करके हटाते हुए भ्रूण को गर्भाशय से बाहर निकाला जाता है। इस तरीके का उपयोग 3 महीने की गर्भावस्था में गर्भपात की प्रक्रिया के रूप में किया जा सकता है और इसमें एम.वी.ए. की तुलना में अधिक रक्त की हानि होती है।

दूसरी तिमाही में किए जाने वाले गर्भपात के तरीके

1. सर्जरी: डायलेशन व इवैक्युएशन (डी. एंड ई.)

डी. एंड ई. प्रक्रिया डायलेशन व क्यूरेटेज (डी. एंड सी.) के समान होती है और आमतौर पर गर्भपात के लिए इसका उपयोग गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में 24वें सप्ताह तक किया जा सकता है।  इन दोनों प्रक्रियाओं में अंतर यह है कि डॉक्टर द्वारा यंत्र की मदद से भ्रूण को निकालने के बजाय, डॉक्टर एक चिमटी के द्वारा भ्रूण को गर्भाशय ग्रीवा से बाहर निकालते हैं और अंत में बचे हुए गर्भाधान के अन्य टिशू को हटाने के लिए वैक्यूम एस्पिरेशन का उपयोग किया जाता है। गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में भ्रूण के सिर का निर्माण होने के कारण गर्भपात की इस प्रक्रिया से गर्भाशय ग्रीवा को अत्यधिक हानि होती है और नाड़ी से अत्यधिक रक्त-स्राव भी होता है।

2. इंस्टीलेशन

हालांकि यह सामान्य से बहुत कम होता है लेकिन दूसरी तिमाही के अंतिम चरण (गर्भावस्था के 5वें या 6वें महीने में गर्भपात की प्रक्रिया) से लेकर तीसरी तिमाही तक रासायनिक गर्भपात के तरीकों का उपयोग किया जाता है जिसमें इंजेक्शन द्वारा कुछ दवाओं या रसायनों को पेट में या गर्भाशय ग्रीवा के माध्यम से एमनियोटिक थैली में डाला जाता है जिस कारण से भ्रूण की मृत्यु के बाद वह गर्भ से बाहर निकल जाता है।

3. सोडियम पोइज़निंग (4 महीने से अधिक)

“सलाइन ऐम्नीओसेन्टीसिस” या “हाइपरटॉनिक सलाइन” गर्भपात के तरीके के रूप में भी जाना जाता है, आमतौर पर इसका उपयोग गर्भावस्था के 16 सप्ताह के बाद किया जाता है। इस प्रक्रिया में एमनियोटिक द्रव को सोडियम सॉल्यूशन से बदल दिया जाता है और यह हाइपरटॉनिक सलाइन बच्चे के लिए विषाक्त होता है।

4. यूरिया (5-8 महीने)

ऑक्सीटॉसिन या प्रोस्टाग्लैंडिन-युक्त यूरिया के उपयोग से भी गर्भपात किया जा सकता है। हाइपरटॉनिक सलाइन से अधिक खतरा हो सकता है इसलिए डॉक्टर प्रोस्टाग्लैंडिन-युक्त यूरिया के इंजेक्शन की सलाह देते हैं।

5. प्रोस्टाग्लैंडिंस (4-9 महीने)

प्रोस्टाग्लैंडिंस प्राकृतिक रूप से होते हैं या यह शरीर में आंतरिक रूप से मौजूद पदार्थ होते हैं जो सामान्यतः प्रसव के लिए आवश्यक हैं। अत्यधिक पैरेन्टेरल प्रोस्टाग्लैंडिन्स को इंजेक्ट करने से तीव्र प्रसव-पीड़ा शुरू हो जाती है, जिसके परिणाम-स्वरूप गर्भपात सहजता से होता है। इस तरीके का उपयोग आमतौर पर दूसरी तिमाही (5वें या 6वें महीने की गर्भपात प्रक्रिया) के दौरान किया जाता है।

तीसरी तिमाही में किए जाने वाले गर्भपात के तरीके

गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में भ्रूण का महत्वपूर्ण शारीरिक विकास होता है। यदि गर्भावस्था के दौरान संरचनात्मक विसंगतियां या आनुवंशिक (जेनेटिक) रोगों की समय रहते जांच नहीं हो पाई है, तो यह तीसरी-तिमाही में गर्भपात का संकेत हो सकता है, इस स्थिति में केवल सर्जरी द्वारा गर्भपात किया जा सकता है ।

  1. आंशिक-गर्भपात (5-8 महीनों के बीच गर्भपात)

इस तकनीक का उपयोग गर्भपात के लिए उन महिलाओं में किया जाता है जिनकी गर्भावधि 5-8 महीने की हो जाती है। डॉक्टर द्वारा सोनोग्राफी और चिमटी की मदद से बच्चे के शरीर और अन्य उपकरणों से शिशु के सिर को गर्भाशय से बाहर निकाला जाता है।

  1. हिस्टेरोटॉमी (6-9 महीनों के बीच गर्भपात)

डॉक्टर सर्जरी या ऑपरेशन द्वारा गर्भाशय में चीरा लगाकर भ्रूण और गर्भनाल को बाहर निकालते हैं। यह प्रक्रिया सी-सेक्शन (सिजेरियन) के समान होती है किन्तु इस तरीके का उपयोग तब किया जाता है जब गर्भ में ही भ्रूण की मृत्यु हो चुकी हो।

गर्भपात के प्राकृतिक तरीके

जब एक गर्भवती महिला बिना चिकित्सीय सलाह के दवाओं या गैर-औषधीय पदार्थों का उपयोग करके अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने का प्रयास करती है, तो इसे ‘स्व-गर्भपात’ कहा जाता है। स्व-गर्भपात के लिए चिकित्सक से सलाह लेने व आपके लिए इसके कौन से तरीके सही हैं, यह जानकारी लेने को ‘इन-क्लिनिक’ गर्भपात कहते हैं। शुरुआती महीनों में स्व-गर्भपात के तरीके आसान और अधिक सफल रहे हैं। किन्तु खयाल रहे यह तरीके आपके स्वास्थ्य के लिए खतरा हो सकते हैं और इसका असफल प्रयास भ्रूण व आपके स्वास्थ्य को गंभीर व स्थायी नुकसान भी पहुँचा सकता है।

स्व-गर्भपात के लिए आमतौर पर प्रचलित तरीके निम्नलिखित हैं:

  • अतिरिक्त शारीरिक परिश्रम: भारी वजन उठाने से पेट पर दबाव बढ़ सकता है जिससे गर्भपात होने की संभावना होती है।
  • गर्भान्तक खाद्य पदार्थों और उत्पादों का सोवन: कुछ खाद्य पदार्थ और उत्पाद, जैसे मटन मज्जा, सूखी मेंहदी का पाउडर गाजर के बीज का सूप गर्भपात का कारण बन सकते हैं और इसके अलावा विटामिन ‘सी’, पपीता और इत्यदि से भी सहज गर्भपात होने की संभावना बढ़ जाती है।
  • पेट पर आघात: पेट पर अत्यधिक मालिश करने से और पेट के आस-पास अन्य शारीरिक आघात के परिणामस्वरूप गर्भपात हो सकता है।
  • पेट के बल गिरना: गर्भवती महिला का पेट के बल गिरने से भी गर्भपात होने की संभावना बढ़ सकती है।
  • नुकीले उपकरण: सुई, हुक, सेफ्टी पिन आदि जैसे नुकीला उपकरण चुभने से भी गर्भपात हो सकता है।
  • गर्भाशय ग्रीवा के माध्यम से गर्भाशय गुहा में वैक्यूम उपकरण डालने से भी गर्भपात की संभावना बढ़ सकती है।
  • हानिकारक रसायन का उपयोग: कुछ पदार्थ जैसे तारपीन का तेल, कुछ योनिक पेसरीज़ जननांग पथ और इसके आस-पास के अणु-जीवों के लिए हानिकारक और प्रभावी होते हैं। इनके संपर्क से भी सहज गर्भपात हो सकता है।

एक माँ के लिए गर्भपात महत्वपूर्ण प्रक्रिया है और उसके जीवन पर इसका अत्यधिक प्रभाव पड़ सकता है। गर्भपात करने के मान्य कारण होना चाहिए और साथ ही इसे सही समय पर व सही तरीके से पूरी चिकित्सीय परीक्षण के साथ करना अनिवार्य है।

सुरक्षा कटियार

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