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ये कहानी सिंदबाद जहाजी की है, जिसमें हिंदबाद नाम के मजदूर की गरीबी के बारे में बताया गया है। लेकिन वही मजदूर अपनी गरीबी के लिए किसी और की अमीरी को कोस रहा था और साथ ही भगवान से भी अपने गरीब होने की शिकायत कर रहा था। उसके मुताबिक अमीर आदमी बिना मेहनत के अमीर हो जाता है। लेकिन सिंदबाद जहाजी ने उसकी ये गलतफहमी दूर कर दी और उसे बताया की हर व्यक्ति को उसकी मेहनत के मुताबिक ही सब कुछ हासिल होता है।
एक बार की बात है, शहरयार को शहरजाद की कहानियां सुनना बहुत पसंद था। उसे शहरजाद की कहानियां बहुत रोमांचक और मजेदार लगती थी। जब शहरजाद ने अपनी कहानी पूरी की तभी शहरयार को दूसरी कहानी सुनने का मन हुआ और उसने पूछा कोई दूसरी कहानी आती है। शहरजाद ने जवाब दिया कि उसे बहुत सारी कहानियां आती हैं और उसके बाद वह दूसरी कहानी सुनाना शुरू कर देता है। इस नई कहानी का शीर्षक “सिंदबाद जहाजी” था। हम इस लेख के माध्यम से आपको ये कहानी सुनाते हैं।
शहरजाद ने अपनी कहानी की शुरुआत खलीफा रशीद के शासन काल से की जिसमें हिंदबाद नाम का एक मजदूर रहता था और वह बहुत गरीब था। गर्मियों का समय था और हिंदबाद अपने सिर पर भारी भरकम सामान रखकर कहीं ले जा रहा था। सिर के ऊपर भारी भोझ और तेज धूप और गर्मी की वजह से हिंदबाद को बहुत थकान होने लगी। हिंदबाद अपनी थकान मिटाने के लिए कहीं रुकने का निर्णय लेता है। जिस घर के पास वो बैठा था, उसके अंदर से बहुत अच्छी खुशबू आ रही थी। इतना ही नहीं गली में गुलाब जल का छिड़काव भी कर रखा था, जिसकी वजह से ठंडी हवा के साथ गुलाब की खुशबू आ रही थी। इन सब के बीच पक्षियों की चहचहाने की आवाज आ रही थी और उस बीच स्वादिष्ट पकवान की खुशबू उसका मन मोह रही थी। इतना सब कुछ देखकर हिंदबाद को ये लगने लगा कि शायद ये किसी अमीर आदमी का घर है। उसे अब ये जानना था कि आखिर ये घर किसका है?
मजदूर को दिखाई दिया कि उस घर के बाहर सारे नौकर आ रहे और जा रहे थे। वहां के एक सेवक से मजदूर ने पूछा, “इस घर का मालिक कौन है?” मजदूर की बातों को सुनकर सेवक हैरान हो गया और बोला, “तू बगदाद में रहता है और उसके बाद भी तुझे इस घर के मालिक के बारे में पता नहीं है। “ये सिंदबाद जहाजी का घर है, जो करोड़पति है।
घर के मालिक के बारे में जैसे ही मजदूर को पता चला, उसने तुरंत अपने दोनों हाथों को आसमान की तरफ करता है और कहता है, “हे ईश्वर, आपने दुनिया को बनाया लेकिन ये कैसा अन्याय है।” एक ओर सिंदबाद है जो अपनी जिंदगी आराम से जी रहा है और वहीं दूसरी तरफ मैं दिन-रात मेहनत और मजदूरी करके बहुत मुश्किल से अपनी बीवी और बच्चों का पालन-पोषण कर पाता हूं। मजदूर आगे बोला, “हम दोनों इंसान है, आखिर हम दोनों में क्या फर्क है? “हिंदबाद की बातें सुन कर ऐसा लग रहा रहा था कि जैसे वो भगवान के सामने अपना गुस्सा जाहिर कर रहा हो। मजदूर दुखी होकर अपनी किस्मत को कोसने लगता है।
मजदूर जब बाहर खड़ा था उसी वक्त एक सेवक ने उसका हाथ पकड़ा और बोला, “अंदर चलो, तुझे हमारे मालिक सिंदबाद ने बुलाया है।” ये सुनकर मजदूर घबरा गया और सोचने लगा कि कहीं मेरी कही हुई बातें सिंदबाद ने तो नहीं सुन ली, इसलिए मुझे अंदर बुलाया है और कहीं वो हमें सजा न दे दें। मजदूर इतना डर गया कि उसने सेवक से बोला, “मैं अंदर नहीं जाऊंगा और सामान बाहर होने का बहाना बनाने लगा और कहने लगा उसके सामान को कोई चोरी कर लेगा।” सेवक ने मजदूर से कहा, “तू परेशान न हो हम तेरे सामान का ध्यान रख लेंगे, उसे कुछ नहीं होगा और न तुझे कुछ होगा।” लेकिन इसके बाद भी मजदूर सेवक से लगातार बहस करता रहा, लेकिन अंत में उसे अंदर जाना ही पड़ा।
सेवक मजदूर को ऐसी जगह पर ले गया जहां बहुत सारे लोग एक साथ बैठकर खाना खा रहे थे। उस जगह पर बहुत सारे पकवान बने हुए थे और इन सब के बीच एक बूढ़ा अमीर और लंबी सफेद दाढ़ी वाला आदमी भी बैठा था। उस बूढ़े आदमी के पीछे बहुत सारे सेवक खड़े हुए थे। ये सब देखकर मजदूर की हालत खराब हो गई थी। उसके बाद उसने सफेद दाढ़ी वाले आदमी को डरते हुए सलाम किया। उस सफेद दाढ़ी वाले आदमी का नाम सिंदबाद था और वह मजदूर के सलाम का बहुत खुश होकर जवाब देता है और उसके सामने पकवान और मदिरा भी रखता है। सिंदबाद वहां बैठे बैठे सभी लोगों को देख रहे थें कि सब ने खाना खाया है या नहीं। जब सभी लोगों ने भोजन कर लिया तो सिंदबाद ने मजदूर को दोबारा से देखा।
सिंदबाद ने मजदूर को ध्यान से देखा और बोला, ‘अरबी, तुम्हारा नाम क्या है।’ दरअसल बगदाद में किसी को सम्मान से बुलाने पर अरबी बोला जाता है। सिंदबाद आगे बोला, “मैं और यहां मौजूद सभी लोग तुम्हारे आने से बहुत प्रसन्न हैं।” लेकिन “मैं तुम्हारे मुंह से वो बातें फिर से सुनना चाहता हूं जो तुमने बाहर बोला था।” वास्तव में सिंदबाद जिस जगह पर बैठे थे वो हिस्सा वही था जहां मजदूर बैठा हुआ था, जिसकी वजह से सिंदबाद ने उसकी बातों को सुन लिया।
मजदूर को अपनी कही हुई बातों को सोचकर बहुत शर्म आ रही थी। मजदूर सिंदबाद से बोला कि उस दौरान मैं बहुत थका हुआ था और भयंकर गर्मी की वजह से गुस्से में आ गया था और गुस्से में मेरे मुंह से ऐसी बातें निकल गई थी, जिन्हें मैं ऐसे खुले में नहीं बोल सकता हूं। हिंदबाद ने अपनी बातों के लिए सिंदबाद से माफी भी मांगी।
मजदूर के क्षमा मांगते ही सिंदबाद ने कहा, “मैं किसी पर अत्याचार नहीं करता और न ही किसी के कुछ कहने पर उसे सजा देता हूँ।” सिंदबाद आगे बोला, “बात यह है कि मुझे तुम्हारी बातों को सुनकर गुस्सा नहीं बल्कि दया आई और तुम्हारी हालत को लेकर अफसोस भी हुआ। लेकिन तुमने जो बातें बोली वो बिना सच जाने बोली।” सिंदबाद ने कहा, “तुम्हें ये लगता है कि मैंने बिना कोई मेहनत किए ये सब रुतबा और पैसा कमाया है। मैंने भी बहुत सारी मुश्किलों का सामना किया है और उसके बाद ही भगवान ने मुझे ये सब दिया है।”
सिंदबाद ने महल में मौजूद सभी लोगों से बोला, “मैं कई सालों तक बहुत सारी मुश्किलों का सामना किया है।” मेरी कहानी सुनकर आप सभी को बहुत हैरानी होगी क्योंकि मैंने अमीर बनने के लिए नियम कानून के हिसाब से 7 बार बड़ी-बड़ी यात्राएं की जिसमें बहुत तकलीफ झेलना पड़ा है। सिंदबाद बोला, “यदि आप लोग चाहेंगे तो मैं सब बताने को तैयार हूं।” सभी लोग बोल पड़े कि बिलकुल सुनाएं। सिंदबाद ने अपनी कहानी सुनाने से पहले सेवकों को आदेश दिया कि, “हिंदबाद का सामान जो वो सिर पर ले जा रहा था उसे उसके घर पहुंचा दिया जाए।” सेवकों ने सिंदबाद के आदेशों का पालन करते हुए मजदूर का सामान उसके घर पहुंचा दिया। इसके बाद सिंदबाद ने अपनी 7 बड़ी यात्राओं में पहली यात्रा के बारे में बताना शुरू किया और यहीं ये कहानी ख़त्म होती है।
सिंदबाद जहाजी कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि आपके पास जो कुछ भी है उसमें ही खुश रहना आना चाहिए और कभी भी दूसरों से अपनी तुलना नहीं करनी चाहिए। दूसरों के धन और सुख सुविधाओं को देखकर ये कभी नहीं सोचना चाहिए कि उसे भगवान ने सब कुछ बिना मेहनत के ही दे दिया है। ऐसी गलत सोच आपकी अज्ञानता को दर्शाती है।
यह कहानी अलिफ-लैला की कहानियों के अंतर्गत आती है जो बहुत रोचक कहानियां में से एक है।
सिंदबाद जहाजी की नैतिक कहानी ये है कि हमें हमेशा हमारे पास जो है उससे खुश रहना चाहिए और दूसरों की सुख सुविधा से जलना नहीं चाहिए।
हमें कभी भी खुद की तुलना दूसरों से नहीं करनी चाहिए और न ही ये सोचना चाहिए कि दूसरों को सब कुछ बिना मेहनत किए मिल गया है। तुलना करने से आप खुद का बुरा करते ही हैं और साथ में दूसरों के बारे में गलत भी सोचते हैं।
सिंदबाद जहाजी कहानी से ये निष्कर्ष निकलता है कि खुद के पास जितना है उसमें खुश रहना सीखना चाहिए और कभी भी दूसरों के पास क्या है उसे देखकर अपनी बराबरी करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। दूसरों की चकाचौंध दुनिया देखकर ये नहीं सोचना चाहिए कि उसे ये सब बिना मेहनत के मिला है।
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