अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस दुनिया भर में महिलाओं के दिए योगदान को सम्मान और सराहना देने के लिए मनाया जाता है। अब हम उन दिनों को पीछे छोड़ चुके हैं, जब फेमिनिज्म का हौव्वा बनाकर उसके कांसेप्ट और उसके पीछे की सोच को विकृत कर दिया गया था। सच तो यही है कि आज भी यह दिन दुनिया भर की हर महिला को प्रेरित करता है और उसे खुद पर विश्वास करने व उसकी क्षमताओं की याद दिलाता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह वह दिन होता है जो महिलाओं को अपने अस्तित्व को सेलिब्रेट करने के लिए प्रेरित करता है और उन्हें स्वतंत्रता और सफलता की नई ऊँचाइयों पर पहुँचने के लिए प्रोत्साहित करता है।
हम हर साल, 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाते हैं। यह हमसे पहले के लोगों द्वारा महिलाओं की समानता सुनिश्चित करने के लिए किए गए संघर्षों की याद दिलाने के साथ-साथ यह जताता है कि हमें अभी भी इसे पूरी तरह से हासिल करना बाकी है। सदियों से महिलाओं को बंधनों, नियमों और उपहास का केंद्र बनाया जाता रहा है। इन सब के बावजूद, इतिहास में कई ऐसी मजबूत इरादों वाली महिलाएं रही हैं, जिन्होंने स्त्रियों को देखने के दुनिया के तरीके में बदलाव किया है। आज भी कई महिलाएं हैं जो ऐसी मिसाल रख रही हैं कि आने वाली पीढ़ी उससे बहुत कुछ सीख सकेगी। यहाँ कुछ ऐसे ही लोगों द्वारा कहे गए कोट्स दिए गए हैं जो महिलाओं को अपनी वास्तविक क्षमता को समझने और वुमनहुड की भावना का अभिमान करने के लिए प्रेरणा देंगे। आइए देखें:
कीर्तिगा रेड्डी सॉफ्टबैंक की पहली महिला वेंचर पार्टनर हैं। इससे पहले वे फेसबुक इंडिया की मैनेजिंग डायरेक्टर रह चुकी हैं। उनका यह मानना है लड़कियों को पढ़ाए बिना महिला सशक्तिकरण नहीं हो सकता। जब वे शिक्षित होंगी तो उनमें आत्मविश्वास पैदा होगा और वे किसी भी तरह की चुनौतियों को पार पाने में सफल हो सकेंगी।
इंदिरा गांधी भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं। उनका कहना था कि महिलाओं को किसी पुरुष के साथ प्रतियोगिता की आवश्यकता नहीं है। उन्हें अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व बनाना चाहिए, अपनी क्षमताओं को पहचानकर और बंधनों को काटकर उन्हें उस ऊंचाई पर पहुंचना चाहिए जिसकी सीमा पुरुषों के साथ तुलना करके तय नहीं होती है।
अमेरिकन टॉक शो होस्ट और मीडिया मुगल ओप्रा विनफ्रे दुनिया की सबसे सफल महिलाओं में से एक हैं। वो कहती हैं कि असफलता से डरना स्वाभाविक प्रवृत्ति है। हालांकि, यह डर उपलब्धि की राह में सबसे बड़ी बाधा बन जाता है। तो ओप्रा महिलाओं को एक रानी की तरह सोचने के लिए कहती हैं, जो असफलता से डरती नहीं है और इसलिए, बड़े लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रयास करती है। केवल जोखिम और चांस लेकर ही एक महिला अपनी वास्तविक क्षमता के साथ-साथ अपनी लिमिट्स को पहचान सकती है।
सुषमा स्वराज एक कुशल राजनीतिज्ञ और वक्ता थीं, विदेश मंत्री के रूप में काम करते हुए उन्हें देश की सबसे लोकप्रिय नेता माना जाता था। स्वराज कहती थीं कि वीमेन एम्पावरमेंट तभी हो सकता है जब उसके लिए हर एक इंसान प्रयास करे। यह केवल तभी संभव है जब इसे एक आंदोलन की तरह चलाया जाए। महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों और अन्याय के विरुद्ध लड़ने के लिए महिलाओं का सबल और मजबूत होना बहुत जरूरी है।
पहली भारतीय लड़की जो मिस यूनिवर्स बनी, वो थी सुष्मिता सेन। इसके बाद दो अनाथ लड़कियों को गोद लेकर और अकेली माँ के रूप में उनकी परवरिश करके उन्होंने भारतीय समाज में एक मिसाल खड़ी कर दी है। सुष्मिता का विचार है कि अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट को दांव पर लगाकर जीना सही नहीं है। रिश्ते निभाने के लिए सैक्रिफाइज या कॉम्प्रोमाइज करने के लिए खुद को गिराना नहीं चाहिए। महिलाओं को अपने लिए स्टैंड लेना चाहिए।
ओलंपिक ब्रॉन्ज़ मेडल के अलावा दर्जनों गोल्ड मेडल जीतने वाली बॉक्सर मैरी कॉम ने उस खेल में अपना नाम किया जिसे पहले पुरुषों का खेल समझा जाता था। उनका कहना है कि सिर्फ आप एक महिला हैं इसलिए किसी ने आपको कमजोर समझना नहीं चाहिए। आपके स्त्री होने के कारण कोई आपको कम ताकतवर कहे, उसे कभी ऐसा मौका न दें। स्त्रियां किसी से कम नहीं हैं।
महान अभिनेता अमिताभ बच्चन महिलाओं को बेहद जरूरी सलाह देते हैं। वे कहते हैं कि चूंकि आप एक लड़की या औरत हैं तो लोग हमेशा आपको उनके अनुसार रखने के लिए आप पर नियम-कायदे थोपेंगे। आपका चलना, बोलना, घूमना-फिरना, पहनावा आदि बहुत कुछ, दूसरे तय करेंगे, उन्हें ऐसा करने मत दीजिए। अपनी समझ और ज्ञान से अपनी चॉइसेज तय कीजिए।
साल 2000 में केवल 18 साल की उम्र में मिस वर्ल्ड का खिताब जीतने के बाद से प्रियंका चोपड़ा की सक्सेस स्टोरी अभी भी जारी है। प्रियंका ने जो कहा है वह वास्तव में यहाँ दिए गए सारे कोट्स और इस पूरे लेख का सारांश है। महिलाओं का अपने पैरों पर खड़ा होना सबसे ज्यादा जरूरी है। जब आप फाइनेंशियली इंडिपेंडेंट होंगी तो आपको खुद पर विश्वास होगा और जरूरत पड़ने पर आप अपने लिए डिसीजन ले सकेंगी।
आज भी हमारे देश के कई हिस्से ऐसे हैं जहाँ महिलाओं को वह आजादी नहीं मिली है जिसकी वे हकदार हैं। इसके लिए जरूरी है कि लोगों की मानसिकता में बदलाव आए। इसके अलावा महिलाओं को स्वयं भी अपने अधिकारों के प्रति जागृत होने की आवश्यकता है। सरकारी योजनाओं, सामाजिक उपक्रमों, समाजसेवी संस्थाओं द्वारा इस दिशा में निरंतर काम किए जाते रहे हैं। हम भी अपने आसपास ऐसी जागरूकता फैला सकते हैं।
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