बड़े बच्चे (5-8 वर्ष)

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर के विभिन्न प्रकार

ऑटिज्म एक स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर है, क्योंकि यह केवल एक विशेष प्रकार के डिसऑर्डर से संबंधित नहीं है। ऑटिज्म से पीड़ित लोग अलग तरह से व्यवहार कर सकते हैं। उनके लिए बात करना, सोशल या बिहेवियरल चैलेंज हो सकता है। अगर आप किसी ऑटिज्म पीड़ित इंसान को देखेंगी तो आप नोटिस करेंगी कि प्रत्येक इंसान में अलग-अलग स्ट्रेंथ और कमजोरियां होंगी। ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्ति कैसे सोचता है, सामंजस्य स्थापित करता है और सीखता है, इसके आधार पर, उन्हें विभिन्न प्रकार के ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर के तहत बांटा गया है। ऑटिज्म से पीड़ित लोगों में हल्के, मध्यम या गंभीर लक्षण हो सकते हैं। यहाँ तक ​​कि एक ही प्रकार के ऑटिज्म से पीड़ित लोगों में भी अलग-अलग कैरेक्टर और स्किल हो सकते हैं।

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर क्या है?

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर किसी व्यक्ति में विकास संबंधी देरी के कारण होता है जो उसकी सोशल और कम्युनिकेशन स्किल के साथ रिकग्निशन और मोटर स्किल को भी प्रभावित करती है। अलग प्रकार के ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर में लोग अलग तरह से व्यवहार करते हैं, कुछ लोगों को थोड़ी बहुत देखभाल की जरूरत होती है वहीं कुछ लोगों को बिलकुल मदद की जरूरत नहीं होती है और वह आत्मनिर्भर और स्वतंत्र जीते हैं। ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर वाले लोग रिपीटिटिव बॉडी मूवमेंट यानी बार-बार एक ही हलचल करते हैं और उन्हें बातचीत करने में परेशानी होती है लेकिन उनकी मेमोरी तेज होती है।

विभिन्न प्रकार के ऑटिज्म डिसऑर्डर

विभिन्न प्रकार के एएसडी आपको नीचे बताए गए हैं, ताकि आप इसे बेहतर ढंग से समझ सकें और प्रभावित लोगों को प्रोडक्टिव तरीके से आगे बढ़ने में मदद कर सकें:

1. एस्पर्गर सिंड्रोम

एस्पर्गर सिंड्रोम ऑटिज्म स्पेक्ट्रम का एक सौम्य प्रकार होता है। एस्पर्गर सिंड्रोम वाले लोग आमतौर पर बुद्धिमान होते हैं और अपने दैनिक कार्यों को करने में सक्षम होते हैं, लेकिन उन्हें सोशल होने में परेशानी हो सकती है। इस सिंड्रोम वाले लोग काफी बुद्धिमान होते हैं लेकिन विचित्र भी हो सकते हैं। इसलिए इस प्रकार के ऑटिज्म को ‘गीक सिंड्रोम’ भी कहा जाता है।

2. परवेसिव डेवलपमेंट डिसऑर्डर – (पीडीडी-एनओएस)

परवेसिव डेवलपमेंट डिसऑर्डर वाले लोगों में ऑटिज्म के अन्य रूपों से प्रभावित लोगों की तुलना में ऑटिज्म के कम लक्षण दिखते हैं। उन्हें सोशल होने में या बातचीत करने में शायद ही कठिनाई का सामना करना पड़ता हो। इस कंडीशन का तुरंत निदान करने पर, डाइट बदलकर, सोशल स्किल की क्लास देने और ऑक्यूपेशनल थेरेपी से उस व्यक्ति को बहुत जल्दी रिकवर किया जा सकता है। एस्पर्गर सिंड्रोम, ऑटिस्टिक डिसऑर्डर व अन्य के साथ, पीडीडी-एनओएस को ऑटिस्टिक डिसऑर्डर के स्पेक्ट्रम में भी शामिल किया गया है।

3. ऑटिस्टिक डिसऑर्डर

इसे केनर्स सिंड्रोम के रूप में भी जाना जाता है और यह गंभीर और सबसे कॉमन टाइप के ऑटिज्म डिसऑर्डर में से एक है। इससे आमतौर पर बातचीत और बौद्धिक क्षमता में कमी देखी जाती है। आप यह भी नोटिस कर सकती हैं कि इस प्रकार के लोग स्पर्श, ध्वनि, प्रकाश और गंध के प्रति भी सेंसेटिव हो सकते हैं। ऑटिज्म के अन्य फॉर्म वाले लोग भी समान लक्षणों का प्रदर्शन कर सकते हैं, लेकिन ऑटिस्टिक डिसऑर्डर वाले लोगो में ज्यादा तीव्र तरीके से इसके लक्षण देखे जाते हैं।

4. रेट सिंड्रोम

रेट सिंड्रोम लड़कियों को प्रभावित करने वाला एक जेनेटिक डिसऑर्डर है। 6 महीने की उम्र से ही लड़कियों में रेट सिंड्रोम के लक्षण स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं, जिसे ऑटिज्म के प्रोग्रेसिव फॉर्म के नाम से जाना जाता है। यह एक प्रकार का ऑटिज्म है जिसका मेडिकली निदान किया जाना चाहिए और इसके मुख्य लक्षण में से एक बातचीत करने में परेशानी होना। रेट सिंड्रोम में व्यक्ति ठीक से अपने हाथों का उपयोग नहीं कर पाता है और इसे ऑटिज्म का प्रगतिशील रूप कहा जाता है। इस टाइप के ऑटिज्म के कई लक्षणों में से दाँत पीसना, मेंटल रिटार्डेशन और वृद्धि व विकास में देरी होना शामिल है जो बच्चे के बढ़ने के साथ और स्पष्ट होते जाते हैं।

5. चाइल्डहुड डिसइंटिग्रेटिव सिंड्रोम

इस प्रकार के ऑटिज्म को हेलर सिंड्रोम भी कहा जाता है और यह दुर्लभ प्रकार के ऑटिज्म में से एक है क्योंकि डॉक्टर इसे सीजर (दौरे) डिसऑर्डर से जोड़ते हैं। इसे एक कॉम्प्लेक्स डिसऑर्डर के रूप में माना जाता है क्योंकि यह केवल 2 वर्ष की आयु के बाद गंभीर होता है। इस प्रकार के ऑटिज्म से प्रभावित बच्चे सामान्यतः 2 साल की उम्र तक विकसित होते हैं। उन्हें किसी को पहचानने या बातचीत करने में किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है। इस स्थिति का शीघ्र निदान करने से बच्चे की स्पीच, ऑक्यूपेशनल और बिहेवरियल थेरेपी द्वारा बच्चे को काफी मदद मिलती है। डाइट में कुछ बदलाव करने से बच्चे की परिस्थिति में सुधार किया जा सकता है।

भारत में ऑटिज्म के बारे में ज्यादा चर्चा नहीं की जाती है। लेकिन धीरे-धीरे, चीजें बदल रही हैं और लोग ऑटिज्म जैसे डिसऑर्डर के बारे में अधिक से अधिक जागरूक हो रहे हैं। ऑटिज्म के प्रकारों को जानने से आप दूसरे लोगों में इसके संकेतों को पहचान पाएंगी और लोगों को इसके प्रति संवेदनशीलता का अहसास करा पाएंगी।

यह भी पढ़ें: 

बच्चों में बौनापन
शिशुओं और बच्चों में सिस्टिक फाइब्रोसिस
शिशुओं में ऑटिज्म – लक्षण, कारण और इलाज

समर नक़वी

Recent Posts

भूकंप पर निबंध (Essay On Earthquake In Hindi)

भूकंप एक प्राकृतिक आपदा है, जिसमें धरती अचानक से हिलने लगती है। यह तब होता…

2 days ago

Raising Left-Handed Child in Right-Handed World – दाएं हाथ वाली दुनिया में बाएं हाथ वाला बच्चा बड़ा करना

जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होने लगता है, उसके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलू उभरने लगते हैं। या…

2 days ago

माता पिता पर कविता l Poems For Parents In Hindi

भगवान के अलावा हमारे जीवन में किसी दूसरे वयक्ति को अगर सबसे ऊंचा दर्जा मिला…

3 days ago

पत्नी के लिए प्यार से बुलाने वाले नाम l Nicknames For Wife In Hindi

शादी के बाद प्यार बनाए रखना किसी भी रिश्ते की सबसे खूबसूरत बात होती है।…

3 days ago

पति के लिए प्यार से बुलाने वाले नाम l Nicknames For Husband In Hindi

शादी के बाद रिश्तों में प्यार और अपनापन बनाए रखना बहुत जरूरी होता है। पति-पत्नी…

3 days ago

करण नाम का अर्थ, मतलब और राशिफल l Karan Name Meaning In Hindi

ऐसे कई माता-पिता होते हैं जो अपने बच्चे का नाम इतिहास के वीर महापुरुषों के…

7 days ago