बड़े बच्चे (5-8 वर्ष)

बेबी और बड़े बच्चों में लिवर की बीमारियां

लिवर भोजन को पचाने और शरीर से टॉक्सिक पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है इसलिए यह शरीर का एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है। यदि छोटे बच्चों में लिवर डिसऑर्डर का पता चलता है तो आपको उन समस्याओं के बारे में जानना जरूरी है जिससे यह बीमारी उत्पन्न होती है और साथ ही यह भी कि इसका ट्रीटमेंट कैसे करना चाहिए। 

लिवर का रोग क्या है?

लिवर की बीमारी में लिवर से जुड़ी अनेक समस्याएं आती हैं। जब तक लिवर के फंक्शन न करने का पता चलता है तब तक यह 75% तक डैमेज हो चुका होता है। लिवर की बीमारी को हिपेटिक रोग भी कहते हैं। जिन बच्चों में लिवर की समस्या का डायग्नोसिस हुआ हो उन्हें लगातार मेडिकल सपोर्ट व रोग को नियंत्रित करने के एक अच्छे प्लान की जरूरत पड़ती है ताकि यह दिक्कत पूरी तरह से ठीक हो सके। 

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लिवर की समस्याएं होने के क्या कारण होते हैं?

बच्चों में लिवर की समस्याएं होने के कुछ कारण निम्नलिखित हैं, आइए जानें; 

1. वायरल इंफेक्शन

वायरल इंफेक्शन से बच्चों में लिवर की समस्या भी हो सकती है। इनमें से कुछ में हेप ए, बी और सी शामिल हैं।

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2. आनुवंशिक डिसऑर्डर

कभी-कभी परिवार में आनुवंशिक रूप से भी लिवर की बीमारियां हो जाती हैं। उदाहरण के लिए, हेमोक्रोमैटोसिस एक अनुवांशिक बीमारी है जिससे शरीर में अत्यधिक आयरन जमा हो जाता है। डिसऑर्डर की तरह ही डिफेक्टेड जीन भी अनुवांशिक होते हैं जिससे बच्चों में लिवर की समस्याएं उनके परिवार से आ सकती हैं।

3. कोलेस्टेसिस

लिवर में पित्त का प्रवाह प्रभावित हो सकता है जिसके परिणामस्वरूप दिक्कतें हो सकती हैं।

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4. कैंसर

लिवर के टिश्यू एब्नॉर्मल सेल्स, जैसे कैंसर के सेल्स के साथ मिल सकते हैं। ये ज्यादा मात्रा में लिए जाने वाले केमिकल और मिनरल से भी डैमेज हो सकते हैं।

लिवर की समस्याओं के लक्षण व संकेत

लिवर की समस्याएं इतनी है कि हर व्यक्ति में यह अलग-अलग भी हो सकती हैं जिसकी वजह से डायग्नोसिस करना कठिन हो जाता है। बच्चों में लिवर की समस्याओं के कुछ लक्षण निम्नलिखित हैं, आइए जानें; 

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1. पीलिया (जॉन्डिस)

जॉन्डिस होने पर बच्चे की त्वचा और आंखें हल्के पीले रंग की दिखाई देती हैं और साथ में ठंड लगती है व बुखार भी आता है।

2. पेट की समस्याएं

लिवर बढ़ने के कारण बच्चे को बहुत दर्द हो सकता है। इससे कभी-कभी उतना दर्द नहीं होता है जितना बच्चे को भरा-भरा सा महसूस होता है। 

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3. इसोफेगल वैरिसेस

निचली अन्नप्रणाली (इसोफेगस) की दीवारों के भीतर ब्लड वेसल फैल जाती हैं जिससे ब्लीडिंग होती है।

4. पोर्टल हायपरटेंशन

पोर्टल वेन बड़ी आंत से लिवर में खून की आपूर्ति करती है। जब पोर्टल का ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है तो ब्लड सेल्स नए बनने लगते हैं और ये सेल्स आंत से ब्लड के प्रवाह को सामान्य सर्कुलेशन से जोड़ते हैं जिसका अर्थ है कि लिवर से टॉक्सिक पदार्थ बाहर नहीं निकलते हैं और फिर यह टॉक्सिक पदार्थ शरीर के बाकी अंगों को प्रभावित करते हैं व इससे समस्याएं बढ़ने लगती हैं। 

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5. दिमाग का डैमेज होना

यदि टॉक्सिक पदार्थ बाहर नहीं निकलते हैं और यह नर्वस सिस्टम तक पहुँच जाते हैं तो इससे गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। इससे दिमाग के फंक्शन पर असर पड़ता है, दिमाग भटक जाता है और दुर्लभ मामलों में कोमा भी हो सकती है। 

6. जलोदर (एसआइटीस)

एब्डोमिनल कैविटी में तरल पदार्थ बढ़ जाता है जिससे पेट फूलने लगता है।

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लिवर की समस्याओं का डायग्नोसिस कैसे किया जाता है?

लिवर की समस्याओं का डायग्नोसिस निम्नलिखित तरीकों से किया जाता है:

1. एल्ब्यूमिन

एल्ब्यूमिन एक प्रोटीन है जो लिवर में बनता है। खून में पाया जाने वाला प्रोटीन 6% एल्ब्यूमिन से बना होता है। यह टेस्ट लिवर और किडनी की बीमारियों की जांच और डायग्नोसिस के लिए किया जाता है।

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2. बिलीरुबिन

बिलीरुबिन एक पिग्मेंट है जो रेड ब्लड सेल्स के टूटने से बनता है। बिलीरुबिन का स्तर बढ़ने पर व्यक्ति को पीलिया हो जाता है। इस डायग्नोसिस में यह पता चलता है कि लिवर बिलीरुबिन को खत्म करने के लिए कितनी अच्छी तरह से काम कर रहा है। 

3. एलानिन ट्रांसएमिनेस (एएलटी)

यह एंजाइम आमतौर पर लिवर में पाया जाता है। यदि एएलटी का स्तर बहुत ज्यादा है तो यह लिवर खराब होने का एक संकेत है। एएलटी टेस्ट इसकी जांच करता है।

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लिवर की समस्याओं का उपचार

लिवर की समस्याओं का उपचार इस बात पर निर्भर करता है कि इसके होने के पीछे क्या कारण है। यदि यह रोग एक वायरस से हुआ है तो इसे ठीक करने के लिए वायरस का ट्रीटमेंट करने व सावधानी बरतने की जरूरत होती है ताकि यह फैले नहीं। इस प्रकार से किसी भी समस्या का सही इलाज करने के लिए इसके उचित कारणों को जानना बहुत जरूरी है। कुछ दुर्लभ मामलों में लिवर पूरी तरह से खराब हो सकता है जिसमें इसका ट्रांसप्लांट करने की जरूरत पड़ती है। 

यद्यपि लिवर की कुछ बीमारियों जैसे हेपेटाइटिस या पित्त में पथरी का ट्रीटमेंट हो सकता है पर इसकी ज्यादातर बीमारियों को सिर्फ मैनेज की किया जा सकता है। बच्चे में कोई अनचाही बीमारी हो यह कोई भी पेरेंट्स नहीं चाहेंगे पर दुर्भाग्य से ये समस्याएं भी हो जाती हैं और उनसे रिकवरी में मदद के लिए आप कितना बेहतर कर सकते हैं यह आप पर ही निर्भर करता है। डायग्नोसिस होने के बाद इलाज शुरू होते ही आपको बच्चे के लिए मजबूत और दृढ़ रहने की जरूरत है। 

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सुरक्षा कटियार

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