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जन्म से पहले गर्भ में पल रहे बच्चे की अंतिम पोजीशन से महिला के लेबर और डिलीवरी पर बहुत प्रभाव पड़ता है। डिलीवरी से पहले बच्चे की हेड डाउन पोजिशन सही होती है जिसमें उसका मुँह आपकी पीठ की ओर होता है। एक गर्भवती महिला को बेली मैपिंग से पता चल सकता है कि गर्भ में बच्चा किस पोजीशन में है।
गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में बच्चे के जन्म की पोजीशन को जानने के लिए बेली मैपिंग की जाती है। इसमें महिला के पेट को छूकर और बच्चे के मूवमेंट्स को महसूस करके पोजीशन का पता किया जाता है। बेली मैपिंग की इस प्रक्रिया को पहली बार गेल टुली नामक महिला ने साल 1970 में किया था।
गर्भ में बच्चे की वृद्धि होने से उसकी पोजीशन भी बदलती रहती है। जन्म से पहले बच्चा ऐसी पोजीशन में आता है जिससे नॉर्मल डिलीवरी हो सकती है। इसे ऑक्सिपिटो-एंटीरियर पोजीशन कहते हैं। इस पोजीशन में बच्चे का सिर नीचे की ओर सर्विक्स के पास होता है और उसका मुँह आपकी पीठ की तरफ होता है। बच्चे की पीठ आपके पेट की ओर रहती है जिसकी वजह से लेबर के दौरान बच्चा बर्थ कैनाल से आसानी से बाहर आ जाता है। ऐसा भी हो सकता है कि गर्भ में बच्चा किसी और पोजीशन में हो, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं, आइए जानें;
गर्भावस्था के 37वें सप्ताह में जन्म से तुरंत पहले लगभग 50 में से 48 या 49 बच्चों की पोजीशन हेड डाउन होती है। लेबर के शुरू होते ही बच्चे का सिर बर्थ कैनाल की ओर हेड डाउन पोजीशन में आ जाता है।
बच्चे के जन्म के लिए ब्रीच पोजीशन बिलकुल भी सही नहीं है क्योंकि इसमें बच्चे का सिर ऊपर की ओर होता है और उसके शरीर का निचला हिस्सा बर्थ कैनाल की ओर होता है। ब्रीच पोजीशन अलग-अलग प्रकार की होती हैं, जैसे क्रॉस लेग होना, शरीर का निचला हिस्सा नीचे की तरफ होना और बच्चे के पैर बाहर की ओर होना। बेली मैपिंग के दौरान यदि बच्चे की पोजीशन ब्रीच होने का पता चलता है तो गर्भवती महिलाओं को एक्सरसाइज करने की सलाह दी जाती है ताकि उसका सिर बर्थ कैनाल की ओर आ सके।
यदि गर्भ में बच्चे का मुँह माँ की पीठ की ओर है और उसकी पीठ माँ के पेट की तरफ है तो इसे एंटीरियर पोजीशन कहते हैं। यदि बेली मैपिंग के दौरान बच्चा एंटीरियर पोजीशन में पाया जाता है तो इसका अर्थ है कि वह नॉर्मल डिलीवरी के लिए बिल्कुल सही पोजीशन में है।
यदि गर्भ में बच्चे का मुँह माँ के पेट की ओर है और उसकी पीठ माँ की पीठ की तरह है तो इसे पोस्टीरियर पोजीशन कहा जाता है। यह पोजीशन काफी आम है पर नॉर्मल डिलीवरी के लिए सही नहीं है। यदि बेली मैपिंग के दौरान बच्चा पोस्टीरियर पोजीशन में पाया जाता है तो माँ एक्सरसाइज की मदद से बच्चे की पोजीशन सही करने का प्रयास कर सकती है।
गर्भावस्था की तीसरी तिमाही के 30वें सप्ताह में बेली मैपिंग की जाती है। इसे डॉक्टर की अपॉइंटमेंट लेने के बाद ही करना चाहिए। डॉक्टर ही आपको बता सकते हैं कि बच्चे का सिर किस तरफ है और उसकी पोजीशन कैसी है।
गर्भ में पल रहे बच्चे की पोजीशन जानने के लिए आप निम्नलिखित चीजें कर सकती हैं, आइए जानें;
2. बच्चे का सिर खोजें: आप पीठ के बल सीधी या आधी रेक्लाइंड पोजीशन में लेट जाएं। गहरी सांस लें और आराम करें। अब आप पेल्विक के ऊपरी भाग में प्यूबिक बोन के ऊपर उंगलियों से हल्का सा दबाव डालें। यदि आपको कठोर और गोल सा महसूस होता है तो यह बच्चे का सिर है। यदि आपको कुछ गोल सा और सॉफ्ट महसूस होता है तो यह बच्चे के हिप्स भी हो सकते हैं। यदि पेट के निचले हिस्से में आपको हिचकियां महसूस होती हैं तो इसका अर्थ है कि बच्चे का सिर नीचे की तरफ है। आप बच्चे के मूवमेंट की दिशा का उपयोग करके उसके सिर की लोकेशन को खोजने का प्रयास कर सकती हैं। बच्चा माँ के गर्भ में पैरों के बल से ही किक मार सकता है या घुटनों के बल से रोल करता है पर फड़फड़ाने जैसी मूवमेंट तो हाथ व उंगलियों की ही होती है। यदि आप बच्चे के हाथों को खोज लेती हैं तो इसे अपने पेट या पेपर पर मार्क कर लें।
3. बच्चे की पीठ को महसूस करें: आप गर्भ में पल रहे बच्चे की पीठ को खोजने का प्रयास करें। इसके लिए आप अपना हाथ बच्चे के सिर से ऊपर की ओर मूव करें। यदि आपको हल्का सौम्य और ज्यादा कठोर महसूस होता है तो यह बच्चे की पीठ है। यदि आप पीठ नहीं खोज पा रही हैं तो यह पोस्टीरियर पोजीशन भी हो सकती है जिसमें बच्चे की पीठ आपकी पीठ की ओर होगी।
4. पेपर या अपने पेट पर पोजीशन मार्क करें: अब आप पेपर या पेट पर एक बाद सर्कल बनाएं। इसे चार भागों में बांट दें ताकि आपको गर्भ में पल रहे बच्चे की पोजीशन पता लगाने में आसानी हो सके। आप बच्चे की पीठ हुए सिर को मार्क करें।
5. प्रॉप डॉल का उपयोग करें: आप एक गुड़िया का उपयोग करके गर्भ में पल रहे बच्चे के सिर और पीठ की पोजीशन की आभासी छवि बनाएं ताकि आपको उसके हाथ व पैरों का पता चल सके। हो जाने के बाद आप इसे भी पेट या पेपर पर मार्क करें और अपने गर्भ में पल रहे बच्चे की पूरी पोजीशन जानें।
इनमें से कोई भी एक्सरसाइज करने से पहले आप इस बारे में एक बार डॉक्टर से सलाह जरूर लें। यहाँ कुछ आसान एक्सरसाइज बताई गई हैं जिनकी मदद से आप अपने बच्चे की पोजीशन सही कर सकती हैं, आइए जानें;
गर्भावस्था में बेली मैपिंग का उपयोग करने से आपको बच्चे के जन्म की पोजीशन पता चल सकती है और यदि उसकी पोजीशन सही नहीं है तो आप इसे ठीक करने के लिए उचित तरीके अपनाएं। यदि बच्चे की पोजीशन ब्रीच या पोस्टीरियर है तो जन्म के दौरान कॉम्प्लिकेशंस हो सकती हैं। जिन महिलाओं के बच्चे का जन्म पोस्टीरियर पोजीशन में होता है उनके लेबर में समय ज्यादा लगता है और डिलीवरी के दौरान पेरिनियम में चीरा भी लगाया जा सकता है। पेरिनियम वजायना और ऐनस को अलग करने वाली त्वचा की एक मेम्ब्रेन है। इसमें डिलीवरी के बाद महिला को अत्यधिक ब्लीडिंग होती है और यह नॉर्मल डिलीवरी हो सकती है या आपातकालीन सी-सेक्शन भी करवाना पड़ सकता है। यदि जन्म के दौरान बच्चा सीधी पोजीशन में है या उसका सिर ऊपर की ओर है तो उसकी अच्छी देखभाल के लिए ज्यादा समय देने की जरूरत है। बच्चे की पोजीशन ब्रीच होने की वजह से महिला को सी-सेक्शन करवाने की जरूरत होती है क्योंकि यदि बच्चे का निचला हिस्सा ऊपर है या बच्चा टेढ़ी पोजीशन में है तो वह बर्थ कैनाल से नहीं निकल पाएगा।
जन्म के दौरान बच्चे की पोजीशन को जानने के लिए बेली मैपिंग एक आसान तरीका है। जन्म के दौरान बच्चे को सही पोजीशन में लाने के लिए कुछ चीजें करने से आपको लेबर और नॉर्मल डिलीवरी में मदद मिल सकती है। इस आर्टिकल में दी हुई किसी भी एक्सरसाइज को करने से पहले आप इसके बारे में एक बार डॉक्टर से चर्चा जरूर करें।
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