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अपने छोटे बच्चे को संभालते हुए आप हमेशा खुद को दो तरह की भावनाओं के बीच झूलता पाएंगी, एक ख़ुशी और दूसरी चिंता। हालांकि माता-पिता बनने का अहसास हमेशा यादगार और आनंद से भरा होता है, लेकिन यह अपने साथ कुछ चिंताएं भी लाता है। इन चिंताओं में बहुत सारे पहलू शामिल हैं जैसे, आप जो कर रही हैं, क्या आपको वह करना चाहिए ? या फिर आपका बच्चा बीमार क्यों पड़ रहा है, आपका बच्चा जैसे बर्ताव कर रहा है क्या उसे वैसा बर्ताव करना चाहिए या नहीं आदि।इस तरह की अनेक बातों को लेकर आप चिंतित हो सकती हैं और उनमें से ही एक है आपके बच्चे का खर्राटे लेना।
शिशुओं का नींद में खर्राटे लेना प्यारा लग सकता है, लेकिन अगर आपका बच्चा नियमित रूप से खर्राटे लेता है, तो यह आपके लिए चिंता विषय हो सकता है। बच्चे का सोते समय खर्राटे लेना सामान्य है; लगभग दस में से एक बच्चा इससे ग्रस्त होता है। यह आम तौर पर तब होता है जब एक नवजात शिशु का वायुमार्ग अपरिपक्व होता है और कफ के जमाव के कारण संकुचित हो जाता है।
बच्चे के गले के वायुमार्ग में रुकावट होने के कारण खर्राटे की समस्या पैदा होती है। जब बच्चा स्वतंत्र रूप से सांस नहीं ले पाता है तो यह बच्चे के गले में मौजूद ऊतकों में कंपन पैदा करता है। खर्राटे की आवाज इस बात पर निर्भर करती है कि गले से निकलने वाली हवा के मार्ग में मौजूद ऊतक कितनी तेजी से कंपन करते हैं। शिशुओं में खर्राटों के सामान्य कारणों में नाक का बंद हो जाना, वायुमार्ग का अभी भी पूर्ण विकसित न होना या फिर सर्दी-जुकाम होने जैसे कारण शामिल हैं। कई बार गहरी नींद में बच्चे के गले की मांसपेशियां आराम करती हैं और निकलती हुई आवाज खर्राटे की तरह लगती है।
ज्यादातर बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तो, खर्राटे लेना बंद कर देते हैं। हालांकि, यदि उनका खर्राटे लेना बंद नहीं होता है तो यह बच्चे के स्वास्थ्य संबंधी किसी अंतर्निहित समस्या का संकेत हो सकते हैं:
१. स्लीप एप्निया: आमतौर पर यह एक वर्ष से कम उम्र के बच्चों में देखा जाता है, यह एक ऐसी समस्या है जिसमें नींद के दौरान अनैच्छिक रूप से सांस का रुकना और चलना शुरू हो जाता है। नवजात में स्लीप एप्निया एक श्वसन संबंधी विकार है।
२. बढ़े हुए टॉन्सिल: हालांकि यह नवजात शिशुओं में बहुत कम पाया जाता है कि टॉन्सिल होने के कारण उन्हें खर्राटे आने लगे। जब किसी संक्रमण के कारण बच्चों में टॉन्सिल हो जाते हैं, तो इससे उन्हें खर्राटे आने की संभावना होती है । इसे प्रतिरोधी अश्वसन के रूप में भी जाना जाता है और इससे सांस में कमी होने लगती है, नाक से सांस लेने में कठिनाई हो सकती है, और खर्राटों के साथ सांस लेने की आवाज भी आती है।
३. नाक की हड्डी टेढ़ी होना: इस स्थिति में नासिक पट (नेजल सेप्टम), जो नासिका गुहा को दो भागों में विभाजित करता है, बीच से टेढ़ा हो जाता है जिससे एक नथुने का आकार दूसरे से बड़ा हो जाता है। यदि असमानता गंभीर है, तो इसे पथभ्रष्ट पट कहा जाता है, जिससे साइनस संक्रमण, खर्राटों, अवरुद्ध नाक, नींद के दौरान जोर से सांस लेना जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
४. भरी हुई नाक: यह शिशुओं में खर्राटों के सबसे आम कारणों में से एक है। ठंड के की वजह से बच्चों की नाक भर जाती है जिससे नासिका मार्ग में रुकावट के कारण बच्चे मुँह से सांस लेने लगते हैं या फिर तेजी से सांस लेने लगते हैं। खर्राटे लेने के पीछे उनकी नाक भरी होना एक बड़ा कारण है।
५. दमा: जो बच्चे खर्राटे लेते हैं, उनमें खर्राटे नहीं लेने वाले बच्चों के मुकाबले में अस्थमा होने की संभावना दोगुनी होती है। कुछ शिशुओं में इसका कारण श्वसन संबंधी एलर्जी भी हो सकती है।
६. गले की समस्याएं: तालू (पैलेट) का अनियमित चलन, जो मुँह और नाक गुहा के बीच का विभाजक है, बच्चों के खर्राटे का कारण हो सकता है। शिशुओं में खर्राटों का एक और कारण पैलेटल सिस्ट भी होता है।
७. अपरिपक्वता का अश्वसन: यह समस्या उन बच्चों में देखी जाती है, जो समय से पहले जन्म लेते हैं, या गर्भावस्था के 34 सप्ताह पूर्ण होने के पहले जन्म लेते हैं। समय से पहले जन्मे बच्चों में अपरिपक्व श्वसन प्रणाली के कारण सांस लेने में समस्या हो सकती है। जो खर्राटे के रूप में सामने आती है।
शिशुओं के खर्राटे विभिन्न समस्या की ओर इशारा करते हैं, जो टॉन्सिल होने से लेकर नींद अश्वसन होने तक कोई भी हो सकता है। यह आपके बच्चे की नींद की गुणवत्ता पर प्रभाव डाल सकता है, जिससे उसके विकास पर भी असर पड़ सकता है। नींद की कमी के कारण बच्चे का ठीक से वजन न बढ़ना, मोटापा, रात में बुरे सपने आना, ए.डी.एच.डी. विकार, आँखों के नीचे घेरे और बिस्तर गीला करना इत्यादि परेशानी हो सकती है। यदि आपका बच्चा लगातार खर्राटे लेता है और कम खाने के बावजूद भी उसका वजन ज्यादा दिखता है तो उसे गले, फेफड़े या दिल से संबंधित कोई बीमारी होने का संकेत हो सकता है।
अगर शिशुओं में खर्राटे लेने की समस्या लंबे समय तक बने रहती है, तो इसके कुछ परिणामइस प्रकार हो सकते हैं:
यदि आपके बच्चे के खर्राटे का कारण कोई चिकित्सीय समस्या या जन्मजात परिस्थिति है, तो इसका उपचार किया जा सकता है । हालांकि, यदि इसके अलावा कोई अन्य कारण है और आप अपने बच्चे की इस समस्या को दूर करना चाहती हैं, तो निम्नलिखित कुछ उपाय आजमा सकती हैं:
ध्यान दें: अपने बच्चे को खर्राटे रोकने के लिए किसी दवा की दुकान से खरीदकर कोई दवा न दें, जब तक कि यह आपके बाल रोग विशेषज्ञ द्वारा निर्धारित न हो।
आपके बच्चे के खर्राटों की समस्या को हल होने में थोड़ा समय लग सकता है। इस दौरान, यह महत्वपूर्ण है कि आप अपने बच्चे पर कड़ी निगरानी रखें और यह सुनिश्चित करें कि उन्हें किसी प्रकार की कोई परेशानी तो नही हो रही है। यदि आपको निम्नलिखित में से कोई भी संकेत दिखाई देता है, तो अपने बच्चे को तुरंत चिकित्सक के पास ले जाएं:
१. अनियमित श्वसन: यदि किसी भी समय आप यह देखें कि खर्राटे लेते हुए आपके बच्चे की सांस रुक रही है, भले ही वह सिर्फ एक या दो सेकंड के लिए ही हो, तो आपको उसे डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। यह एक गंभीर मुद्दा हो सकता है, और भले ही कम समय के लिए उसकी सांस रूकती हो लेकिन, यह शिशु के आंतरिक अंगों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
२. नींद बाधित होना: यदि आपका बच्चा आदतन खर्राटे लेता है, तो उसे उचित नींद नहीं मिल रही है। यदि वह लगातार सो नहीं पाता है, तो आपको डॉक्टर की मदद लेनी चाहिए। नींद की कमी के कारण उसकी वृद्धि और विकास पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।
३. अधिक खर्राटे लेना: यदि आपका बच्चा हर बार सोते समय खर्राटे लेता है और यह कई दिनों और हफ्तों तक जारी रहता है, तो यह चिंता का विषय है।
४. जोर से खर्राटे लेना: यदि आपके बच्चे का हांफना और खर्राटे लेना आपको परेशान करता है, तो यह स्पष्ट है कि कुछ तो है जो सही नहीं है! छोटे बच्चे के लिए बहुत खर्राटे लेना सामान्य नहीं है, इसलिए अपने बाल रोग विशेषज्ञ से यह जांच कराएं कि ऐसा क्यों हो रहा है।
भरी हुई नाक की वजह से शिशुओं का खर्राटे लेना एक मामूली समस्या है जिसका उपचार कराने की जरूरत नहीं है और यह अपने आप ही जल्द ठीक हो जाती है। टेढ़ी नाक को भी इलाज की आवश्यकता नहीं होती है, जब तक कि आपके बच्चे को नाक के माध्यम से सांस लेने में बहुत मुश्किल न हो रही हो या फिर वह साइनस संक्रमण से ग्रस्त न हो।
आम तौर पर, बच्चों का खर्राटे लेना कोई गंभीर बीमारी नहीं है; इसलिए ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके बारे में आपको चिंता करने की जरूरत हो। तथापि अगर आपके बच्चे की खर्राटे की समस्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है, तो आपको शिशु रोग विशेषज्ञ से जांच करवानी चाहिए कि कहीं आपके बच्चे को कोई अन्य स्वास्थ्य समस्या तो नहीं।
इसके अतिरिक्त, आप अपने बच्चे के सोने के तरीके पर कड़ी नजर रखें और एक डायरी में नोट करें कि उसे खर्राटे कब आते हैं, कितनी बार आते हैं, और साथ ही वह कितनी जोर से खर्राटे लेता है। कुछ दिनों तक ऐसा करने से आपको यह जानने में मदद मिलेगी आपको अपने बच्चे को डॉक्टर को दिखाने की जरूरत है या नहीं । साथ ही, लिखकर रखी गई यह जानकारी आपके डॉक्टर के लिए भी मददगार साबित होगी ।
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