बड़े बच्चे (5-8 वर्ष)

बच्चों का नैतिक विकास – चरण और सिद्धांत

अपने बच्चे की इस तरह से परवरिश करना कि वो बड़ा होने के बाद लोगों के साथ अच्छाई और सम्मान से पेश आए, यह हर माता पिता का सपना होता है और इस दुनिया को ऐसे ही लोगों की जरूरत भी है। ऐसे में सबसे जरूरी ये है कि बच्चे को सही और गलत के बीच का फर्क समझाने के लिए आपको शुरुआत से ही उसके अंदर नैतिकता की नींव रखना होगी। बचपन से ही नैतिक विकास का ध्यान रखने से बच्चा लोगों के प्रति दया और भावना रखने वाले व्यक्ति के रूप में बड़ा होता है। बच्चों में मोरल डेवपलमेंट के बारे में जानने के लिए आगे पढ़ना जारी रखें।

नैतिकता क्या है?

नैतिकता हमें सही और गलत के बीच का फर्क समझाती है। एक व्यक्ति की नैतिकता को आप उसके कार्यों, विचारों, दृष्टिकोण और दूसरों के प्रति उसका व्यवहार कैसा है इससे पता चलता है। यह उस वातावरण पर आधारित हो सकता है जिसमें इंसान बड़ा हुआ होता है, साथ ही उसकी भावनात्मक बुद्धिमत्ता और कॉग्निटिव स्किल पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है।

नैतिक विकास क्या होता है?

नैतिक विकास बचपन से लेकर जवान होने तक और उसके बाद भी जारी रहता है। कई मनोवैज्ञानिकों ने बच्चों के दृष्टिकोण और नैतिकता की समझ में परिवर्तन देखकर उनके नैतिक विकास के विचार का विश्लेषण करने का प्रयास किया है।

बच्चों में नैतिक विकास के चरण

बच्चों में मोरल डेवलपमेंट के 5 प्रमुख चरण होते हैं।

1. बाल्यावस्था (0 से 2 वर्ष)

इस उम्र में, बच्चों में मोरालिटी की समझ नहीं होती है। उन्हें क्या सही लग रहा और क्या नहीं इससे वो सही गलत का अंदाजा लगाते हैं। यह समझना जरूरी है कि गर्भ में बच्चा कभी अकेला नहीं था, कभी भूखा नहीं था और लगातार माँ के संपर्क में था। यदि बाहरी दुनिया में उसे ऐसा महसूस नहीं होता है, तो बच्चा इसे कुछ ‘गलत’ मानता है। वैसे ही फीड कराना, पकड़ना और गले से लगाना बच्चों को सही महसूस कराता है।

2. टॉडलर (2 से 3 साल)

हालांकि इस उम्र में आपका बच्चा अभी भी सही और गलत के बीच अंतर करने की समझ नहीं रखता है, वह ‘दूसरों’ के कांसेप्ट से सीख कर कोई भी एक्शन लेने से पहले लोगों को ध्यान में रखना शुरू कर देगा। लेकिन अभी वो यह नहीं बता सकता कि वह अपने भाई-बहन के खिलौने क्यों नहीं ले जा सकता है या वह दूसरों को क्यों नहीं मार सकता, बस उसे यह पता होता है कि ऐसा नहीं करना है, क्योंकि वह जनता है कि ऐसा करने पर उसे किसी न किसी रूप में डांट या फटकार लगाई जाएगी। इससे बचने के लिए बच्चा आपके नियमों को मानना ही बेहतर समझता है।

3. प्रीस्कूलर (3 से 7 वर्ष)

ये नैतिक विकास का शुरुआती दौर होता है। यह तब होता है जब आपका बच्चा परिवार में सिखाई गई शिक्षाओं और अपने आसपास जो कुछ भी देखता है, उससे सीखता है। बच्चे अपने माता-पिता से हमेशा हर चीज के लिए स्वीकृति चाहते हैं और इसलिए उनसे नियमों का पालन कराने के लिए आपको गाइड करने की जरूरत होती है। इस उम्र तक बच्चा यह समझने लगेगा कि दूसरों का ध्यान रखना भी जरूरी होता है, क्योंकि लोग आपके एक्शन से प्रभावित होते हैं। वह अब एक्शन और रिएक्शन के बीच का फर्क समझने लगेगा, इसका मतलब यह हुआ कि अगर वो गलत व्यवहार करेगा, तो उसे इसकी सजा मिल सकती है, यह वो जानता है। इसके अलावा इस उम्र में बच्चों में सहानुभूति आधारित नैतिकता भी पनपती है, जो उन्हें यह अहसास दिलाती है कि अगर उन्होंने किसी को चोट पहुँचाई, तो उस व्यक्ति को बुरा लगेगा।

4. प्री-टीन्स (7 से 11 वर्ष)

यह वह उम्र है जब बच्चे यह समझने लगते हैं कि बड़ों के पास शायद सब कुछ नहीं होता है! हालांकि वे अभी भी बड़ों का कहना मानते हैं, वे न्याय की पहचान करने में सक्षम होते हैं और समानता के विचार को भी पहचानने लगते हैं। इस उम्र में, उनके पास एक स्ट्रांग आईडिया होगा कि क्या किया जाना चाहिए और क्या नहीं करने की जरूरत है। वे यह भी मानने लगेंगे कि बच्चों की भी अपनी राय होती है जिसे सुन जाने की भी जरूरत है।

5. किशोरावस्था (टीनएज)

किशोरावस्था में बच्चे पियर प्रेशर से काफी ज्यादा प्रभावित होते हैं। हालांकि, वे समझते हैं कि उनके एक्शन का क्या परिणाम हो सकता है और कभी-कभी ये दूसरों को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। उनका मोरालिटी सेंस अलग और भावनात्मक होता है और वे इसे अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप इस्तेमाल करते हैं। क्योंकि वे पियर प्रेशर से काफी ज्यादा प्रभावित होते हैं, इसलिए वे ग्रुप के लोगों और दोस्तों को प्रभावित करने के लिए नैतिकता का गलत तरीके से सहारा ले सकते हैं। इस उम्र में, पेरेंट्स अधिकार दिखाने वाले व्यक्ति के बजाय बच्चों के सलाहकार और कंसलटेंट की तरह बन जाते हैं।

बच्चों में नैतिक विकास पर कई स्टडीज की गई हैं। आइए उन पर भी एक नजर डालते हैं।

नैतिक विकास पर फ्रायड का सिद्धांत

फ्रायड कांसेप्ट के आधार पर नैतिक विकास उनकी आईडी, ईगो और सुपर ईगो की थ्योरी पर आधारित है। इस थ्योरी के माध्यम से, उन्होंने प्रस्तावित किया है कि व्यक्ति की जरूरतों और समाज की जरूरतों के बीच एक बड़े पैमाने पर तनाव होता है।

आईडी यानी पहचान मन के उस हिस्से से जुड़ी है जो आत्म-संरक्षण (सेल्फ प्रेसेर्विंग) है और केवल खुद के बारे (सेल्फ गेन) में रुचि रखता है। हालांकि, सुपरईगो मोरल सेंटर से निकला है और समाज के लिए क्या सही है, इसके बारे में अधिक विचार रखता है।

फ्रायड का मानना ​​​​था कि यदि बच्चा सामाजिक हितों को ध्यान में रखते हुए आईडी से सुपर ईगो में परिवर्तन करने में सक्षम है तो वो नैतिक लक्ष्यों को हासिल कर लेगा।

नैतिक विकास पर स्किनर का सिद्धांत

स्किनर ने इस विचार पर जोर दिया कि जिस वातावरण में बच्चा बड़ा होता है, या मुख्य रूप से जिसमें है, वह बच्चे में मोरालिटी की नींव रखता है। यह इस बात का अनुवाद करता है कि पैरेंट और केयर टेकर का व्यहवार और ऐटिटूड बच्चे में मोरल डेवलपमेंट को आकार देता है।

नैतिक विकास पर पियेजे का दृष्टिकोण

पियेजे ने एक बच्चे के बौद्धिक विकास और नैतिक विकास के बीच समानताएं बताई हैं। उन्होंने यह भी कहा कि एक बच्चे की नैतिकता ग्रुप के साथ बातचीत और निर्णय लेने के जरिए ज्यादा अच्छी तरह से विकसित होती है। बहुत कम उम्र में, बच्चे का व्यवहार इस बात से पता किया जाता है कि वह किसी एक्शन से कैसे प्रभावित होगा। इस उम्र में, नियमों का होना बहुत महत्वपूर्ण हैं और उन्हें यह बताना चाहिए कि ये नियम कुछ ऐसे हैं जिन्हें बदला नहीं जा सकता है और बच्चे को केवल अपने एक्शन का क्या परिणाम होगा उसे लेकर चिंतित होना चाहिए। जैसे-जैसे बच्चे का बौद्धिक विकास होता है, उसे एहसास होने लगेगा कि जो एक्शन वह कर रहा है उसके पीछे के मकसद को जानने की जरूरत है। इस उम्र में, बच्चे नियमों का अर्थ भी समझने लगते हैं और बातचीत में शामिल सभी पक्षों की ओर से जो सही है उसे चुनने की अपेक्षा करते हैं।

नैतिक विकास की कोलबर्ग थ्योरी

कोलबर्ग पियेजे के विचारों से सहमत थे कि नैतिक विकास चरण के लिए बच्चे का संज्ञानात्मक (कॉग्निटिव) और बौद्धिक विकास होना भी जरूरी है। नैतिक विकास के उनके छह चरण (तीन स्तरों के तहत ग्रुप) बच्चों के एक समूह की प्रश्न और नैतिक दुविधाओं को प्रस्तुत करने वाली कहानी के लिए प्रतिक्रिया पर आधारित थे।

लेवल 1: पूर्व-परंपरागत नैतिकता (प्रीकन्वेशनल मोरालिटी)

यह दस साल से कम उम्र के बच्चों पर लागू होता है। यहाँ, बच्चे सजा से बचने और उनकी जरूरतों को पूरा किया जाने को लेकर चिंता दिखा सकते हैं। इसके दो चरण हैं।

स्टेज 1: आज्ञा मानने और सजा की नीति (ओबिडिएंस और पनिशमेंट ओरिएंटेशन)

सजा से बचने के कारण के लिए बच्चे माता-पिता या बड़ों के आदेशों का पालन करते हैं।

स्टेज 2: अदला-बदली, व्यक्तिवाद, साधन का इस्तेमाल (एक्सचेंज, इंडिविजुअलिज्म और इंस्ट्रूमेंटेशन)

बच्चे, इस स्तर पर, यह मानने लगते हैं कि सही का कांसेप्ट हर एक के लिए अलग हो सकता है और इसे किसी व्यक्तिगत दृष्टिकोण से देखा जा सकता है। उनके एक्शन अपने नैतिक पारस्परिकता (मोरल रेसप्रॉसिटी) पर भी आधारित होते हैं और वे जैसे को तैसा के सिद्धांत से निर्णय ले सकते हैं। वे सकारात्मक व्यवहार के लिए सौदे करना और बदले में कुछ लेना स्वीकार करना भी सीखते हैं।

लेवल 2: पारंपरिक नैतिकता (कन्वेंशनल मोरालिटी)

यह चरण दस साल की उम्र से शुरू होता है और बड़े होने तक बना रह सकता है। यह विचार उनके जीवन भर भी बना रह सकता है। बच्चे स्वीकार्य व्यवहार की ओर आकर्षित होते हैं और उनके रोल मॉडल के एक्शन को नोटिस करके उनसे बहुत कुछ सीखते हैं।

स्टेज 3: पारस्परिक अनुरूपता (इंटरपर्सनल कन्फर्मिटी)

बच्चे एक सोशल ग्रुप के अंदर अच्छा इंसान दिखने के लिए अच्छे कामों को करने का प्रयास करते हैं।

स्टेज 4: सामाजिक व्यवस्था व कानून और व्यवस्था (सोशल सिस्टम एंड लॉ एंड आर्डर)

अथॉरिटी का सम्मान और समाज में सब कुछ ठीक बनाए रखने के लिए नियमों का पालन किया जाता है।

लेवल 3: पारंपरिक नैतिकता के बाद (पोस्ट कंवेंशनल मोरालिटी)

केवल 10 से 15 प्रतिशत वयस्क ही इस स्टेज पर पहुंचते हैं, जिसमें उनकी नैतिकता उन तर्कों और सिद्धांतों पर आधारित होती है जिन्हें उन्होंने अपने लिए चुना होता है। अधिकांश लोग इस स्टेज को प्राप्त नहीं कर पाते क्योंकि वे अपने आसपास के लोगों से नैतिक शिक्षा लेते हैं।

स्टेज 5: सामाजिक अनुबंध और व्यक्तिगत अधिकार (सोशल कॉन्ट्रैक्ट एंड इंडिविजुअल राइट)

हालांकि नियम अधिकांश लोगों के फायदे के हिसाब से बनाए गए हैं, लेकिन व्यक्तिगत अपवाद (इंडिविजुअल एक्सेप्शन) हो सकते हैं।

स्टेज 6: सार्वभौमिक सिद्धांत और नैतिकता (यूनिवर्सल प्रिंसिपल एंड एथिक्स)

इस स्टेज पर लोग अपने व्यक्तिगत सिद्धांतों द्वारा चलते हैं, जो यूनिवर्सली लागू होते हैं, जैसे समानता और मानवाधिकार (इक्विटी और ह्यूमन राइट)। वे इन नियमों का पालन करते हैं और दूसरों के सिद्धांतों पर चलने से इंकार करते हैं।

बच्चों के नैतिक विकास में माता-पिता की भूमिका

बच्चे में नैतिकता की नींव रखने के लिए आपकी सक्रिय भूमिका होनी चाहिए और इसका उपयोग बच्चे को बड़े होकर एक विचारशील इंसान बनने में मदद कर सकता है। बच्चों में नैतिक विकास को बढ़ावा देने के लिए यहाँ कुछ गाइड लाइन दी गई हैं। 

1. नियम बनाएं और सिखाने के मौके का उपयोग करें

यह बहुत जरूरी है कि बच्चा साफतौर पर इस बात को जाने कि उसे क्या करना चाहिए और किस चीज से बचना चाहिए। अपने बच्चे को यह समझाने के लिए समय निकालें कि कुछ व्यवहार जैसे झूठ बोलना या किसी को चोट पहुंचाना गलत क्यों है। इस अवसर का उपयोग करके अपने बच्चे को नैतिक शिक्षा देने का प्रयास करें।

2. एक अच्छे रोल मॉडल बनें

बच्चे बहुत आसानी से प्रभावित हो जाते हैं और कभी-कभी बड़ों की नकल करते हैं। यही कारण है कि जिस तरह से आप दूसरों और अपने बच्चों के साथ व्यवहार करते हैं, आपका बच्चा भी वैसे ही करेगा, इसलिए आपका लोगों के प्रति दया और करुणा दिखाना जरूरी है।

3. पॉजिटिव तरीके डील करें

बच्चे के सही नैतिक व्यवहार पर उसे पुरस्कृत करें, ताकि उसे पता चले कि सही काम करने के लिए उसकी सराहना की जा रही है।

4. सामुदायिक भागीदारी

स्वयंसेवा जैसे कार्य समाज में एक मजबूत प्रभाव पैदा करते हैं और इससे बच्चे को भी यह सीख मिलती है कि उसे भी लोगों के साथ अच्छा करके समाज का ऋण चुकाना चाहिए। जब आप बच्चे को साथ लेकर काम करते हैं, जैसे पार्क की सफाई या वृद्धाश्रम में जाकर लोगों की मदद करना, तो यह देखकर उसे सामाजिक और भावनात्मक रूप से एक कुशल व्यक्ति बनने में मदद मिल सकती है।

बच्चों में नैतिक विकास उनकी विकास प्रक्रिया का एक आवश्यक हिस्सा है और उन्हें सही दिशा में ले जाने में मदद कर सकता है। यह महत्वपूर्ण है कि आप अपने बच्चे को बचपन से ही सकारात्मक और अच्छे मूल्यों को समझने और आत्मसात करने में मदद करने के मौके का उपयोग करें।

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समर नक़वी

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