बड़े बच्चे (5-8 वर्ष)

बच्चों का नींद में चलना (सोमनांबूलिज्म)

नींद में चलना, जिसे सोमनांबूलिज्म के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसी बीमारी है, जो कि लगभग 1% से 15% आबादी को प्रभावित करती है। यह बीमारी बड़ों की तुलना में बच्चों में अधिक देखी जाती है। 

अगर आपका बच्चा सोमनांबूलिज्म यानी जिसे हम बोलचाल की भाषा में स्लीप वॉकिंग भी कहते हैं, उससे ग्रस्त है तो यह जरूरी है, कि आपको इस बीमारी के कारण, संकेत, इलाज एवं अन्य जरूरी जानकारी पता हो। 

नींद में चलना क्या है?

स्लीप वॉकिंग (नींद में चलना) या सोमनांबूलिज्म एक ऐसी बीमारी है, जिसमें इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति जब नींद में रहता है, तो उसमें कई तरह की गतिविधियां देखी जाती हैं, खासकर चलना। इस बीमारी में कई तरह की गतिविधियां शामिल हैं, जैसे केवल उठकर खिड़की से झांकने जैसी मामूली गतिविधियों से लेकर घर से बाहर निकल कर दूर तक चले जाने जैसी गंभीर गतिविधियां। 

यह बच्चों में कितना आम है?

स्लीप वॉकिंग बड़ों की तुलना में बच्चों में अधिक देखा जाता है। आमतौर पर 1% से 15% की आबादी इस बीमारी से जूझती है, जिनमें से आधे से अधिक बच्चे होते हैं। ऐसा पाया गया है, कि अगर बच्चा थका हुआ हो या उसकी नींद पूरी न हुई हो, तो नींद में चलने की संभावना अधिक हो सकती है। 

क्या बच्चे का नींद में चलना चिंताजनक है?

केवल नींद में चलना आपके बच्चे के लिए नुकसानदायक नहीं होता है, लेकिन चूंकि ऐसे में बच्चे को पता नहीं होता है, कि वह क्या कर रहा है, इसलिए यह उसके लिए खतरनाक हो सकता है। क्योंकि अगर वह नींद में चलते हुए घर से बाहर निकल जाता है, सीढ़ियां चढ़ने-उतरने लगता है, तो वह खुद को चोट पहुंचा सकता है। ऐसे कई उदाहरण देखे गए हैं, जब बच्चे चलते हुए सड़क पर चले जाते हैं और सुबह होने पर वे खुद को किसी अनजान जगह पर पाते हैं। ऐसे में बच्चे को यह बीमारी होने की चिंता न भी हो, पर नींद में चलने पर वह क्या करता है इसे लेकर चिंता होना स्वाभाविक है। 

बच्चों के नींद में चलने के कारण

बच्चों में नींद में चलने की बीमारी के कुछ कारण इस प्रकार हैं: 

  • नींद में चलना एक ऐसी बीमारी है, जो कि अनुवांशिक होती है। अगर आप या आपके परिवार का कोई सदस्य इससे ग्रस्त हो, तो आपके बच्चे में भी यह बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है।
  • नींद की कमी नींद में चलने का एक प्रमुख कारण है। अगर बच्चे की नींद पूरी नहीं हो रही है, तो हो सकता है कि वह नींद में चलने लगे।
  • एक अनियमित स्लीपिंग पैटर्न भी नींद में चलने का कारण बन सकता है।
  • दवाओं के कारण भी यह स्थिति संभव है। अगर बच्चा तेज दवाएं ले रहा है, तो ये दवाइयां उसकी स्थिति की जिम्मेदार हो सकती हैं। स्टिम्युलेंट, एंटीहिस्टामाइन जैसी कुछ तेज दवाएं इसका कारण बन सकती हैं।
  • तनाव कई तरह की बीमारियों का कारक होता है और इसके कारण भी यह स्थिति पैदा हो सकती है।
  • एंग्जायटी
  • स्लीप एपनिया एक ऐसी स्थिति है, जिसमें प्रभावित व्यक्ति रात के समय थोड़ी देर के लिए सांस लेना बंद कर देता है। स्लीप एपनिया भी स्लीप वॉकिंग के लिए जिम्मेदार हो सकता है।
  • बुरे सपने
  • रेस्टलेस लेग सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है, जो कि सीएनएस को प्रभावित करती है। इसमें प्रभावित क्षेत्र (आमतौर पर पैर) में असामान्य गतिविधि होने लगती है। आरएलएस भी स्लीप वॉकिंग का एक कारक हो सकता है।
  • माइग्रेन
  • सिर में पुरानी चोट

स्लीप वॉकिंग के संकेत और लक्षण

जब आप स्लीप वॉकिंग शब्द सुनती हैं, तो पहली बात जो आपके दिमाग में आती है, वह होती है नींद में चलना। लेकिन नींद में चलना ही इस बीमारी का एकमात्र लक्षण नहीं होता है। स्लीप वॉकिंग के कई संकेत और लक्षण होते हैं और इनमें से कुछ सबसे प्रमुख संकेत इस प्रकार हैं, जो कि बच्चों में देखे जाते हैं:

  • उठ कर बैठना और इधर-उधर देखना
  • नींद में बातें करना पर कुछ कहने पर प्रतिक्रिया न देना
  • नींद में रोना
  • इधर-उधर चलना और गलत जगह पर पेशाब करना जैसे सिंक में या अलमारी में
  • किसी व्यवहार को बार-बार दोहराना, जैसे खिड़कियां और दरवाजे खोलना या बंद करना जो कि अक्सर दोहराया जाता है
  • नींद में चलने की घटना को अगले दिन भूल जाना
  • चीखना, खासकर डरावना सपना देखने के बाद
  • किक करना या मारना जैसे हिंसक व्यवहार
  • बच्चे को जगाने में कठिनाई

पहचान

स्लीप वॉकिंग की पहचान में स्लीपिंग पैटर्न की जांच और बच्चे की नींद में चलने की घटनाओं के बारे में जानकारी शामिल है। शारीरिक जांच भी की जाती है, इसमें बुरे सपने, नींद के दौरान दौरे और पैनिक अटैक की जांच होती है। कुछ मामलों में नोक्टर्नल स्लीप स्टडी या पॉलीसोम्नोग्राफी भी की जाती है, जिसमें बच्चे को सारी रात लैब में सोना पड़ता है और उसकी ब्रेन वेव्स, हार्ट रेट, ऑक्सीजन का लेवल और पैरों की हलचल को देखा जाता है। 

बच्चों में स्लीप वॉकिंग के लिए इलाज के विकल्प

सोमनांबूलिज्म को ठीक करने के लिए, आपको इसकी जड़ तक जाना होगा, क्योंकि यह आमतौर पर नींद की कमी, तनाव और एंग्जाइटी जैसी छुपी हुई समस्याओं के कारण होता है। इसलिए जब आप समस्या की जड़ तक पहुंच जाती हैं, तो इस बीमारी को ठीक करना बहुत आसान हो जाता है। इस बीमारी में इलाज के कई तरह के विकल्पों से मदद मिल सकती है। पर ज्यादातर मामलों में, जब बच्चा अपने टीनएज यानी किशोरावस्था में पहुंचता है, तब नींद में चलने की उसकी घटनाएं रुक जाती हैं। 

कुछ मामलों में ड्रग्स और कुछ खास दवाएं नींद में चलने का कारण होती हैं। अपने डॉक्टर से कुछ ऐसे वैकल्पिक दवाओं के बारे में बात करें, जिनसे स्लीप वॉकिंग जैसे साइड इफेक्ट ना हों। 

थेरेपी और काउंसलिंग से भी स्लीप वॉकिंग से आराम मिल सकता है। तनाव में कमी और स्लीप थेरेपी के कुछ सेशन इसमें बहुत मदद कर सकते हैं। 

बचाव

बहुत सारे बच्चे नींद में चलने का अनुभव करते हैं और जब बच्चा अपनी किशोरावस्था तक पहुंचता है, तब ये घटनाएं धीरे-धीरे रुक जाती हैं। भविष्य में नींद में चलने की घटनाओं से बचने के लिए आप नीचे दिए गए सुरक्षात्मक मापदंडों को ध्यान में रख सकती हैं: 

  • इस बात का खयाल रखें, कि बच्चे की नींद अच्छी तरह से पूरी हो। ज्यादातर मामलों में अपर्याप्त नींद या नींद में खलल पड़ने से नींद में चलने की घटनाएं देखी जाती हैं।
  • उन तारीखों को नोट करें, जिनमें नींद में चलने की घटनाएं होती हैं। ज्यादातर मामलों में आपको एक रिपीटेशन या पैटर्न दिखेगा।
  • अगर आपके बच्चे के साथ नींद में चलने की घटनाएं पहले हो चुकी हैं, तो उसे थेरेपिस्ट के पास लेकर जाएं और स्लीप रिलैक्सेशन टेक्निक्स या स्ट्रेस रिडक्शन थेरेपी को अपनाएं।
  • इस बात का ध्यान रखिए, कि बच्चे के सोने का कमरा ठंडा हो, सूखा हो, आरामदायक हो और अंधेरा हो। इससे अच्छी नींद मिलने में मदद मिलती है।
  • इस बात का भी ध्यान रखें, कि रात के समय जब बच्चा सो रहा हो, तब घर में किसी तरह का शोरगुल न हो। यदि टीवी या रेडियो बेडरूम के पास हों, तो उसे वहां से हटाकर किसी और जगह पर रख दें।
  • सोने के लिए एक नियमित समय सारणी बनाएं।
  • बच्चे को दिन के समय अधिक देर तक सोने न दें, खासकर दोपहर में 3:00 बजे के बाद, क्योंकि इससे रात में सोने का पैटर्न खराब हो सकता है।
  • इस बात का ध्यान रखें, कि आपका बच्चा अच्छी एक्सरसाइज करे। अगर इसकी कमी है, तो नियमित रूप से उसके रूटीन में अच्छी एक्सरसाइज को शामिल करें या फिर सप्ताह में कम से कम तीन से चार बार।
  • बच्चे का खानपान स्वस्थ होना चाहिए। यदि कभी-कभार दिया जाए, तो जंक फूड देने में कोई बुराई नहीं है।  रात के समय भारी खाना देने से बचें।

नींद में चलने वाले बच्चे को सुरक्षित रखने के तरीके

जैसा कि पहले बताया गया है, स्लीप वॉकिंग अपने आप में नुकसानदायक नहीं है, लेकिन इस दौरान बच्चे द्वारा की जाने वाली हरकतें उसे चोट पहुंचा सकती हैं। अगर आपका बच्चा नींद में चलता है, तो यह जरूरी है, कि आप उसे सुरक्षित रखने के लिए सब कुछ करें, ताकि वह इन घटनाओं के दौरान खुद को नुकसान न पहुंचाए।

  • इस बात का ध्यान रखें, कि जिस कमरे में बच्चा सोता है, उसमें गंदगी और सामान न बिखरा हो, ताकि उनमें उलझ कर गिरने का डर न हो।
  • अगर बच्चा नींद में चलता है, तो इस बात का ध्यान रखें, कि उसका कमरा ग्राउंड फ्लोर पर हो। इससे सीढ़ियों पर चढ़ने-उतरने से बचाव हो पाएगा।
  • दरवाजों को हमेशा लॉक करके रखें।
  • आप बच्चे के कमरे के दरवाजे पर एक बेल या अलार्म भी लगा सकती हैं, ताकि अगर वह दरवाजा खोले तो आपको पता चल सके।
  • चाकू और कैंची जैसी खतरनाक चीजों को बच्चे की पहुंच से दूर हटा कर या छुपा कर रखें।
  • घर की गाड़ी की चाबियों को छुपा कर रखें, इससे यदि बच्चा घर से बाहर निकलने या गाड़ी लेने की कोशिश करे, तो उसका बचाव हो सके।
  • बच्चे के सोने के लिए बंक बेड न रखें।
  • केमिकल जैसी किसी खतरनाक चीज को बच्चे की पहुंच से दूर रखें।

नींद में चलने वाले बच्चे को कैसे संभालें?

स्लीप वॉकिंग एक ऐसी बीमारी है, जो कि आपकी सोच के तुलना में कहीं अधिक लोगों को प्रभावित करती है। ज्यादातर मामलों में आप नींद में चलने की घटनाओं में धीरे-धीरे आती हुई कमी को महसूस करेंगी। कुछ मामलों में आपका बच्चा गलत गतिविधियां कर सकता है, जैसे अलमारी में पेशाब करना, मारना या चीखना। इससे आप परेशान हो सकती हैं, लेकिन आपको यह समझने की जरूरत है, कि बच्चा अपनी इन हरकतों पर या व्यवहार पर नियंत्रण नहीं रख सकता है। आपको धैर्य बनाए रखने और समझदारी दिखाने की जरूरत है। इसके लिए बच्चे को सजा देना ठीक नहीं है, क्योंकि इससे स्थिति और भी बिगड़ सकती है। उससे बात करें और अगर ये घटनाएं बार-बार होने लगी हैं, तो एक थेरेपिस्ट से मदद लें। 

घरेलू देखभाल के लिए टिप्स

यहां पर कुछ घर पर करने के लिए कुछ टिप्स दिए गए हैं, जिन्हें नींद में चलने वाले बच्चे को संभालते समय आपको ध्यान में रखना चाहिए –

  • खयाल रखें, कि बच्चे की नींद पूरी हो
  • बच्चे की सोने वाली जगह में अनचाही आवाज, रोशनी या दूसरी परेशानियां ना हों
  • अगर बच्चा नींद में चलता है, तो उसे सौम्यता से अपने बिस्तर तक लेकर जाएं
  • यह एक आम गलतफहमी है, कि नींद में चलते हुए व्यक्ति को जगाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। यह एक मिथ है। बच्चे को सौम्य आवाज में जगाएं, ताकि उसे झटका न लगे
  • अपने बच्चे को कैफीन देने से बचें। अल्कोहल और निकोटिन से भी दूर रखें
  • एक शांत वातावरण तैयार करें। तनावपूर्ण स्थितियां और वातावरण नींद में चलने की घटनाओं को बढ़ावा दे सकते हैं

नींद में चलना एक ऐसी बीमारी है, जो आपको परेशान कर सकती है, खासकर अगर आपका बच्चा इससे जूझ रहा हो तो। पर सही इलाज और थेरेपी के साथ आप इसे ठीक करने में मदद कर सकती हैं। ऊपर दिए गए टिप्स, इलाज और सावधानियों को अपनाने से आप अपने बच्चे को सुरक्षित रख सकती हैं। 

यह भी पढ़ें: 

बच्चों में एपिलेप्सी (मिर्गी)
बच्चों में बुखार के दौरे (फेब्राइल सीजर) होना
बच्चों को नींद न आना (अनिद्रा) – स्लीप डिसऑर्डर

पूजा ठाकुर

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