कहानी सुनाना न केवल माता–पिता और बच्चों के बीच संबंध को और गहरा करने का एक तरीका है, बल्कि नैतिकता पर चर्चा करने और मूल्यों को समझाने का एक आसान और मज़ेदार उपाय भी है। भगवान कृष्ण के बचपन की कहानियों को जानने के लिए आगे पढ़ें, जो निश्चित रूप से बच्चों को बहुत अच्छी लगेंगी।
भगवान कृष्ण बच्चों और वयस्कों, सभी के बीच सबसे लोकप्रिय हिंदू भगवानों में से एक हैं। उनकी कहानियों में मज़ेदार, हँसी और अच्छे आदर्शों से भरे किस्से हैं। यहाँ बच्चों के आनंद के लिए भगवान के विशेष 15 कहानियाँ हैं:
प्राचीन काल में, ‘उग्रसेन’ नाम का एक राजा था, जिसके दो बच्चे थे – ‘कंस’ नाम का एक बेटा और ‘देवकी’ नाम की एक बेटी। देवकी नम्र और शांत स्वभाव की थी, लेकिन कंस दुष्ट था। जब वह बड़ा हुआ, तो उसने अपने पिता को क़ैदख़ाने में डाल दिया, और राजा की गद्दी खुद संभाली, जबकि उसकी बहन की शादी राजा ‘वासुदेव’ से हुई।
एक दिन, कंस ने एक आकाशवाणी सुनी – तुम्हारी बहन का आठवाँ पुत्र बड़ा होने पर एक दिन तुम्हारी हत्या करेगा। इससे दुष्ट कंस डर के मारे अंदर तक हिल गया और वह अपनी बहन को मारना चाहता था। लेकिन वासुदेव ने देवकी को जिंदा रखने का आग्रह किया और कंस द्वारा देवकी के आठवें पुत्र को मारने के लिए सहमत हुए। कंस ने अपनी ही बहन और उसके पति को कैद कर लिया, दंपति की आठवीं संतान भगवान कृष्ण थे जो कंस द्वारा उन्हें मारने के लिए किए गए सभी प्रयासों से बच गए और अंत में उन्होंने अपने दुष्ट मामा को परास्त कर दिया।
सीख – यदि आप बुरे हैं और आपके बुरे इरादे हैं, तो आपको अपने पापों की सज़ा ज़रूर मिलेगी। हमेशा सकारात्मक रहें और दूसरों का भला करने के बारे में सोचें।
देवकी और वासुदेव उनके भाई कंस द्वारा कैद किए गए थे। हर बार जब देवकी एक बच्चे को जन्म देती, कंस खुद आ जाता और अपने हाथों से बच्चे को मार देता था । देवकी के सातवें बेटे का गर्भपात हुआ, लेकिन वह रहस्यमयी तरीके से वृंदावन की रानी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित हो गया, जो कृष्ण के भाई – बलराम के रूप में दुनिया में आए।
उनके आंठवे पुत्र का जन्म आधी रात को जेल के भीतर हुआ, यह भगवान कृष्ण थे और उस विशेष दिन को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
सीख – अगर कुछ अच्छा होना है, तो वह होकर रहेगा । अच्छाई हमेशा बुराई पर हावी होती है।
कृष्ण का जन्म विष्णु के रूप में हुआ था और उनके माता–पिता ने प्रार्थना की थी कि वह एक साधारण बच्चे में बदल जाएं, ताकि वे उसे कंस से छिपा सकें। प्रभु ने अपने पिता को उन्हें वृंदावन ले जाने और एक नवजात बच्ची के साथ अदला–बदली करने की सलाह दी। फिर, जादुई रूप से क़ैदख़ाने के पहरेदार सो गए और सभी ताले और जंजीरें अपने आप खुल गईं।
वासुदेव छोटे कृष्ण को लेकर वृंदावन के लिए रवाना हो गए। जब वह यमुना नदी के तट पर पहुँचे तो उन्होंने देखा कि नदी में बाढ़ आई हुई थी।अपने सिर पर छोटे कृष्ण को रखते हुए, जैसे ही वासुदेव ने नदी को पार करने का प्रयास किया और पानी ने जैसे ही कृष्ण के पैर की अंगूठे को छुआ यहाँ पर भी रहस्यमयी तरीके से नदी का पानी पीछे हट गया जिससे वासुदेव अपनी यात्रा पूरी कर सके। वह फिर यशोदा के घर पहुँचे, बच्चों की अदला–बदली की और बच्ची के साथ वापस क़ैदख़ाने लौट आए। देवकी और वासुदेव को उम्मीद थी कि कंस लड़की को छोड़ देगा क्योंकि भविष्यवाणी थी कि एक लड़का कंस को मारेगा, लेकिन कंस ने परवाह नहीं की। उसने बच्चे को उनके हाथों से छीन लिया और उसे एक पत्थर पर फेंक कर मार दिया। लेकिन लड़की देवी दुर्गा में बदल गई और उन्होंने कंस को बताया कि कृष्ण जीवित हैं और उसे उसके बुरे कर्मों के लिए उसे दंडित करेंगे।
सीख – कभी–कभी शक्तियाँ खुद के नियंत्रण से परे होती हैं। यदि आपके केवल बुरे इरादे हैं, तो आप कभी भी सफल नहीं होंगे।
कृष्ण के मामा कंस उसे मारने के लिए बेताब थे, इसलिए उन्होंने ‘पुतना’ नामक एक राक्षसी को यह कार्य सौंपा। राक्षसी ने एक सुंदर महिला का रूप धारण किया और उस कमरे में जा पहुँची जहाँ कृष्ण थे।
उसने अपने स्तनों पर जहर लेपा हुआ था और कृष्ण को दूध पिलाने का अनुरोध किया। कृष्ण की माँ को उसके असली इरादों का पता नहीं था और उन्होंने पुतना को दूध पिलाने की अनुमति दे दी। लेकिन कृष्ण ने अपनी आँखें बंद कर लीं और उस राक्षसी के जीवन को चूस लिया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। विष ने कृष्ण का कुछ नहीं बिगाड़ा लेकिन कृष्ण को दूध पिलाने का अच्छा कर्म करने के कारण, पुतना की आत्मा को मुक्ति मिल गई।
सीख – कभी भी किसी को जान–बूझकर चोट नहीं पहुँचानी चाहिए, क्योंकि आपको इसके लिए भुगतना पड़ सकता है।
भगवान कृष्ण को मक्खन खाना बहुत पसंद था, वृंदावन शहर में हर कोई उनकी शरारतों और मक्खन चुराने के प्रयासों से वाकिफ था इसीलिए उन्हें “माखन चोर” कहा जाता था। कृष्ण की माँ यशोदा कृष्ण से मक्खन को छुपाने के लिए इसे ऊँचाई पर बाँध देती थीं।
एक बार, जब यशोदा आसपास नहीं थीं तो कृष्ण ने अपने दोस्तों को बुलाया। वे एक दूसरे के ऊपर चढ़ गए और कैसे भी वह मक्खन के बर्तन तक पहुँचने में कामयाब रहे। सभी ने मिलकर मक्खन से भरा बर्तन नीचे उतार लिया और बड़े मज़े से मक्खन को मिल–बाँट कर खाया। लेकिन दुर्भाग्य से, उन्हें एहसास नहीं हुआ कि यशोदा वापस आ गई हैं। कृष्ण के सभी दोस्त वापस अपने घरों में भाग गए, लेकिन कृष्ण को शरारती होने के लिए फटकार पड़ी।
सीख – हमेशा अपने से बड़ों की बात मानें और कभी चोरी न करें।
भगवान कृष्ण शरारती थे और उनकी माँ यशोदा उनकी शरारतों से थक चुकी थीं। एक दिन, उन्होंने कृष्ण की हरकतों को रोकने के लिए उन्हें बाँधने का फैसला किया। यशोदा उन्हें बाँधने के लिए एक रस्सी लाईं, लेकिन उन्हें एहसास हुआ कि रस्सी बहुत छोटी थी। वह फिर एक बड़ी रस्सी ले आईं , लेकिन वह भी छोटी पड़ गई। इसके बाद तीसरी रस्सी लाईं, लेकिन वह भी कम पड़ गई। तब उन्हें एहसास हुआ कि उनका बेटा कुछ चमत्कारी है। लेकिन उसके बाद, भगवान कृष्ण ने अपनी माँ को उन्हें बाँधने दिया ताकि वह खुश हो सकें।
सीख – चमत्कार में विश्वास करें, वे हो सकते हैं। हमेशा ऐसे काम करें जिससे आप अपने माता–पिता को खुश कर सकें।
एक दिन, कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम बगीचे में फल और जामुन इकट्ठा कर रहे थे। चूंकि कृष्ण अभी भी छोटे बच्चे थे, वह पेड़ों तक नहीं पहुँच सकते थे इसलिए उन्होंने ज़मीन से मिट्टी उठाई और अपने मुंह में भर ली। दूसरे बच्चों ने यह देखा और उनकी माँ से शिकायत की, यशोदा उनके पास दौड़ीं और उन्होंने कृष्ण से पूछा कि क्या उन्होंने मिट्टी खाई है। उन्होंने ना का इशारा करते हुए सिर हिला दिया, यशोदा ने कृष्ण से मुंह खोलने के लिए कहा लेकिन वह इतना डर गए थे कि उन्होंने मुंह खोलने से इनकार कर दिया। लेकिन जब उनकी माँ ने उनकी ओर गुस्से से देखा, तो उन्होंने अपना मुंह खोल दिया।
जब यशोदा ने मुंह के अंदर देखा, तो मिट्टी के बजाय उन्हें पूरा ब्रह्मांड कृष्ण के मुंह के अंदर दिखाई दिया। सितारे, आसमान, पहाड़, महासागर सब कुछ। वह आश्चर्य–चकित हो गईं और कृष्ण मुस्कुराते रहे। तब यशोदा को एहसास हुआ, कि वह कोई साधारण बालक नहीं है बल्कि स्वयं भगवान हैं।
सीख – हमेशा अपनी माँ की बात मानें और कभी झूठ न बोलें।
एक दिन जब कृष्ण और उनके दोस्त यमुना नदी के किनारे खेल रहे थे, तब उनकी गेंद नदी में गिर गई जहाँ एक सौ दस सिर वाले नाग कालिया राज करते थे और अपने परिवार के साथ रहते थे।
कृष्ण ने गेंद को पुनः प्राप्त करने के लिए गोता लगाया, लेकिन कालिया ने अपने ज़हर से पानी को ज़हरीला बनाना शुरू कर दिया। कृष्ण ने उसका सामना किया और उसे पानी को ज़हरीला न करने के लिए कहा, लेकिन कालिया ने मना कर दिया। तब कृष्ण उससे लड़े और उतने बड़े नाग को पराजित कर उसके सिर पर नृत्य करने लगे। उन्होंने सर्प को नदी छोड़ने और कभी वापस न आने का आदेश दिया।
सीख – युद्ध की तुलना में शांति एक बेहतर उपाय है।
एक दिन, वृंदावन में एक विशाल बैल आया और उसने लोगों पर हमला करना शुरू कर दिया। किसी को नहीं पता था, कि वह कहाँ से आया था और हर कोई अपनी जान बचाने के लिए इधर–उधर दौड़ने लगा। वे फिर कृष्ण से मदद माँगने आए।
जब कृष्ण बैल के आमने–सामने आए तो उन्हें समझ आया कि यह वास्तव में एक राक्षस है। लेकिन कृष्ण शक्तिशाली होने के कारण, बैल से निपटने और उसके सींगों में छेद करने में कामयाब रहे। जब लड़ाई समाप्त हो गई, तो दानव ने बैल के शरीर को छोड़ दिया और प्रभु के सामने झुक गया। उसने बताया कि वह भगवान बृहस्पति का शिष्य था और उसे राक्षस बैल बनने का शाप दिया गया था क्योंकि वह अपने शिक्षक का सम्मान नहीं करता था।
सीख – अपने बुजुर्गों और शिक्षकों की अवज्ञा कभी न करें।
जब कृष्ण ने दानव बैल अरिष्टासुर को पराजित किया, तो नारद नामक एक ऋषि कंस के पास गए और उन्हें बताया कि कृष्ण वासुदेव और देवकी से पैदा हुए आठवें पुत्र है और यह दैवनिर्दिष्ट था कि वे कंस को मारेंगे। इससे कंस को गुस्सा आया और उसने कृष्ण को मारने के लिए लंबे बालों वाले घोड़े ‘केशी’ को बुलवाया।
अश्व राक्षस, कृष्ण को मारने की उम्मीद से वृंदावन के लोगों को डराने लगा। लेकिन कृष्ण उससे डरे नहीं, उन्होंने केशी को एक लड़ाई के लिए चुनौती दी और अपनी कोहनी से केशी के सभी दाँत तोड़ डाले । कृष्ण ने तब राक्षस घोड़े का गला दबा कर उसे मृत्यु के घाट उतार दिया और उसके बाद कृष्ण को एक नया नाम दिया गया – केशव – जिसने केशी को मार दिया था ।
सीख – डरो मत और डटे रहो।
भगवान ब्रह्मा ने एक बार कृष्ण पर एक चाल चलने का फैसला किया। उन्होंने कृष्ण के सभी दोस्तों से कहा कि वे गायों को ले जाएं और एक गुफा के अंदर छिप जाएं। जब कृष्ण को कोई नहीं मिला, तो उन्होंने अपने सभी मित्रों के अवतार ले लिए और वृंदावन लौट आए। घबराकर और परेशान होकर, भगवान ब्रह्मा जब वृंदावन आए तो कृष्ण को सभी के रूप में देख कर उन्होंने महसूस किया कि उन्हें कृष्ण की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए थी।
सीख – आपको हमेशा, अपने दोस्तों की मदद करनी चाहिए।
भगवान इंद्र बारिश के देवता हैं और इसीलिए सभी लोग समय पर वर्षा के लिए उनकी पूजा करते थे। लेकिन एक वर्ष , भगवान कृष्ण ने सुझाव दिया कि ग्रामीणों को गोवर्धन पहाड़ी की पूजा करनी चाहिए। इससे भगवान इंद्र बहुत क्रोधित हो गए इसलिए उन्होंने वृंदावन पर तूफान उठा दिया।
लेकिन कृष्ण ने गोवर्धन पहाड़ी को एक उंगली पर उठाकर अपने लोगों की रक्षा की। इससे भगवान इंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने कृष्ण से तूफान के लिए माफी मांगी।
सीख – क्रोध में कभी भी कठोर निर्णय न लें, वे कभी फलदायी नहीं हो सकते हैं।
एक दिन, कामधेनु नामक एक गाय भगवान कृष्ण के पास पहुँची। कामधेनु ने कृष्ण से कहा, कि वह देवलोक नामक स्थान से आई है, जो स्वर्ग का राज्य है। उसने कहा कि वह कृष्ण का राज्याभिषेक करना चाहती है।
गाय ने स्वर्ग के पवित्र जल से भगवान को स्नान कराया और सभी प्राणियों की रक्षा करने के लिए उन्हें धन्यवाद भी दिया। उसके बाद, भगवान इंद्र स्वयं ऐरावत के साथ प्रकट हुए और घोषणा की कि कृष्ण को गोविंदा के नाम से जाना जाएगा, जिसका अर्थ है पूरी दुनिया के इंद्र।
सीख – सभी का सम्मान करना चाहिए – मनुष्य और जानवर, दोनों का।
एक दिन जब कृष्ण अपने दोस्तों के साथ खेल रहे थे, वे एक पर्वत की गुफा में जा पहुँचे। उन्हें पता नहीं था कि यह गुफा राक्षसी पुतना के भाई, दानव अघासुर का घर था। अघासुर ने कृष्ण और उनके दोस्तों को मारने के लिए एक विशालकाय सांप का रूप ले लिया। कृष्ण और उनके मित्रों को यह नहीं पता था कि अघासुर ने गुफा के प्रवेश द्वार के बराबर अपना मुंह खोल दिया है ताकि वे सब अंदर चले आएं और वह उन्हें खा सके।
कृष्ण ने महसूस किया कि कुछ गलत है और उन्होंने खुद गुफा में प्रवेश करने का फैसला किया। यह सोचकर कि कृष्ण का अंत हो जाएगा, सभी राक्षस खुश हो गए और देवता परेशान हो गए। लेकिन गंधर्वों ने कृष्ण से विनती की, जो तब सब कुछ समझ चुके थे, । विनती पर कृष्ण अपना आकार तब तक बड़ा करते गए जब तक उन्होंने दानव सांप को मौत के घाट नहीं उतार दिया। वे न्यायपसंद व्यक्ति थे और उन्होंने दानव की आत्मा को मुक्ति दी।
सीख – हमेशा उसकी बात सुनें जो आपको अच्छी सलाह देता है।
जब कृष्ण ने कंस द्वारा भेजे गए सभी राक्षसों और राक्षसियों को हरा दिया, तो कंस चिंतित हो गया। उसने कृष्ण और उनके भाई बलराम को मथुरा वापस लाने के लिए अपने नौकर अक्रूर को भेजा। उन्होंने अपने दो सबसे ताकतवर पहलवानों के साथ कुश्ती में लड़कों को चुनौती देने की साजिश रची। कृष्ण और बलराम ने चुनौती स्वीकार की और अपने विरोधियों को आसानी से हरा दिया और उन्हें मार डाला।
यह सब देखकर, कंस ने अपना आपा खो दिया और अपने सैनिकों को उन्हें राज्य से निकालने और वासुदेव व उग्रसेना को भी मार डालने का आदेश दिया। यह सुनकर, कृष्ण कंस पर टूट पड़े और कंस के मुकुट को गिरा दिया और उसके बाल पकड़ कर घसीटते हुए कुश्ती के अखाड़े तक ले गए। कंस यह साबित करने के लिए बेताब था कि वह एक बेहतर सेनानी है, उसने कृष्ण से लड़ने की चुनौती स्वीकार कर ली। कृष्ण ने उसे एक ज़ोर से मुक्का मारा और कंस की मृत्यु हो गई। यह देख कर कंस के आठ भाइयों ने उन पर हमला किया, लेकिन बलराम ने अकेले ही अपनी गदा से उन सभी को मार डाला। कृष्ण तब अपने जन्म देने वाले माता–पिता, देवकी और वासुदेव से मिले।
सीख – सच्चाई और अच्छाई की हमेशा जीत होती है। ऐसी कई कहानियाँ बच्चों को बहुमूल्य बातें सिखाने के लिए ज्ञान का भंडार हैं। अपने नन्हें मुन्ने बच्चों के साथ, कहानियों की दुनिया में अपनी यात्रा शुरू करें और उन्हें एक अच्छे जीवन व दृढ़ संबंधों को बनाने के लिए अपना रास्ता खोजने में मदद करें।
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