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महाभारत एक साहित्यिक महाकाव्य है और इसमें हिन्दू पौराणिक व दार्शनिक कथाओं का वर्णन है। माना जाता है कि यह सिर्फ बड़ों के लिए है पर यह एक महाकाव्य होने के अलावा भी बहुत कुछ है। इसमें मौजूद अलग-अलग कहानियां और पात्र बच्चों के लिए भी एक अच्छी सीख का उदाहरण बन सकते हैं। वास्तव में यह एक ज्ञान का भंडार है जो कई पीढ़ियों से चला आ रहा है। इसमें बहुत सारी कहानियां हैं जो नैतिकता और आचरण की सीख देती हैं। यह महाकाव्य हमारी संस्कृति का एक भाग है और बच्चों को भी इससे अवगत कराना चाहिए।
हिन्दू धर्म में संस्कृत भाषा के दो महाकाव्य हैं, रामायण और महाभारत। जिनमें से महाभारत एक ऐसी महागाथा है जिसमें दो भाइयों पाण्डु व धृतराष्ट्र के पुत्रों पांडवों व कौरवों के बीच 18 दिनों तक चलने वाले कुरुक्षेत्र के महायुद्ध का वर्णन किया गया है। कई सारे पात्र और कई सारी कहानियां इस महागाथा से जुड़ी हुई हैं जो दार्शनिक व दैविक दोनों हैं। महाभारत में भगवान कृष्ण द्वारा भगवद गीता का भी वर्णन किया गया है और इसी वजह से सभी रचनाओं में यह सबसे ज्यादा पूजनीय है। महाभारत को सिर्फ टाइम पास के लिए नहीं पढ़ा जाता है। यदि आप इसे पढ़ते हैं तो पहले इसकी गंभीरता व इसकी गहराइयां जानें और इससे जुड़े हर एक पात्र के कर्मों व प्रतिक्रियाओं को समझें। महाभारत से जुड़ी कहानियां पढ़ने के बाद आप खुद को इतनी सारी भूमिकाएं निभाते हुए पाएंगे जैसी इन कहानियों में वर्णित हैं।
यह कहानी कुरु वंश में हस्तिनापुर के राजा शांतनु से शुरू होती है जिन्होंने गंगा नदी से शादी की थी और इनके पुत्र भीष्म महाभारत के सबसे मुख्य पात्र हैं। गंगा नदी के बाद राजा शांतनु से सत्यवती से भी विवाह किया जिनसे उन्हें दो पुत्र हुए। जिनमें से एक का नाम विचित्रवीर्य था और राजा शांतनु के बाद वे ही राज्य के महाराज बने। अब राजा विचित्रवीर्य के 3 पुत्र हुए जिनमें से सबसे बड़े धृतराष्ट्र, उनसे छोटे पाण्डु और सबसे छोटे विदुर थे। धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधे थे इसलिए भीष्म हमेशा से पाण्डु को महाराज बनाना चाहते थे।
धृतराष्ट्र का विवाह गांधारी से हुआ जिनके 100 पुत्र हुए और इन्हें हम कौरव के नाम से जानते हैं। पाण्डु का विवाह कुंती और माद्री से हुआ, जिन्हें ईश्वर के आशीर्वाद के रूप में 5 पुत्र हुए। पहले से ही कुंती का एक और पुत्र था जिसका नाम कर्ण था और यह बात कोई भी नहीं जानता था।
एक ऋषि को अनजाने में मारने के बाद उनके श्राप के कारण पाण्डु राजमहल छोड़कर वन में रहने चले गए और राज्य में शांति और खुशी के लिए धृतराष्ट को राज्य का कार्यकारी राजा बना दिया गया। जब पाण्डु व माद्री की मृत्यु के बाद कुंती अपने पांच बेटों के साथ राजमहल में वापस आईं तो कौरवों ने कभी भी पांडवों को अपना भाई नहीं माना और वे कभी एक नहीं हुए। कौरवों ने पांडवों को कई बार मारने की कोशिश की पर वे कभी भी सफल नहीं हो पाए और षड्यंत्रों के चलते पांडवों को अपनी माँ के साथ छिपकर वन में रहना पड़ा। समय के चलते अर्जुन ने द्रौपदी का स्वयंवर जीता और कुंती की आज्ञा से वह पाँचों भाइयों की पत्नी बनी और इसके बाद फिर से वे पाँचों भाई अपनी माँ और द्रौपदी के साथ हस्तिनापुर में वापस आए। धृतराष्ट्र की आज्ञा से पांडवों को अलग राज्य दे दिया गया पर इस बार उनके लिए फिर से षड्यंत्र रचा गया था जिसमें कौरवों ने अपने मामा शकुनि के साथ मिलकर उन्हें चौसर के खेल में धोके से हरा दिया। इस खेल के बदले में युधिष्ठिर सब कुछ हार गए व उन्हें अपने चारों भाई व पत्नी के साथ फिर से 12 साल का वनवास और 1 साल का अज्ञातवास स्वीकार करना पड़ा। पांडवों के लौटने के बाद जब दुर्योधन ने पांडवों का राज्य देने से इंकार कर दिया तो इस बार युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई जिसमें श्रीकृष्ण ने शांति लाने का कई बार प्रयास किया। पर यह महायुद्ध होना ही था। कौरवों व पांडवों के बीच यह धर्म युद्ध लगभग 18 दिनों तक चला जिसमें जीत पांडवों की हुई और तब युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बने।
इस महागाथा में बच्चों के लिए भी कई सारी कहानियां हैं और यहाँ कुछ प्रसिद्ध एवं विशेष कहानियां दी गई हैं, आइए जानें;
बचपन में शिक्षा देते करते समय गुरु द्रोण ने पांडवों व कौरवों की परीक्षा ली जिसमें उन्हें पेड़ की डाल पर बैठी लकड़ी से बनी हुई चिड़िया की आँख पर निशाना लगाना था। गुरु ने अपने छात्रों से पूछा कि उन्हें निशाना लगाते समय क्या दिख रहा है, किसी ने पत्ते बोला, किसी ने पेड़ तो किसी ने चिड़िया बोला, सबके अलग-अलग जवाब थे। गुरु द्रोण के 105 छात्रों में से सिर्फ अर्जुन ही एक थे जिनका उत्तर चिड़िया की आँख था। तब गुरु द्रोण ने सिर्फ अर्जुन को चिड़िया की आँख पर निशाना लगाने के लिए कहा और वह बिलकुल सही लगा। केवल अर्जुन इस परीक्षा में सफल हुए।
अभिमन्यु जब अपनी माँ सुभद्रा के गर्भ में था तो उन्होंने अपने पिता अर्जुन द्वारा युद्ध में बनाए हुई चक्रव्यूह को तोड़ने का तरीका सीख लिया था, हालांकि सुभद्रा को नींद आ जाने की वजह से अभिमन्यु चक्रव्यूह से बाहर निकलने का तरीका सीखने से वंचित रह गया। युद्ध के तेरहवें दिन मात्र 16 साल का योद्धा अभिमन्यु द्रोणाचार्य द्वारा रचे गए कठिन चक्रव्यूह को तोड़कर अपने से कहीं बड़े योद्धाओं के साथ वीरता से युद्ध करता रहा और चक्रव्यूह के बीचो-बीच वहाँ जा पहुँचा जहाँ पर दुर्योधन था। कौरवों ने दुर्योधन को बचाने के लिए अभिमन्यु पर एक साथ आक्रमण कर किया। दुर्भाग्य से अभिमन्यु को चक्रव्यूह से निकलना नहीं आता था। उसने पूरे शौर्य से शत्रु का सामना किया पर अंत में वीरगति को प्राप्त हुआ।
एकलव्य नामक एक आदिवासी लड़का था जो गुरु द्रोणाचार्य से धनुष-बाण की शिक्षा लेने के लिए उनके पास गया पर गुरु ने एकलव्य को शिक्षा देने के लिए मना कर दिया क्योंकि उनकी प्रतिज्ञा थी कि वे सिर्फ क्षत्रियों व ब्राह्मणों को ही शिक्षा प्रदान करेंगे। एकलव्य बहुत दुखी हुआ, उसने द्रोणाचार्य की एक मूर्ति बनाई और उस मूर्ति के सामने वह रोजाना धनुष-बाण चलाने का अभ्यास करने लगा और एक श्रेष्ठ धनुर्धर बना। एक दिन एक कुत्ता भौंक-भौंक कर सभी को परेशान कर रहा था तब एकलव्य ने बाण चलाकर बिना चोट पहुँचाए उस कुत्ते का मुँह बंद कर दिया। जब अर्जुन को यह बात पता लगी तो उन्हें बहुत दुःख हुआ और वे सोचने लगे कि इस धरती पर उनसे बेहतर धनुर्धर भी कोई है। द्रोणाचार्य नहीं चाहते थे कि अर्जुन से अधिक बड़ा धनुर्धर कोई बने और वो यह भी जानते थे कि एकलव्य ने गुरु के रूप में उनकी मूर्ति बनाई है। इसलिए उन्होंने एकलव्य से गुरु दक्षिणा मांगी जो हर एक शिष्य अपने गुरु को देता है। गुरु द्रोणाचार्य ने गुरु दक्षिणा में एकलव्य से उसके सीधे हाथ का अंगूठा मांगा। यद्यपि बिना अंगूठे के वो धनुष बाण नहीं चला सकता था पर फिर भी एकलव्य ने अपने सीधे हाथ का अंगूठा काटा और अपने गुरु के चरणों में रख दिया। ऐसा करने के बाद तब से ही एकलव्य को एक आदर्श शिष्य के रूप में जाना जाता है।
यूं तो राजा शिवि पांडवों और कौरवों के समकालीन नहीं थे पर उनकी कथा का उल्लेख महाभारत में मिलता है। राजा शिवि अपने वचन पर बने रहने और सत्य की रक्षा के लिए जाने जाते थे। एक बार अग्नि देव और इंद्र देव ने राजा शिवि की परीक्षा लेने का निर्णय लिया और इसलिए एक देवता ने सफेद कबूतर व दूसरे देव ने बाज का रूप लिया और दोनों आसमान में उड़ने लगे। कबूतर उड़ते हुए राजा शिवि के पास सुरक्षा की याचना लेकर पहुँचा और राजा ने कबूतर को उसकी सुरक्षा करने का वचन भी दे दिया। इतने में कबूतर का पीछा करते हुए बाज भी वहाँ आ पहुँचा और अपनी भूख को मिटाने के लिए कबूतर पर वार करने लगा। इस पर राजा ने बाज की भूख को मिटाने के लिए उसे अपने शरीर से मांस काटकर दे दिया। उस बाज ने कहा कि मुझे उतना ही मांस चाहिए जितना उस सफेद कबूतर का वजन है तो राजा शिवि ने अपने शरीर का अधिक मांस काटकर उस बाज को दे दिया। यह देखकर दोनों देव अपने असली रूप में आ गए और राजा शिवि को वरदान दिया। इस घटना के साक्षी सभी देवों ने उनपर फूलों की वर्षा की।
अन्य महाकाव्यों की तरह ही महाभारत भी बुराई पर अच्छाई की जीत का उदाहरण देती है। महाभारत हमारे जीवन की दिनचर्या से भी जुड़ा हुआ है और इसके पात्र व उनसे जुड़ी सभी कहानियां मनुष्य जीवन को अद्वितीय ज्ञान प्रदान करती हैं। महाभारत की नैतिक कहानियां सच्चाई और धर्म का पाठ पढ़ाती हैं तो इनसे बच्चों को भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
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