बड़े बच्चे (5-8 वर्ष)

बच्चों के लिए नवरात्रि और दशहरे से जुड़ी कहानियां और तथ्य

हमारे देश में इतने त्योहार और उत्सव होते हैं जितने शायद ही किसी देश में होते होंगे। हम जानते हैं कि त्योहारों को मनाने के पीछे एक न एक कारण जरूर होता है और प्रत्येक कारण के पीछे छुपी होती है कोई कहानी, मान्यता या फिर तथ्य। अगर घर में छोटे बच्चे हों तो उन्हें इसके बारे में जरूर बताना चाहिए और अपनी सांस्कृतिक विरासत से अवगत कराना चाहिए। इस लेख में हमने सितंबरअक्टूबर के महीनों में पड़ने वाले शारदीय नवरात्रि और दशहरे से जुड़ी कुछ कहानियों और रीतिरिवाजों के बारे में बताया है। ये बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार अश्विन महीने के शुक्ल पक्ष में मनाए जाने वाले इस पर्व को दुर्गा पूजा, महागौरी पूजा, विजयादशमी, दशहरा इत्यादि कई दूसरे नामों से भी जाना जाता है।

कभीकभी ऐसा होता है कि हम जिस राज्य और परिवेश में रहते हैं उसके बारे में ही हमें अधिक बातें मालूम होती हैं और अन्य स्थानों के तौरतरीकों से हम अनजान होते हैं। यह बात कई बार त्योहारों के मामले में भी लागू होती है। दुर्गा पूजा व विजयादशमी से संबंधित ऐसी कुछ कहानियां और पद्धतियां हैं जो भारत के अलगअलग हिस्सों में भिन्न तरीके से प्रचलित हैं। पढ़िए और अपने बच्चों को भी बताइए।

नवरात्रि, दुर्गा पूजा और दशहरा क्यों मनाया जाता है

1. देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर का वध

पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर नामक एक शक्तिशाली राक्षस था जिसका मुख भैंस का था । उसने ब्रह्मा जी से वरदान ले लिया था कि उसकी मृत्यु किसी मानव, दैत्य, या देवता के हाथों न होकर किसी स्त्री के ही हाथों हो । इसके बाद वरदान की शक्ति से उसने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। महिषासुर के आतंक से छुटकारा दिलाने के लिए देवताओं ने देवी आदिशक्ति का आह्वान किया। इस आह्वान के दौरान सभी देवताओं के शरीर से एक ऊर्जा निकली और दस हाथों वाली एक सुंदर स्त्री यानि आदिशक्ति के अवतार देवी दुर्गा के रूप में प्रकट हुई। सभी देवताओं ने अपने अस्त्र-शस्त्र देवी दुर्गा को दे दिए। माँ दुर्गा ने महिषासुर के साथ पूरे 9 दिनों तक युद्ध किया और अंततः 10वें दिन यानि अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को उसका वध कर दिया। विजय के इसी पर्व को याद करते हुए दुर्गा पूजा मनाई जाती है।

2. लंकापति रावण पर भगवान राम की विजय

रामायण के अनुसार भगवान विष्णु के सातवें अवतार और अयोध्या के राजकुमार श्रीराम अपने पिता की आज्ञा से 14 वर्ष का वनवास भोग रहे थे। इसी दौरान लंकाधिपति और राक्षसराज रावण ने उनकी पत्नी सीता का हरण कर लिया और उन्हें लंका ले गया। अपने भाई लक्ष्मण, सेवक हनुमान और वानर सेना की सहायता से श्रीराम ने रावण व उसकी सेना का अंत किया और युद्ध में विजय प्राप्त की थी । जिस दिन रावण की मृत्यु हुई वह भी अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी ही थी। इसलिए इसे विजयादशमी या दशहरा भी कहा जाता है। बुराई के अंत के प्रतीकात्मक रूप में इस दिन लोग रावण, उसके भाई कुंभकर्ण और पुत्र मेघनाद के पुतलों का दहन करते हैं।

3. सती / पार्वती की घर वापसी

भगवान ब्रह्मा के पुत्र प्रजापति दक्ष की 24 पुत्रियों में से एक थीं सती। सती भगवान शंकर की पत्नी थीं। एक बार दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमें महादेव को छोड़कर सभी देवताओं को आमंत्रित किया। अपने पति के इस अपमान पर सती बहुत क्रोधित हुईं और यज्ञ की अग्नि में कूद गईं। जब भगवान शंकर को इसका पता चला तो वे क्रोध से भर गए और सती के मृत शरीर को कंधे पर उठाकर तांडव करने लगे। उनके तांडव से पूरे जगत में हाहाकार मच गया। महादेव को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शरीर के टुकड़े कर दिए। कुछ समय के बाद सती ने पर्वतराज हिमवन (हिमालय) की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया और पुनः शिव की पत्नी बनीं। इसके बाद भगवान विष्णु ने महादेव को प्रजापति दक्ष को क्षमा करने के लिए कहा। ऐसा माना जाता है कि तभी से शरद ऋतु के दौरान पार्वती अपने पिछले जन्म के मातापिता से मिलने आती हैं। इसे दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है और 10वें दिन देवी की प्रतिमा को पानी में विसर्जित करके उन्हें घर के लिए प्रस्थान करवाया जाता है।

4. पांडवों के अज्ञातवास की समाप्ति

महाभारत की कथा के अनुसार पांडवों को चौपड़ के खेल में हराने और उनका सब कुछ छीन लेने के बाद उनके चचेरे भाई दुर्योधन ने उन्हें 12 वर्ष वनवास और 1 वर्ष अज्ञातवास भोगने के लिए भेज दिया था । 12 वर्ष वनवास के बाद अज्ञातवास से पहले पांडवों ने मत्स्य देश की सीमा के पास एक शमी के वृक्ष में अपने सभी अस्त्रशस्त्र छुपा दिए। इसके बाद पाँचों पांडव और उनकी पत्नी द्रौपदी ने रूप और नाम बदलकर मत्स्य देश में शरण ले ली। इस समय दुर्योधन चाहता था कि उसे पांडवों के अज्ञातवास का पता चल जाए और ऐसा होने पर पहले से निश्चित वचन के अनुसार उन्हें पुनः 12 वर्ष का वनवास भोगना पड़े। इसलिए जगहजगह अपने दूत भेजकर वह पता लगाने लगा कि पांडव कहाँ छुपे हुए हैं। इस बात का अंदेशा होने पर कि वे मत्स्य देश में हो सकते हैं, दुर्योधन ने अपने पिता और राजा धृतराष्ट्र को समझाबुझाकर मत्स्य देश पर आक्रमण कर दिया। मत्स्य नरेश विराट ने अपने पुत्र उत्तर को कौरव सेना से लड़ने के लिए भेजा। अर्जुन जो नर्तकी बृहन्नला का रूप लेकर राजा विराट के यहाँ सेवा करता था, वह राजकुमार उत्तर का सारथी बना और रथ को शमी वृक्ष के पास ले गया। यह विजयादशमी का दिन था और अज्ञातवास का भी अंतिम दिवस था इसलिए अर्जुन ने वृक्ष से अपने सभी अस्त्रशस्त्र निकाले और पूरी कौरव सेना को अकेले ही पराजित कर दिया।

5. कौत्स की गुरुदक्षिणा

ऋषि वरतंतु का एक शिष्य था कौत्स। अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद कौत्स ने ऋषि से गुरु दक्षिणा माँगने को कहा। ऋषि वरतंतु ने उसे यह कहते हुए मना किया कि विद्या देने के बदले में वह कुछ भी लेना नहीं चाहते। तथापि कौत्स के बारबार अनुनय करने पर ऋषि ने कहा कि यदि तुम मुझे गुरु दक्षिणा देने का इतना आग्रह कर रहे हो तो जो 14 विद्याएं मैंने तुम्हें सिखाई हैं, उनमें प्रत्येक के लिए 1 करोड़ अर्थात कुल 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राएं मुझे दो। ऋषि के ऐसा कहने पर ब्राह्मण पुत्र कौत्स अयोध्या के राजा रघु के पास पहुँचा। राजा रघु, जो प्रभु श्रीराम के पूर्वज थे, अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध थे। हालांकि उस समय रघु अपनी सारी संपत्ति ब्राह्मणों को दान कर चुके थे। ऐसे में रघु ने देवराज इंद्र से सहायता माँगी। इंद्र ने तत्काल धन के देवता कुबेर को स्वर्ण मुद्राएं बनाने का आदेश दिया और रघु के राज्य अयोध्या में शमी और अपाती (कठमूली) के पेड़ों पर इन स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा कर दी। राजा रघु ने सारी मुद्राएं कौत्स को दे दीं। कौत्स ने वरतंतु को गुरु दक्षिणा के रूप में मुद्राएं दीं किंतु ऋषि ने उनमें से केवल 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राएं रखीं। कौत्स को धन में कोई रूचि नहीं थी इसलिए वह बची हुई मुद्राएं लेकर पुनः राजा रघु के पास गया लेकिन एक बार दिया हुआ दान लेने से रघु ने मना कर दिया। अंततः कौत्स ने अश्विन शुक्ल दशमी के दिन सारी मुद्राएं अयोध्या वासियों को दान कर दीं।

दुर्गा पूजा व दशहरे से जुड़ी परंपराएं

1. उपवास व कन्या पूजन

शारदीय नवरात्रि के दौरान कई लोग माँ दुर्गा के लिए पूरे 9 दिन उपवास रखते हैं। हालांकि कहींकहीं लोग केवल अष्टमी या नवमी को ही व्रत रखते हैं। कुछ लोग इन दिनों में अधिक से अधिक सात्विक रहने का प्रयास करते हैं और पैरों में चप्पल तक नहीं पहनते। इसके अलावा इन 9 दिनों में कन्याओं को भोजन कराने का भी प्रचलन है। लोग अपने घरों में छोटी लड़कियों को आमंत्रित करके उन्हें देवी का रूप मानते हुए पूजते हैं और खाना खिलाते हैं।

2. गरबाडांडिया

नवरात्रि में गरबा और डांडिया खेलने की प्रथा है। मूल रूप से यह गुजरात के नृत्य का एक प्रकार है लेकिन अब देश में अन्य कई जगहों पर खेला जाता है। वास्तव में यह देवी दुर्गा और दैत्य महिषासुर के बीच हुए युद्ध को दर्शाता है। डांडिया को माँ दुर्गा की तलवार के रूप में माना जाता है और इसीलिए कहींकहीं इसे तलवार नृत्य भी कहा जाता है।

3. रामलीला

देश के हिंदी भाषी प्रदेशों में रामलीला का प्रदर्शन बहुत लोकप्रिय है। तुलसीदास रचित रामचरित मानस के आधार पर कलाकार रामायण की पूरी कथा को बहुत ही सुंदर रूप में प्रकट करते हैं। रामलीला लगभग 20 से 30 दिनों तक चलती है जिसमें रामजन्म से लेकर दशहरे के दिन रावण के पुतले का दहन करते हुए राम की अयोध्या वापसी या सीता के पृथ्वी में समाने तक के प्रसंगों का चित्रण किया जाता है। अनेक जगहों पर छोटेछोटे बच्चों को रामायण के पात्रों के रूप में सजाकर झांकियां भी निकाली जाती हैं।

4. आयुध पूजा

माना जाता है कि महिषासुर का वध करने के बाद देवी दुर्गा के अस्त्रशस्त्रों को पूजा के लिए रखा गया था। इसलिए विजयादशमी के दिन शस्त्र या आयुध पूजा की जाती है। लोग इसे रावणवध और अर्जुन द्वारा कौरवों को हराने से भी जोड़ते हैं। चूंकि अर्जुन ने एक वर्ष तक अपने शस्त्रों को शमी के वृक्ष में छुपाकर रखा था इसलिए कई स्थानों पर शमी के वृक्ष की पूजा भी की जाती है। आधुनिक युग में लोगों के शस्त्रों से तात्पर्य उनके उपकरणों से होता है। अतः लोग खेती में काम आने वाले औजार, ट्रैक्टर, व्यवसाय से संबंधित चीजें, गाड़ियां, कंप्यूटर, लैपटॉप आदि का पूजन करते हैं। जो लोग ज्ञान और विद्या को अपना अस्त्रशस्त्र मानते हैं, उनके घरों में इस दिन किताबों की भी पूजा की जाती है।

5. ‘सोना’ देना

इसका संबंध कौत्स की कहानी से है। जिस प्रकार कौत्स ने विजयादशमी के दिन स्वर्ण मुद्राएं बांटी थीं वैसे ही लोग एकदूसरे को सुवर्ण अर्थात ‘सोना’ देते हैं। व्यवहारिक रूप से आज के समय में ‘सोना’ देना संभव नहीं है इसलिए जिस पेड़ पर कुबेर ने स्वर्ण मुद्राएं गिराई थीं उस अपाती की पत्तियों को लोग सोने के रूप में एकदूसरे को प्रदान करते हैं। इसे कठमूली, सोनापत्ती या आप्टा की पत्ती भी कहते हैं।

यह भी पढ़ें:

बच्चों के नवरात्रि से जुड़े सवालों के जवाब पाएं
बच्चों के लिए नवरात्रि और दशहरा से जुड़ी जानकारियां
बच्चों के साथ यादगार नवरात्रि और दशहरा मनाने की प्रसिद्ध जगह

श्रेयसी चाफेकर

Recent Posts

9 का पहाड़ा – 9 Ka Table In Hindi

गणित के पाठ्यक्रम में गुणा की समझ बच्चों को गुणनफल को तेजी से याद रखने…

3 days ago

2 से 10 का पहाड़ा – 2-10 Ka Table In Hindi

गणित की बुनियाद को मजबूत बनाने के लिए पहाड़े सीखना बेहद जरूरी है। खासकर बच्चों…

3 days ago

10 का पहाड़ा – 10 Ka Table In Hindi

10 का पहाड़ा बच्चों के लिए गणित के सबसे आसान और महत्वपूर्ण पहाड़ों में से…

3 days ago

8 का पहाड़ा – 8 Ka Table In Hindi

8 का पहाड़ा बच्चों के लिए गणित का एक अहम हिस्सा है, जो उनकी गणना…

3 days ago

5 का पहाड़ – 5 Ka Table In Hindi

गणित में पहाड़े याद करना बच्चों के लिए एक महत्वपूर्ण और उपयोगी अभ्यास है, क्योंकि…

4 days ago

3 का पहाड़ा – 3 Ka Table In Hindi

3 का पहाड़ा बच्चों के लिए गणित के मूलभूत पाठों में से एक है। यह…

4 days ago