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भारत में सेक्स के बारे में बात करना टैबू माना जाता है। लेकिन बच्चों के बीच, खासकर टीनएजर्स की मौजूदा स्थिति को देखते हुए बच्चों के लिए सेक्स एजुकेशन यानी यौन शिक्षा बहुत जरूरी है। यहां तक कि, छोटे बच्चों के लिए भी सेक्स एजुकेशन को जरूरी समझा जाने लगा है।
सेक्स एजुकेशन के महत्व और इसे स्कूल के करिकुलम का एक हिस्सा बनाने पर कई वाद-विवाद और चर्चाएं हो चुकी हैं। कुछ लोग इसके खिलाफ रहे हैं, लेकिन ज्यादातर लोग इसके महत्व को समझ चुके हैं और इसे हरी झंडी दे चुके हैं। बच्चों के बीच सेक्स एजुकेशन की प्रक्रिया उन्हें यौन संबंधों के बारे में सिखाती है। साथ ही यह उनके शरीर में आने वाले बदलावों और उन सभी बातों की जानकारी देती है, जिनके बारे में उन्हें प्यूबर्टी की शुरुआत के पहले पता होना चाहिए। यह एक संवेदनशील मुद्दा है, इसलिए बच्चों से इसके बारे में बात करते हुए सावधानी बरतने की जरूरत है। जिस प्रकार यह बच्चों को उनके शरीर के बारे में जरूरी बातें सिखा सकती है, उसी तरह यह उन्हें गुमराह भी कर सकती है। इसलिए उनकी आयु के अनुसार ही इन बातों की चर्चा करना आवश्यक है।
प्रीस्कूलर्स के पास सेक्स से संबंधित अधिक प्रश्न नहीं होते हैं। ‘बर्ड्स एंड बीज’ (छोटे बच्चों को रिप्रोडक्शन के मेकैनिज्म के वर्णन के लिए उपमा) को लेकर प्रश्न बड़े बच्चों के मन में होते हैं। यहां पर ऐसे आम सवालों की सूची दी गई है, जो आपका बच्चा पूछ सकता है:
अपने 5 साल के बच्चे को यह बताने के बजाय, कि आप हॉस्पिटल की एक दुकान से उसे खरीद कर लाए थे, उसे एक सही जवाब दें। उसे बताएं, कि जब पापा के शरीर से स्पर्म नामक एक चीज और मम्मी के शरीर से एक अंडा आपस में मिलते हैं, तो कुछ समय के बाद बच्चा तैयार हो जाता है।
अगर आपका बच्चा आपसे यह सवाल पूछता है, तो आपको लकी महसूस करना चाहिए। आपको इस मौके का फायदा उठाना चाहिए, कि आप उसे यह बता पाएं कि जब कॉन्ट्रासेप्टिव या कंडोम जैसे सुरक्षात्मक तरीकों के बिना कोई लड़की किसी लड़के के साथ सेक्सुअल इंटरकोर्स करती है, तो क्या हो सकता है। आप उसे यह भी बता सकते हैं, कि अगर सावधानी न बरती जाए, तो एचआईवी जैसी यौन संचारित बीमारियां भी हो सकती हैं, जो कि जानलेवा भी हो सकती हैं।
मेंस्ट्रुअल साइकिल एक जरूरी टॉपिक है, जिसके बारे में हर माता-पिता को अपने बच्चे को समझाना चाहिए। बच्चे को बताएं, कि यह एक मासिक चक्र होता है, जो तब शुरू होता है जब लड़की प्यूबर्टी की उम्र तक पहुंच जाती है। इस दौरान लड़की को वेजाइनल ब्लीडिंग होती है और उसे पेट में दर्द और कुछ शारीरिक असुविधाएं हो सकती हैं।
बच्चे के प्यूबर्टी की उम्र तक पहुंचने से पहले इसके बारे में बताना जरूरी है। बच्चे को यह बताना जरूरी है, कि हर व्यक्ति की प्यूबर्टी की शुरुआत अलग उम्र में हो सकती है। उसे उन सभी बदलावों के बारे में बताएं, जिनसे प्यूबर्टी के दौरान लड़के और लड़कियां गुजरते हैं।
यह एक आम सवाल है, जो कि भ्रांतियों के कारण बच्चों के मन में उठता है। जब कभी भी आपका बच्चा ऐसा प्रश्न पूछता है, तो आपको उसे यह समझाना जरूरी है, कि लड़के को चूमने से प्रेग्नेंट नहीं होते हैं। उसे बताएं कि लड़की केवल तभी गर्भवती हो सकती है, जब सेक्सुअल इंटरकोर्स के दौरान लड़की के शरीर का अंडा लड़के के शरीर से बाहर आने वाले स्पर्म के संपर्क में आकर फर्टिलाइज्ड होता है।
यह एक आम भ्रांति है जिसे दूर करने की जरूरत है। अपने बच्चे को यह बताएं, कि लोग केवल सेक्सुअल इंटरकोर्स करने के बाद ही अपनी वर्जिनिटी को खोते हैं। केवल खेलने या साइकिल चलाने के दौरान हाइमन के फट जाने से किसी की वर्जिनिटी नहीं चली जाती है।
बच्चों से सेक्स के बारे में बात करते हुए आपको नीचे दिए गए कुछ टिप्स को फॉलो करना चाहिए:
अगर आपका बच्चा सेक्स से संबंधित कोई सवाल आपसे पूछता है, तो आपको पैनिक नहीं करना चाहिए। सेक्स के बारे में सवाल पूछने का यह मतलब नहीं है, कि वह निश्चित रूप से सेक्सुअली एक्टिव है या होना चाहता है। इसके विपरीत, आपको भाग्यशाली महसूस करना चाहिए, कि वह आपसे इसके बारे में बात करने में सहज है। इस बात का ध्यान रखें, कि आप उसके सवाल को टालें नहीं, बल्कि बिना किसी झिझक के उसके सवाल का जवाब ईमानदारी से दें। बच्चे को केवल सही जानकारी दें। अगर आप किसी सवाल का जवाब नहीं जानती हैं, तो इसके बारे में ईमानदारी से उसे बताएं और जरूरी जानकारी ढूंढने की कोशिश करें। हालांकि जवाब देने से पहले उससे पूछें, कि वह ऐसा सवाल क्यों पूछ रहा/रही है या उसकी उत्सुकता के पीछे क्या कारण है।
बच्चा आपको क्या बता रहा है, यह सुनने के लिए और खुद को संभालने के लिए तैयार रहें। निर्देश देने के बजाय उससे पूछें ‘इसके बारे में तुम्हें क्या लगता है?’ या ‘इससे तुम्हें कैसा महसूस हो रहा है?’ अगर वह अपने किसी दोस्त के बारे में कुछ बताता/बताती है, तो बच्चे से पूछें कि वह उसे लेकर चिंतित क्यों है? उससे पूछें कि अगर वह खुद ऐसी किसी परिस्थिति में हो तो कैसा व्यवहार करेगा/करेगी?
आमतौर पर हम बच्चे के प्राइवेट पार्ट्स के लिए प्यारे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। प्राइवेट पार्ट के लिए यूफेमिस्म (सही नाम के बजाय इस्तेमाल किया जाने वाला कोई क्यूट शब्द) का इस्तेमाल करने से उसे यह लग सकता है, कि प्राइवेट पार्ट्स को उनके सही नाम से पुकारना गलत है या गंदा है। इससे आगे चलकर उसे अपने शरीर के अंगों को लेकर शर्मिंदगी भी महसूस हो सकती है।
बच्चे से बात करने के दौरान सेक्सुअलिटी के बारे में नकारात्मक बातचीत करने से बचें। जीवन की शुरुआत में होने वाली बातचीत दशकों तक बच्चे की मेमोरी में रह सकती है और वयस्क होने पर उस पर गलत प्रभाव डाल सकती है। जब बच्चा बड़ा होगा, तब आपसे मिलने वाला एक पॉजिटिव मैसेज लंबे समय के लिए एक सकारात्मक अप्रोच बनाने में मदद करेगा। हालांकि, इसके अच्छे पहलू के बारे में चर्चा करते हुए, सावधानी न बरतने पर होने वाले संभावित खतरों और इससे जुड़ी सेक्सुअली ट्रांसमिटेड बीमारियों के खतरों और अनचाही गर्भावस्था के बारे में बताना न भूलें।
हमेशा सही जानकारी शेयर करें। अगर बच्चे के मन में हाथ पकड़ने या किस करने से प्रेग्नेंट होने जैसी कोई गलतफहमी हो, तो आपको इससे निश्चित रूप से दूर करना चाहिए।
क्या आपने कभी सोचा है, कि बच्चों से सेक्स के बारे में कैसे बात की जा सकती है? हालांकि पूरे विश्व में कई देशों में इसके बारे में खुले तौर पर बात करने को टैबू माना जाता है, लेकिन आजकल सेक्स के बारे में बच्चों को शिक्षा देने पर काफी महत्व दिया जा रहा है।
इस आयु वर्ग में, कम उम्र से ही अपने बच्चे को शारीरिक अंगों के सही नाम सिखाने चाहिए और इस दौरान आपको हंसना नहीं चाहिए या फनी आवाजें नहीं बनानी चाहिए। हमेशा प्राइवेट बॉडी पार्ट्स के सही नाम कहें और इसके बजाय हल्के-फुल्के नामों का इस्तेमाल करने से बचें। 2 साल की उम्र से ही प्राइवेट पार्ट्स के बारे में बात करना शुरू करें, ताकि समय के साथ वह इन्हें लेकर आदी हो जाएं। उसे बताएं कि शरीर के कौन से हिस्से प्राइवेट पार्ट हैं और इन्हें प्राइवेट क्यों कहा जाता है। टॉडलर्स को कपड़ों के बिना रहना बहुत पसंद होता है, लेकिन आपको बच्चे को यह जरूर बताना चाहिए, कि पब्लिक में अपने प्राइवेट पार्ट्स को छूना या दिखाना उचित क्यों नहीं है।
यह वह चरण होता है, जब बच्चा अपने शरीर को समझना शुरू कर देता है। जब आपका बच्चा प्रीस्कूल की शुरुआत करेगा, तब वह जेंडर के बारे में सीखेगा और लड़के और लड़की के बीच के अंतर को जानने के लिए उत्सुक होगा। उत्सुकता में आकर वह अपने प्राइवेट पार्ट को हाथ लगा सकता है या दूसरे बच्चों के प्राइवेट पार्ट को छूने में दिलचस्पी दिखा सकता है। जब आप बच्चे को ऐसा करते हुए देखते हैं, तो आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। आप उसे शांतिपूर्वक यह बताएं, कि ऐसा करना सही नहीं है और किसी खिलौने या दूसरी गतिविधि की और उसके ध्यान को आकर्षित करें। उसे बताएं कि उसे अपने प्राइवेट पार्ट्स को किसी और को छूने की इजाजत नहीं देनी चाहिए। केवल किसी फिजिकल एग्जामिनेशन के दौरान डॉक्टर या नर्स या फिर प्राइवेट पार्ट में दर्द को देखने या इलाज करने के लिए उसके माता-पिता ही ऐसा कर सकते हैं। नहाने के दौरान आप अपने बच्चे को प्राइवेट पार्ट्स के बारे में सिखा सकते हैं या फिर अगर आपकी पहचान में कोई महिला गर्भवती है, तो सतही रूप से आप उसे प्रेगनेंसी के बारे में बता सकते हैं। हालांकि आपको कोई भी जवाब देते समय ईमानदार रहने की जरूरत है।
इस उम्र में आपका बच्चा संभवतः पहले की तुलना में अपने शरीर के अंगों के बारे में अधिक जानकारी रखता है। आपको अपने बच्चे को यह सिखाना शुरू कर देना चाहिए, कि वह सेक्सुअल एब्यूज से खुद को सुरक्षित कैसे रख सकता है। उसे यह बताएं, कि पब्लिक में होने पर अपने शरीर को ढक कर रखना जरूरी है, लेकिन उसके शरीर को लेकर शर्मिंदगी महसूस करने की जरूरत नहीं है। बच्चे को यह सिखाना बहुत जरूरी है, कि खुद कैसे नहाते हैं खासकर खुद से अपने प्राइवेट पार्ट को कैसे साफ करते हैं। साथ ही उसे ऐसा करने का महत्व भी बताएं।
इस दौरान बच्चा या तो सेक्स से संबंधित मुद्दों पर बात करने में बहुत शर्म महसूस करता है या इसके बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक होता है। बच्चे के हार्मोनल, भावनात्मक और शारीरिक बदलावों के बारे में बात करके उसे प्यूबर्टी के लिए तैयार करना जरूरी है। उदाहरण के लिए, आप मेंस्ट्रुअल साइकिल के बारे में अपनी बेटी को बता सकते हैं। इससे, जब पहली बार पीरियड होगा तब उसे डर या घबराहट का एहसास नहीं होगा। साथ ही वह मासिक धर्म के दौरान आमतौर पर होने वाले पेट दर्द या शारीरिक तकलीफों के लिए पहले से ही तैयार होगी। अपने बच्चे को पोर्न और उसके बुरे नतीजों के बारे में चेतावनी दें। उसे यह बताएं, कि आप सेक्स से संबंधित मुद्दों और ऐसी किसी भी चीज के बारे में बात करने के लिए हमेशा तैयार हैं, जिनसे उनका सामना किताबों, इंटरनेट या अपनी उम्र के दूसरे बच्चों द्वारा होता है।
यौन शिक्षा से बच्चों को वह जानकारी मिलती है, जो कि अपने शरीर को सकारात्मक रूप से समझने के लिए उनके लिए जरूरी है। चूंकि सेक्स एजुकेशन आदर्श रूप से घर पर ही शुरू होनी चाहिए, ऐसे में माता-पिता को अपनी झिझक दूर करके अपने बच्चे की परवरिश पर ध्यान देना चाहिए, वो भी न केवल एक स्वस्थ शरीर के साथ बल्कि एक स्वस्थ मन के साथ भी!
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