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हर बच्चे की एक यूनिक पर्सनालिटी होती है जिसके साथ वो जन्म लेता है, लेकिन जिस परिवेश में बच्चा बड़ा होता है, वो उसकी पर्सनालिटी को आकार देने में अहम भूमिका निभाता है। बच्चे की पॉजिटिव पर्सनालिटी विकसित करने में उसके माता-पिता, शिक्षक और परिवारजनों की एक बड़ी भूमिका होती है। यहाँ आपको ऐसी 10 टिप्स बताई गई हैं जिसे आप बच्चे की कम उम्र से ही फॉलो करना शुरू कर सकती हैं, ताकि बड़े होकर बच्चे की पर्सनालिटी स्ट्रोंग और कांफिडेंट हो।
एक बच्चे की पर्सनालिटी के कई पहलू होते हैं, जो उसमें आत्मविश्वास, साहस और आत्म-सम्मान के साथ शुरू होता है और इसके आधार पर ही यह तय होता है कि वो दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करता है और उनका सम्मान करता है। तीन से छह साल की उम्र के बीच आप अपने बच्चे की पर्सनालिटी डेवलप होते हुए देखेंगी। यह बिलकुल सही समय है जब आप उन्हें पॉजिटिव तरीके से अपनी वैल्यूज सिखा सकती हैं। बच्चा अपने माता-पिता के व्यवहार से बहुत कुछ सीखते हैं और यह उसकी पर्सनालिटी को सबसे ज्यादा प्रभावित भी करता है।
कई माता-पिता यह सोचते हैं कि बच्चों को समय समय पर यह बताने से कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं, वो बच्चे की पर्सनालिटी को बेहतर तरीके से प्रभावित कर सकते हैं। बच्चे केवल समझाए जाने से वैल्यूज नहीं सीखते हैं, बल्कि आपके व्यवहार से बहुत कुछ सीखते हैं। इसलिए, बेहतर तरीका यही है कि आप उसे एक अच्छा परवरिश दें ताकि बच्चे की एक पॉजिटिव पर्सनालिटी निखर कर सामने आए, जो दिन भर में वो आपकी छोटी-छोटी चीजों से सीखता है। यहाँ कुछ तरीके दिए गए हैं जिससे आप अपने बच्ची की पर्सनालिटी डेवलप करने में उसकी सहायता कर सकती हैं।
शब्द की अहम भूमिका होती है। जब माता-पिता के रूप में आप किसी व्यवहार के लिए उसे कोई कैटेगरी दे देते हैं, जैसे मेरा बच्चा शर्मीला है, कुछ नहीं बोलता है आदि। ऐसा करने से आप जाने अनजाने में बच्चे को यह विश्वास दिला रहे होते हैं कि वह वास्तव में वो ऐसा ही है या वह ये नहीं कर सकता। बच्चे को कोई टैग देने से आप उनमें सुधार करने की संभावना को वही खत्म कर देते हैं। इससे बच्चे का आत्मसम्मान कम होने लगता है और यहाँ तक कि वो अपने आसपास के बाकि लोगों के साथ इस प्रकार का व्यवहार कर सकता है। इसलिए जब आप अपने बच्चे की गलतियों के बारे में उन्हें बता रहे हों तो अपने शब्दों पर बहुत ध्यान दें।
बच्चे को हर समय आपकी अटेंशन चाहिए होती है। जैसे-जैसे बच्चे बड़ा होने लगता है, वो खुद को स्वतंत्र महसूस करने लगता है। प्री-स्कूलर्स और टॉडलर्स बातों के जरिए खुद को ज्यादा अभिव्यक्त करते हैं, खासकर उस समय के दौरान जब बच्चे की लैंग्वेज स्किल्स विकसित हो रही होती है। माता-पिता के रूप में, आपको सब्र के साथ उनकी बातों को सुनना चाहिए ताकि उन्हें आपके साथ रहने में सुरक्षित और कॉन्फिडेंस महसूस हो। इससे आपका बच्चा भी एक अच्छा श्रोता बनेगा और उसके अंदर आत्मविश्वास विकसित होगा।
बहुत सारे माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा हर चीज में बेहतरीन प्रदर्शन करे। जब बच्चे आपकी अपेक्षा के अनुसार खरा नहीं उतरते हैं, तो आप उस पर कई तरीकों से अपनी निराशा व्यक्त करने लगते हैं। हर बच्चे में एक यूनिक कैपबिलिटी होती है और माता-पिता के रूप में आपको इसकी पहचान करनी चाहिए और बच्चे को हमेशा प्रोत्साहित करना चाहिए। आप बच्चे का आत्मविश्वास कम किए बगैर उनकी कमियों को दूर करने का प्रयास करें।
अपने बच्चे की तुलना उसके दूसरे मित्रों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों के साथ करने से आपके बच्चे की पर्सनालिटी पर इसका बहुत ज्यादा बुरा प्रभाव पड़ सकता है। लगातार बच्चे की तुलना किसी और से करने पर बच्चे को यह संदेश जाता है कि वह अच्छा नहीं है। इस प्रकार बच्चे अपनी पहचान को लेकर भ्रमित हो जाते हैं और दूसरों की नकल करना शुरू कर देते हैं। यह बहुत जरूरी है कि आप सबसे पहले बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाएं और आप उसके अंदर की क्षमता की बाहर लाने के लिए ज्यादा से ज्यादा प्रयास करें।
सुनने के बजाय बच्चे जो देखते हैं, उससे ज्यादा सीखते हैं। इसलिए, व्यावहारिक रूप से उन चीजों को लागू करें जिससे आपके बच्चे पर अच्छा असर हो। छोटी-छोटी चीजों से शुरू करें, जैसे किताबों को पढ़ने के बाद उन्हें शेल्फ में वापस रख दें, बच्चा वही करेगा जो आपको करते देखेगा। यदि आपकी आदतें और व्यव्हार सही नहीं होगा तो बच्चे भी वही सीखेंगे। इसलिए, आप जो बच्चे को करने के लिए कह रहे हैं पहले उस पर खुद अमल करें।
कई कारणों से आज के बच्चे उतनी आजादी के साथ नहीं खेल पाते हैं। स्पोर्ट्स के जरिए बच्चे को केयरिंग, शेयरिंग और टीम स्प्रिट जैसी वैल्यूज सिखाना काफी आसान हो जाता है। स्पोर्ट्स और गेम्स बच्चे की पर्सनालिटी डेवलपमेंट के लिए बहुत जरूरी एक्टिविटीज में से एक है। कई माता-पिता अपने बच्चे को फील्ड में जाकर खेल से रोकते हैं और उन्हें किसी प्रकार के स्पोर्ट्स में भाग नहीं लेने देते हैं। लेकिन बच्चे की मेंटल और फिजिकल ग्रोथ के लिए आपको उन्हें स्पोर्ट्स एक्टिविटी में शामिल करना चाहिए। इससे बच्चे का स्ट्रेस कम होता है और वो अच्छा महसूस करते है।
गैजेट्स आज के समय की आम समस्या है जिससे कई माता-पिता को संघर्ष करना पढ़ रहा है। स्टडी से पता चला है कि स्क्रीन पर बहुत ज्यादा समय बिताने से बच्चे के बौद्धिक और सामाजिक विकास पर बुरा असर पढ़ता है। बच्चों को गैजेट पर गेम खेलने की लत लग जाती है जिससे वो सामाजिक संपर्क में आना कम पसंद करते हैं। इसलिए, अपने बच्चे के साथ गेम खेलने और ट्रेवलिंग में ज्यादा से ज्यादा समय बिताने की कोशिश करें, बच्चे का ध्यान गैजेट से हटाने के लिए आपको उन्हें रियल लाइफ से परिचित कराएं। उन्हें वर्चुअल चीजों के बजाय अपने आसपास के लोगों महत्व देना सिखाएं।
घर के बारे में बच्चे को अच्छी तरह से समझाने के लिए उन्हें उनकी जिम्मेदारियों के बारे में बताना आवश्यक है। कभी-कभी माता-पिता बच्चे को यह नहीं समझा पाते हैं कि वो बच्चे से क्या अपेक्षा करते हैं और फिर बच्चे के दुर्व्यवहार करने पर उन्हें डांट लगाते हैं। जब आप बच्चे को ठीक से नियम समझाएंगे, तो बच्चा धीरे-धीरे आपकी बातों को समझने लगेगा और उस पर अमल करने लगेगा। बच्चों को नियमों के अनुसार खुद को ढालने में थोड़ा समय लग सकता है, लेकिन लगातार नियमों का पालन करने से बच्चे की आदत पड़ने लगती हैं।
बच्चे के माता-पिता आमतौर उसके सभी कामों में उसकी मदद करते हैं जिससे बच्चे की आजादी छिन जाती है साथ ही वो हर काम के लिए आप पर निर्भर होने लगते हैं। हालांकि, बच्चे की देखभाल और उनका खयाल रखना आपका फर्ज है, लेकिन उन्हें आपकी जिम्मेदारियों को कैसे मैनेज करना है ये भी बताना बहुत जरूरी है। जैसे अपना स्कूल बैग खुद पैक करना, अपने दाँत ब्रश करना या अपना होमवर्क खुद करना आदि कामों के लिए आप बच्चे को प्रोत्साहित कर सकते हैं। यह न केवल उनकी लाइफ स्किल को बेहतर करता है, बल्कि उनके अंदर जिम्मेदारी की भावना पैदा करता है।
अपने बच्चे को शारीरिक रूप से सजा देना या उनकी गलतियों के लिए उन पर चिल्लाना आपके और बच्चे दोनों के और भी मुश्किल पैदा कर सकता है। कई बार, बच्चे पर चिल्लाने से वो आपकी बातें दिल पर ले लेते हैं और अपनी को सुधारने का प्रयास भी नहीं करते हैं, जिसकी उनसे उम्मीद की जा रही होती है। आराम से और धैर्यपूर्वक बच्चे को उसी गलती का अहसास दिलाएं कि गलत काम करने से क्या हो सकता है, इस प्रकार वो अपनी गलती को सुधारने का प्रयास करेंगे। जब आप अपने बच्चे पर बार बार चिल्लाते हैं, तो उसके अंदर से आपका डर निकल जाता है और वो नहीं समझते कि उनके किसी भी एक्शन से क्या परिणामों हो सकता है। आप उन्हें समझाएं या फिर कभी कभी छोड़ दें ताकि वो खुद अपनी गलती का अहसास कर सकें।
‘पर्सनालिटी’ शब्द का लोग अक्सर गलत मतलब समझते हैं। यह एक मिथ है कि बच्चे की पर्सनालिटी केवल रूप-रंग तक सीमित है। जिसकी वजह से माता-पिता बच्चे के कपड़े, सौंदर्य और उसके स्वास्थ्य पर ज्यादा जोर देते हैं, लेकिन आपको बता दें यह चीजें ‘पर्सनालिटी का एक पहलू हैं। इसके अलावा भी कई चीजें हैं जो बच्चे की पर्सनालिटी को बेहतर बनाने में सहयोग करती हैं जैसे नॉलेज, सोशल स्किल, इंटरपर्सनल स्किल आदि बच्चे की पर्सनालिटी को बैलेंस करती हैं।
याद रखें कि बच्चे का एक अच्छा पर्सनालिटी डेवलप करना एक लंबी प्रक्रिया है, जिसमें आपको कुछ परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है। लेकिन जब आप बच्चे को लगातार पॉजिटिव वैल्यूज के बारे में सिखाती हैं, तो आगे चल कर बच्चे का बेहवियर और ऐटिटूड एक अच्छी दिशा में विकसित होता है।
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