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हर संस्कृति की अपनी पौराणिक कथाएं होती हैं अर्थात वे कथाएं जिनमें शूरवीर पात्र होते हैं, देवता, दैत्याकार पशु, उन्नत तकनीकें और रमणीक स्थल होते हैं। हालांकि इन कथाओं की वैधता संदिग्ध होती है, लेकिन हममें इनके प्रति जबर्दस्त आकर्षण होता है। प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति ऐसी असंख्य कथाओं से भरी पड़ी है, जो न केवल रोमांचकारी और मनोरंजक हैं बल्कि उनमें एक नैतिक शिक्षा भी समाहित है।
पौराणिक कथाएं बच्चों को उनके ही तरीके से नैतिक मूल्यों का ज्ञान देती हैं । बच्चे, पौराणिक कथाओं से निम्नलिखित बातें सीखते हैं।
पौराणिक कथाएं पुण्य के महत्व को बार-बार रेखांकित करके, बच्चों को अच्छे और बुरे के बीच अंतर करना सिखाती हैं। इनमें यह भी बताया जाता है कि अच्छाई हमेशा बुराई पर विजय प्राप्त करती है।
पौराणिक कथाओं की अपनी एक दुनिया है, जो उन्नत तकनीकों ,रहस्यवादी प्राणियों और लुभावनी कल्पनाओं से भरी हुई है। इससे बच्चों का दिमाग दौड़ने लगता है, क्योंकि वे हर उस चीज की कल्पना करते हैं जिसके बारे में उन्हें बताया जाता है। इनसे यह सीख भी मिलती है यदि आपके पास रचनात्मकता है तो फिर कुछ भी असंभव नहीं है।
बच्चे भारतीय संस्कृति में रचे-बसे त्योहारों और रीति-रिवाजों के महत्व और अर्थों को जानने लगते हैं। पौराणिक कथाएं बच्चों को मष्तिष्क के उपयोग से सिखाती हैं कि परिस्थितियों का मूल उद्देश्य क्या है और इस तरह से ये उनकी जिज्ञासा को शांत कर देती हैं।
सम्मान और अनुशासन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। पौराणिक कथाएं बच्चों को अपने से बड़ों, शिक्षकों और साथियों का सम्मान करना सिखाती हैं। इससे बच्चों में बेहतर अनुशासन आता है।
चाहे आपका प्रेम आपके परिवार के प्रति हो, शिक्षकों, या फिर भगवान के प्रति, पौराणिक कथाएं बच्चों को सिखाती हैं कि प्रेम से सबकुछ जीता जा सकता है, और सभी बाधाओं के बावजूद, उन लोगों के साथ खड़े रहना जिन्हें आप प्रेम करते हैं, इससे बढ़कर दुनिया में कुछ नहीं है।
अपने बच्चों को पौराणिक कथाओं से परिचित कराने से उन्हें अपनी संस्कृति, आस्था, भाषा और नैतिक मान्यताओं के बारे में जानने में मदद मिलेगी। ये कथाएं सुनाकर आप अपने बच्चों के साथ कुछ यादगार पल भी बिता सकती हैं, जिससे न केवल उनकी कल्पनाशक्ति का विस्तार होगा बल्कि उनमें भाषायी क्षमताएं और नैतिक मूल्य भी विकसित होंगे। यहाँ बच्चों के लिए दस हिंदू पौराणिक कथाओं की एक सूची दी गई है, जो 10 अलग-अलग पौराणिक पात्रों के जीवन की दुर्गमताओं और उनसे सीखे जा सकने वाले पाठों के बारे में विस्तार से बताती हैं।
यह कहानी महाभारत काल की है। एकलव्य नामक एक लड़का था जो अपने कबीले के साथ जंगल में रहता था। विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनना ही उसके जीवन का एकमात्र लक्ष्य था। हालांकि, जब वह गुरु द्रोण के पास दीक्षा लेने गया तो उन्होंने उसकी छोटी जाति का हवाला देकर ऐसा करने मना कर दिया। इसके बाद भी एकलव्य, गुरु द्रोण की एक प्रतिमा बनाकर धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगा जिसके परिणामस्वरूप वह इस कौशल में निपुण हो गया। हालांकि जब आचार्य द्रोण और एकलव्य का सामना हुआ तो उसकी उपलब्द्धि देखकर द्रोण को यह भय हो गया कि कहीं एक आदिवासी लड़का, उनके सर्वश्रेष्ठ शिष्य अर्जुन से आगे न निकल जाये। उन्होंने एकलव्य से कहा कि मेरी छत्रछाया में सीखने के कारण तुम्हें मुझे गुरुदक्षिणा देनी होगी। तब एकलव्य ने उनसे गुरुदक्षिणा मांगने के लिए कहा और आचार्य द्रोण ने गुरुदक्षिणा के रूप में एकलव्य का दाहिना अंगूठा ही मांग लिया । गुरु से बिना कोई सवाल किया, एकलव्य ने तुरंत अपने दाहिने अंगूठे को काटा और द्रोण को सौंप दिया, फलस्वरूप विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनने का उसका सपना टूट गया।
आपका बच्चा विशेषकर शिक्षकों के प्रति कठिन परिश्रम, सम्मान और समर्पण के बारे में सीखेगा।
सूरदास, भगवान कृष्ण के सर्वश्रेष्ठ भक्तों में से एक थे। वह कृष्ण से इतना प्यार करते थे कि उन्होंने उनके सम्मान में एक लाख से अधिक भक्ति गीत लिखे। कथा कहती है कि सूरदास अंधे थे, एक बार जब राधा उनका पीछा कर रही थी तो उन्होंने राधा की पायल रख ली। राधा ने जब अपनी पायल वापस मांगी तो सूरदास ने यह कहकर कि वह अंधे हैं और राधा को पहचान नहीं सकते, उन्होंने पायल वापस देने से इनकार कर दिया। इस अवसर पर, श्रीकृष्ण ने उनकी आँखों को अच्छा कर उन्हें दृष्टि प्रदान कर दी किंतु सूरदास, श्रीकृष्ण से यह दृष्टि वापस ले लेने के लिए विनती करने लगे। इसका कारण पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि उन्होंने श्रीकृष्ण को देख लिया है, और अब उन्हें इस दुनिया में और कुछ नहीं देखना ।
यह कहानी आपके बच्चे में निःस्वार्थ प्रेम की भावना पैदा करेगी और उन बातों के प्रति समर्पित होना सिखाएगी जिसकी वह परवाह करता है।
महाभारत के वीर योद्धाओं में से एक अभिमन्यु का नाम साहस का प्रतीक है । जब वह अपनी माँ सुभद्रा के पेट में था तो उसके पिता अर्जुन ने सुभद्रा को व्यूह रचना की विद्या सुनाई थी। अभिमन्यु ने गर्भ में पूरी तकनीक को ध्यानपूर्वक सुना लेकिन जैसे ही अर्जुन व्यूह से निकलने का तरीका बताने वाले थे, उसकी माँ यानि सुभद्रा को नींद आ गई । युद्ध के दौरान, अभिमन्यु कौरव सेना द्वारा बनाए गए चक्रव्यूह के अंदर फंस गया था। भले ही उसने व्यूह से निकलने का कौशल नहीं सीखा था, लेकिन उसने अपने माता-पिता और परिवार के लिए लड़ते हुए अपने प्राण त्याग दिए।
अभिमन्यु का बलिदान आपके बच्चे को परिवार, गरिमा और प्रेम के प्रति साहसी और निष्ठावान रहना सिखाएगा।
हम जानते हैं कि भगवान विष्णु के सातवें अवतार, भगवान श्रीराम की कहानियों का वर्णन रामायण में किया गया है । श्रीराम को उनके पिता दशरथ ने राजकुमार का पद छोड़कर 14 वर्ष के लिए वनवास जाने का आदेश दिया था। उनकी पत्नी सीता और भाई लक्षमण भी उनके साथ वन में गए । वनवास के अंतिम दिनों में लंका के राजा रावण ने सीता का अपहरण कर लिया और उसे बंधक बना लिया। भीषण बाधाओं का सामना करते हुए भी श्रीराम, रावण और उसकी विशाल सेना से लड़कर और उसे हराकर, अपनी पत्नी को सकुशल वापस लाते हैं।
दो भाइयों और पति और पत्नी के बीच का अटूट बंधन ही इस कहानी का मूल नैतिक पाठ है। यह आपके बच्चे को सत्यनिष्ठा, संबंध, और प्रेम का महत्व समझाएगी ।
जब असुर-राज महिषासुर ने देवताओं के राजा इंद्र को पराजित करके स्वर्ग पर नियंत्रण कर लिया, तब सभी देवताओं की दिव्य शक्तियों को मिलाकर असाधारण देवी दुर्गा का निर्माण हुआ ।देवी दुर्गा ने महिषासुर को मारकर उसके अत्याचारों से छुटकारा दिलाया और विश्व की रक्षा की ।
देवी दुर्गा की कथा छोटे लड़कों और लड़कियों को यह समझाती है कि महिलाएं भी साहसी, शक्तिशाली और धर्मनिष्ठ होती हैं।
राक्षस हिरण्यकिश्यपु का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। हालांकि, उसके अभिमानी पिता भगवान ब्रह्मा से प्राप्त वरदान के कारण खुद को भगवान समझते थे और इस कारण विष्णु से घृणा करते थे। हिरण्यकशिपु ने विविध तरीकों से प्रह्लाद को मारने की कोशिश की लेकिन विष्णु ने हर बार प्रह्लाद को बचा लिया। हिरण्यकशिपु ने जब प्रह्लाद के जीवन को समाप्त करने का अंतिम प्रयास किया तब भगवान विष्णु ने नरसिंह अर्थात अर्द्धमानव-अर्द्धसिंह अवतार लेकर उसका वध कर दिया।
यह कहानी बच्चों को विश्वास, भक्ति और धैर्य के मूल्यों के बारे में सिखाएगी।
महाभारत की एक अन्य कथा के अनुसार पांडवों और कौरवों ने आचार्य द्रोण से धनुर्विद्या का प्रशिक्षण लिया था । गुरु द्रोण अपने शिष्यों की परीक्षा लेना चाहते थे, इसलिए उन्होंने एक पेड़ पर एक खिलौना पक्षी टांग दिया और अपने शिष्यों से उसकी आँख पर निशाना लगाने को कहा। जब उन्होंने उनसे पूछा कि उन्हें क्या दिखाई दे रहा है तो कौरवों तथा शेष पांडवों ने अलग-अलग जवाब दिए, जैसे कि पक्षी, पत्ते, पेड़ इत्यादि और परीक्षा में असफल हो गए। केवल अर्जुन ने एकाग्र होकर कहा कि उसे पक्षी की आँख के सिवा और कुछ नहीं दिख रहा। प्रसन्न होकर, आचार्य द्रोण ने अर्जुन को तीर चलाने के लिए कहा। अर्जुन के तीर ने बड़ी सटीकता से पक्षी की आँख को भेद दिया।
यह कहानी ध्यान और संकल्प को समर्पित है। यह आपके बच्चों को बताएगी कि लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सबसे पहले लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए और फिर हमें उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एकाग्रता और लगन से कार्य करना चाहिए।
वनवास के बाद श्रीराम लक्ष्मण और सीता को लेकर अयोध्या लौटे और सुखपूर्वक शासन करने लगे। हालांकि, सीता को लेकर जनता में अनर्गल बातें होने लगीं कि वह एक पर-पुरुष अर्थात रावण के साथ रहती थीं (भले ही यह सीता की इच्छा के विरुद्ध था)। इन चर्चाओं को नियंत्रित करने और जनता के अटूट विश्वास को बनाए रखने के लिए राम ने सीता को जंगल में भेज दिया। वहाँ सीता ने ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में शरण ली और अपने जुड़वां पुत्रों को जन्म दिया। अकेली माँ होने के बावजूद सीता ने ही उनका पालन-पोषण किया।
यह कहानी बताती है कि तमाम कठिनाइयों का सामना करते हुए भी महिलाएं दृढ, साहसी और स्वतंत्र हो सकती हैं।
श्रवण कुमार एक निर्धन किशोर था, जो अपने माता-पिता को भारत के सभी धार्मिक स्थलों की यात्रा कराना चाहता था। चूंकि माता-पिता बूढ़े और अंधे थे, वह उन दोनों को दो टोकरियों में बिठाकर अपने कंधे पर रखकर ले जा रहा था। अयोध्या के जंगलों को पार करते समय श्रवण कुमार के माता-पिता को प्यास लगी। उनकी प्यास बुझाने हेतु वह अकेला ही जल की खोज में निकला। तभी जंगल में शिकार के लिए निकले राजा दशरथ का तीर गलती से श्रवण को लग गया और उसकी मृत्यु हो गई । जब श्रवण के प्राण निकल रहे थे तब उसने दशरथ से याचना की कि वह उसके माता-पिता के लिए पानी ले जाएं।
श्रवण दया और निष्ठा का अवतार था । यह कथा आपके बच्चों में करुणा का संचार करेगी और उन्हें माता-पिता की देखभाल करने के लिए प्रोत्साहित करेगी।
भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा में बचपन से ही बहुत घनिष्ठ मित्रता थी। बाद के समय में श्रीकृष्ण द्वारका के राजा हो गए जबकि सुदामा एक गरीब ब्राह्मण के रूप में जीवन यापन करते थे । एक दिन उनकी दशा इतनी खराब हो गई कि खाने के लिए भी कुछ नहीं बचा। तब उनकी पत्नी ने उन्हें उनके मित्र कृष्ण के पास जाने की सलाह दी। पत्नी की बात सुनकर सुदामा कृष्ण से मिलने निकले। कई दिनों तक पैदल चलने के बाद सुदामा द्वारका पहुँचे जहाँ उनको देखते ही श्रीकृष्ण ने उन्हें गले से लगा लिया, रास्ते में खराब हुए उनके पैरों को अपने हाथों से साफ़ किया और उनकी खूब आवभगत की। इसके बावजूद सुदामा अपने मित्र से कुछ मांग नहीं सके। दो दिनों बाद वह वापस घर के लिए निकले और रास्ते में यही सोचते रहे कि पत्नी से क्या कहूंगा। हालांकि जब वह घर पहुँचे तो उनकी झोपड़ी महल में बदल चुकी थी और पत्नी व बच्चे सुंदर कपड़ों में उनके स्वागत के लिए खड़े थे । श्रीकृष्ण ने अपने मित्र के बिना बोले ही उसके सारे दुखों को समाप्त कर दिया था।
यह कथा आपके बच्चों को सीख देती है कि मित्रता में कोई भेद नहीं होता, न कोई अमीर होता है और न कोई गरीब ।
भारत की पौराणिक कथाएं, राजनीति, नैतिकता, दर्शन, पालन-पोषण, प्रेम, युद्ध और धर्म के अंतर्द्वंद्वों से बुनी हुई एक जटिल संरचना हैं। ये प्रेरणादायक कथाएं सैकड़ों वर्षों से विविध लोगों को प्रेरित करती आ रही हैं। ये आपके बच्चे में उन सभी आवश्यक गुणों का संचार करेंगी जो एक करुणामयी व न्यायपूर्ण जीवन के लिए आवश्यक हैं।
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