बच्चों में गलसुआ (मम्प्स) होना

बच्चों में गलसुआ (मम्प्स) होना

मम्प्स होने से बच्चों को काफी दर्द हो सकता है। यह एक संक्रामक रोग है जिसमें बच्चे को काफी थकान होती है। जबड़े के एक तरफ सूजन होने पर मम्प्स की समस्या होती है। वैसे तो यह रोग बहुत दुर्लभ है पर इसके बारे में पूरी जानकारी होना जरूरी है। इससे आपको बीमारी के प्रति जागरूक रहने में मदद मिलेगी व जरूरत पड़ने पर आप उचित ट्रीटमेंट कर सकेंगी। 

मम्प्स या गलसुआ क्या है?

मम्प्स एक वायरस की वजह से होता है और यह इन्फेक्शन गंभीर रूप से फैलता है। इससे कान के नीचे सैलिवरी ग्लैंड के नीच प्रभाव पड़ता है जिसकी वजह से चेहरे पर सूजन आती है। यह रोग सलाइवा की वजह से होता है और यह शरीर के कई हिस्सों को प्रभावित करता है। 

मम्प्स की वैक्सीन आने के बाद ही इस रोग की समस्याएं होना कम हुई हैं। यद्यपि बड़ों को यह समस्या होती है पर बच्चों में गंभीर रूप से फैलती है।

मम्प्स (गलसुआ) होने के कारण 

मम्प्स मुख्य रूप से फ्लूइड के रूप में मुंह नाक और गले से फैलता है। यदि कोई इन्फेक्टेड बच्चा बोलता, छींकता या खांसता है तो यह रोग फैल सकता है। या वायरस दरवाजों के हैंडल, कटलरी और खिलौनों में भी रह सकता है जिससे यह बच्चों तक पहुँचता है। इस वायरस का इनक्यूबेशन पीरियड 2 से 3 सप्ताह तक है और यह रोग अक्सर एक सप्ताह में ठीक हो जाता है। यह स्कूल और डे सेंटर में तेजी से फैलता है। 

मम्प्स (गलसुआ) के लक्षण और संकेत 

मम्प्स कान के नीचे व जबड़े के पास सैलिवरी ग्लैंड को प्रभावित करते हैं। इससे सूजन होती है और निगलने, पानी पीने, बोलने व चबाने में दर्द और कठिनाई भी होती है। 

मम्प्स (गलसुआ) के लक्षण और संकेत 

मम्प्स से एक या दोनों सैलिवरी ग्लैंड पर प्रभाव पड़ता है और इसकी सूजन जबड़े के दोनों तरफ हो सकती है। हालांकि यह सूजन इन्फेक्शन होने के 3 दिनों के भीतर होने लगती है। इस संबंधित निम्नलिखित अन्य लक्षणों पर भी ध्यान दें, आइए जानें; 

  • मतली 
  • गर्दन में सूजन 
  • गर्दन में अकड़न 
  • सिर में दर्द 
  • 103 डिग्री से कम बुखार 
  • जोड़ों में दर्द 
  • भूख कम लगना 
  • चक्कर आना 
  • उल्टी कान में दर्द 
  • कान में दर्द
  • कन्वल्जन 

विशेषकर जिन बच्चों को इसकी वैक्सीन नहीं लगाई गई हैं उनमें इसके लक्षणों पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। 

मम्प्स (गलसुआ) कैसे फैलते हैं 

मम्प्स हवा के वायरस से होते हैं जो किसी भी व्यक्ति के रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट से अन्य व्यक्ति के सैलिवरी ग्लैंड तक खांसी, छींक या बात करने के माध्यम से फैल सकते हैं। यह वायरस बहुत ज्यादा संक्रामक होता है और विशेषकर स्कूल या डे केयर सेंटर में तेजी से फैलता है। 

बच्चों में मम्प्स (गलसुआ) की पहचान और टेस्ट 

डॉक्टर बच्चे के ग्लैंड की जांच करेंगे और मम्प्स से होने वाली सूजन व अन्य लक्षणों के बारे में पूछेंगे। डॉक्टर इन्फेक्शन का पता करने के लिए ब्लड टेस्ट, यूरिन टेस्ट या सेरेब्रोस्पाइनल टेस्ट कराने के लिए कह सकते हैं। इससे संबंधित कुछ टेस्ट निम्नलिखित हैं, आइए जानें;

  • सेरोलॉजिकल या एंटीबॉडी टेस्ट: इस टेस्ट में एलजी.जी. और एलजी.एम. एंटीबॉडी की मौजूदगी का पता किया जाता है जो मुख्य रूप से मम्प्स/मंप्स का इन्फेक्शन होने पर होते हैं। 
  • वायरल जेनेटिक टेस्टिंग या आर.टी: पी सी आर: यदि बच्चे का इम्यून सिस्टम कमजोर है और एंटीबॉडी उत्पन्न नहीं कर पा रहा है तो डायगनोसिस के लिए जेनेटिक टेस्ट किया जाता है। 

मम्प्स (गलसुआ) से होने वाले जोखिम और कॉम्प्लिकेशंस 

मम्प्स के साथ कई जोखिम होते हैं। वैसे तो यह बहुत दुर्लभ है पर फिर भी सावधान रहना जरूरी है और इसके लिए आप उचित निर्णय ले सकती हैं। बच्चों में मम्प्स होने पर निम्नलिखित समस्याएं हो सकती हैं, जैसे 

  • एन्सेफेलाइटिस: यह तब होता है जब वायरस के कारण हुए मम्प्स दिमाग में जाते हैं और वहाँ पर इन्फेक्शन हो जाता है। यह समस्या काफी खतरनाक होती है। इससे बच्चे को अचानक से सिर में बहुत तेज दर्द हो सकता है, वह बेहोश हो सकता है या उसे सीजर भी हो सकते हैं। ऐसा होने पर आप तुरंत उसे डॉक्टर के पास लेकर जाएं। 
  • पेनक्रिएटाइटिस: यह सूजन सिस्ट के बनने, टिश्यू के डैमेज होने या ग्लैंड्स में ब्लीडिंग होने के कारण पैंक्रियाज में होती है। इस समस्या में बच्चे को मतली, उल्टी और पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द हो सकता है। 
  • ओरकाइटिस: यह समस्या प्यूबर्टी के बाद सिर्फ पुरुषों में होती है। इसमें एक या दोनों टेस्टिकल्स में सूजन होती है। 
  • मेनिन्जाइटिस: यदि यह वायरस नर्वस सिस्टम में जाता है और इससे स्पाइनल कॉर्ड और दिमाग को सुरक्षित रखने वाली मेम्ब्रेन में सूजन हो जाती है तो उसे मेनिन्जाइटिस कहते हैं। इसमें अक्सर सिर में दर्द, रोशनी से सेंस्टिविटी, बुखार और मांसपेशियों में अकड़न की समस्याएं होती है। 
  • सुनने में समस्या: बहुत दुर्लभ मामलों में यह वायरस कॉक्लिया को प्रभावित करता है जो कान का आंतरिक हिस्सा है। इसकी वजह से सुनने में कठिनाई होती है और कभी-कभी यह परमानेंट भी हो सकता है। 

मम्प्स की वजह से रिप्रोडक्टिव ऑर्गन में भी सूजन होती है। यदि आपको ऊपर बताए हुए कोई भी लक्षण दिखाई देते हैं तो बच्चे को इमरजेंसी रूम तक ले जाने में बिलकुल भी न झिझकें। 

बच्चों में मम्प्स (गलसुआ) का ट्रीटमेंट 

मम्प्स के लिए कोई भी विशेष ट्रीटमेंट नहीं है। हालांकि निम्नलिखित कुछ तरीकों से आप इस इन्फेक्शन से बच्चे को कम्फर्टेबल रख सकती हैं, आइए जानें;

1. मेडिकल इलाज 

इसमें सिर्फ अस्टमीनोफेन या आइबूप्रोफेन शामिल है तो बच्चों में किसी भी बुखार को कम कर सकता है। 

  • बच्चे को अन्य बच्चों से दूर रखें। वैसे बच्चों के लिए यह बहुत कठिन है पर यह रोग संक्रामक है और अन्य बच्चों में भी तेजी से फैल सकता है।  
  • कुछ समय के लिए ग्लैंड की सूजन पर आप वॉर्म या कोल्ड कंप्रेस का उपयोग करें। कंप्रेस का उपयोग 10 से ज्यादा मिनट के लिए न करें। 
  • बच्चे को आसानी से चबाने वाला खाना खिलाएं, जैसे पॉरिज, खिचड़ी, दही और सूप। इससे बिना दर्द के वह अपनी भूख दूर कर सकता है। 
  • इस रोग से बच्चे को बहुत ज्यादा थकान हो सकती है इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि वह ज्यादातर बिस्तर पर आराम करे। 

2. घरेलु उपचार 

  • अदरक में एंटी-वायरल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। यह दर्द को आसानी से ठीक कर देता है। आप इसे बच्चे के खाने में मिलाएं या इसका पेस्ट बनाकर सूजन की जगह पर लगाएं। इससे बहुत आराम मिलेगा। 

घरेलु उपचार 

  • मेथी के दाने में अदरक के जैसे ही गुण होते हैं और यह समान रूप से बच्चे को आराम देने में मदद करते हैं। 
  • काली मिर्च में थोड़ा सा पानी मिलाकर इसका पेस्ट बनाएं और सूजन में लगाएं। इससे सूजन कम होने में मदद मिलेगी।
  • एलोवेरा में एंटीबायोटिक गुण होते हैं और इससे सूजन खत्म हो जाती है। यह बच्चों में मम्प्स के लिए एक बेस्ट होम रेमेडी है। आप एलोवेरा के पत्ता की ऊपरी परत को हटाएं और गूदे को अलग रखें। एलोवेरा के गूदे में हल्की सी हल्दी मिलाएं और सूजन में बैंडेज की तरह ही लगाएं। 
  • शतावरी या एस्परैगस और मेथी के दाने के पेस्ट से सूजन में बहुत आराम मिलता है। 
  • सूजन में लहसुन का पेस्ट लगाने से दर्द में आराम मिलता है। 
  • नीम के पत्तों से सिर्फ सूजन ही कम नहीं होगी बलि यह वायरस से लड़ने में मदद करता है। नीम के पत्तों के साथ हल्दी का पेस्ट बनाकर सूजन में लगाएं। 
  • बरगद के पत्तों से वायरस का प्रभाव कम होता है। इन पत्तों को घी में गर्म करके सूजन में बैंडेज की तरह उपयोग करें। 

मम्प्स (गलसुआ) ठीक होने में कितना समय लगता है? 

बच्चों में मम्प्स की समस्या 10 से 12 दिनों में ठीक हो जाती है। ग्लैंड्स की सूजन एक सप्ताह में कम होने लगती है। 

मम्प्स (गलसुआ) से बचाव के टिप्स 

यदि आपने बच्चे को वैक्सीन लगवाई है तो मम्प्स होने पर उसकी इम्युनिटी बढ़ेगी और इसके बारे में आपको आगे चिंता करने की जरूरत नहीं है। इसलिए बच्चों को निम्नलिखित वैक्सीन लगवाना बहुत जरूरी है, आइए जानें;

1. एमएमआर वैक्सीन 

एमएमआर वैक्सीन 

  • एमएमआर वैक्सीन मम्प्स, मीजल्स और रूबेला जैसी बीमारियों के लिए है। इसका पहला डोज 12 से 15 महीने की उम्र के बच्चों को दिया जाता है। 
  • इसका दूसरा डोज 4 और 6 या 11 साल की उम्र के बच्चों को लगाया जाता है। 
  • यदि दो डोज दिए जा चुके हैं तो वैक्सीन 95% तक सुरक्षा प्रदान करती है। 
  • इसका एक डोज बहुत ज्यादा लोगों के बीच स्कूल में या पड़ोसियों के बीच प्रभावी नहीं होता है। 

यदि बच्चे को मम्प्स है तो आप इसके कई बचाव के टिप्स फॉलो कर सकती हैं ताकि अन्य बच्चों में यह समस्या न फैले। यह रोग हवा से फैलता है और कुछ दिनों में इसका असर दिखने लगता है। 

  • बच्चे से कहें कि वह दिन में कई बार साबुन से हाथ धोए। चूंकि बच्चे को आइसोलेट करना चाहिए इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि हर बार जब भी वह आइसोलेशन की जगह को छोड़ता है तो अच्छी तरह से हाथ जरूर धोए। 
  • इस बात का ध्यान रखें कि बच्चा छींकते समय टिश्यू का उपयोग करें और उसे अच्छी तरह से डिस्पोज करें। उसे एक डस्टबिन दें जिस में वह गंदे टिश्यू फेंक सकता है। 
  • जिन जगहों को बच्चा छूता है, उसे डिसइंफेक्टेंट से साफ करें। 
  • बच्चे को हैंड सैनिटाइजर का उपयोग करने के लिए प्रेरित करें। 
  • परिवार में किसी को भी बच्चे से खाना या बर्तन भी शेयर करने न दें। 

डॉक्टर से कब मिलें?

यदि बच्चे को पर्याप्त मात्रा में न्यूट्रिशन व आराम मिलता है तो वह कुछ ही दिनों में ठीक हो जाएगा। पर फिर भी यदि बच्चे में निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं तो आप तुरंत डॉक्टर से मिलें, जैसे;

  • यदि बच्चे को 103 डिग्री फारेनहाइट से ज्यादा तेज बुखार होता है। 
  • यदि 3 से ज्यादा दिनों तक बुखार रहता है। 
  • यदि दौरे पड़ते हैं। 
  • यदि पेट में बहुत तेज दर्द होता है। 
  • यदि लड़कों के टेस्टिकल्स में दर्द होता है। 
  • यदि बार-बार उल्टी होती है। 
  • यदि डिहाइड्रेशन होने लक्षण दिखाई देते हैं। 
  • यदि सिर में अचानक से बहुत तेज दर्द होता है। 

बच्चों में मम्प्स (गलसुआ) होने पर ध्यान देने योग्य कुछ बातें 

बच्चों को मम्प्स होने पर आप निम्नलिखित कुछ चीजों पर ध्यान जरूर दें, जैसे 

  • मम्प्स एक संक्रामक वायरल रोग है जिससे कान के नीचे मौजूद सैलिवरी ग्लैंड पर प्रभाव पड़ता है। 
  • यह एक फ्लूइड है जो इन्फेक्टेड बच्चों के खांसने, छींकने व बोलने पर मुंह नाक और गले में फैलता है। 
  • एमएमआर वैक्सीन से मम्प्स की समस्या ठीक हो सकती है जिससे मीजल्स और रूबेला भी ठीक हो जाते हैं। यह 95% तक इम्युनिटी प्रदान करती है। 
  • इसके सबसे आम लक्षणों में जबड़ों में सूजन और निगलने, बोलने व चबाने में कठिनाई होना शामिल है। 
  • इसका ट्रीटमेंट बच्चे को कम्फर्ट करने से शुरू होता है। जिसमें आप बच्चे को ज्यादा से ज्यादा तरल पदार्थ दें और आराम करने दें। 
  • जिन बच्चों को मम्प्स की समस्या है उन्हें स्कूल और डे केयर सेंटर से दूर रखें ताकि इन्फेक्शन न फैले। 
  • मम्प्स होने के बाद जब आप बच्चे की देखभाल करें तो बाद में व पहले ठीक से हाथ धोना न भूलें। 
  • इस बात का ध्यान रखें कि इन्फेक्शन होने पर बच्चा छींकते व खांसते समय अपने मुंह व नाक को कवर करके रखे। 

बच्चों को मम्प्स (गलसुआ) होने पर क्या करें 

बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाते समय आप निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें, जैसे;

  • आप उन सवालों को लिख लें जिनका जवाब जानना चाहती हैं। 
  • डायग्नोसिस, दवा और डॉक्टर की सलाह के नोट्स बना लें। 
  • यह भी जानें कि प्रिस्क्राइब की हुई दवा से बच्चे को कैसे फायदा हो सकता है और इसके संभावित साइड इफेक्ट्स क्या हैं। 
  • यदि इस इन्फेक्शन के लिए अन्य कोई थेरेपी है तो उसके बारे में भी पता करें। 
  • इसके बारे में भी जानें कि टेस्ट कराने की सलाह क्यों दी गई है और इस टेस्ट के परिणाम का क्या मतलब है। 
  • डॉक्टर से यह भी पूछें कि यदि दवा न ली जाए और टेस्ट न कराया जाए तो इससे क्या हो सकता है। 
  • आप डॉक्टर के साथ फॉलो अप अपॉइंटमेंट के बारे में पूछना व लिखना न भूलें। इसकी महत्वता को समझने के लिए आपको जानना चाहिए कि यह इतना जरूरी क्यों है। 
  • डॉक्टर से ऑफिस के बाद का समय पूछें। यदि बच्चे में गंभीर लक्षण दिखाई देते हैं व इमरजेंसी के मामलों के लिए यह जानना बहुत  के लिए जरूरी है। 

टेस्ट होने के बाद मम्प्स के लक्षण और कारण जानना बहुत जरूरी है। कुछ विशेष मामलों में दवा से एलर्जी हो सकती है। इस वायरस के होने पर डॉक्टर से संपर्क में रहें और एलर्जी होने पर या दवा न मिलने पर इसके विकल्पों की जानकारी भी लें। 

इस बात का ध्यान रखें कि बच्चा लगातार खता रहे क्योंकि इस दौरान उसकी भूख पर प्रभाव पड़ सकता है। यदि आपके एक से ज्यादा बच्चे हैं तो अन्य बच्चों को अलग रखें या जब तक यह इन्फेक्शन रहता है तब तक के लिए उन्हें रिश्तेदारों के घर पर छोड़ आएं। इस दौरान आप बच्चे को पर्याप्त मात्रा में पानी दें। 

निष्कर्ष: यदि डायग्नोसिस में पता चलता है कि बच्चे को मम्प्स हैं तो आप तुरंत पीडियाट्रिक स्पेशलिस्ट से संपर्क करें। बच्चे को प्रिस्क्रिप्शन के अनुसार ही दवा दें। उन पेरेंट्स से मिले जिनके बच्चे डायग्नोसिस के दौरान इन्फेक्टेड बच्चे से मिले हैं क्योंकि यह इन्फेक्शन तेजी से फैलता है। डायगनोसिस होने के बाद बच्चे का तुरंत प्रभावी ट्रीटमेंट कराएं। 

पेरेंट्स के लिए बच्चे को मम्प्स होना काफी चिंताजनक हो सकता है पर आपको बोना घबराए फिजिशियन पर विश्वास रखना चाहिए। यदि जल्दी ही इसका डायग्नोसिस व ट्रीटमेंट किया जाए तो बच्चा आराम से ठीक हो सकता है। 

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