बच्चों में पिका रोग – कारण, लक्षण, उपचार और बचाव

बच्चों में पिका रोग - कारण, लक्षण, उपचार और बचाव

बच्चे हमेशा जिज्ञासु होते हैं और हर वह चीज जो उनके हाथ लगती है वे उसे अपने मुंह में रख लेते हैं। हालांकि, अगर कोई बच्चा अक्सर खाने योग्य न होने वाली चीजों को खा लेता है, तो वह पिका (या पाइका) नामक ईटिंग डिसऑर्डर से पीड़ित हो सकता है। पिका बच्चे में सेहत से जुड़ी गंभीर परेशानियां पैदा कर सकता है, जो शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की हो सकती हैं। इस प्रकार, पिका को जल्द से जल्द रोकना या कम करना बहुत जरूरी है। ऐसे कई कारण हैं जो बच्चे में इस व्यवहार को जन्म दे सकते हैं। कुछ जगहों पर यह ‘कल्चर-बाउंड सिंड्रोम’ से संबंधित होता है, हालांकि, पिका ज्यादातर मिनरल्स और विटामिन की कमी या मानसिक स्वास्थ्य समस्या के कारण होता है।

बच्चों में पिका क्या है? 

आहार से संबंधित डिसऑर्डर जिसमें बच्चे लगातार या नियमित रूप से नॉन फूड आइटम का सेवन करते हैं, वो पिका कहलाता है। बच्चों का मिट्टी खाना इस डिसऑर्डर का उदाहरण है। नॉन फूड आइटम में गंदगी, रेत, कागज, पेंट, चॉक, बाल, लकड़ी आदि बहुत कुछ शामिल होता है। बच्चों में पिका विकार से डाइजेस्टिव सिस्टम में समस्या होती है और इससे बच्चे के विकास में भी देरी हो सकती है। चूंकि यह स्थिति लंबे समय तक बनी रह सकती है, इसलिए यह बच्चे और उसके डेवलपमेंट को प्रभावित कर सकती है।

बच्चों में पिका कितना आम है? 

बच्चे अपनी टेस्ट बड के जरिए दुनिया भर की चीजों को एक्सप्लोर करना चाहते हैं, जो उनके लिए बहुत आम बात है। खासतौर पर जब शिशु के नए दांत निकल रहे होते हैं, तो वह अक्सर चबाने के लिए नई चीजें खोजता है। हर बार जब कोई बच्चा अपने मुंह में कुछ भी डालता है, तो ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि उसे पिका है! पिका डिसऑर्डर एक ऐसी स्थिति है जिसमें बच्चे के विकास के दौरान एक्सप्लोर करने का उसका नॉर्मल व्यवहार बढ़ जाता है। पिका को बच्चों में तब नोटिस किया जा सकता है जब वे 18 से 24 महीने के बीच होते हैं और नॉन फूड आइटम की क्रेविंग उन्हें महीनों तक बनी रह सकती है। कुछ मामलों में, पिका ऑटिज्म का भी संकेत हो सकता है। यह आमतौर पर शारीरिक या बौद्धिक विकास में अक्षम बच्चों में देखा जाता है।

बच्चों में पिका होने के कारण

बच्चों में पिका कई कारणों से हो सकता है, जिनमें शामिल हैं:

  • किसी विशेष वस्तु का टेस्ट लेने के लिए ।
  • जिंक या आयरन जैसे मिनरल की कमी होना (हुकवर्म या सीलिएक बीमारी भी इसका कारण हो सकता है)।
  • ओसीडी या ऑब्सेसिव कंप्लसिव हैबिट रूप में जाना जाने वाला डिसऑर्डर।
  • ब्रेन केमिकल का असंतुलित होना।
  • ब्रेन इंजरी।
  • अटेंशन लेने के उद्देश्य से।
  • मां का ध्यान न देना या मां का न होना।

तो, इन कारणों को जानने के बाद आपके मन में यह सवाल आ सकता है कि कैसे पहचानें कि आपके बच्चे में पिका हुआ है? तो आपको बता दें कि इसे ज्यादातर लक्षणों को देखकर पहचाना जा सकता है, जो आपको नीचे दिए गए हैं। हालांकि, यदि आप को लगता है कि डॉक्टर के पास जाने की जरूरत है, तो आप उनसे सलाह ले सकती हैं।

बच्चों में पिका डिसऑर्डर के लक्षण

यहां पिका विकार के कुछ लक्षण दिए गए हैं जो बच्चों में देखे जा सकते हैं:

  • अखाद्य पदार्थों को बार-बार या नियमितता के साथ खाना।
  • एक महीने से अधिक समय तक लगातार ऐसी चीजों का का सेवन करना।

बच्चों में पिका डिसऑर्डर के लक्षण

बच्चों में पिका का निदान कैसे किया जाता है? 

इस डिसऑर्डर का निदान करने के लिए कोई निश्चित टेस्ट नहीं है। डॉक्टर कई बातों के साथ बच्चे की मेडिकल हिस्ट्री के आधार पर इसका निदान करते हैं। यह बहुत जरूरी है कि आप डॉक्टर को ईमानदारी से बताएं कि बच्चे ने कितना नॉन फूड आइटम खाया है और ऐसा कितने समय से कर रहा है। यदि ये आदत एक महीने से अधिक समय तक बनी रहती है, तो इस बात की संभावना काफी ज्यादा है कि बच्चे को पिका डिसऑर्डर है। ऐसे में समय पर इस डिसऑर्डर को रोकना जरूरी है, क्योंकि इससे सेहत को समस्याएं हो सकते हैं, जिनमें से कुछ के बारे में हमने नीचे बताया है। आयरन और जिंक लेवल की जांच करने के लिए डॉक्टर ब्लड टेस्ट करने को कह सकते हैं क्योंकि इनकी कमी से भी बच्चों को पिका हो सकता है। इसलिए, आपको यह सुझाव दिया जाता है कि कुपोषण का पता लगाने के लिए आप नियमित रूप से बच्चे की जांच कराती रहें।

बच्चों में पिका डिसऑर्डर से जुड़े कॉम्प्लिकेशन

पिका डिसऑर्डर बच्चों को नुकसान पहुंचा सकता है और कई कॉम्प्लिकेशन को जन्म दे सकता है जैसे:

  • टॉक्सिसिटी का कारण बन सकता है (हेमेटोलॉजिक, रीनल, कार्डियोवैस्कुलर, एंडोक्राइन, और न्यूरोलॉजिकल डिफेक्ट की समस्या पैदा हो सकती है।
  • गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट संबंधी कॉम्प्लिकेशन (जैसे हल्के मामलों में कब्ज, और गंभीर मामलों में ब्लीडिंग होना)।
  • न्यूट्रिएंट्स की कमी (विशेषकर जिंक और आयरन की कमी)।
  • दांतों की समस्या (जैसे टूटे दांत)।

बच्चों में पिका का प्रभावी उपचार

जब न्यूट्रिएंट्स में कमी होती है तो पिका होने की संभावना बढ़ जाती है, तो ऐसे में डॉक्टर मिनरल और विटामिन सप्लीमेंट लिख सकते हैं। इसके अलावा, पिका के मामले में अपनाए जाने वाले कुछ आम उपचार इस प्रकार दिए गए हैं:

  • जब ओसीडी जैसी मानसिक समस्या के कारण पिका होता है, तो डॉक्टर द्वारा थेरेपी, दवा या दोनों प्रिस्क्राइब किए जा सकते हैं।
  • चूंकि उपेक्षा के कारण भी पिका हो सकता है, इसलिए आपको यह सुझाव दिए जाता है कि अपनी कम्युनिकेशन स्किल पर काम करें और बच्चे के साथ संवाद बढ़ाएं ।
  • एक स्पेशल बॉक्स बनाएं जो खाने योग्य भोजन से भरा हुआ हो, इससे बच्चा नॉन फूड आइटम के बजाय इस ऑप्शन चुनेगा।
  • जब बच्चा इस तरह का व्यव्हार करे तो किसी भी नेगेटिव एक्शन से बचें जैसे कड़ी सजा देना। इसके बजाय पॉजिटिव एक्शन लेने की कोशिश करें।

बचाव 

पिका को रोकना संभव नहीं है क्योंकि यह एक ऐसा बर्ताव है जिसे विकसित किया गया है। शुरूआती स्टेज में इस डिसऑर्डर से बचने के लिए या इसे पहचानने के लिए नीचे बताई गई बातों पर आप ध्यान दे सकती हैं:

  • जागरूकता फैलाएं: दूसरों को बच्चों में खाने की अच्छी आदतें डालने के बारे में बताएं और इस डिसऑर्डर के बारे में बताएं।
  • खान-पान पर ध्यान दें: बच्चे को स्वस्थ और न्यूट्रिशनल डाइट दें।
  • संवाद करें: अपने बच्चे के साथ प्रभावी ढंग से बात करें।
  • रूटीन चेकअप: पिका का संकेत दिखने पर किसी भी बीमारी या विकार का निदान करने के लिए डॉक्टर पास बच्चे के रूटीन चेकअप के लिए जाएं।
  • हेल्दी रखें: बच्चे को हेल्दी स्नैक्स खाने के लिए कहें और नॉन फूड आइटम से उन्हें दूर रखें।
  • जानें कि क्या करना चाहिए: यदि मानसिक समस्या का निदान किया जा रहा है, तो आपको प्रभावी इलाज करवाना चाहिए, क्योंकि इससे पिका विकसित हो सकता है।

डॉक्टर से कब परामर्श करें

जब आपको संदेह होने लगे कि आपके बच्चे को पिका हो सकता है, तो आपको तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए। पिका दांतों की समस्या, इंफेक्शन, डाइजेस्टिव समस्या और इंटॉक्सिकेशन के कारण हो सकता है। इन स्थितियों को नोटिस करते ही डॉक्टर से मिलें।

कुछ मामलों में पिका से छुटकारा पाना काफी आसान होता है, जबकि कुछ मामलों में आपको डॉक्टर की मदद लेने की जरूरत होती है। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान आपको धैर्य बनाए रखना सबसे जरूरी है। किसी भी उपचार को असरदार बनाने के लिए बच्चे के साथ पॉजिटिव रहना महत्वपूर्ण है।

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