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एलोपेसिया एरीटा सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करता है, लेकिन बच्चों में इसके मामले ज्यादा देखे जाते हैं। 5 साल से कम उम्र के बच्चे, इस बीमारी के कारण भावनात्मक रूप से या तो बहुत ही कम प्रभावित होते हैं या फिर प्रभावित होते ही नहीं है और इसलिए बच्चों में एलोपेसिया से निपटना आसान होता है। लेकिन जब वे बड़े हो जाते हैं, तो इस बीमारी को स्वीकार करना उनके लिए कठिन हो जाता है और यह उनके आत्मविश्वास को प्रभावित करता है।
एलोपेसिया एरीटा क्या है?
एलोपेसिया एरीटा एक ऑटोइम्यून बीमारी है (एक ऐसी बीमारी जो कि अपने ही इम्यून सिस्टम को प्रभावित करती है), जिसमें पैची हेयर फॉल होता है – सिर की त्वचा से पैच के रूप में बाल गिर जाते हैं, जिसके कारण गंजेपन के स्पॉट्स बन जाते हैं। 18 महीने से कम उम्र के बच्चों में यह दुर्लभ होती है। जहां यह बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है, वहीं इसके शुरुआती संकेत बचपन में देर से देखे जाते हैं।
दुनियाभर में लाखों लोग इस ऑटोइम्यून बीमारी से जूझते हैं।
इस बीमारी में बच्चे का इम्यून सिस्टम उसके बढ़ते हुए हेयर फॉलिकल्स पर हमला करता है। इसके कारण हेयर फॉलिकल्स सिकुड़ जाते हैं, जिससे बालों की ग्रोथ धीमी पड़ जाती है और हेयर फॉलिकल में से महीनों या फिर वर्षों तक भी बाल नहीं उगते हैं।
एलोपेसिया एरीटा का यह मतलब नहीं है, कि बच्चा अस्वस्थ है। इसके साथ कोई भी दर्दनाक लक्षण भी नहीं दिखते हैं। छोटे पैचेस में गिरने वाले बाल इसकी पहचान होते हैं या फिर बच्चा पूरी तरह से गंजा भी हो सकता है। उसके शरीर के बाल भी गिर सकते हैं, पर यह दुर्लभ है। अधिकतर मामलों में आपके बच्चे के ज्यादातर बाल वापस आ जाते हैं।
बचपन में एलोपेसिया एरीटा
हालांकि, एलोपेसिया एरीटा बहुत ही आम है, पर फिर भी ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं, कि यह असल में है क्या।
1. 5 साल और उससे कम उम्र
जो बच्चे 5 वर्ष या उससे कम उम्र के होते हैं, उनका ध्यान इस बात पर नहीं होता है, कि वे कैसे दिखते हैं। अगर वे अपनी उम्र के अन्य बच्चों से अलग भी दिखें, तो भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है।
इस दौरान बच्चे किसी भावनात्मक असर का अनुभव नहीं करते हैं, बल्कि उन्हें अपना हेयर लॉस एक रोचक घटना भी लग सकती है। चूंकि इस उम्र के अन्य बच्चे भी इन बातों पर ध्यान नहीं देते हैं, ऐसे में इस बीमारी से कोई बड़ी समस्या पैदा नहीं होती है।
2. 6 से 12 वर्ष की उम्र
6 साल की उम्र के बाद वे खुद में और अपनी उम्र के दूसरे बच्चों में फर्क पहचानना शुरू कर देते हैं। वे लोगों से इंटरक्ट करना और अपनी शारीरिक सुंदरता के लिए जागरूक होना शुरू कर देते हैं। 12 वर्ष की उम्र होने तक वे इस स्थिति के बारे में जान चुके होते हैं और उन्हें यह समझ आने लगता है, कि इस बीमारी के कारण लोग उनके साथ अलग तरह से व्यवहार कर सकते हैं।
अब उन्हें इस बात से फर्क पड़ने लगता है। बड़े बच्चे इस बात को स्वीकार करने में कठिनाई महसूस करते हैं, कि उन्हें एलोपेसिया एरीटा है। उनमें आत्मविश्वास की कमी हो सकती है और इससे उनकी रोज की दिनचर्या भी प्रभावित हो सकती है। हेयर फॉल उनके और उनके दोस्तों या क्लासमेट्स के बीच भी टकराव का एक कारण बन सकता है। जो बच्चे, बेबी होने के समय से ही इस बीमारी से जूझ रहे हों, वे भी परेशान हो सकते हैं और वे उन बच्चों के साथ फिट बैठना चाह सकते हैं, जिन्हें एलोपेसिया एरीटा नहीं है।
कारण
जब आपके बच्चे का इम्यून सिस्टम ठीक तरह से काम नहीं कर पाता है, तब एलोपेसिया एरीटा होता है। इम्यून सिस्टम हेयर फॉलिकल्स पर हमला करता है, जिसके कारण बाल झड़ने लगते हैं। हेयर फॉलिकल कमजोर हो जाते हैं और बालों को छोड़ देते हैं। हालांकि यह याद रखना चाहिए, कि ज्यादातर मामलों में यह नुकसान स्थाई नहीं होता है।
अगर आपका टॉडलर एलोपेसिया एरीटा से जूझ रहा है, तो आपको चिंतित नहीं होना चाहिए। ज्यादातर मामलों में बचपन का एलोपेसिया ठीक हो जाता है और बाल दोबारा उगने लगते हैं। यहां पर कोई निश्चित पैटर्न नहीं होता है और हर मरीज में इसके अलग लक्षण नजर आ सकते हैं। अगर आपका टॉडलर हेयर लॉस का अनुभव कर रहा है, तो पूरी जांच के लिए पेडिअट्रिशन से परामर्श लेने की सलाह दी जाती है।
डॉक्टर लक्षणों को देखकर और कुछ टेस्ट करके एलोपेसिया एरीटा की पहचान करने में सक्षम होंगे। इम्यून सिस्टम ने बच्चे के शरीर के अन्य अंगों पर कोई असर डाला है या नहीं, यह देखने के लिए कुछ अतिरिक्त टेस्ट की जरूरत भी पड़ सकती है।
एलोपेसिया एरीटा संक्रामक नहीं होता है और इस बीमारी से ग्रस्त बच्चे बिना किसी डर के आराम से दूसरे बच्चों के साथ घुलमिल सकते हैं।
लक्षण
यहां पर कुछ लक्षण दिए गए हैं, जिनके माध्यम से आप एलोपेसिया एरीटा को पहचान सकते हैं:
- बच्चे की सिर की त्वचा से छोटे और गोलाकार पैच में बालों का गिर जाना
- गंजे धब्बे जिसके कारण पूरा गंजापन भी हो सकता है
- बच्चे के शरीर के बाल गिरना
एलोपेसिया की पहचान
अगर आपको, अपने बच्चे के एलोपेसिया एरीटा से ग्रस्त होने का संदेह है, तो यह जरूरी है, कि आप उसे डॉक्टर के पास लेकर जाएं। डॉक्टर सिर की त्वचा की जांच करेंगे और एलोपेसिया की पहचान करने के लिए बाल झड़ने के पैटर्न को देखेंगे। वे कुछ बाल खींच कर माइक्रोस्कोप में उनकी जांच कर सकते हैं। वे आपके बच्चे के सिर की त्वचा का एक सैंपल भी ले सकते हैं। यह जानने के लिए कि आपका बच्चा कहीं हाइपोथायरायडिज्म या हाइपरथायरायडिज्म से ग्रस्त तो नहीं है, डॉक्टर कुछ ब्लड टेस्ट भी कर सकते हैं, क्योंकि इनके कारण भी बच्चों में हेयर लॉस हो सकता है।
बच्चों में एलोपेसिया एरीटा का इलाज
जहां इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है, डॉक्टर कॉर्टिकोस्टेरॉइड की सलाह दे सकते हैं, जो कि हेयर ग्रोथ प्रमोट करने में सहयोग करते हैं।
टॉडलर्स में एलोपेसिया एरीटा के इलाज के लिए एक बेहतरीन तरीका यह है, कि उसे पौष्टिक आहार खाने को दिया जाए। एलोपेसिया से होने वाला हेयर फॉल पोषक तत्वों की कमी के कारण भी हो सकता है।
एलोपेसिया के क्या प्रभाव होते हैं?
एलोपेसिया से होने वाले हेयर लॉस के साथ कोई भी दर्द जुड़ा नहीं होता है। इससे बच्चे की जिंदगी को कोई जोखिम नहीं होता है।
एलोपेसिया से ग्रस्त बच्चे की देखभाल कैसे करें?
एलोपेसिया से ग्रस्त बच्चे को आत्मविश्वास से भरा और आशावादी महसूस कराना एक कठिन काम है। प्रोफेशनल काउंसलर से मदद लेने के बारे में विचार करें, जो कि एक पॉजिटिव इमेज बनाने में आपकी मदद कर सकते हैं। अपने बच्चे को आप पर विश्वास करने को कहें और उसे कहें, कि वह हर वो बात आपको बताए जो उसे निराश करती है। अगर उसे स्कूल में बच्चे चिढ़ाते हैं तो शिक्षकों से बात करने में या फिर जरूरत पड़ने पर प्रिंसिपल से भी बात करने में हिचकिचाएं नहीं।
निष्कर्ष
एलोपेसिया न तो संक्रामक है और न ही जानलेवा है। इसमें ऐसे कोई भी दर्दनाक लक्षण नहीं होते हैं, जिनसे शरीर को तकलीफ हो। इसका केवल एक ही लक्षण होता है और वह है बालों का झड़ना। जब बच्चे बड़े होने लगते हैं, तब यह उन पर भावनात्मक असर डाल सकता है। पेरेंट्स, दूसरे लोगों को हंसी उड़ाने से नहीं रोक सकते हैं, लेकिन एक बच्चे को उनका सपोर्ट एक सकारात्मकता देता है, जिससे वह इससे जुड़े हुए भावनात्मक तनाव को संभाल पाता है।
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