शिशु

छोटे बच्चों में बैक्टीरियल इन्फेक्शन

बैक्टीरियल इन्फेक्शन ज्यादातर बच्चों में इसलिए होता है क्योंकि उनका इम्यून कमजोर होता है। इसलिए माँ का दूध बच्चे के लिए बहुत जरूरी होता है, क्योंकि यह बच्चे को इन्फेक्शन से लड़ने के लिए जरूरी एंटीबॉडी प्रदान करता है। 

बच्चों में बैक्टीरियल इन्फेक्शन चिंता का कारण बन सकता है  क्योंकि यह बच्चे की कंडीशन को बहुत जल्दी खराब कर सकता है। जो बच्चे बैक्टीरियल इन्फेक्शन से पीड़ित हो जाते हैं उन्हें बहुत ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है। ज्यादातर बच्चे समय से ट्रीटमेंट मिल जाने की वजह से जल्दी ठीक हो जाते हैं। डॉक्टर निदान के बाद कुछ एंटीबियोटिक्स मेडिसीन लिख सकते हैं।

बच्चों में होने वाले आम बैक्टीरियल इन्फेक्शन

शिशुओं में होने वाले कुछ कॉमन बैक्टीरियल इन्फेक्शन कुछ इस प्रकार दिए गए हैं: 

  • कंजंक्टिवाइटिस – बैक्टीरियल इन्फेक्शन से उत्पन्न होने वाला कंजंक्टिवाइटिस बच्चे की आँखों को प्रभावित कर सकता है, इससे पलकें फूल जाती हैं। इन्फेक्टेड आँखों से पीला डिस्चार्ज होने लगता है, जिसकी वजह से आँखें एक साथ चिपक जाती हैं।
  • लिस्टेरियोसिस – लिस्टेरियोसिस एक प्रकार की फूड पॉइजनिंग है जो इन्फेक्टेड फूड खाने से होती है, जो बैक्टीरिया के जरिए फैलता है। अगर माँ लिस्टेरियोसिस से संक्रमित हो जाए तो उसके बच्चे में भी ट्रांसफर होने की संभावना होती है। जो जान का खतरा पैदा कर सकता है।
  • स्ट्रेप्टोकोकल इन्फेक्शन – स्ट्रेप्टोकोकल इन्फेक्शन या स्ट्रेप इन्फेक्शन बच्चों पर अटैक करता है, अगर जन्म के दौरान माँ को इन्फेक्शन हो, तो यह बैक्टीरिया बच्चे में भी ट्रांसफर हो सकता है। बच्चों में स्ट्रेप्टोकोकल इन्फेक्शन होने से मेनिन्जाइटिस, निमोनिया, सेप्सिस (ब्लड इन्फेक्शन) जैसे कॉम्प्लिकेशन का खतरा होता है।
  • गैस्ट्रो-इंटेस्टाइनल इन्फेक्शन – बैक्टीरिया बच्चे के डाइजेस्टिव ट्रैक्ट को भी प्रभावित करता है, जिससे उन्हें डायरिया हो सकता है। डायरिया वाले बच्चों में उल्टी, पेट में दर्द जैसे लक्षण हो दिखाई दे सकते हैं।

बच्चों में बैक्टीरियल इन्फेक्शन के लक्षण

बच्चों में बैक्टीरियल इन्फेक्शन के कॉमन लक्षण कुछ इस प्रकार दिए गए हैं:  

  • तेज बुखार
  • ठीक से खाना न खाना
  • बहुत ज्यादा नींद आना
  • बिना किसी कारण के चिड़चिड़ापन
  • सांस लेने में दिक्कत
  • नींद के पैटर्न में बदलाव
  • लगातार रोना
  • त्वचा का पीला पड़ना या रैशेज होना

बच्चों में बैक्टीरियल इन्फेक्शन होने के कारण क्या हैं

बच्चे में बैक्टीरियल इन्फेक्शन होने के कुछ कारण कुछ इस प्रकार दिए गए

 हैं:

  • गर्भावस्था के दौरान इन्फेक्टेड माँ के बर्थ कैनाल के जरिए बच्चा बैक्टीरिया के संपर्क में आ सकता है।
  • डिलीवरी के दौरान एक इन्फेक्टेड माँ से उसके नवजात बच्चे में बैक्टीरियल इन्फेक्शन ट्रांसफर हो सकता है।
  • समय के साथ बैक्टीरिया कई गुना बढ़ जाता है, जिससे नवजात शिशु जन्म के बाद कुछ दिनों के अंदर बीमार पड़ सकता है।
  • बैक्टीरिया और वायरस दोनों की वजह से बच्चा इन्फेक्शन का शिकार हो सकता है।
  • वायरस जन्म से पहले ही बच्चे के ब्लड फ्लो में प्रवेश कर सकते हैं।
  • इम्युन सिस्टम के कमजोर होने के कारण नवजात शिशु सर्दी और फ्लू की वजह से वायरस का शिकार हो सकते हैं।
  • नवजात शिशुओं को इन्फेक्टेड व्यक्ति के संपर्क में आने से इन्फेक्शन होने का खतरा ज्यादा होता है, क्योंकि वह इससे जल्दी प्रभावित हो सकते हैं।
  • इन्फेक्शन का जल्द पता लगाने और समय पर ट्रीटमेंट किए जाने पर बच्चे को बैक्टीरियल इन्फेक्शन  से राहत दी जा सकती है।

बच्चे के लिए बैक्टीरियल इन्फेक्शन का निदान कैसे करें

नवजात शिशुओं के मामले में, यह कंडीशन तेजी से बिगड़ सकती है। इसलिए उपचार जल्दी करना जरूरी है। डॉक्टर आपके बच्चे में होने वाले बैक्टीरियल इन्फेक्शन का निदान करने के लिए कुछ टेस्ट कर सकते हैं। जैसे ही टेस्ट के रिजल्ट आ जाते हैं डॉक्टर बच्चे का ट्रीटमेंट शुरू कर देते हैं और एंटीबायोटिक मेडिसिन प्रेसक्राइब करते हैं। डॉक्टर इसका निदान करने के लिए बताए गए टेस्ट क सुझाव दे सकते हैं:

  • कम्प्लीट ब्लड काउंट (सीबीसी): कम्प्लीट ब्लड काउंट टेस्ट करने के लिए आपके बच्चे का ब्लड सैंपल लिया जाएगा। सीबीसी वाइट ब्लड सेल्स (डब्ल्यूबीसी) काउंट के स्पेसिफिक नंबर को जानने के लिए किया जाता है। डब्ल्यूबीसी के लो काउंट का पाया जाना इन्फेक्शन होने का संकेत है।
  • ब्लड कल्चर: ब्लड कल्चर टेस्ट मदद करता है यह जानने में कि किस टाइप के बैक्टीरिया से बच्चा संक्रमित है। ब्लड कल्चर टेस्ट के जरिए बैक्टीरियल इन्फेक्शन का पता लगाने में मदद मिलती है, जिससे डॉक्टर को आगे के ट्रीटमेंट के लिए मदद मिलती है।
  • यूरिन टेस्ट: एक यूरिनलिसिस या स्क्रीनिंग टेस्ट का एक सेट बैक्टीरियल इन्फेक्शन के टाइप का पता लगाने के लिए किया जाता है।
  • स्किन या आई स्वाब: डॉक्टर संक्रमित क्षेत्र से कुछ सैंपल ले सकते हैं, जैसे कि आँख और उसके आसपास के टिश्यू।
  • चेस्ट एक्स-रे: यदि डॉक्टर को बच्चे में निमोनिया होने की आशंका हो तो बच्चे का चेस्ट एक्स-रे किया जा सकता है।
  • स्पाइनल टैप: स्पाइनल टैप या लंबर पंक्चर में सीएसएफ (सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड) का एक छोटा सा सैंपल लिया जाता है, यह एक तरल पदार्थ है जो कि रीढ़ की हड्डी, मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम की जांच में काम आता है।

बच्चों में बैक्टीरियल इन्फेक्शन के लिए उपचार

नवजात शिशु के बैक्टीरियल इन्फेक्शन के मामले में, डॉक्टर एंटीबायोटिक्स के जरिए ट्रीटमेंट शुरू कर सकते हैं। डॉक्टर द्वारा प्रेसक्राइब की जाने वाली एंटीबायोटिक दवाओं के कोर्स को पूरा करना जरूरी है, भले ही आपको बच्चे में इम्प्रूवमेंट दिखाई दे रहे हों। एंटीबायोटिक्स बच्चे को आईवी के माध्यम से दिया जा सकता है जो एंटीबायोटिक दवाओं को सीधे बच्चे के ब्लड फ्लो में पहुँचा सकता है।

बच्चा अगर पेट में बैक्टीरियल इन्फेक्शन होने के कारण कुछ खा नहीं पा रहा है, तो उसे आईवी के जरिए जरूरी न्यूट्रिएंट पहुँचाना जरूरी है ताकि उसे डिहाइड्रेशन से बचाया जा सके। खासकर ऐसे मामले में जब बच्चे के ब्लड में बैक्टीरियल इन्फेक्शन पाया गया हो, डॉक्टर किसी भी होने वाले कॉम्प्लिकेशन को रोकने के लिए बच्चे की सांस और हार्ट रेट की निगरानी कर सकते हैं।

नवजात शिशु का बहुत ज्यादा ध्यान रखने में कोई नुकसान नहीं है, क्योंकि वो इतने नाजुक होते हैं कि एक्स्ट्रा देखभाल की जरूरत होती है। अगर आपको कुछ ठीक न होने का डाउट हो, तो अपने डॉक्टर से तुरंत बात करें न कि लक्षण दिखने का इंतजार करें। बच्चों में बैक्टीरियल इन्फेक्शन का समय पर इलाज किया जाना बेहद जरूरी है।

यह भी पढ़ें:

शिशुओं में कान का इंफेक्शन – कारण, लक्षण और उपचार
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समर नक़वी

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