बड़े बच्चे (5-8 वर्ष)

बच्चों में एपिलेप्सी (मिर्गी)

In this Article

एपिलेप्सी दिमाग की एक बीमारी होती है, जिसके कारण व्यक्ति में बार-बार सीजर्स होते हैं (दौरे पड़ते हैं)। यह विश्व में 50 मिलियन से भी अधिक लोगों को प्रभावित करता है और यह बच्चों में भी एक आम स्थिति है। अचानक पड़ने वाले दौरे (सीजर), एपिलेप्सी की पहचान होते हैं। ये सीजर बिल्कुल कम समय के लिए भी हो सकते हैं, जिन्हें पहचाना भी ना जा सके, या फिर लंबे समय तक चलने वाले तेज कंपन के रूप में भी हो सकते हैं। इन सीजर्स के कारण व्यक्ति बेहोश भी हो सकता है या मांसपेशियों में ऐंठन भी हो सकती है। कई बच्चे समय के साथ किशोरावस्था (टीनएज) में इस स्थिति से बाहर आ जाते हैं, लेकिन जो इससे बाहर नहीं आ पाते हैं, वे उचित इलाज की मदद से स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। 

एपिलेप्सी या मिर्गी क्या है?

एपिलेप्सी एक क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसके कारण अचानक और बार-बार होने वाले सेंसरी रुकावट के साथ अभूतपूर्व सीजर्स हो सकते हैं। यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है और यह चौथी सबसे आम न्यूरोलॉजिकल बीमारी है। 

बच्चों में मिर्गी के दौरे क्या होते हैं और यह कितने प्रकार के हैं?

बच्चों में एपिलेप्सी का दौरा कई रूपों में हो सकता है और यह शरीर के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकता है। मस्तिष्क के प्रभावित हिस्से के आधार पर सीजर दो तरह के हो सकते हैं – जनरलाइज्ड या फोकल। 

जनरलाइज्ड सीजर

ये सीजर्स दिमाग के दोनों हिस्सों के न्यूरॉन्स को प्रभावित करते हैं, जिसके कारण कन्वल्जन होते हैं, जो कि सौम्य से गंभीर हो सकते हैं और इसके कारण कभी-कभी बेहोशी भी हो सकती है। 

जनरलाइज्ड सीजर के प्रकार:

  • अटॉनिक सीजर – इसमें मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं, जिससे व्यक्ति जमीन पर गिर जाता है।
  • अब्सेंस सीजर – इन दुर्लभ दौरों के कारण व्यक्ति असामान्य रूप से जड़ हो जाता है और सामने शून्य में देखता रहता है।
  • मायोक्लोनिक फिट्स इन फिट्स के कारण, शरीर में मांसपेशियों में ऐंठन और शरीर के किसी खास हिस्से में अचानक होने वाले झटके महसूस किए जाते हैं।
  • क्लोनिक सीजर – इनके कारण बच्चे के शरीर में अचानक ऐंठन और झटके होते हैं, जो कि बार-बार और नियमित रूप से दिख सकते हैं। इसमें बांह, कोहनी और पैर जकड़ते और ढीले पड़ते हुए दिख सकते हैं।
  • टॉनिक सीजर – टॉनिक सीजर में पीठ में जकड़न और सांस लेने में तकलीफ हो सकती है और व्यक्ति बेहोश भी हो सकता है।
  • टॉनिक-क्लोनिक सीजर – ये सीजर ग्रैंड माल सीजर भी कहलाते हैं और ये सब से कठिन भी होते हैं। इनकी शुरुआत में व्यक्ति बेहोश हो जाता है और आगे चलकर टॉनिक और क्लोनिक फेज दिखते हैं।

फोकल सीजर्स

इन दौरों को आंशिक दौरे भी कहा जाता है। ये मस्तिष्क के केवल एक हिस्से की सेल्स को प्रभावित करते हैं और इसके कारण शरीर के केवल एक हिस्से पर इसका असर दिखता है। बच्चों में फोकल एपिलेप्सी को चार भागों में बांटा जा सकता है। 

  • फोकल अवेयर सीजर – इन्हें सिंपल पार्शियल सीजर भी कहते हैं। इनमें बच्चा होश में रहता है और इन दौरों के दौरान जागरूक रहता है।
  • फोकल मोटर सीजर – इसमें बच्चे को बार-बार झटके और ऐंठन का अनुभव हो सकता है और ताली बजाना और हाथों को रगड़ना जैसे मूवमेंट भी हो सकते हैं।
  • फोकल इंपेयर्ड अवेयर सीजर – इन जटिल पार्शियल सीजर्स के कारण कन्फ्यूजन और मेमोरी लॉस हो सकता है। बच्चे को यह सब याद नहीं रहता है।
  • फोकल नॉन-मोटर सीजर – इन सीजर्स में तीव्र भावनाएं, रोंगटे खड़े होना और दिल की तेज गति या अचानक ठंड या गर्म लगने का एहसास होता है।

दौरा पड़ने पर क्या होता है?

मस्तिष्क में लाखों न्यूरॉन मौजूद होते हैं, जो मानव शरीर के विभिन्न फंक्शन को नियंत्रित करने के लिए इलेक्ट्रिक सिग्नल भेजते हैं। दिमाग से और दिमाग की ओर जाने वाले इन इलेक्ट्रिक सिग्नल के ट्रांसमिशन में रूकावट होने के कारण मिर्गी के दौरे पड़ते हैं। मस्तिष्क में इलेक्ट्रिक सिग्नल का एक गंभीर विस्फोट उनके प्रवाह को प्रभावित करता है, जिसके कारण दिमाग के प्रभावित हिस्से में सीजर्स होते हैं।

चाइल्डहुड एपिलेप्सी सिंड्रोम क्या है?

अगर एक बच्चे के दौरे में एक ही समय पर फीचर्स का एक खास सेट एक साथ घटित होता है, तो इसे चाइल्डहुड एपिलेप्सी सिंड्रोम कहते हैं। इन खास संकेतों में, बच्चे की उम्र, दौरे का प्रकार, संभावित लर्निंग डिसेबिलिटी और ईईजी (इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम) के पैटर्न शामिल होते हैं। 

चाइल्डहुड एपिलेप्सी सिंड्रोम कितने प्रकार के होते हैं?

चाइल्डहुड एपिलेप्सी सिंड्रोम कई प्रकार के होते हैं और ये लक्षणों के आधार पर विभाजित किए जाते हैं। 

1. चाइल्डहुड और जूविनाइल एब्सेंस एपिलेप्सी

इस एपिलेप्सी सिंड्रोम की शुरुआत 4 से 10 साल के बीच होती है और इसमें जड़ होने और शून्य में घूरने वाले लक्षण दिखते हैं। इसे ‘पेटिट माल’ एपिलेप्सी भी कहा जाता है और यह आमतौर पर समय के साथ ठीक हो जाता है। 

2. बिनाइन रोलैंडिक एपिलेप्सी

इस एपिलेप्सी में मुंह और चेहरे में फोकल सीजर होते हैं और लार बहने, बोलने में कठिनाई के लक्षण दिखते हैं। आमतौर पर यह सीजर बच्चे के सोने के दौरान या सुबह उठने के बाद होता है। यह एपिलेप्सी 5 से 10 साल की उम्र में शुरू होता है और ज्यादातर मामलों में यह समय के साथ ठीक हो जाता है। 

3. इन्फेंटाइल स्पाज्म

इसे ‘वेस्ट्स सिंड्रोम’ के नाम से भी जाना जाता है और यह बच्चे के जन्म के बाद एक साल के अंदर-अंदर दिखता है। इस एपिलेप्सी में बच्चे के शरीर में गंभीर झटके लगते हैं और बच्चा आगे की ओर गिर सकता है। इस एपिलेप्सी को खतरनाक माना जाता है, क्योंकि यह दूसरे एपिलेप्सी से संबंधित होता है और इसके कारण विकास में देर देखी जाती है। 

4. टेंपोरल लोब एपिलेप्सी

इस तरह की मिर्गी किसी भी उम्र में हो सकती है। ये फोकल सीजर होते हैं, जिसमें सिंपल पार्शियल सीजर्स और कंपलेक्स पार्शियल सीजर्स दोनों ही शामिल हो सकते हैं, जिसमें घूरना और कन्फ्यूजन या मेमोरी लॉस देखा जाता है। 

रिसर्च दर्शाते हैं, कि ये सीजर अगर लंबे समय तक बने रहें, तो ये मस्तिष्क के हिप्पोकेंपस क्षेत्र को डैमेज कर सकते हैं, जो कि मेमोरी और लर्निंग से जुड़ा होता है। इसलिए इसका तुरंत इलाज किया जाना जरूरी है। 

5. जूविनाइल मायोक्लोनिक एपिलेप्सी

इस प्रकार की मिर्गी किशोरावस्था में शुरू होती है और इसमें जनरलाइज्ड सीजर दिखते हैं। इन सीजर्स में मायोक्लोनिक जर्क और टॉनिक-क्लोनिक सीजर शामिल होते हैं और कुछ मामलों में अब्सेंस सीजर भी दिख सकते हैं। इन सीजर्स को दवाओं से नियंत्रित किया जा सकता है और उम्र के साथ इनकी गंभीरता कम हो जाती है। 

6. फ्रंटल लोब एपिलेप्सी

ये सीजर तब होते हैं, जब बच्चा सो रहा होता है और इनमें कम समय के बार-बार होने वाले दौरे शामिल होते हैं, जिनमें शरीर के गंभीर मूवमेंट होते हैं। ये दौरे किसी भी उम्र में शुरू हो सकते हैं। 

7. लेनोक्स-गैस्टॉट सिंड्रोम

मुश्किल से ठीक होने वाली यह एपिलेप्सी 1 से 8 साल की उम्र में शुरू होती है। इसमें होने वाले दौरों पर एपिलेप्सी की दवाओं का कोई असर नहीं होता है और इसमें अक्सर वैकल्पिक इलाज और सर्जरी की जरूरत होती है। ये जनरलाइज्ड सीजर होते हैं, जिनकी पहचान विभिन्न सीजर्स के कॉन्बिनेशन के द्वारा होती है और अक्सर इनके कारण विकास में देर और व्यवहार संबंधी समस्याएं देखी जाती हैं। 

बच्चों में एपिलेप्सी के क्या कारण होते हैं?

सभी बच्चों में एपिलेप्सी के कारण भिन्न हो सकते हैं और उम्र के कारण भी ये अलग हो सकते हैं। जहां एपिलेप्सी के कुछ प्रकार वंशानुगत होते हैं, वहीं ऐसे कई इडियोपेथिक एपिलेप्सी भी होते हैं, जिनके कारण अज्ञात हैं। 

  • कुछ बच्चों में वंशानुगत कारणों से एपिलेप्सी हो जाता है। हालांकि, जीन से होने वाले सीजर्स के सटीक कारण की अब तक कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
  • सिर में चोट लगने से सीजर्स हो सकते हैं।
  • मस्तिष्क को नुकसान पहुंचाने वाली कुछ स्थितियां, जैसे – कुछ बुखार, ब्रेन ट्यूमर और इन्फेक्शन के कारण भी एपिलेप्सी हो सकता है।
  • विकास संबंधी कुछ बीमारियां, जैसे – एंजेलमैन सिंड्रोम, न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस, डाउन सिंड्रोम और ट्यूबरस स्क्लेरोसिस के कारण भी एपिलेप्सी की संभावना बढ़ जाती है।
  • 3 से 10% मामलों में मिर्गी का कारण मस्तिष्क की बनावट में आने वाले बदलाव होते हैं। बनावट संबंधी ऐसे बदलावों के साथ जन्म लेने वाले बच्चों में एपिलेप्सी का खतरा हो सकता है।
  • 3 से 10% मामलों में ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चों को भी एपिलेप्सी सीजर्स का अनुभव हो सकता है।
  • शरीर में जन्म दोष और केमिकल इम्बैलेंस के कारण भी शिशुओं में सीजर हो सकते हैं।

एपिलेप्सी के संकेत और लक्षण

एपिलेप्सी के लक्षण दिमाग के प्रभावित हिस्से पर निर्भर करते हैं। बच्चों में एपिलेप्सी के ट्रिगर भिन्न हो सकते हैं और मोटर और नॉन मोटर लक्षण का कारण बन सकते हैं। 

मोटर लक्षण

  • अचानक लगने वाले झटके
  • मांसपेशियों का अचानक हिलना
  • मांसपेशियों का कमजोर या सुन्न पड़ जाना
  • ऐंठन
  • मांसपेशियों में अकड़न
  • मल-मूत्र पर नियंत्रण न होना
  • सांस लेने में परेशानी
  • बात करने में परेशानी
  • बार-बार होने वाले एक्शन, जैसे – ताली बजाना या हाथों को रगड़ना
  • बेहोशी

नॉन-मोटर या अब्सेंस लक्षण

  • भावनाओं में अचानक तीव्र बदलाव
  • जागरूकता की कमी
  • शून्य में घूरना और पलकों को तेज झपकाना
  • प्रतिक्रिया की कमी
  • अचानक कंफ्यूजन

एपिलेप्सी की पहचान कैसे होती है?

एपिलेप्सी की पहचान में संपूर्ण मेडिकल जांच के साथ, डायग्नोस्टिक टेस्टिंग रेजिमेन की जरूरत होती है। डॉक्टर परिवार की मेडिकल हिस्ट्री और सीजर्स के बारे में सारी डिटेल जानकारी भी ले सकते हैं। 

डायग्नोस्टिक टेस्ट

  • इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम (ईईजी): इस प्रक्रिया के दौरान मस्तिष्क में इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी को रिकॉर्ड किया जाता है, जिसके लिए बच्चे के सिर की त्वचा पर इलेक्ट्रोड लगाए जाते हैं। इस टेस्ट में एक वेव पैटर्न मिलता है, जो कि एपिलेप्सी की मौजूदगी दिखा सकता है।
  • मैग्नेटिक रिजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई): अगर मस्तिष्क में घाव का संदेह हो, तो मस्तिष्क की एक विस्तृत तस्वीर पाने के लिए इस टेस्ट को किया जाता है।
  • ब्लड टेस्ट: ब्लड टेस्ट मस्तिष्क में मौजूद किसी संक्रमण के बारे में बता सकते हैं, जो कि संभवतः सीजर पैदा कर सकता हो।
  • न्यूरोलॉजिकल टेस्ट: एपिलेप्सी के प्रकार को जांचने के लिए डॉक्टर बच्चे के कॉग्निटिव फंक्शन, मोटर क्षमताएं और व्यवहारिक पैटर्न को देखने के लिए एक न्यूरोलॉजिकल टेस्ट कर सकते हैं।
  • कंप्यूटराइज टोमोग्राफी (सिटी या सीएटी): यह स्कैन मस्तिष्क की एक क्रॉस सेक्शनल तस्वीर उपलब्ध कराता है और मस्तिष्क में सीजर पैदा करने वाले किसी तरह के ट्यूमर, ब्लीडिंग या सिस्ट की मौजूदगी की संभावना की जानकारी देता है।
  • लंबर पंक्चर या स्पाइनल टैप: यह टेस्ट सेरेब्रल स्पाइनल फ्लुएड की थोड़ी मात्रा निकालने के लिए किया जाता है। फिर उस में संक्रमण की जांच की जाती है।
  • फंक्शनल एमआरआई: यह टेस्ट मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों में खून के प्रवाह में आने वाले बदलाव को पहचानता है और मस्तिष्क के प्रभावित हिस्से की जानकारी दे सकता है।

एपिलेप्सी का इलाज

बच्चे की आयु, सीजर का प्रकार, मेडिकल हिस्ट्री, संपूर्ण स्वास्थ्य और स्थिति की गंभीरता को ध्यान में रखकर एपिलेप्सी के इलाज का निर्णय लिया जाता है। बच्चों में एपिलेप्सी के इलाज के लिए कुछ आम कोर्स इस प्रकार हैं: 

एंटी-एपिलेप्टिक दवाएं

सीजर की संख्या को कम करने और नियंत्रित करने के लिए, एंटी-एपिलेप्टिक ड्रग्स का इस्तेमाल किया जाता है। अक्सर ही ये दवाएं सीजर को नियंत्रित करने में कारगर होती हैं और आमतौर पर सीजर के रुकने के बाद कम से कम 2 वर्षों के लिए इन्हें जारी रखने की सलाह दी जाती है। 

इन दवाओं को डॉक्टर बच्चे की आयु, बीमारी का प्रकार और गंभीरता के अलावा अन्य कई बातों को ध्यान में रखकर प्रिसक्राइब करते हैं। 80% मामलों में, एंटी-एपिलेप्टिक दवाएं मरीज को सीजर से छुटकारा दिलाने में कारगर होती हैं। 

केटोजेनिक डाइट

जिन बच्चों पर दवाओं का असर नहीं होता है, उन्हें केटोजेनिक डाइट देने की सलाह दी जाती है। यह हाय-फैट, लो-कार्ब डाइट होता है, जो कि कार्ब्स के बजाय फैट को ब्रेकडाउन करता है, जिससे केटोसिस की स्थिति उत्पन्न होती है। इससे सीजर की संख्या में कमी देखी जाती है। 

सर्जरी

जब बच्चे पर दवाओं और खानपान में बदलाव से भी कोई असर नहीं होता है, तब सर्जरी की सलाह दी जा सकती है। अगर सीजर के कारण, बच्चे के मस्तिष्क में घाव बनने शुरू हो जाएं, तो तुरंत सर्जरी भी की जा सकती है। 

वेगस नर्व स्टिमुलेशन या वीएनएस थेरेपी

जिन बच्चों पर ऊपर दिए गए इलाज का असर नहीं होता है और अगर उनकी सर्जरी नहीं की जा सकती है, तो उन्हें वीएनएस थेरेपी की सलाह दी जा सकती है। यह थेरेपी आमतौर पर 12 साल से अधिक उम्र के बच्चों के लिए इस्तेमाल की जाती है। 

इस प्रक्रिया में एक इलेक्ट्रॉनिक पल्स जनरेटर को सर्जरी के माध्यम से छाती की दीवार में लगाया जाता है। यह उपकरण वेगस नर्व के द्वारा हर कुछ मिनटों पर मस्तिष्क को इलेक्ट्रिक इंपल्स भेजता है, ताकि सीजर को नियंत्रित किया जा सके। एक दौरे के दौरान, एक चुंबक को उपकरण पर पकड़कर इंपल्स को एक्टिवेट किया जा सकता है। 

चाइल्डहुड एपिलेप्सी से बच्चे के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?

एपिलेप्सी से ग्रस्त बच्चे विभिन्न गतिविधियों में हिस्सा ले सकते हैं और उन्हें ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। जिन मामलों में यह स्थिति उत्साह या तनाव से ट्रिगर हो जाती हो, उनमें चुनौतियां हो सकती हैं। एपिलेप्सी आपके बच्चे को कैसे प्रभावित कर सकता है, यह नीचे दिया गया है:

  • अगर एपिलेप्सी के कारण बच्चे की सीखने की क्षमता प्रभावित ना हुई हो, तो एपिलेप्सी से ग्रस्त बच्चे में दूसरे बच्चों की तरह ही क्षमताएं और समझ होती है।
  • एपिलेप्सी के कारण बच्चे में व्यवहार संबंधी समस्याएं हो सकती हैं और इनसे निपटने के लिए एक एपिलेप्सी काउंसलर से मदद लेने की सलाह दी जाती है। यहां पर कुछ टिप्स दिए गए हैं।
  • जहां एपिलेप्सी से ग्रस्त एक बच्चा ज्यादातर खेलकूद और गेम्स का आनंद ले सकता है, वहीं बच्चे के सीजर के आधार पर जरूरी सावधानी बरतना और बड़ों के द्वारा निगरानी रखना सबसे अच्छा होता है।

आपका बच्चा एपिलेप्सी के कारण क्या अनुभव कर सकता है?

जिस बच्चे के सीजर्स को नियंत्रित करना कठिन होता है, उसमें एनर्जी की कमी, थकावट और ध्यान और व्यवहार संबंधी समस्याओं का अनुभव हो सकता है। बच्चे की सामाजिक क्षमताएं और सीखने की क्षमता भी प्रभावित हो सकती हैं, जिसके कारण उसका आत्मसम्मान कम हो सकता है। जिन बच्चों के दौरे नियंत्रित हो सकते हैं, वे भी अक्सर भावनात्मक कठिनाई का सामना कर सकते हैं और उनमें व्यवहार और सीखने संबंधित समस्याएं हो सकती हैं। इन मामलों में परिवार को अपने बच्चे को भरपूर सहयोग करना और इन चुनौतियों से बाहर आने में मदद करना जरूरी है। 

बच्चे के बड़े होने पर एपिलेप्टिक सीजर में बदलाव

कुछ बच्चे बड़े होने पर ‘स्पॉन्टेनियस रिमिशन’ का अनुभव करते हैं, उनके दौरे रुक जाते हैं और वे एपिलेप्सी से बाहर आ जाते हैं। कुछ बच्चों को दौरे के प्रकार और संख्या में बदलाव दिख सकता है। जो बच्चे एंटी-एपिलेप्टिक दवाएं ले रहे होते हैं, उनमें सीजर की परेशानी दिखनी बंद हो सकती है और उन्हें दवा को बंद करने की सलाह दी जा सकती है। 

बच्चे को एपिलेप्टिक सीजर होने पर क्या करें और क्या न करें?

एपिलेप्सी का ध्यान रखना और नियंत्रित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इसलिए बच्चे को सीजर होने पर उसे संभालने के लिए आपका तैयार होना जरूरी है। यहां पर कुछ बिंदु दिए गए हैं, जो आपको इस दौरान मदद कर सकते हैं:

क्या करें:

  • बच्चे को सावधानी पूर्वक फर्श पर प्ले मैट पर नीचे लेटने में मदद करें और किसी तरह की चोट से बचने के लिए उसके आसपास मौजूद चीजों को हटा दें।
  • उल्टी या लार के कारण चोकिंग से बचने के लिए बच्चे को उसकी करवट से लिटा दें।
  • उसकी गर्दन के आसपास मौजूद कॉलर या टाई को ढीला कर दें, ताकि उसे सांस लेने में मदद मिले।
  • दौरे की अवधि को ट्रैक करें।
  • दौरे के बाद डॉक्टर को कॉल करें या अगर यह दौरा 3 मिनट से अधिक रहे, तो डॉक्टर को कॉल करें।
  • दौरे की इस पूरी अवधि के दौरान बच्चे के साथ रहें।

क्या न करें:

  • पैनिक न करें।
  • दौरे के समय बच्चे को हिलने से रोकने की या बच्चे के शरीर की गतिविधि को रोकने की कोशिश न करें।  इससे उसे चोट लग सकती है या उसे असुविधा हो सकती है।
  • बच्चे के मुंह में कुछ भी न डालें, क्योंकि इससे उसे चोक हो सकता है।
  • सीजर के दौरान चोकिंग से बचने के लिए, बच्चे को खाना, दवा या कोई भी तरल पदार्थ न दें।
  • एक टॉनिक-सीजर के दौरान, बच्चे का मुंह जबरदस्ती खोलने की कोशिश ना करें, क्योंकि इससे आपके बच्चे को चोट लग सकती है या उसकी हवा की नली ब्लॉक हो सकती है।

केटोजेनिक डाइट क्या है और इसमें क्या शामिल होते हैं?

केटोजेनिक डाइट हाय-फैट लो-कार्ब डाइट होता है, जिसमें लगभग 90% कैलोरी फैट से आती है। इस फैट को बर्न करके केटोन्स बनता है, जिसे दिल और दिमाग की फंक्शनिंग के लिए एनर्जी के वैकल्पिक स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। भोजन में कार्बोहाइड्रेट को कम करना बहुत ज्यादा जरूरी है, क्योंकि इससे डाइट की प्रोग्रेस को नुकसान हो सकता है। 

कीटो डाइट में फैट से भरपूर खाद्य सामग्री शामिल होते हैं, जैसे – बटर, चीज, बेकन एवं अन्य चीजें। आप इसमें सब्जियां, मीट, नट्स और बीज, एवोकाडो भी शामिल कर सकते हैं। 

केटोजेनिक डाइट को कब तक फॉलो किया जा सकता है?

एक केटोजेनिक डाइट को आमतौर पर 2 वर्षों के लिए प्रिसक्राइब किया जाता है। जिसके बाद एक डाइटिशियन की मदद से बच्चे को धीरे-धीरे सामान्य खानपान पर वापस लाया जा सकता है। 

बच्चे में एपिलेप्टिक सीजर से कैसे बचाव करें?

अपने बच्चे में सीजर्स के ट्रिगर्स को पहचानना बहुत जरूरी है और इन ट्रिगर्स से बचाव के लिए सावधानी बरतना बहुत जरूरी है। 

  • इस बात का ध्यान रखें, कि आपका बच्चा पर्याप्त आराम करें, क्योंकि नींद में कमी होने से भी दौरे पड़ सकते हैं।
  • स्केटबोर्ड का इस्तेमाल करते समय या राइडिंग करते समय हेलमेट जैसी सुरक्षात्मक चीजों का इस्तेमाल करें, ताकि सिर की चोट से बचाव हो सके।
  • अपने बच्चे को ध्यान से चलना और कदम रखना याद दिलाएं, ताकि वह गिरने से बच सके।
  • तेज रोशनी और तेज आवाज से बचें, क्योंकि इनसे दौरे ट्रिगर हो सकते हैं।
  • अपने बच्चे को हर दिन एक ही समय पर एंटी-सीजर दवा देना न भूलें।
  • अपने बच्चे को तनाव मैनेज करने की कुछ तकनीक सिखाएं, क्योंकि तनाव से भी सीजर ट्रिगर हो सकता है।

डॉक्टर से परामर्श कब लें?

अपने डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें अगर,

  • आपके बच्चे को दौरा आए, जो कि 3 मिनट से अधिक रहे। क्योंकि हो सकता है, कि बच्चा स्टेटस एपिलेप्टिकस नामक लंबे चलने वाले जानलेवा सीजर में प्रवेश कर चुका हो।
  • अगर आपका बच्चा 30 सेकंड से अधिक समय से सांस ना ले रहा हो।
  • दौरे के दौरान सिर में चोट लगने पर, क्योंकि इस प्रक्रिया के दौरान दिमाग में चोट लग सकती है और नुकसान हो सकता है।
  • लगभग एक घंटे से बच्चे से कोई प्रतिक्रिया न मिल रही हो और अगर आपका बच्चा कंफ्यूज हो, उसे बुखार हो या उल्टी और मतली हो रही हो।

याद रखने वाली बातें

अगर आपके बच्चे को एपिलेप्सी है, तो नीचे दी गई बातों को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है:

  • एपिलेप्सी को कोई अन्य बीमारी समझने की भूल हो सकती है, इसलिए सही जांच होनी बहुत जरूरी है।
  • हर बच्चे में मिर्गी के दौरे के प्रकार और गंभीरता अलग होती है। अपने बच्चे की स्थिति की विशेषताओं को हमेशा अपने ध्यान में रखें।
  • ज्यादातर सीजर्स को एंटी-एपिलेप्टिक दवाओं के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है और बच्चा एक सामान्य और स्वस्थ जीवन जी सकता है।

हर बच्चे में एपिलेप्सी अलग हो सकता है और कोई भी इलाज शुरू करने से पहले, अपने बच्चे की स्थिति की विशेषताओं को पूरी तरह से समझना बहुत जरूरी है। 

यह भी पढ़ें:

बच्चों में गलसुआ (मम्प्स) होना
बच्चों में बुखार के दौरे (फेब्राइल सीजर) होना
बच्चों में खाज (स्केबीज) की समस्या – कारण, लक्षण और इलाज

पूजा ठाकुर

Recent Posts

मिट्टी के खिलौने की कहानी | Clay Toys Story In Hindi

इस कहानी में एक कुम्हार के बारे में बताया गया है, जो गांव में मिट्टी…

2 days ago

अकबर-बीरबल की कहानी: हरा घोड़ा | Akbar And Birbal Story: The Green Horse Story In Hindi

हमेशा की तरह बादशाह अकबर और बीरबल की यह कहानी भी मनोरंजन से भरी हुई…

2 days ago

ब्यूटी और बीस्ट की कहानी l The Story Of Beauty And The Beast In Hindi

ब्यूटी और बीस्ट एक फ्रेंच परी कथा है जो 18वीं शताब्दी में गैब्रिएल-सुजैन बारबोट डी…

2 days ago

गौरैया और घमंडी हाथी की कहानी | The Story Of Sparrow And Proud Elephant In Hindi

यह कहानी एक गौरैया चिड़िया और उसके पति की है, जो शांति से अपना जीवन…

1 week ago

गर्मी के मौसम पर निबंध (Essay On Summer Season In Hindi)

गर्मी का मौसम साल का सबसे गर्म मौसम होता है। बच्चों को ये मौसम बेहद…

1 week ago

दो लालची बिल्ली और बंदर की कहानी | The Two Cats And A Monkey Story In Hindi

दो लालची बिल्ली और एक बंदर की कहानी इस बारे में है कि दो लोगों…

2 weeks ago