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बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर सभी पेरेंट्स काफी सतर्क रहते हैं। वे अपने बच्चे को किसी भी तरह की परेशानी में नहीं देख सकते। बच्चों की उचित डाइट को लेकर भी पेरेंट्स हमेशा सावधान रहते हैं। इसी के साथ उन्हें इस बात का भी विशेष ध्यान रखना पड़ता है कि कहीं बच्चे को किसी खाद्य पदार्थ से एलर्जी तो नहीं है और अगर बच्चे को एलर्जी हो रही है तो वह क्या खाने से हो रही है। यह आर्टिकल माता-पिता के लिए न केवल उन खाद्य पदार्थों की पहचान करने में मदद कर सकता है जिनसे उनके बच्चे को एलर्जी हो सकती है, बल्कि समय पर मेडिकल उपचार कैसे लिया जाए इसके बारे में भी मार्गदर्शन करने में उपयोगी साबित हो सकता है।
खाने से होने वाली एलर्जी का मतलब खाने की उन चीजों से हैं जो हमारे शरीर में जाकर नुकसान पहुंचाती हैं और हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली यानी इम्यून सिस्टम पर भी असर डालती हैं। जब हमारे शरीर में कोई ऐसा खाद्य पदार्थ जाता है, जिसे हमारा शरीर अपने लिए सही नहीं मानता तो शरीर का इम्यून सिस्टम उसकी फौरन पहचान कर लेता है। इसके जवाब में हमारे शरीर का इम्यूनिटी सिस्टम शरीर में एंटीबॉडी और हिस्टामाइन जैसे कुछ केमिकल पैदा करता है जो उन हानिकारक तत्वों का मुकाबला करते हैं। कभी-कभी गंभीर एलर्जी होने पर दवाइयों द्वारा एंटीबॉडी और अन्य केमिकल शरीर में डाले जाते हैं। बच्चों को एलर्जी से कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। उन्हें इससे पेट में दर्द से लेकर शरीर में खुजली की शिकायत भी हो सकती है। उनकी त्वचा पर रैशेस पड़ सकते हैं या उनकी नाक बह सकती है। एलर्जी होने पर बच्चों के शरीर के कई हिस्सों में सूजन या जलन की समस्या भी हो सकती है।
फूड एलर्जी शरीर में इम्यून सिस्टम की मदद से शरीर को उन खाद्य पदार्थों के प्रति बचाती है जो उनके लिए ठीक नहीं है या फिर उनके लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। यह एलर्जी बड़ों से ज्यादा बच्चों में आम होती है। इस एलर्जी का क्या कारण है इसका ठीक से अभी तक पता नहीं लगाया जा सका है। इसलिए पैरेंट्स को हमेशा बच्चों में फूड एलर्जी के संकेतों पर नजर रखनी चाहिए।
खाद्य पदार्थों को लेकर इन्टॉलरेंस का अर्थ उन खाद्य पदार्थों से हैं जिन्हें पचाने में हमारे शरीर को परेशानी का सामना करना पड़ता है। फूड इन्टॉलरेंस का मतलब फूड एलर्जी से बिल्कुल नहीं होता। एलर्जी होने पर कभी-कभी जान पर भी बन आती है। कई बार हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम इतने खतरनाक तरीके से प्रतिक्रिया करता है कि हमारी जान भी जा सकती है।
हम आपको कुछ ऐसी खाद्य सामग्री के बारे में बता रहे हैं जिनसे बच्चों को एलर्जी होती है। ये खाद्य पदार्थ इस प्रकार हैं –
मूंगफली से होने वाली एलर्जी को काफी खतरनाक माना जाता है क्योंकि इससे शरीर में एनाफिलेक्सिस नामक एलर्जी हो सकती है। एनाफिलेक्सिस से शरीर में एक साथ कई तरह की एलर्जी हो सकती है जिससे इंसान की मौत तक हो सकती है। जिस इंसान को मूंगफली से एलर्जी होती है उससे बहुत देखभाल करनी चाहिए। जरूरी नहीं कि उस इंसान को मूंगफली खाने के बाद ही एलर्जी हो। उस इंसान को इसकी धूल या मूंगफली के एक छोटे से दाने से भी भयानक एलर्जी हो सकती है।
लक्षण
इलाज
मूंगफली से होने वाली एलर्जी को ठीक करने या इस एलर्जी से बचने का सबसे अच्छा उपाय एपिनेफ्रीन का इंजेक्शन है। डॉक्टर की राय लेकर इसे समय-समय पर लिया जाना चाहिए। इसी के साथ आप इस बात का भी ध्यान रखें कि बच्चा समय-समय पर एपिनेफ्रीन ले रहा है या नहीं।
बचाव
बाजार से फूड पैकेट खरीदते वक्त पैकेट को ध्यान से पढ़ें और यह देखें कि कहीं उसमें मूंगफली का नाम तो नहीं लिखा है। अगर उस फूड पैकेट में मूंगफली मिली है तो इसे बच्चे को खाने के लिए न दें।
ट्री नट्स का अर्थ उन मेवों से है जो पेड़ों पर उगते हैं। ट्री नट्स में काजू, बादाम, ब्राजील नट्स और हेज़लनट्स जैसे मेवे शामिल हैं। जैसे मूंगफली से एनाफिलेक्सिस एलर्जी हो सकती है ठीक उसी तरह से इन मेवों का सेवन करने से बच्चों में भी एनाफिलेक्सिस एलर्जी हो सकती है। पेरेंट्स को इस बात को गंभीरता से लेना चाहिए।
लक्षण
इलाज
अगर आप बच्चे में ट्री नट्स का सेवन करने के बाद किसी भी एलर्जी को देखती हैं तो फौरन डॉक्टर्स से संपर्क करें।
बचाव
अगर आपके बच्चे को ट्री नट्स से एलर्जी की शिकायत है तो उसे ऐसी कोई भी खाने-पीने की चीज न दें जिसमें ट्री नट्स का इस्तेमाल किया गया हो। इसी के साथ ट्री नट्स से एलर्जी होने वाले बच्चों को मूंगफली का सेवन भी नहीं करवाना चाहिए। साथ ही बच्चों को यह भी सिखाया जाना चाहिए कि वह खाने-पीने की किसी भी चीज को लेने से पहले उसका लेबल पढ़ लें कि कहीं उसमें ट्री नट्स का इस्तेमाल तो नहीं किया गया है, अगर बच्चा अभी छोटा है तो आपको इस बात का ध्यान रखना चहिए। अगर आप अपने बच्चों को स्कूल के किसी प्रोग्राम में या पिकनिक पर भेजें तो आयोजकों को इस बारे में पहले ही जानकारी दे दें कि आपके बच्चे को किस-किस चीज से एलर्जी है। साबुन या क्रीम खरीदते समय भी इस बात का ध्यान रखें कि उसमें ट्री नट्स का अर्क न मिला हो।
कई पेरेंट्स अपने बच्चे की डाइट में दूध को एक खास महत्व देते हैं लेकिन शायद वे यह नहीं जानते कि दूध से भी एक तरह की एलर्जी हो सकती है। कई सारे बच्चे ऐसे होते हैं जिन्हें दूध से एलर्जी होती है। काफी बार लैक्टोज इंटॉलरेंस को लोग मिल्क एलर्जी समझने की गलती करते हैं लेकिन ये दोनों चीज अलग हैं। लैक्टोज इंटॉलरेंस लैक्टेज की कमी की वजह से होता है। ये वो एंजाइम होता है जो बच्चे के शरीर में लैक्टोज को मिल्क में ब्रेकडाउन करने का काम करता है। और मिल्क एलर्जी तब होती है जब बच्चे को दूध से रिएक्शन होता है। ज्यादातर मामलों में तीन साल की उम्र होने तक बच्चों को दूध से होने वाली एलर्जी ठीक हो जाती है।
लक्षण
इलाज
ज्यादातर बच्चों में समय के साथ ये एलर्जी ठीक हो जाती है। आप अपने बच्चों को दूध और डेयरी की चीजों का सेवन न करने दें। एपिनेफ्रीन इंजेक्शन देकर भी इसका इलाज किया जा सकता है।
बचाव
बच्चों को चॉकलेट खाना काफी पसंद होता है लेकिन ज्यादातर चॉकलेट में दूध मिला हुआ होता है। ऐसे में आप अपने बच्चों को डार्क चॉकलेट खाने के लिए दें। डेयरी मुक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए जिसमें डेयरी के प्रोडक्ट इस्तेमाल न किए गए हों।
अगर आपके बच्चे को टोफू, सोया दूध या सोयाबीन का सेवन करने के बाद बेचैनी होती है तो हो सकता है कि उसे सोया और उससे संबंधित खाद्य पदार्थों से एलर्जी हो। माना जाता है कि बच्चों में सोया से एलर्जी 10 साल की उम्र तक हो सकती है।
लक्षण
इलाज
अभी तक सोया से संबंधित एलर्जी का कोई इलाज नहीं मिल पाया है लेकिन एपिनेफ्रीन के इंजेक्शन से इस एलर्जी में आराम मिल सकता है।
बचाव
सोयाबीन से होने वाली एलर्जी से बचने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि सोयाबीन या सोयाबीन एक्सट्रेक्ट से बनने वाले किसी भी तरह का आहार न लिया जाए। सोया एक्सट्रेक्ट का इस्तेमाल कई तरह की खाने-पीने की चीजों में किया जाता है जैसे चिप्स, बेबी फूड और डिब्बे में बंद सूप। ऐसे में मार्केट से किसी भी तरह का फूड पैकेट खरीदते हुए उसका लेबल अच्छे से पढ़ लें और यही आदत अपने बच्चों में डालें। इसके अलावा विटामिन और मिनरल सप्लीमेंट में भी सोया होता है, इसलिए इन्हें बच्चों को देने से पहले अपने डॉक्टर से पूछ लें।
गेहूं का इस्तेमाल कई सारे खाद्य पदार्थों में किया जाता है। हम हर दिन कई चीजें ऐसी खाते हैं जिसमें गेहूं का इस्तेमाल किया जाता है। सीरियल से लेकर ब्रेड,बिस्कुट और केक तक में गेहूं का इस्तेमाल किया जाता है। गेहूं में ग्लूटेन नाम का प्रोटीन पाया जाता है जिससे शरीर में एलर्जी हो सकती है।
लक्षण
इलाज
गेहूं युक्त खाद्य पदार्थों को खाने से बचना चाहिए। कंट्रोल डाइट लेना चाहिए। बच्चे को जरूरत पड़ने पर एपिनेफ्रीन का इस्तेमाल करना आना चाहिए जिससे कभी अचानक एलर्जी होने पर वह इसका इस्तेमाल कर सके और इसे हमेशा अपने साथ रखें।
बचाव
जिन खाद्य पदार्थों में गेहूं नहीं होता है उनका इस्तेमाल ज्यादा करना चाहिए। मार्केट में कई कंपनियों के बिस्कुट, ब्रेड और केक मौजूद हैं जिनमें गेहूं का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
अंडा खाना वैसे तो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है लेकिन इससे एलर्जी भी हो जाती है। अंडे की सफेदी में मौजूद प्रोटीन, एलर्जी का कारण बन सकता है। 70 प्रतिशत से ज्यादा बच्चों की यह एलर्जी, समय के साथ खुद सही हो जाती है।
लक्षण
इलाज
हमेशा अपने पास एंटीहिस्टामाइन और एपिनेफ्रीन रखे जिससे जरूरत पड़ने पर आप इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर एलर्जी के लक्षण हल्के हैं तो आप एंटीहिस्टामाइन का इस्तेमाल कर सकते हैं तो वहीं अगर एलर्जी के लक्षण गंभीर हैं तो आप एपिनेफ्रीन का इस्तेमाल कर सकते हैं।
बचाव
अंडे और अंडे से संबंधित खाने-पीने की चीजों का सेवन करने से बचना चाहिए। मार्केट से ब्रेड,केक या किसी भी तरह का फूड पैकेट खरीदते समय उसका लेबल सही से पढ़ना चाहिए। कुछ वैक्सीन में अंडे से संबंधित प्रोटीन होते हैं, ऐसे में बच्चे को वैक्सीन लगवाते समय सावधानी बरतते हुए डॉक्टर को बताएं।
झींगा, केकड़ा और अन्य समान जीवों को शेलफिश के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
लक्षण
इलाज
इस एलर्जी के इलाज की खोज अभी तक नहीं हो पाई है, इसलिए बचाव करना ही बेहतर है।
बचाव
इस एलर्जी का अभी तक उपचार नहीं मिला है। ऐसे में यह एलर्जी जिंदगी भर तक बनी रह सकती है। ऐसे में इस एलर्जी से बचना ही सही है।
मछली का सेवन करना कई तरह से फायदेमंद होता है लेकिन कई लोगों को मछली से भी एलर्जी हो सकती है। इस एलर्जी की वजह से त्वचा पर चकत्ते, सिरदर्द और अस्थमा की समस्या पैदा हो सकती है। कभी-कभी बच्चों को सिर्फ कुछ तरह की मछलियों से ही एलर्जी हो जाती है।
लक्षण
इलाज
इस एलर्जी से बचने के लिए हमेशा अपना पास एंटीहिस्टामाइन और एपिनेफ्रीन रखे। इस एलर्जी में सांस लेने से संबंधित समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
बचाव
खाद्य पदार्थों में मछली का तेल है या नहीं इसका ध्यान रखें। अगर किसी पदार्थ में फिश ऑयल का इस्तेमाल हुआ है तो यह बच्चे के लिए सही नहीं है। मछली खाने और मछली के तेल से बने भोजन का सेवन करने से भी आपको एलर्जी हो सकती है। खाद्य पदार्थों को खरीदते हुए भी पैकेट को अच्छे से पढ़ लें कि उसमें मछली के तेल का इस्तेमाल किया गया है या नहीं।
विश्व के कई हिस्सों में तिल को खाद्य पदार्थों में इस्तेमाल किया जाता है। तिल से होने वाली एलर्जी बच्चों के लिए खतरनाक हो सकती है। बच्चों को तिल से संबंधित खाद्य पदार्थ देने से पहले आपको सावधान रहना चाहिए।
लक्षण
इलाज
अपने पास हमेशा एंटीहिस्टामाइन और एपिनेफ्रीन रखें। आपको इसे खुद से लगाना भी आना चाहिए।
बचाव
कुछ होटल तिल के तेल से खास तरीके का भोजन तैयार करते हैं। चाइनीज और साउथ-ईस्ट एशियाई देशों के खाने में इसका काफी इस्तेमाल होता है। ऐसे में आप वेटर से पहले ही अपने बच्चे की समस्या के बारे में बता दे।
कुछ खाद्य पदार्थों की गंभीर प्रतिक्रिया को एनाफिलेक्सिस कहा जाता है। इसमें बच्चे को सांस लेने और निगलने में समस्या का सामना करना पड़ता है। ऐसा होने पर आपको फौरन डॉक्टर से बात करनी चाहिए। इसके लक्षण इस प्रकार हैं:-
अगर आपके बच्चे को एनाफिलेक्सिस का दौरा पड़ रहा है और आपके पास एपिनेफ्रीन इंजेक्टर है तो आप फौरन उसे एपिनेफ्रीन का इंजेक्शन लगाएं। शांत रहें और अपने बच्चे को जमीन पर बिना किसी सहारे के लिटाएं। तकिए का इस्तेमाल करने से बच्चे को सांस लेने में परेशानी हो सकती है। अगर उसे सांस लेने में दिक्कत आ रही है तो इसका मतलब उसके गले में सूजन आ गई है। जब तक मदद न आ जाए घबराएं नहीं। उसे किसी भी तरह से फौरन डॉक्टर के पास ले जाएं। इस दौरान उसे कोई भी दवाई मुँह के जरिए न दें क्योंकि गले में सूजन होने से उसे दवाई को निगलने में दिक्कत होगी।
शांत रहें और उसके पैरों को तकिए की मदद से ऊँचा रखें और कंबल से ढककर गर्माहट दें। आपको सीपीआर देने की जरूरत पड़ सकती है ताकि आप बच्चे के ब्लड सर्कुलेशन को नॉर्मल कर सकें। खुद को ट्रेन करें कि बच्चों को सीपीआर कैसे दिया जाता है, क्योंकि इसके स्टेप अलग हो सकते हैं।
अपने बच्चे को फूड एलर्जी से बचाने के लिए आप इन बातों का खास खयाल रखिए:
हर पेरेंट्स के मन में एलर्जी को लेकर कुछ सवाल होते ही हैं, जो इस प्रकार यहाँ दिए गए हैं –
कुछ एलर्जी जिंदगी भर बनी रहती हैं, लेकिन कुछ एलर्जी समय के साथ चली जाती हैं। ट्री नट्स, मछली, शेलफिश और मूंगफली से होने वाली एलर्जी जिंदगी भर बनी रह सकती हैं।
अगर माता-पिता में से किसी एक को फूड एलर्जी है, तो 50 प्रतिशत संभावना है कि बच्चे को भी एलर्जी हो सकती है। जरूरी नहीं कि जिस चीज से माता या पिता में से किसी एक को एलर्जी हो उस चीज से बच्चे को भी एलर्जी हो। बच्चे को अगर आनुवंशिकता में एलर्जी मिली है तो उस एलर्जी का रूप अलग हो सकता है। जैसे मान लीजिए पिता को मछली से एलर्जी है तो जरूरी नहीं कि बेटे को भी मछली से ही एलर्जी हो। अगर बच्चे के माता-पिता दोनों को ही फूड एलर्जी है तो इस बात की 75 प्रतिशत संभावना है कि बच्चे को भी फूड एलर्जी हो सकती है।
फूड एलर्जी की समस्या लगातार बढ़ रही है। यह भी सच है कि फूड एलर्जी वाले लोगों के पास भी खाने के विकल्प लगातार बढ़ रहे हैं। अगर आपके बच्चे को फूड एलर्जी है तो कुछ सावधानियां बरते जाने पर आपका बच्चा सुरक्षित रहेगा।
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