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बच्चे को कोई छोटी सी तकलीफ होने पर भी पेरेंट्स बहुत ज्यादा परेशान हो जाते हैं। यदि बच्चे को कोई ऐसी बीमारी हो जाए जिसका इलाज नहीं है तो इसे मैनेज करना बहुत कठिन है। ऐसे कई रोग और वायरस हैं जो माँ से बच्चे तक पहुँच सकते हैं और इन समस्याओं से निजात पाने के लिए बहुत सारे प्रयास करने पड़ते हैं। कई गंभीर रोगों में से एक रोग एचआईवी एड्स भी है जो बच्चों को कई अलग-अलग तरीकों से हो सकता है। बच्चों में यह इन्फेक्शन माँ से, इन्फेक्टेड खून से, इन्फेक्टेड सुई आदि से फैल सकता है। बच्चों को इस रोग से बचाने के लिए कई तरीकों का उपयोग किया जाता है पर फिर भी साल 2016 में 1.5 लाख से भी ज्यादा बच्चे एचआईवी से प्रभावित हुए थे।
1980 में ह्यूमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस एक पैन-ग्लोबल महामारी के रूप में बदल गया था। शुरूआत में यह माना जाता था कि यह वायरस बंदरों से मनुष्यों में आया है और अमेरिका से यह दूसरे देशों तक फैल गया।
एचआईवी और एड्स में बहुत ज्यादा कन्फ्यूजन होता है जिसे अक्सर एक दूसरे से बदल भी दिया जाता है। ये दोनों समस्याएं एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं पर एक जैसी नहीं है। एचआईवी शरीर में सीडी4 सेल्स को प्रभावित करता है जो एक इम्यून सेल का ही प्रकार है। यह इम्युनिटी सेल्स रेप्लिकेट होने के लिए बाद में एचआईवी के द्वारा उपयोग किए जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप एचआईवी सेल बढ़ते हैं और इम्युनिटी सेल कम होने लगते हैं। यह प्रोसेस पूरा होने में समय लगता है और तब बच्चे में इसके लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं। इसमें शरीर छोटी-छोटी समस्याओं से भी प्रभावित होता है। यहाँ तक कि सर्दी व जुकाम की समस्या भी अधिक होती है क्योंकि जुकाम से लड़ने के लिए पर्याप्त सेल नहीं होते हैं। जब यह स्तर पूरा हो जाता है तो इसे एड्स का नाम दिया जाता है।
बच्चों में कई तरीकों से एचआईवी का वायरस पहुँच सकता है। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं, आइए जानें;
बच्चों में एचआईवी के ज्यादातर मामले गर्भावस्था के दौरान माँ में यह वायरस ट्रांसमिट होने से हैं। यह वायरस बच्चों में प्लेसेंटा, जन्म के दौरान या ब्रेस्टमिल्क द्वारा जाता है।
यदि बच्चे का एक्सीडेंट हुआ है या उसे सर्जरी कराने की जरूरत है तो हॉस्पिटल में उपलब्ध खून से उसमें भी एचआईवी वायरस जा सकता है। वैसे तो ज्यादातर हॉस्पिटल इस बात का पूरा खयाल रखते हैं पर कई मामलों में ब्लड ड्राइव कैंपेन्स में किसी संक्रमित व्यक्ति से यह खून आ सकता है।
जिन बच्चों को इंजेक्शन के माध्यम से दवा दी जाती है उनमें एचआईवी होने का खतरा रहता है। यह इंजेक्शन शेयर करने से होता है जिसकी वजह से वायरस ब्लड में जाता है।
एचआईवी के लक्षण आयु के अनुसार दिखाई देते हैं और इसलिए इन्हें छोटे व बड़े बच्चों में अलग-अलग तरीकों से बताया जा सकता है, आइए जानें;
हर बच्चे में अलग-अलग लक्षण दिखाई दे सकते हैं, आइए जानें;
बड़े बच्चों में भी समान ही लक्षण होते हैं पर कुछ अन्य लक्षण भी हैं, जैसे
इसका डायग्नोसिस कई तरीकों से किया जाता है। क्योंकि एचआईवी इन्फेक्शन माँ से बच्चे में हो सकता है इसलिए गर्भवती महिलाओं को एचआईवी की जांच कराने की सलाह दी जाती है। कुछ देशों में यह कराना बहुत जरूरी है पर अन्य देशों में ऑप्शनल है। जिन महिलाओं को एड्स होता है उन्हें ऑब्जर्वेशन में रखा जाता है और नवजात शिशु की जांच की जाती है। एचआईवी पॉजिटिव होने पर इसका डायग्नोसिस कैसे होता है, आइए जानें;
जो टेस्ट बड़ों में किए जाते हैं वो बच्चों के लिए काम नहीं आते हैं। यह पैसिव एचआईवी ऐंटीबॉडीज की वजह से होता है जो माँ से बच्चे में पहुँचते हैं। इसमें डॉक्टर एचआईवी डीएनए पीसीआर नामक टेस्ट करते हैं जिससे एक दो दिनों में इन्फेक्शन का पता चल जाता है। यह टेस्ट 18 महीने के कम उम्र के बच्चों में किया जाता है।
बड़े बच्चों में भी बड़ों के समान ही टेस्ट होता है। शरीर में एचआईवी एंटीबॉडी की जांच के लिए ईएलआइएसए टेस्ट किया जाता है। इसमें एक फॉलो-अप वेस्टर्न टेस्ट भी होता है जिससे इन्फेक्शन का पता लगता है और फॉल्स पॉजिटिव रिजल्ट के बारे में भी पता किया जाता है। बहुत ज्यादा गंभीर एचआईवी इन्फेक्शन का पता करने के लिए कई बार एचआइवी टेस्ट किए जाते हैं पर वेस्टर्न ब्लॉट टेस्ट के जरिए इसका भी फॉलो अप किया जाता है।
एचआईवी का ट्रीटमेंट कैसे किया जाता है, आइए जानें;
एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी या एआरटी की मदद से एचआईवी का ट्रीटमेंट होता है। ये ड्रग्स शरीर में एचआईवी को फैलने से रोकते हैं और सीडी4 की मात्रा को बनाए रखते हैं। यद्यपि इस वायरस को खत्म नहीं किया जा सकता है पर यह रोग को बढ़ने से रोकता है। एआरटी दो से ज्यादा ड्रग्स के कॉम्बिनेशन है जिससे दवा प्रतिरोध की संभावना नहीं है और इसी को एआरटी कॉम्बिनेशन कहते हैं।
इन्फेक्शन के साथ बढ़ना आसान नहीं है और इसके लिए बहुत सारी चीजें करनी पड़ती हैं, आइए जानें;
यह आप पर निर्भर करता है कि आप अपने बच्चे की समस्या के बारे में किसे बताना चाहते हैं। यह समझा जा सकता है कि सामाजिक कलंक के कारण आपको उन्हें यह बताने में संकोच होगा। आप इसके बारे में परिवार, डॉक्टर और डेंटिस्ट को बताएं। स्टडीज के अनुसार स्कूल जाते 53% एचआईवी पॉजिटिव बच्चों की समस्या के बारे में नहीं बताया जाता है।
बच्चे के बारे में अन्य लोगों को बताने से उन्हें कोई भी खतरा नहीं होगा। साथ बैठने और साथ खाने से यह रोग नहीं फैलता है। हालांकि बच्चे व अन्य लोगों की सुरक्षा के लिए कुछ चीजों पर ध्यान देना जरूरी है, आइए जानें;
यदि शरीर में एक बार एचआईवी का वायरस आ गया तो वह नष्ट नहीं होता है। हालांकि आजकल दवाओं की मदद से लोगों की मृत्यु नहीं होती है। कई एचआईवी पॉजिटिव बच्चों का बचपन नॉर्मल होता है और वे लंबी आयु तक भी जीते हैं। बच्चों में एचआईवी पॉजिटव को मैनेज करने के कुछ टिप्स जानने के लिए यहाँ क्लिक करें;
कई मामलों में जन्म के दौरान माँ से बच्चे में इन्फेक्शन होता है। इससे बचाव के लिए निम्नलिखित टिप्स पर ध्यान दें;
एचआईवी पॉजिटिव होने की वजह से बच्चे सदमे में होते हैं और इसके प्रभाव को कम करना बहुत जरूरी है। 2010 से 2015 तक एचआईवी के लगभग 10 लाख मामले सामने आए हैं।
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