बच्चों में हाइपोथायरायडिज्म: कारण, लक्षण और उपचार

बच्चों में हाइपोथायरायडिज्म: कारण, लक्षण और उपचार

थायराइड ग्लैंड मानव शरीर की सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथियों में से एक है और संपूर्ण विकास में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बच्चे के विकास के लिए थायराइड ग्रंथि का अच्छी तरह से काम करना जरूरी है और थायराइड में कमी होने पर कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। थायराइड की बीमारी एक आम समस्या है और किसी भी उम्र के लोग, चाहे हो या बड़े, इस बीमारी के शिकार हो सकते हैं। इस लेख में हम बच्चों में हाइपोथायरायडिज्म के बारे में विस्तार से बता रहे हैं। इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए लेख को आगे पढ़ें। 

थायराइड क्या है?

थायराइड तितली के आकार की एक नलिका रहित ग्रंथि है, जो कि गले में स्थित होती है। यह ग्रंथि थायरोक्सिन और ट्रायायोडोथेरनाइन जैसे हार्मोन रिलीज करती है, जो कि उचित विकास और बढ़त, शरीर के वजन को नियंत्रित करने के लिए, सामान्य हृदय गति को बनाए रखने और शरीर के तापमान को रेगुलेट करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। 

थायराइड की बीमारी कितने प्रकार की होती है?

कभी-कभी थायराइड ग्रंथि सही तरह से काम नहीं करती है, जिससे हार्मोन के उत्पादन में असंतुलन आ जाता है। जिससे थायराइड की बीमारी होती है। थायराइड के बीमारी मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है: 

1. हाइपोथायरायडिज्म

खून में थायराइड हार्मोन में गिरावट आने से यह बीमारी होती है। हाइपोथायरायडिज्म पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक प्रभावित करता है और यह उम्र के साथ बिगड़ सकता है। 

2. हाइपोथायरायडिज्म

थायराइड ग्रंथि अधिक सक्रिय होने के कारण खून में थायराइड हार्मोन अधिक हो जाता है, जिससे यह बीमारी होती है। 

हाइपोथायरायडिज्म क्या है?

जैसा कि पहले बताया गया है, हाइपोथायरायडिज्म एक एंडोक्राइन बीमारी है, जिसमें थायराइड ग्लैंड की क्रियाशीलता कम हो जाती है और शरीर के उचित फंक्शनिंग के लिए जरूरी हार्मोन को यह पर्याप्त मात्रा में पैदा नहीं करता है। 

हाइपोथायरायडिज्म के प्रकार

इस बीमारी को दो प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है, जो कि इस प्रकार हैं: 

1. जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म

जब जन्म से पहले थायराइड ग्लैंड पूरी तरह से विकसित नहीं होता है या अच्छी तरह से काम नहीं करता है, तब थायराइड की बीमारी होती है। यह एक आम समस्या है, जिसे नवजात शिशु की स्क्रीनिंग प्रक्रिया के दौरान पहचाना जा सकता है। डॉक्टर इस बीमारी के इलाज की अवधि का निर्धारण करते हैं, जो कि बच्चे के स्वास्थ्य और परिवार में इस बीमारी के इतिहास जैसी बातों पर निर्भर करता है। 

2. ऑटोइम्यून हाइपोथायरायडिज्म: क्रॉनिक लिम्फोसाईटिक थायरायडाइटिस

यह बीमारी एक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर के कारण होती है, जिसे क्रॉनिक लिम्फोसाईटिक थायरायडाइटिस के नाम से जाना जाता है और यह तब होता है जब बच्चे के थायराइड ग्लैंड पर इम्यून सिस्टम हमला कर देता है। इसके कारण थायराइड ग्लैंड में खराबी आ जाती है और उसकी कार्यक्षमता कम हो जाती है। 

3. आयट्रोजेनिक हाइपोथायरायडिज्म

बच्चों में जब थायराइड ग्लैंड को सर्जरी के द्वारा निकाल दिया जाता है या दवा देकर उसे नष्ट कर दिया जाता है, तब थायराइड ग्रंथि थायराइड हार्मोन का उत्पादन बंद कर देती है, तब यह बीमारी देखी जाती है। 

4. सेंट्रल हाइपोथायरायडिज्म

यह एक ऐसी बीमारी है, जिसमें मस्तिष्क थायराइड स्टिमुलेटिंग हार्मोन (थायराइड ग्लैंड को काम करने का संदेश देने वाला सिग्नल) नहीं बनाता है। हाइपोथैलेमस या पिट्यूटरी ग्लैंड का असामान्य विकास सेंट्रल हाइपोथायरायडिज्म का कारण बन सकता है। 

हाइपोथायरायडिज्म की जांच किसे करवानी चाहिए

निम्नलिखित मामलों में थायराइड की जांच करानी चाहिए:

  • जो बच्चे न्यूबॉर्न स्क्रीनिंग में थायराइड टेस्ट में फेल हो जाते हैं
  • जिन बच्चों में लीनियर विकास खराब होता है
  • जिन बच्चों को ब्रेन इंजरी या असामान्य विकास का इतिहास रहा हो
  • जो बच्चे कैंसर के इलाज के तौर पर क्रेनियल इरेडिएशन से गुजरे हों 
  • जिन बच्चों में हाइपोथायरायडिज्म के लक्षण दिखते हों, जैसे थकान या वजन का बढ़ना
  • गर्भवती महिलाएं, जिनके परिवार में थायराइड की बीमारी का इतिहास हो

बच्चों में हाइपोथायरायडिज्म के कारण

बच्चों में यह स्थिति जन्मजात हो सकती है या फिर जन्म के बाद दिख सकती है। यह ऑटोइम्यून बीमारियों, रेडिएशन थेरेपी, थायराइड ग्लैंड हटाने या दवाओं के साइड इफेक्ट से भी दिख सकती है। हालांकि ऐसे मामले दुर्लभ है, लेकिन यह बीमारी हायपर थायराइड के इलाज के कारण भी हो सकती है। 

बच्चों में हाइपोथायरायडिज्म के संकेत और लक्षण

इस बीमारी के लक्षण आमतौर पर मामूली होते हैं और ये अन्य बीमारियों के लक्षण जैसे लग सकते हैं। इसका कोई खास लक्षण न होने के कारण कई वर्षों तक यह बीमारी छिपी हुए भी रह जाती है। 

यहां पर हाइपोथायरायडिज्म के लक्षण दिए गए हैं:

  • थकान
  • वजन का बढ़ना
  • प्रतिक्रिया का समय धीमा होना
  • कब्ज 
  • बार-बार सर्दी जुकाम होना
  • फेशियल एक्सप्रेशन का मद्धम पड़ना 
  • चेहरे में सूजन
  • पलकों में थकान और ढीलापन 
  • रूखे बेजान बाल 
  • हृदय गति और पल्स रेट का धीमा होना
  • मांसपेशियों में बार-बार होने वाली जकड़न
  • खराब विकास

चूंकि ये लक्षण और भी कई तरह की बीमारियों में नजर आते हैं, ऐसे में हाइपोथायरायडिज्म के इलाज को चुनने से पहले बच्चों में इन लक्षणों के वास्तविक कारण का पता लगाने के लिए डॉक्टर से परामर्श लेना जरूरी है। 

पहचान और जांच

यहां पर बच्चों में हाइपोथायरायडिज्म की पहचान के लिए उपलब्ध कुछ टेस्ट दिए गए हैं:

  • थायराइड फंक्शनिंग स्क्रीनिंग
  • एंटी थायराइड एंटीबॉडी लेवल स्टडीज
  • न्यूक्लियर मेडिसिन अपडेट एंड स्कैन
  • थायराइड अल्ट्रासाउंड

पहचान और जांच

उपचार 

बच्चे में इस बीमारी को ठीक करना बहुत जरूरी है, क्योंकि इससे बच्चे का विकास बाधित हो सकता है और उसके जीवन की गुणवत्ता पर इसका बुरा प्रभाव पड़ सकता है। 

हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी के द्वारा हाइपोथायरायडिज्म का इलाज संभव है, जिसमें लेवोथायरोक्सिन देकर थायराइड हार्मोन की कमी को पूरा किया जाता है। यह एक ऐसा केमिकल है, जो कि थायरोक्सिन की तरह ही होता है। 

कुछ मामलों में इस स्थिति को ठीक करने के लिए डॉक्टर दवाएं भी दे सकते हैं। 

हाइपोथायरायडिज्म का इलाज कब करना चाहिए?

जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म की स्थिति में बच्चे के जन्म के बाद तुरंत इलाज शुरू किया जाना चाहिए और उसे करीब से मॉनिटर करना चाहिए। कंजेनिटल हाइपोथायरायडिज्म के ज्यादातर मामलों में आजीवन हार्मोन रिप्लेसमेंट की जरूरत होती है। 

एक्वायर्ड हाइपोथायरायडिज्म के मामलों में इलाज की शुरुआत और दवा की जरूरत इस स्थिति से ग्रस्त बच्चे की आयु और वजन पर निर्भर करता है। 

मेडिकल उपचार का कोर्स

अगर बच्चे में इस समस्या की पहचान होती है, तो दवा के रूप में एल-थायरोक्सिन दिया जाता है। यहां पर रेकमेंडेड खुराक की एक गाइडलाइन दी गई है। याद रखें, बच्चे को दवा देने से पहले डॉक्टर से परामर्श लेना जरूरी है। 

मेडिकल उपचार का कोर्स

1. विकसित हाइपोथायरायडिज्म के लिए

विकसित हाइपोथायरायडिज्म के लिए एल-थायरोक्सिन देने का कोर्स इस प्रकार है:

  • 1 से 3 वर्ष के आयु वर्ग के लिए: 4 से 6 माइक्रोग्राम/किलोग्राम दिन में एक बार
  • 3 से 10 वर्ष के आयु वर्ग के लिए: 3 से 5 माइक्रोग्राम/किलोग्राम दिन में एक बार
  • 10 से 16 वर्ष के आयु वर्ग के लिए: 2 से 4 माइक्रोग्राम/किलोग्राम दिन में एक बार
  • 17 वर्ष से अधिक के आयु वर्ग के लिए: 1.6 माइक्रोग्राम/किलोग्राम दिन में एक बार

2. जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म के लिए

जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म के इलाज के लिए थायरोक्सिन की खुराक 10 से 15 माइक्रोग्राम/किलोग्राम दिन में एक बार दी जानी चाहिए। दवा को तुरंत शुरू कर देना चाहिए और इस पर करीब से नजर रखनी चाहिए। 

बच्चे में हाइपोथायरायडिज्म डिसऑर्डर को मॉनिटर करना

इस बीमारी से ग्रस्त बच्चों पर उनके जीवन के शुरुआती कुछ वर्षों के दौरान लगातार नजर रखना जरूरी है। इस बीमारी की मॉनिटरिंग फ्रीक्वेंसी इस प्रकार है:

  • जन्म के बाद शुरुआती 6 महीने: बच्चे को हर 1 से 2 महीने में मॉनिटर करना
  • जन्म के बाद 6 महीने से 3 वर्ष के बीच: हर 3 से 4 महीनों में मॉनिटर करना
  • 3 साल की उम्र से विकास के अंत तक: हर 6 से 12 महीनों में मॉनिटर करना

हाइपोथायरायडिज्म और मोटापा

थायराइड हार्मोन बॉडी कंपोजिशन से करीबी रूप से संबंधित होते हैं, क्योंकि यह बेसल मेटाबॉलिज्म, लिपिड मेटाबॉलिज्म, ग्लूकोज मेटाबॉलिज्म, फूड इनटेक और फैट ऑक्सीडेशन को रेगुलेट करते हैं। थायराइड के फंक्शन में खराबी आने से शरीर के वजन और कंपोजिशन में बदलाव हो सकते हैं। 

यह बीमारी थर्मोजेनेसिस की कमी, मेटाबॉलिक रेट की कमी, बॉडी मास इंडेक्स की अधिकता और मोटापा का कारण बनती है। सबक्लिनिकल हाइपोथायरायडिज्म भी शरीर के वजन में भारी बदलाव ला सकती है, जिसके कारण मोटापे का खतरा बढ़ जाता है। 

पेरेंट्स के लिए चुनौती

बच्चे में हाइपोथायरायडिज्म के प्रभाव गंभीर हो सकते हैं और ये जीवन भी रह सकते हैं। इस बीमारी में माता-पिता के लिए गंभीर चुनौती होती है, क्योंकि उन्हें बच्चे की विकास पर लगातार नजर रखनी पड़ती है और इस बीमारी और इसके लक्षणों का सही समय पर प्रभावी इलाज कराना पड़ता है। 

इसका इलाज एक धीमी प्रक्रिया होती है, जो कि जीवन भर भी चल सकती है। ऐसी स्थितियों में पेरेंट्स के लिए यह बहुत जरूरी हो जाता है, कि वे पूरे समय धैर्य बनाए रखें और अपने बच्चे को सहयोग करते रहें। 

हाइपोथायरायडिज्म एक जटिल बीमारी है, जो सीधे तौर पर बच्चे के विकास और बढ़त को प्रभावित करती है। तुरंत जरूरी इलाज करना और इसे लगातार बनाए रखना बहुत जरूरी है, ताकि बच्चे एक सामान्य जीवन जी सकें। उचित दवाओं और लगातार निगरानी से इस बीमारी का प्रभाव बड़े पैमाने पर कम हो सकता है। 

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