बड़े बच्चे (5-8 वर्ष)

बच्चों में इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम

माता-पिता होने के नाते आप अपने बच्चे को स्वस्थ खाना खिलाने का हर संभव प्रयास करते हैं, लेकिन यह कोई आसान काम नहीं है। इन दिनों बाहर खाने के इतने सारे विकल्प उपलब्ध हैं, जिसकी वजह से बच्चे घर का बना खाना पसंद नहीं करते हैं। उन्हें पिज्जा, बर्गर, नूडल्स और अन्य स्ट्रीट फूड खाना बेहद पसंद होता है। एक-दो बार इनको खाना ठीक है, लेकिन आपका बच्चा हर दूसरे दिन बाहर का खाना खा रहा है तो इससे उसको पेट की समस्या हो सकती है। पेट की समस्या आमतौर पर तब होती है जब बच्चे बहुत ज्यादा बाहर का खाना खाते हैं। अगर आपके बच्चे को पेट में बहुत ज्यादा तकलीफ हो रही है, तो हो सकता है कि यह किसी एलर्जी से जुड़ा हुआ दर्द हो। डॉक्टर द्वारा एक सरल जांच से यह पता चल जाता है कि यह कहीं इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम की समस्या तो नहीं है।

इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम क्या है?

जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, यह सिंड्रोम बाउल या गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल की खराबी से संबंधित है। यह आमतौर पर आंतों के सही ढंग से काम न करने की वजह से होता है। हालांकि, यह इंटेस्टाइन को कोई शारीरिक नुकसान नहीं पहुंचाता है क्योंकि यह कोई बीमारी नहीं है। इस इंटेस्टाइन ट्रैक की खराबी को आईबीएस या इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम कहा जाता है। इसके लक्षण आमतौर पर पेट में दर्द, दस्त, कब्ज आदि होते हैं।

बच्चों में आईबीएस कितना आम है?

आज के समय में इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम (आईबीएस) बेहद आम है। बच्चों में आईबीएस मामलों की सही संख्या को समझने के लिए कोई विशेष अध्ययन नहीं किया गया है। हालांकि, लगभग 15 प्रतिशत बच्चे इससे पीड़ित होते हैं।

बच्चों में आईबीएस होने का कारण क्या है?

बच्चों में इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम नीचे बताए गए कारणों से हो सकता है, जो इस प्रकार हैं ।

1. आनुवांशिक कारण

बच्चों में किसी भी विकार के विकास में आनुवंशिकता अहम भूमिका निभाती है। यदि आपको या आपके पार्टनर को भी यही समस्या है तो आपके बच्चे के आईबीएस से पीड़ित होने की संभावना काफी अधिक है।

2. बैक्टीरिया का बहुत बढ़ना

हमारी आंत में कई बैक्टीरिया होते हैं, जिनमें से ज्यादातर अच्छे होते हैं जो गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं। हालांकि, अगर ये बैक्टीरिया एक स्वस्थ रूप में आगे बढ़ते हैं, तो इसके कारण बच्चे को आईबीएस की समस्या होती है।

3. तनावपूर्ण जिंदगी

घर पर या स्कूल में भी तनाव भरा माहौल व कई कारक मिलकर, बच्चे में उदासी और एंग्जायटी पैदा करते हैं, लेकिन इसके कारण आईबीएस नहीं होता है, पर ये सभी चीजें निश्चित रूप से इसे बढ़ावा देती हैं।

4. गैस्ट्रोएन्टेराइटिस की मौजूदगी

भले ही आपका बच्चा पौष्टिक खाना खाता हो, लेकिन इस बात की संभावना हो सकती है कि इसमें कई तरह के बैक्टीरिया मौजूद हों। जिनमें से एक साल्मोनेला बैक्टीरिया है, जो बच्चे की आंतों के मार्ग में प्रवेश करने के बाद अत्यधिक तकलीफ पैदा करता है।

5. न्यूरल संकेत

यह एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर नहीं है, लेकिन निश्चित रूप से यह दिमाग पर निर्भर रहता है। दिमाग से प्राप्त होने वाले संकेतों के आधार पर आंतें उचित रूप से काम करती हैं। यदि इन संकेतों में कोई विसंगति है, तो पूरे जीआई ट्रैक की कार्यक्षमता प्रभावित हो सकती है, जिससे आईबीएस होता है।

6. पेट का बेहद संवेदनशील होना

कुछ बच्चों का पेट या आंत बाकी बच्चों की तुलना में अधिक संवेदनशील होता है, जो एलर्जी या किसी अन्य खाने की चीजों पर रिएक्शन करता है। ऐसे बच्चों को आईबीएस के लक्षणों का सामना अधिक मात्रा में करना पड़ता है, जिससे बार-बार पेट में दर्द और दस्त होते हैं।

7. ट्रैक्ट में समस्या

बाहरी कारणों के अलावा, एक बच्चे में आईबीएस होने का एक प्राथमिक कारण जीआई ट्रैक्ट के अंदर मोटर का अनियमित तरीके से काम करना होता है। अधिक गतिशीलता की वजह से बच्चे को दस्त होते हैं जबकि बहुत कम होने से कब्ज हो जाता है।

बच्चों आईबीएस के लक्षण और संकेत

आपको बता दें कि आईबीएस की जांच करने में थोड़ा समय लगता है क्योंकि इसके लक्षण और संकेत पेट के अन्य प्रभावों के समान होते हैं। यदि लक्षण लंबे समय तक बने रहते हैं, तो यह इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम की मौजूदगी का संकेत देता है। एक बच्चे में पाए जाने वाले आईबीएस के कुछ स्पष्ट लक्षण हैं:

  • पेट में सूजन
  • पॉटी के बाद मल में म्यूकस दिखना
  • कब्ज, जिसकी हालत लगातार खराब होती जा रही है और मल त्यागना काफी कठिन होता है
  • अनियंत्रित मलत्याग होना
  • दस्त के कारण दिन में कई बार पानी जैसा मल आना
  • सामान्य दिनों की तुलना में मल का टेक्सचर अलग होना
  • कुछ हफ्तों से अधिक समय तक पेट में दर्द रहना और उसकी बार-बार शिकायत करना

आखिर क्यों आईबीएस एक चिंता का विषय है?

कोई भी परेशानी जो लंबे समय तक बनी रहती है वह चिंता का कारण बनती है। लगातार पेट में दर्द या बार-बार टॉयलेट का उपयोग आपके बच्चे के सामाजिक व्यवहार को प्रभावित करता है, जिससे वह अपने दोस्तों द्वारा अपमान झेलने के बजाय झूठ बोलने लगता है। आईबीएस एक सिंड्रोम है न कि कोई बीमारी। इसलिए, आपका बच्चा इसे अलग तरह से संभालने का प्रयास करता है, जिससे पेट दर्द से बचने के लिए वह कम खाना खाता है। साथी ही उसका विकास भी प्रभावित होता है।

बच्चों में आईबीएस की पहचान कैसे होती है?

बच्चे में आईबीएस मौजूद होने की जांच आमतौर पर शारीरिक परीक्षण के साथ-साथ कुछ मेडिकल टेस्ट के जरिए की जाती है। ये टेस्ट और चेकअप शरीर के अंदर के अंगों की जांच के लिए किए जाते हैं। यहां बताया गया है कि इसका निदान कैसे किया जाता है:

  • सबसे पहले इसमें ब्लड टेस्ट किया जाता है। यह किसी भी इंफेक्शन या समस्या का पता लगाने में मदद करता है जिसकी वजह से बाकी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
  • इसमें यूरिन का सैंपल लिया जाता है और यूरिनल ट्रैक्ट के अंदर किसी भी तरह के बैक्टीरियल इंफेक्शन पता लगाने के लिए उस पर टेस्ट किया जाता है।
  • इसके साथ ही मल का सैंपल भी मेडिकल जांच में अहम भूमिका निभाता है। यह न केवल शरीर के भीतर मौजूद किसी भी परजीवी की जांच करता है बल्कि किसी भी ऑकल्ट ब्लड की मौजूदगी की जांच करता है, जिसके कारण आंतें सूज सकती हैं।
  • कई बार, पेट में दर्द और दस्त लैक्टोज इंटॉलरेंस का परिणाम हो सकता है। तो ऐसे में, लैक्टोज ब्रेथ हाइड्रोजन टेस्ट का उपयोग करने के लिए इसकी जांच की जाती है।
  • शरीर के अंगों को बेहतर तरीके से रखने का अंदाजा लगाने के लिए पेट का एक्स-रे किया जाता है।
  • एक्स-रे के साथ, ज्यादातर डॉक्टर एक अल्ट्रासाउंड भी करवाते हैं जो किसी भी बायोलॉजिकल  विसंगतियों की मौजूदगी की एक बेहतर तस्वीर दिखाता है।
  • इस समस्या को जल्द से जल्द सुधारने के लिए बच्चे के डॉक्टर एंडोस्कोपी भी कर सकते हैं। इसमें पेट में मुंह के माध्यम से एक ट्यूब डाला जाता है, और सैंपल लेते समय इसे ध्यान से ऑब्जर्व करें।

बच्चों में आईबीएस का इलाज कैसे किया जाता है?

आईबीएस का कोई इलाज मौजूद नहीं है क्योंकि यह कोई बीमारी नहीं है। हालांकि, इसके लक्षणों को कम किया जा सकता है और समस्या के आधार पर कई तरीकों से इसका उपचार किया जा सकता है।

1. दवाएं

बच्चे की इस स्थिति में मदद करने के लिए, सबसे पहले उसको दर्द से राहत दिलानी चाहिए। यदि पेट में अधिक दर्द है या दस्त होने लगे, तो ऐसे में कुछ दवाओं की आवश्यकता होती है। ये दवाएं आमतौर पर नीचे बताए गए विभिन्न रूपों में उपयोग की जाती हैं:

  • मूड को नियंत्रित करने वाली दवा जो दर्द निवारक के रूप में काम करती है और साथ ही आंतों की गतिविधि को नियंत्रित करने के लिए तनाव के प्रभाव को भी कम करती है।
  • दस्त को खत्म करके पानी और पोषक तत्वों की कमी को कंट्रोल करने के लिए दवाएं लेने का सुझाव दिया जाता है।
  • जुलाब के साथ मल त्याग होने के समय शरीर के अंदर फाइबर की मात्रा बढ़ाने के लिए सप्लीमेंट दिया जाता है।

2. आहार में बदलाव

बच्चों के लिए आईबीएस डाइट आमतौर पर सामान्य रूप से सभी के लिए एक जैसी होती है। जिन बच्चों को आईबीएस की समस्या है उन्हें डेयरी प्रोडक्ट्स, आर्टिफीशियल ड्रिंक, फैट युक्त खाना और अन्य गैस पैदा करने वाली चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। खाना थोड़ी-थोड़ी मात्रा में दिया जाना चाहिए और फाइबर का अधिक सेवन होना चाहिए, लेकिन उचित मात्रा में ही।

3. प्रोबायोटिक्स का उपयोग

कभी-कभी, आंतों के स्वास्थ्य को सामान्य तरीके से काम करने में मदद करने के लिए इसे थोड़ा बढ़ावा देने की जरूरत होती है। इसे प्रोबायोटिक्स के जरिए प्राप्त किया जाता है, जो आंत के अंदर हेल्दी बैक्टीरिया के लेवल को सामान्य लेवल पर वापस लाने में मदद करता है, जिसके कारण कार्यक्षमता को बेहतर करने में मदद मिलती है।

4. थेरेपी

किसी भी अन्य उपचार के तरीके के प्रभावी होने के लिए एक बच्चे को तनाव और एंग्जायटी का मुकाबला करना बेहद जरूरी है। कॉग्निटिव थेरेपी आमतौर पर बच्चे को खुद समस्या से निपटना सिखाने के लिए की जाती है। कुछ मामलों में, बच्चे को अपने शरीर को आराम देने और कोलन की मांसपेशियों को तनाव से मुक्त करने के लिए हिप्नोथेरपी का सहारा लिया जाता है।

इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम से कैसे बचा जा सकता है?

बता दें कि आईबीएस की समस्या कई कारणों का परिणाम है, इसलिए आपको उन समस्याओं को होने से रोकना चाहिए। यह काम इसके द्वारा किया जा सकता है:

  • योगा करना
  • सही समय पर खाना
  • पर्याप्त पानी पीना
  • पदार्थों के अलग-अलग तापमान से बचना
  • खाने को छोटे-छोटे हिस्सों में बांट लेना
  • कार्बोनेटेड ड्रिंक्स से दूर रहना
  • डेयरी प्रोडक्ट्स का सेवन नहीं करना
  • फैट युक्त खाने का सेवन कम करना
  • साबुत अनाज वाले खाने का सेवन कम करना
  • पॉलीऑल युक्त खाने को डाइट में कम से कम रखना

बच्चों में आईबीएस के इलाज के लिए घरेलू उपचार

यदि आईबीएस बहुत गंभीर नहीं है, तो घर पर इसकी देखभाल करना संभव है। इनसे ज्यादातर इलाज इसकी जलन को कम करने और आपके बच्चे को राहत प्रदान करने काम करते हैं। यह बिल्कुल घरेलू उपचार नहीं है, बल्कि मुख्य रूप से ऐसी खाने की चीजें हैं जो आप अपने बच्चों में आईबीएस के लक्षणों से कम करने के लिए दे सकती हैं:

1. कैमोमाइल चाय

अपने बच्चे को कैमोमाइल चाय दें क्योंकि इसमें कई तरह के टैनिन मौजूद होते हैं, जो दस्त और पेट दर्द को कम करने में मदद करती है और इस प्रकार उसे दर्द में राहत मिलती है।

2. गाजर

जैसे कि गाजर में पेक्टिन नामक फाइबर होता है, जो पेट की समस्याओं को दूर करता है। इसलिए, अपने बच्चे को उबली हुई गाजर से बनी प्यूरी देने से आईबीएस को कम करने में मदद मिलती है।

3. केले

अगर आपके बच्चे को गैस की समस्या है या पेट में सूजन है, तो ऐसे में केला मदद करता है। केले का एक छोटा सा टुकड़ा दस्त और गैस संबंधी समस्याओं को प्रभावी ढंग से दूर करने में मदद करता है।

4. बंदगोभी का रस

कच्ची पत्ता गोभी का रस एक लैक्सेटिव के रूप में काम करता है और आईबीएस के कारण होने वाली कब्ज से राहत देता है।

5. फ्लैक्स सीड (अलसी के बीज)

अलसी के बीज इम्युनिटी बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं। अलसी के बीज बच्चे को पीस के दिए जा सकते हैं। आप पानी में अलसी के बीज भी डाल सकती हैं और इसे 3-4 घंटे के लिए छोड़ दें। अपने बच्चे को सोने से पहले ये बीज दें। इससे मल त्याग में आसानी होगी।

6. सौंफ

आंतों की सूजन को कम करने और ट्रैक्ट के अंदर मौजूद अतिरिक्त चर्बी को हटाने के लिए उबली हुई सौंफ का पानी पीना एक प्रभावी उपाय है।

7. अदरक की चाय

अदरक की चाय पीने या शहद के साथ अदरक खाने से पेट में गैस की समस्या दूर होती है।

8. ओट्स

ओट्स फाइबर से भरपूर होते हैं और कब्ज से राहत दिलाते हैं। इसलिए, अपने बच्चे की डाइट में ओट्स को शामिल जरूरी है।

9. पेपरमिंट

पेपरमिंट कैंडीज या सप्लीमेंट्री कैप्सूल खाने से आंत की मांसपेशियों को आराम मिलता है।

10. दही

दही एक प्राकृतिक प्रोबायोटिक है, दही अच्छे बैक्टीरिया शरीर को प्रदान करने में मदद करता है जो आंत से खराब बैक्टीरिया को हटाते हैं और अंदरूनी सतह को होने वाली सूजन से बचाते हैं।

आपको बता दें कि आईबीएस एक ऐसी समस्या है जो आपके बच्चे के सबसे अच्छे सालों को खराब अनुभव और उसके अंदर शर्मिंदगी की भावना उत्पन्न करता है। लेकिन कुछ सावधानियां बरतकर और उचित इलाज लेकर, आप अपने बच्चे की इस समस्या का हल कर सकती हैं और सुनिश्चित कर सकती हैं कि बच्चा हमेशा स्वस्थ रहे। 

यह भी पढ़ें:

बच्चों में एस्पर्जर सिंड्रोम
बच्चों में एपिलेप्सी (मिर्गी)
मिडिल चाइल्ड सिंड्रोम – संकेत और बचाव के टिप्स

समर नक़वी

Recent Posts

पुलकित नाम का अर्थ, मतलब और राशिफल l Pulkit Name Meaning in Hindi

जब भी कोई माता-पिता अपने बच्चे का नाम रखते हैं, तो वो सिर्फ एक नाम…

2 weeks ago

हिना नाम का अर्थ, मतलब और राशिफल l Heena Name Meaning in Hindi

हर धर्म के अपने रीति-रिवाज होते हैं। हिन्दू हों या मुस्लिम, नाम रखने का तरीका…

2 weeks ago

इवान नाम का अर्थ, मतलब और राशिफल l Ivaan Name Meaning in Hindi

जब घर में बच्चे की किलकारी गूंजती है, तो हर तरफ खुशियों का माहौल बन…

2 weeks ago

आरज़ू नाम का अर्थ, मतलब और राशिफल l Aarzoo Name Meaning in Hindi

हमारे देश में कई धर्म हैं और हर धर्म के लोग अपने-अपने तरीके से बच्चों…

2 weeks ago

मन्नत नाम का अर्थ, मतलब और राशिफल l Mannat Name Meaning in Hindi

माता-पिता बच्चे के जन्म से पहले ही उसके लिए कई सपने देखने लगते हैं, जिनमें…

2 weeks ago

जितेंदर नाम का अर्थ, मतलब और राशिफल l Jitender Name Meaning in Hindi

हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बेटा जिंदगी में खूब तरक्की करे और ऐसा नाम…

4 weeks ago