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बच्चों में वार्ट्स यानी मस्से होना आम है। लोगों में एक पुरानी मान्यता थी, कि मेंढक को छूने से मस्सों की समस्या हो सकती है, लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं है। इस आम शरीरिक समस्या के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लेख को आगे पढ़ें और साथ ही, अगर आप अपने बच्चे की त्वचा पर मस्से देखते हैं, तो ऐसे में आपको क्या करना चाहिए, यह जानकारी भी आपको इस लेख में मिलेगी।
मस्से छोटे बंप होते हैं, जो त्वचा पर बन जाते हैं। हो सकता है कि आपको अपने बच्चे के हाथों या पैरों पर यह दिख जाए। यह एक तरह का संक्रमण होता है, जो कि ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) के कारण होता है और आमतौर पर वयस्कों से ज्यादा बच्चों में देखा जाता है। अगर बच्चे मस्सों से संक्रमित किसी व्यक्ति द्वारा छुई गई या इस्तेमाल की गई किसी वस्तु के संपर्क में आते हैं, तो उनमें भी यह इंफेक्शन हो सकता है। त्वचा पर छोटे-मोटे कटने, छिलने या जख्म होने पर बच्चे इस इन्फेक्शन के संपर्क में आ सकते हैं। यह नुकसान रहित होता है, पर मस्से देखना किसी को भी पसंद नहीं होता है। देख जाए तो, मेडिकली वार्ट्स का कोई विशेष गंभीर महत्व नहीं है, लेकिन ये देखने में अच्छे नहीं लगते हैं। ये मेडिकल समस्या से अधिक एक कॉस्मेटिक समस्या होती है।
मस्सों का रंग त्वचा के रंग जैसा ही हो सकता है और कुछ मामलों में इनका रंग त्वचा के रंग से थोड़ा हल्का या गहरा हो सकता है। ये और कुछ नहीं बल्कि त्वचा की बाहरी परत पर तेजी से बढ़ने वाले सेल्स होते हैं, जो कि संक्रामक होते हैं।
सभी मस्से एक तरह के नहीं होते हैं, ये कई प्रकार के होते हैं और ये अपनी बनावट और अपनी जगह के आधार पर अलग हो सकते हैं। वायरल वार्ट्स बच्चे के शरीर में कहीं पर भी हो सकते हैं। यहां पर उन्हें पहचानने के कुछ तरीके दिए गए हैं:
जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, कॉमन वार्ट्स या आम मस्से शरीर के कॉमन जगहों पर पाए जाते हैं, जैसे हाथ, पैर, घुटने, कोहनी और उंगलियां। ये छोटे उभार के रूप में दिखते हैं। इनका रंग लगभग त्वचा के रंग की तरह ही होता है, लेकिन इनके अंदर छोटे काले डॉट्स होते हैं। चूंकि ये कभी-कभी काले डॉट वाले दानेदार बम्प के रूप में दिखते हैं, इसलिए कभी-कभी इन्हें सीड वार्ट्स भी कहा जाता है।
ये मस्से दूसरे मस्सों की तुलना में काफी छोटे और चिकने होते हैं। इनकी ऊपरी सतह फ्लैट होती है, इसलिए इन्हें फ्लैट वार्ट्स या चपटे मस्से कहा जाता है। ये पिन के सिरे की तरह छोटे होते हैं और इनका रंग गुलाबी, पीला या हल्का भूरा हो सकता है। बच्चों में अक्सर ये चेहरे पर देखे जाते हैं, लेकिन कभी-कभी ये हाथों, बाहों और घुटनों पर भी देखे जा सकते हैं। ये समूह के रूप में भी दिख सकते हैं।
प्लांटर मस्से तलवों पर देखे जाते हैं और ये काफी दर्दनाक और तकलीफदेह होते हैं। अगर पैर इन वार्ट्स से संक्रमित हों, तो चलने पर ऐसा महसूस होता है जैसे छोटे पत्थरों पर चल रहे हों।
ये मस्से मुंह, आंखों और नाक के आसपास बनते हैं। इनका रंग त्वचा की तरह होता है और इनकी बनावट उंगली के जैसी होती है।
कुछ वार्ट्स जेनिटल एरिया के आसपास भी बन सकते हैं। लेकिन ये ज्यादातर सेक्सुअली ट्रांसमिटेड होते हैं, इसलिए ये बच्चों में नहीं देखे जाते हैं।
मस्से ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) के कारण बनते हैं, जो कि संक्रमित व्यक्ति के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संपर्क में आने से हो सकता है। अगर बच्चा किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आता है या उस व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल की गई किसी वस्तु के संपर्क में आता है, तो बच्चे को यह इंफेक्शन हो सकता है। ऐसे में यह याद रखना जरूरी है, कि संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने वाले हर बच्चे को वार्ट्स होना निश्चित नहीं है। यह बच्चे के इम्यूनिटी लेवल पर निर्भर करता है। अगर बच्चे का इम्यूनिटी सिस्टम कमजोर होगा, तो उसे इन्फेक्शन होने की संभावना अधिक होती है। यह वायरस त्वचा के छोटे-मोटे चोट, घाव और खरोचों के माध्यम से शरीर में प्रवेश करते हैं। इसलिए बच्चे के शरीर के किसी भी घाव को साफ रखना और हाइजीन पर ध्यान देना बहुत जरूरी है।
यह वायरस लंबे समय तक निष्क्रिय रह सकता है और योग्य स्थिति पैदा होने पर एक वार्ट का रूप ले सकता है। अन्य सभी वायरस की तरह यह भी नमी युक्त जगह पसंद करता है और इसका इनक्यूबेशन पीरियड 6 महीने का होता है। जब यह एक्टिव हो जाता है, तब यह त्वचा की एक्स्ट्रा लेयर बनाता है और एक बम्प की तरह दिखता है। यह एक फूलगोभी की तरह दिखता है, जिस पर काले बिंदु होते हैं। ये काले धब्बे ब्लड वेसल्स होते हैं, जो वार्ट्स को पोषण देते हैं।
यहां पर मस्से बनने के कुछ मुख्य कारण दिए गए हैं:
अगर आपके बच्चे को संक्रमण हुआ है और उसके शरीर पर मस्से बनने शुरू हो गए हैं, तो उसका इलाज शुरू करें और याद रखें, कि बच्चे को वार्ट्स को खुरचना या छेड़ना नहीं है, इससे शरीर पर वार्ट्स फैलने की संभावना हो जाती है।
एचपीवी एक निष्क्रिय वायरस होता है और इसके बनने में समय लगता है। जब तक वार्ट्स बनने शुरू नहीं हो जाते, तब तक आप को पता नहीं चलता है, कि आपके बच्चे को इसका संक्रमण हुआ है। इसमें महीनों या कभी-कभी सालों भी लग जाते हैं। जब तक आप इसे नोटिस करते हैं, तब तक वायरस पूरी तरह से फैल चुका होता है। यहां पर कुछ तरीके दिए गए हैं, जिनके द्वारा आप मस्से को पहचान सकते हैं:
मस्सों को पहचानना बहुत आसान होता है। इनकी पहचान के लिए आपको इन्हें देखना और महसूस करना होता है। अगर आप पहले से ही ऐसा कर चुके हैं और फिर भी पहचान की पुष्टि करना चाहते हैं, तो आपको डॉक्टर से मिलना चाहिए, जो कि इसे कंफर्म करने के लिए निम्नलिखित प्रक्रिया को अपना सकते हैं:
मस्से संक्रामक होते हैं, पर ये खतरनाक नहीं होते हैं। बच्चों को यह वायरस कहीं से भी मिल सकता है। इनमें बच्चे के कपड़े, तौलिए, खिलौने आदि भी शामिल हैं। अगर बच्चे को कोई मेडिकल समस्या हो और उसका इम्युनिटी सिस्टम कमजोर हो, तो उसे इंफेक्शन होने की संभावना अधिक होती है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है, कि स्वस्थ बच्चों को मस्से नहीं होंगे। मस्सों का संदेह होना, आम सर्दी-जुकाम होने जैसा ही है। व्यक्ति स्वस्थ हो या कमजोर, वार्ट्स होने की संभावना हर किसी को होती है।
क्या आप अपने बच्चे के वार्ट्स की समस्या से छुटकारा पाने को लेकर चिंतित हैं? यहां पर इसके इलाज के कुछ विकल्प दिए गए हैं। अगर इनमें कोई दर्द नहीं है या ये नुकसान रहित हैं, तो आप इन्हें ऐसे ही छोड़ सकते हैं और ये अपने आप ही ठीक हो सकते हैं। लेकिन इसे अपने आप पूरी तरह से ठीक होने में 2 महीने से लेकर कभी-कभी 2 से 3 साल भी लग सकते हैं। यहां पर इलाज के कुछ विकल्प दिए गए हैं, जिन पर आप विचार कर सकते हैं:
मस्सों से छुटकारा पाने के लिए कई आसान और असरदार घरेलू उपचारों के साथ-साथ कुछ छोटी प्रक्रियाएं भी मौजूद हैं।
त्वचा की सतह पर लगाने वाले मरहम जिनमें सैलिसिलिक एसिड हो और कुछ ओरल दवाएं भी उपलब्ध हैं, जिनके द्वारा इन्हें ठीक किया जा सकता है। इनमें किसी प्रिसक्रिप्शन की जरूरत नहीं होती है, लेकिन इनके इस्तेमाल से पहले हम आपको डॉक्टर से परामर्श लेने की सलाह देंगे।
ऐसी कुछ आसान मेडिकल प्रक्रियाएं होती हैं, जिन्हें डॉक्टर खास स्थिति के आधार पर रेकमेंड कर सकते हैं। इनमें क्रायोथेरेपी (मस्सों को फ्रीज कर देना) और इलेक्ट्रोकॉटेरी (मस्सों को जला देना) जैसी प्रक्रियाएं शामिल हैं।
सबसे पहले आपको होम रेमेडीज को आजमाना चाहिए। डक्ट टेप मेथड काफी प्रभावी लगता है, लेकिन इसमें आपको धैर्य रखने की जरूरत होती है, क्योंकि इसके नतीजे दिखने में लंबा समय लग सकता है।
आप डक्ट टेप के इस्तेमाल से मस्सों को ढक सकते हैं और कुछ सप्ताह के लिए इसे छोड़ सकते हैं। फिर डक्ट टेप को निकालकर वार्ट्स को पानी में भिगो सकते हैं। रफ पेपर (एमेरी पेपर) के इस्तेमाल से वार्ट्स को सौम्यता से स्क्रब करें। जब तक वार्ट्स निकल कर बाहर नहीं आ जाता, तब तक आपको इस प्रक्रिया को दोहराना पड़ेगा। इस प्रक्रिया में धैर्य बनाए रखें, क्योंकि इसमें मस्सों को ठीक होने में कुछ महीनों तक का समय लग सकता है।
अगर आपको लगता है, कि मस्सों को लेकर पुरानी लोक धारणाएं काफी मूर्खतापूर्ण थीं, तो आपको यह जानकर हैरानी होगी, कि उन दिनों कुछ घरेलू उपचार इससे भी ज्यादा अजीब हुआ करते थे, जैसे – मस्सों पर आलू लगाना और उस आलू को किसी गुप्त जगह पर छुपा देना।
मस्से एक तरह के वायरल इंफेक्शन होते हैं, जिनके संपर्क में बच्चे कहीं से भी आ सकते हैं। इनके इलाज के बजाय कुछ सावधानियां बरतकर इनसे बचा जा सकता है।
हालांकि मस्से नुकसान रहित होते हैं और इनका घर पर ही इलाज किया जा सकता है, लेकिन निम्नलिखित परिस्थितियों में मेडिकल इंटरवेंशन की जरूरत पड़ सकती है:
वार्ट्स नुकसान रहित इंफेक्शन होते हैं, लेकिन चूंकि ये देखने में बुरे लगते हैं, इसलिए इन्हें इलाज की जरूरत होती है। इनका मेडिकल समस्या का रूप लेना बहुत ही दुर्लभ होता है। पब्लिक स्थलों और स्कूल में सफाई का ध्यान रखने की आदत डाल कर आप अपने बच्चों को इस संक्रमण से बचा सकते हैं। वार्ट्स को ठीक करने के लिए बहुत सी होम रेमेडीज उपलब्ध हैं, लेकिन इनमें धैर्य की जरूरत होती है। आसान और दर्द रहित वार्ट्स को बिना इलाज के भी छोड़ा जा सकता है, क्योंकि ये अपने आप ठीक हो जाते हैं। पेरेंट्स होने के नाते हम अपने बच्चे के शरीर पर मस्से देखना पसंद नहीं करते हैं। लेकिन याद रखें, इनसे कोई छेड़छाड़ न करें, क्योंकि इससे स्थिति और भी बिगड़ सकती है। बच्चों की इम्युनिटी बढ़ाने के तरीकों और दवाओं का इस्तेमाल करें, क्योंकि अगर बच्चे की इम्यूनिटी मजबूत होगी, तो उन्हें इस तरह के संक्रमण होने की संभावना बहुत ही कम हो जाएगी।
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