बच्चों में पाइल्स (बवासीर)

बच्चों में पाइल्स (बवासीर)

मलाशय या मलद्वार के निचले हिस्से में नसों में आने वाली सूजन को हेमरॉयड या पाइल्स कहते हैं। पाइल्स को बवासीर के नाम से भी जाना जाता है और यह बहुत ही दर्दनाक हो सकता है। बहुत से वयस्क इस समस्या से जूझते हैं, लेकिन क्या यह समस्या बच्चों को भी परेशान कर सकती है? जवाब है – हां। हालांकि पाइल्स अधिकतर बड़ों में देखा जाता है, लेकिन बच्चों को भी यह परेशानी हो सकती है। 

बवासीर क्या है?

हेमरॉयड को आम भाषा में पाइल्स या बवासीर के नाम से जाना जाता है। यह एक ऐसी स्थिति है, जो कि तब होती है, जब मलाशय के अंदर और मलद्वार के आसपास की नसें बड़ी हो जाती हैं। पाइल्स से ग्रस्त ज्यादातर मरीज इस हिस्से में बहुत तकलीफ का अनुभव करते हैं। जिसमें कभी-कभी दर्द और खून आने की समस्या भी होती है। यह न केवल व्यक्ति के लिए शर्मिंदगी का कारण बन सकता है, बल्कि इसमें बहुत अधिक शारीरिक और मानसिक कष्ट भी होता है। 

बच्चों में पाइल्स के कारण

बच्चों में पाइल्स के कुछ आम कारण नीचे दिए गए हैं:

  1. सख्त सतह पर लंबे समय तक बैठने से बच्चों में पाइल्स की समस्या हो सकती है। 
  2. अगर बच्चा टॉयलेट सीट पर नियमित रूप से लंबे समय तक या 10 मिनट से अधिक समय के लिए बैठता है, तो उसे पाइल्स होने का खतरा होता है। लंबे समय तक टॉयलेट सीट पर बैठने से पेल्विक एरिया में खून इकट्ठा हो सकता है और रुकावट आ सकती है। 
  3. अगर बच्चा पॉटी करने में बहुत समय लगाता है और इसके लिए उसे बहुत कोशिश करनी पड़ती है, तो इससे उसके एनल क्षेत्र में बहुत दबाव पड़ सकता है, जिसके कारण पाइल्स का खतरा पैदा हो सकता है। 
  4. अगर बच्चा स्वस्थ खाना नहीं खाता है, अगर उसके खाने में फाइबर युक्त फलों की कमी है और वह अच्छी तरह से हाइड्रेटेड नहीं रहता है, तो उसे कब्ज की समस्या हो सकती है और इससे उसे पाइल्स होने का खतरा बढ़ सकता है। 
  5. अगर आपका बच्चा हर दिन बहुत चिड़चिड़ाता है और बहुत ज्यादा रोता है, तो उसे पाइल्स हो सकता है। अगर वो लगातार रोता रहता है और तनाव में रहता है, तो खून उसके पेल्विक क्षेत्र की ओर जा सकता है और उसके पेट पर दबाव बढ़ा सकता है। यह खून उसके रेक्टम के क्षेत्र में जमा हो सकता है, जिसके कारण पाइल्स हो सकता है। 
  6. अगर बच्चे के पेरेंट्स को पाइल्स की समस्या रही है, तो ऐसी संभावना है कि बच्चे को भी आनुवांशिक कारणों से पाइल्स की समस्या हो। ऐसे जन्मजात पाइल्स कभी-कभी जन्म के पहले सप्ताह में ही नजर में आ जाते हैं। पाइल्स की ये गांठें पॉटी करने के दौरान या रोने के दौरान बाहर निकल सकती हैं, जिससे तकलीफ और भी बढ़ सकती है। 
  7. कोलोन में ट्यूमर बनने के कारण खून जमने की समस्या हो सकती है, जिसके कारण बच्चों में हेमरॉयड की समस्या हो सकती है। 
  8. बड़ी आंत में संक्रमण होने से मलाशय के क्षेत्र में तकलीफ बढ़ सकती है, जिसके कारण पाइल्स की समस्या हो सकती है। 
  9. अगर बच्चा अधिक खेलता नहीं है और उसका ज्यादातर समय बैठकर ही बीतता है, तो इससे भी पाइल्स की संभावना बढ़ जाती है। 

बच्चों में पाइल्स के कारण

बच्चों में पाइल्स के लक्षण

अगर आपके बच्चे को बवासीर है, तो उसे निम्नलिखित बातों का अनुभव हो सकता है। ये सभी हेमरॉयड के कुछ आम लक्षण हैं: 

  • मलाशय से खून आना, गुदा क्षेत्र में खुजली और असुविधा
  • मल में खून भी पाइल्स का एक संकेत हो सकता है। यह मलद्वार में ब्लड वेसल्स के फटने का एक नतीजा होता है। मलाशय से इस प्रकार खून आना किन्हीं अन्य समस्याओं का संकेत भी हो सकता है और ऐसे में पीडियाट्रिशियन से तुरंत संपर्क करना जरूरी है। 
  • पाइल्स की मौजूदगी के कारण म्यूकस जैसा पदार्थ भी बाहर आ सकता है, जो कि मलद्वार और इसके आसपास के क्षेत्र को असुविधाजनक रूप से गीला रखता है, जिसके कारण इस जगह पर हमेशा खुजली और इरिटेशन होती रहती है। 
  • टॉयलेट में लंबे समय तक बैठना आमतौर पर एक दर्द भरा काम बन जाता है। कभी-कभी बच्चे इस दर्द से बचने के लिए बाथरूम जाने से ही बचने लगते हैं। 
  • एक्सटर्नल पाइल्स, मलद्वार से बाहर निकले होते हैं। यह हेमोरॉयड का एक स्पष्ट संकेत होता है और इसमें इलाज की जरूरत होती है। 

बच्चों में बवासीर की पहचान कैसे होती है?

आमतौर पर डॉक्टर मलद्वार के बाहरी क्षेत्र को ऑब्जर्व करके या फिर इंटरनल एनल एग्जाम करके पाइल्स के संकेतों की जांच करते हैं। चूंकि इंटरनल पाइल्स मुलायम होते हैं और इसे तुरंत हेमरॉयड बताना कठिन होता है, ऐसे में डॉक्टर प्रॉक्टोस्कोप या किसी अन्य उपकरण का इस्तेमाल कर सकते हैं, जिससे उन्हें मलद्वार के अंदर देखने में आसानी हो। अगर स्थिति गंभीर होती है, तो डॉक्टर कोलोनोस्कोपी के द्वारा पूरे कोलोन ट्रैक्ट की विस्तृत जांच कर सकते हैं। 

बच्चों में बवासीर के लिए उपाय

बच्चे में पाइल्स का इलाज करने के लिए निम्नलिखित दवाओं में से एक या एक से अधिक का प्रयास किए जा सकते हैं: 

  1. दिन में दो या तीन बार गुनगुने पानी से नहाने से एनल एरिया को आराम दिलाने में मदद मिलती है। लेकिन नहाने के दौरान बच्चे को साबुन का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए और नहाने के बाद इस क्षेत्र को पोंछ कर साफ करना चाहिए। 
  2. अगर एनल क्षेत्र में इन्फ्लेमेशन हो और वहां पर खुजली हो रही हो, तो आइस पैक या ठंडी सिंकाई का इस्तेमाल करने से तुरंत राहत मिल सकती है। 
  3. रेक्टम क्षेत्र को पानी से साफ करने से आराम मिल सकता है। अगर आपका बच्चा टॉयलेट पेपर का इस्तेमाल करता है, तो उसे वेट वाइप्स का इस्तेमाल करने को कहें, क्योंकि सूखे टॉयलेट पेपर उसके मलद्वार को इरिटेट कर सकते हैं। 
  4. अगर आपके बच्चे को बहुत अधिक दर्द हो रहा हो, तो उसे एसिटामिनोफेन जैसे कुछ पेन किलर दें। इससे इस क्षेत्र में दर्द और तकलीफ कम हो जाएगी। 
  5. आप अपने बच्चे के लिए बाजार में उपलब्ध हेमरॉयड क्रीम का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। लेकिन बच्चे के लिए किसी भी ओवर-द-काउंटर दवा या क्रीम का इस्तेमाल करने से पहले अपने डॉक्टर से बात जरूर करें। 
  6. अगर आपके बच्चे को कब्ज की समस्या है और वह पॉटी करने का प्रयास करते हुए टॉयलेट में बहुत सारा समय बिताता है, तो सबसे अच्छा होगा कि उसकी मुख्य समस्या को सुलझाया जाए। आप उसके खानपान में बदलाव करें और उसके खाने में सब्जियों और अनाज पर आधारित खाद्य पदार्थ शामिल करें। उसे मीठा और मैदे से बना खाना खिलाने से बचें, क्योंकि इन खाद्य पदार्थों को पचाना कठिन होता है। उसके भोजन में फाइबर युक्त आहार शामिल करें। 
  7. इस बात का ध्यान रखें, कि आपका बच्चा हमेशा हाइड्रेटेड रहे। उसे पूरे दिन पर्याप्त मात्रा में पानी पीने को दें। पानी पीने से शरीर हाइड्रेटेड रहेगा और उसका डाइजेस्टिव सिस्टम स्वस्थ रहेगा और वह अच्छी तरह से काम करेगा। उसे हर दिन कम से कम 8 से 10 गिलास पानी पीना चाहिए। 
  8. बच्चे को एक्टिव रहने को कहें। उसे कोई स्पोर्ट खेलने को कहें। अपने साथ जॉगिंग पर लेकर जाएं या फिर हर दिन वॉक पर ले कर जाएं। शारीरिक एक्टिविटी बेहद जरूरी है। इसलिए इस बात का ध्यान रखें, कि वह एक सक्रिय जीवन शैली को अपनाए। 
  9. अगर आपका बच्चा पॉटी आने पर टॉयलेट नहीं जाता है और उसे कंट्रोल करके रखता है, तो यह उसकी आदत बन सकती है। इस बात का ध्यान रखें, कि जैसे ही बच्चे को टॉयलेट जाने की जरूरत महसूस हो उसी समय जाए। अगर वह अपना पसंदीदा कार्टून देख रहा है और इसलिए टॉयलेट नहीं जाना चाहता है या फिर वह बाद में टॉयलेट जाना चाहता है, तो ऐसा करने से केवल एनल क्षेत्र में दबाव बढ़ता ही है, जिससे आगे चलकर हेमरॉयड की समस्या हो सकती है। 

क्या पाइल्स से बचाव संभव है?

अगर आप अपने बच्चे को बवासीर से सुरक्षित रखना चाहते हैं, तो यहां पर कुछ बातें दी गई हैं, जो आपको उससे करवानी चाहिए:

  • बच्चे को नियमित रूप से एक्सरसाइज करने को कहें। 
  • उसे फाइबर युक्त आहार खाने को दें। 
  • उसके शरीर को हाइड्रेटेड रखें। उसे कहें, कि वह ढेर सारा पानी पिए और हर वक्त खुद को हाइड्रेटेड रखे। 
  • उसे टॉयलेट सीट पर इंडियन स्टाइल में बैठने को कहें यानी कि स्क्वाट करके, ताकि पॉटी करने की प्रक्रिया आसान हो जाए। 

वयस्कों में यह स्थिति होने की संभावना अधिक होती है। लेकिन कभी-कभी बच्चों को भी पाइल्स की समस्या हो सकती है। अच्छी बात यह है, कि स्वस्थ खाना खाकर और पर्याप्त एक्सरसाइज करवा कर इस समस्या से बचा जा सकता है। अगर आपके बच्चे में पाइल्स के लक्षण दिख रहे हैं, तो आपको यह सलाह दी जाती है, कि आप उसे डॉक्टर के पास लेकर जाएं, ताकि किसी तरह की जटिलता का समय पर पता चल सके। 

यह भी पढ़ें:

बच्चों में मोटापा
बच्चों में अपेंडिसाइटिस
बच्चों में (गुर्दे की पथरी) किडनी स्टोन होना