In this Article
बच्चे ईश्वर का आशीर्वाद होते हैं पर इनका पालन-पोषण करने में पेरेंट्स को कई कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। पेरेंट्स अपने बच्चे को सुरक्षित और हेल्दी रखने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। चूंकि बच्चों का इम्यून सिस्टम पूरी तरह से विकसित नहीं होता है इसलिए इन्हें वायरल इन्फेक्शन से बचाए रखने के लिए कुछ सावधानियां बरतनी बहुत जरूरी हैं।
पेरेंट्स होने के नाते आपको बदलते मौसम में भी ध्यान देना चाहिए क्योंकि इससे बच्चे को सामान्य इन्फेक्शन भी गंभीर रूप से हो सकता है। हालांकि चिंता करने के बजाय आप रोगों के विभिन्न लक्षणों, कारण और इसके ट्रीटमेंट के बारे में डॉक्टर से पूरी जानकारी लें।
अपने बच्चे को फ्लू से ग्रसित देखने से ज्यादा खराब कुछ भी नहीं है। बेबीज को वायरल होने से उन्हें बहुत परेशानी होती हैं। बारिश के दिनों में ह्यूमिडिटी और नमी के कारण बच्चे जर्म्स से प्रभावित हो सकते हैं। इसी वजह से उन्हें वायरल इन्फेक्शन, जैसे जुकाम और फ्लू बहुत जल्दी हो जाता है।
यद्यपि आमतौर पर वायरल इन्फेक्शन किसी भी आयु में हो सकता है फिर भी बच्चों को इसका अधिक खतरा होता है। यह एक यह एक छूत की बीमारी है। कई मामलों में यदि किसी व्यक्ति को वायरल इन्फेक्शन है और वह किसी हेल्दी व्यक्ति के सामने छींक या खांस देता है तो इससे यह इन्फेक्शन फैल सकता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यह वायरस हवा में फैलता है और किसी भी व्यक्ति को इन्फेक्टेड कर देता है।
यदि बच्चे एक दूसरे के संपर्क में ज्यादा रहते हैं, जैसे स्कूल में, खेल के दौरान या चाइल्ड केयर सेंटर में तो इससे उनमें यह इन्फेक्शन जल्दी ही फैल जाता है। यह एक आम मान्यता है कि किसी भी व्यक्ति को बुखार होने पर ही उसके शरीर का तापमान बढ़ता है। पर वास्तव में किसी का भी तापमान पूरे दिन में अलग-अलग होता है। बुखार एक कॉमन समस्या है जो ज्यादातर मौसम बदलने की वजह से होता है। इसमें शरीर का तापमान नॉर्मल (98.6 डिग्री फारेनहाइट या 37 डिग्री सेल्सियस) से ज्यादा हो ही जाता है। यह सिर्फ एक लक्षण ही नहीं है बल्कि यह बीमारी के दौरान शरीर का नेचुरल रिएक्शन है।
यद्यपि बुखार से पता लगता है कि बच्चे की तबियत ठीक नहीं है और कुछ लक्षणों से, जैसे शरीर में दर्द, भूख न लगना और सुस्त रहने से पता लगता है कि बच्चे को वायरल इन्फेक्शन है।
इसमें बच्चा बार-बार बीमार होता है और ठीक होने के बाद उसे फिर से इन्फेक्शन हो सकता है। यह बहुत आम है क्योंकि छोटे बच्चों को 6 से 10 वायरल इन्फेक्शन हो सकते हैं। हालांकि इस समय बच्चों का इम्यून सिस्टम मजबूत हो रहा होता है इसलिए इन्फेक्शन धीरे-धीरे कम होने लगता है।
यदि बच्चे की तबीयत ठीक नहीं है तो आपको नियमित रूप से उसका टेम्प्रेचर चेक करना चाहिए। यदि बच्चे के शरीर का तापमान बढ़ रहा है तो उसे तुरंत इलाज की जरूरत है।
कुछ वायरल इन्फेक्शन, जैसे डायरिया, गला खराब, कान में इन्फेक्शन या उल्टी बिना किसी इलाज के अगले दो तीन दिनों में ठीक हो सकते हैं। पर अन्य रोग, जैसे हीट स्ट्रोक और मीजल्स के लिए डॉक्टर की मदद लेना जरूरी है। इसका डायग्नोसिस कई लक्षणों के आधार पर हो सकता है। पेरेंट्स को विशेष रूप से 6 महीने तक के बच्चों का ज्यादा खयाल रखना चाहिए।
बच्चों में बुखार 100 डिग्री फारेनहाइट से लेकर 103 डिग्री फारेनहाइट तक होता है। शरीर का 100 डिग्री फारेनहाइट से कम तापमान होने पर बुखार नहीं होता है। कुछ मामलों में बच्चे के गाल लाल हो जाते हैं और उसके शरीर का तापमान बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। थर्मामीटर से चेक करने पर बच्चे के शरीर का टेम्प्रेचर 99 डिग्री फारेनहाइट होता है। ऐसे में आप अपने बच्चे को जल्दी से डॉक्टर के पास ले जाना चाहती होंगी या उसे दवाई देना चाहती होंगी। हालांकि रेक्टल का तापमान 100.4 डिग्री फारेनहाइट से कम होने पर यह नॉर्मल ही माना जाता है। ऐसे में पेरेंट्स को जल्दबाजी या चिंता नहीं करनी चाहिए।
बच्चों के शरीर का तापमान विभिन्न कारणों से अलग-अलग होता है, जैसे कई कपड़े पहनाने से, वॉर्म बाथ से या फिजिकल एक्टिविटी करने से। कभी-कभी बच्चे का तापमान चेक करने से ज्यादा जरूरी उसके व्यवहार को ऑब्जर्व करना है। जैसे, यदि बच्चे के शरीर का टेम्प्रेचर 100.3 डिग्री फारेनहाइट है तो उसे थकान व चिड़चिड़ाहट महसूस हो सकता है। दूसरी तरफ यदि बच्चे का तापमान 103 डिग्री फारेनहाइट है तो वह हेल्दी व खेलता हुआ दिखाई दे सकता है।
यद्यपि यदि बच्चा बीमार है तो उसे सबसे पहले बुखार आता है पर इसके अन्य लक्षणों से डॉक्टर के पास जाने की आवश्यकता समझ में आती है। वे लक्षण कौन से हैं, आइए जानें;
यह जरूरी नहीं है कि बच्चे को वायरल इन्फेक्शन की वजह से ही बुखार हुआ है। कभी-कभी बच्चों को हीट स्ट्रोक या बैक्टीरियल इन्फेक्शन की वजह से भी बुखार हो सकता है। इसमें अंतर जानना बहुत जरूरी है।
यदि बच्चे को किसी वायरस का रिएक्शन होता है तो इसके परिणामस्वरूप उसे वायरल इन्फेक्शन हो जाता है। इस प्रकार के वायरल बुखार में एंटीबायोटिक की जरूरत नहीं होती है क्योंकि एंटीबायोटिक से वायरस पर कोई भी असर नहीं होता है और यह तीन दिनों में कम भी हो जाता है।
बैक्टीरियल बुखार अक्सर बैक्टीरियल इन्फेक्शन की वजह से होता है। उदाहरण के लिए, कान और यूरिनरी ट्रैक्ट का इन्फेक्शन, बैक्टीरियल निमोनिया और बैक्टीरियल मेनिन्जाइटिस। यद्यपि बच्चों को बैक्टीरियल इन्फेक्शन उतनी बार नहीं होता है जितनी बार वायरल इन्फेक्शन हो जाता है। यदि आप समय पर इसका इलाज नहीं करवाती हैं तो यह चिंता का कारण बन सकता है और बच्चे को गंभीर बीमारी हो सकती है।
यदि बच्चा तीन महीने से कम का है और उसका रेक्टल टेम्प्रेचर 100.4 डिग्री फारेनहाइट से ज्यादा है तो उसे इलाज की जरूरत है। बच्चों के शरीर का नॉर्मल तापमान 97.5 – 97.8 डिग्री फारेनहाइट तक होता है। इस दौरान बच्चों के शरीर के तापमान की जांच बगल यानि अंडरआर्म से करनी चाहिए। यदि बच्चा दो साल से ज्यादा का है या उसके शरीर का तापमान 104 डिग्री फारेनहाइट या इससे अधिक है तो आपको डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
यदि आपके बच्चे को तेज बुखार है तो नीचे बताए गए इलाज के तरीकों को जरूर अपनाएं;
यद्यपि डॉक्टर द्वारा दी गई दवा से बच्चा ठीक हो सकता है पर फिर भी अन्य होम रेमेडीज भी बच्चे को जल्दी ही रिकवर होने में मदद करती हैं। पहले आप बच्चे को ज्यादा से ज्यादा आराम करने दें और उसके कमरे में फ्रेश हवा आने दें। आप उसे गुनगुना तरल पदार्थ दे सकती हैं, जैसे सूप, पानी और दूध। गुनगुने पानी से गले की खराश में आराम मिलेगा और डायरिया की वजह से नष्ट हुए न्यूट्रिएंट्स फिर से रिकवर हो जाएंगे। दूसरी ओर गर्म दूध से बच्चे को बेहतर तरीके से सोने में मदद मिलेगी। आप अपने बच्चे को दोबारा से हाइड्रेट करने के लिए उसे ओआरएस दे सकती हैं। इस दौरान अपने बेबी को दूध पिलाती रहें ताकि उसे सभी आवश्यक न्यूट्रिएंट्स मिल सकें और इन्फेक्शन का प्रभाव कम हो।
यदि बच्चे की नाक जम गई है तो आप इसे नोज ड्रॉप या वेपराइजर से साफ करें और उसे सांस लेने में मदद करें।
यह सलाह दी जाती है कि ऐसे में आप अपने बच्चे को स्कूल न भेजें क्योंकि इससे उसकी समस्या अधिक बढ़ सकती है और इससे अन्य बच्चों में भी यह इन्फेक्शन फैल सकता है। बच्चे को पूरी तरह से ठीक होने तक घर में ही रहने दें।
पेरेंट्स होने के नाते आप अपने बच्चे को साफ-सफाई रखना सिखाएं, जैसे टिश्यू का उपयोग करना और उपयोग के बाद उसे कचरे के डिब्बे में फेकना या खांसने व छींकने के बाद हैंड सैनिटाइजर का उपयोग करना। इस बात का भी ध्यान रखें कि बच्चे के कपड़े अलग से धोएं और उसके बर्तन को स्टेरेलाइज करें।
यह सलाह दी जाती है कि ऊपर बताई गई सावधानियों के साथ आप नेचुरल रेपलेंट्स का उपयोग करके मच्छरों को दूर रखें। साथ ही इस बात का भी खयाल रखें कि यदि किसी को फ्लू है तो उसे अपने बच्चे के संपर्क में न आने दें। यदि कोई बच्चे के पास आना भी चाहता है तो उसे एक सीमित दूरी बनाए रखने के लिए कहें। चिंता करने के बजाय धैर्य से इन तरीकों का उपयोग करें और तीन व चार दिनों में ही आपका बच्चा रिकवर करने लगेगा। फिर भी यदि इनमें से कोई भी चीज मदद नहीं करती है तो आपको जल्दी से जल्दी पेडिअट्रिशन से संपर्क करना चाहिए।
यह भी पढ़ें:
बच्चों में वायरल संक्रमण
बच्चों में खांसी – कारण, निदान और उपचार
हिंदी वह भाषा है जो हमारे देश में सबसे ज्यादा बोली जाती है। बच्चे की…
बच्चों को गिनती सिखाने के बाद सबसे पहले हम उन्हें गिनतियों को कैसे जोड़ा और…
गर्भवती होना आसान नहीं होता और यदि कोई महिला गर्भावस्था के दौरान मिर्गी की बीमारी…
गणित के पाठ्यक्रम में गुणा की समझ बच्चों को गुणनफल को तेजी से याद रखने…
गणित की बुनियाद को मजबूत बनाने के लिए पहाड़े सीखना बेहद जरूरी है। खासकर बच्चों…
10 का पहाड़ा बच्चों के लिए गणित के सबसे आसान और महत्वपूर्ण पहाड़ों में से…