In this Article
हमारे शरीर में एक प्राकृतिक प्रक्रिया होती है जो हमें दिनभर सक्रिय और रात में आराम की स्थिति में लाने का काम करती है। दिन के अंत में, हमारा शरीर कुछ हार्मोन रिलीज करता है, जो नींद लाने में मदद करते हैं और हमें अगले दिन तरोताजा महसूस करने में सहायता करते हैं। लेकिन कई बार, कुछ लोगों को सोने में परेशानी होती है, जो अलग-अलग कारणों से हो सकती है। बच्चों में अगर नींद की समस्या हो, तो इसका असर उनके विकास पर पड़ सकता है। साथ ही, पर्याप्त नींद न मिलने से उनकी स्कूल में ध्यान देने और सीखने की क्षमता पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
अगर आप सभी कोशिशें कर चुकी हैं, जैसे कि बच्चों की दिनचर्या और व्यवहार में बदलाव लाना, लेकिन फिर भी कोई सुधार नहीं हो रहा है, तो आप अब शायद बच्चों को मेलाटोनिन देने के बारे में सोच रही हैं। ऐसे में, मेलाटोनिन के बारे में सभी जरूरी जानकारी और इसके प्रभावों के बारे में अच्छी तरह जानना महत्वपूर्ण है।
मेलाटोनिन एक ऐसा हार्मोन है जो हमारे शरीर में प्राकृतिक तरीके से बनता है और खासकर पीनियल ग्लैंड (ग्रंथि) में तैयार होता है। इसका मुख्य काम नींद के तरीके को सही रखना होता है। यह हार्मोन हमारी जैविक घड़ी के अनुसार, रोशनी और अंधेरे के संपर्क में आने पर काम करता है। रात में मेलाटोनिन की मात्रा शरीर में बढ़ जाती है और सुबह होते ही यह कम होने लगती है, जिससे हमें नींद और जागने का क्रम बनाए रखने में मदद मिलती है।
अगर पीनियल ग्लैंड किसी वजह से मेलाटोनिन नहीं बना पाता है, तो बच्चों का नींद का समय नियमित नहीं रह पाता। ऐसे में, मेलाटोनिन सप्लीमेंट देने की जरूरत होती है ताकि उनका नींद का चक्र जिसे स्लीप साइकिल कहते हैं, सही ढंग से चलता रहे।
मेलाटोनिन बच्चों के लिए तब सुरक्षित माना जाता है, जब इसे कम मात्रा में, थोड़े समय के लिए और डॉक्टर की सलाह के अनुसार दिया जाए। हालांकि, बच्चों में मेलाटोनिन के लंबे समय तक इस्तेमाल पर ज्यादा अनुसंधान (रिसर्च) नहीं हुआ है। कुछ अध्ययनों में देखा गया है कि जानवरों पर मेलाटोनिन के इस्तेमाल से उनकी प्यूबर्टी यानी किशोरावस्था में पदार्पण में देरी हो सकती है, लेकिन इंसानों पर ऐसे प्रभाव का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है।
ऐसे बच्चे जो तंत्रिका विकास संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हों, जैसे कि ऑटिज्म, एडीएचडी, या नजर से जुड़ी समस्याएं और जिन्हें सोने में परेशानी होती है, उनके लिए मेलाटोनिन फायदेमंद हो सकता है। लेकिन जिन बच्चों में नींद की समस्या एंग्जायटी यानी चिंता के कारण है, उनके लिए मेलाटोनिन देने से पहले अन्य तरीकों पर विचार करना बेहतर है।
मेलाटोनिन के सप्लीमेंट केवल नींद लाने में मदद करते हैं, लेकिन पक्के तौर पर यह नहीं कहते कि बच्चा पूरी रात सोता ही रहेगा। इसके अलावा, अगर बच्चे का सोने में असमर्थ होना इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जैसे मोबाइल, टैबलेट की लाइट के कारण है, तो मेलाटोनिन से कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि ये उपकरण मेलाटोनिन के असर को कम कर देते हैं।
अगर आपके बच्चे को सोने में परेशानी हो रही है, तो आप सोने से करीब 30 से 60 मिनट पहले उसे मेलाटोनिन दे सकती हैं। इससे बच्चे के शरीर में मेलाटोनिन का स्तर बढ़ता है, जो उसे प्राकृतिक तरीके से नींद लाने में मदद करता है। आप थोड़ा समय बदल कर भी देख सकती हैं कि किस समय देने पर बच्चे पर सबसे अच्छा असर होता है। मतलब, कोशिश करें कि सोने से करीब आधा घंटा पहले मेलाटोनिन दें, इससे बच्चे को आराम से और जल्दी नींद आ सकती है।
बच्चे की नींद की समस्या के अनुसार मेलाटोनिन की मात्रा अलग-अलग होती है, जो आमतौर पर 0.5 मिलीग्राम से 6 मिलीग्राम तक होती है। अधिकतर बच्चों को 0.5 मिलीग्राम की छोटी मात्रा से ही अच्छा असर होता है। अगर आपके बच्चे को बार-बार सोने में परेशानी होती है, तो 3 से 6 मिलीग्राम की मात्रा से भी मदद मिल सकती है। छोटे बच्चों के लिए लिक्विड मेलाटोनिन भी एक विकल्प है, जो आसानी से दिया जा सकता है। आपके बच्चे की जरूरत के हिसाब से मेलाटोनिन की सही मात्रा तय करने के लिए अपने बाल रोग विशेषज्ञ से सलाह लेना जरूरी है।
ध्यान रखें कि जितनी मात्रा डॉक्टर ने बताई है, उतनी ही दें, क्योंकि ज्यादा मेलाटोनिन लेना नुकसान पहुंचा सकता है, जैसा कई दूसरी दवाइयों के साथ होता है।
अगर बच्चों को मेलाटोनिन ज्यादा मात्रा में दिया जाए, तो इससे उन्हें उल्टी जैसा महसूस होना, चक्कर आना, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, घबराहट और दस्त जैसी समस्याएं हो सकती हैं। अधिक मेलाटोनिन का उपयोग बच्चे के शरीर की प्राकृतिक नींद व जागने की प्रक्रिया को भी बिगाड़ सकता है, जिससे उसकी नींद का समय प्रभावित हो सकता है।
बच्चों को मेलाटोनिन देने से बचें अगर:
हमेशा यह सलाह दी जाती है कि बच्चों को मेलाटोनिन देने से पहले अन्य तरीकों को आजमाएं, जैसे उनका आहार, दिनचर्या, गतिविधियों और व्यवहार में बदलाव करें। ये प्राकृतिक तरीके पहले आजमाने से मेलाटोनिन से जुड़े बुरे प्रभावों का खतरा भी कम हो जाता है।
हालांकि मेलाटोनिन एक प्राकृतिक सप्लीमेंट है, लेकिन इसके कुछ दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं, जैसे:
ये सभी दुष्प्रभाव आमतौर पर तब होते हैं जब बच्चे को मेलाटोनिन की ज्यादा मात्रा दी जाती है।
बच्चों के लिए प्राकृतिक मेलाटोनिन सप्लीमेंट्स 1 मिलीग्राम की खुराक में चबाने वाली टैबलेट के रूप में उपलब्ध हैं। बच्चों को मेलाटोनिन देने से पहले डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है, ताकि सही मात्रा और जरूरत का पता चल सके।
बच्चों में मेलाटोनिन बढ़ाने के लिए प्राकृतिक तरीकों से कुछ खाने-पीने की चीजों का इस्तेमाल किया जा सकता है। ट्रिप्टोफैन नामक एक अमीनो एसिड शरीर में सेरोटोनिन में बदलता है और फिर मेलाटोनिन में, जो नींद लाने में मदद करता है। ट्रिप्टोफैन से भरपूर कुछ खाद्य पदार्थ हैं:
बच्चों की नींद में खलल न पड़े, इसके लिए ध्यान रखें कि सोने से पहले उन्हें कैफीन वाले पेय पदार्थ (जैसे चाय, कॉफी, चॉकलेट ड्रिंक्स) या बहुत भारी खाना न दें। इससे उनकी नींद में खलल पड़ सकता है और आराम से सोने में परेशानी हो सकती है।
अगर बच्चों को सही मात्रा में मेलाटोनिन दिया जाए, तो यह सुरक्षित होता है। लेकिन हमेशा ध्यान रखें कि किसी अनुभवी बाल रोग विशेषज्ञ से सलाह लेकर ही मेलाटोनिन की सही खुराक बच्चे को देना तय करें। साथ ही, बच्चों के लिए मेलाटोनिन सप्लीमेंट देने से पहले नींद सुधारने के दूसरे तरीकों को भी आजमाएं। पहले देखें कि बच्चे की नींद की समस्या का असल कारण क्या है और उसी के हिसाब से उसका इलाज करें।
एक और जरूरी बात -बिना डॉक्टर की सलाह के कभी भी खुद से बच्चे को मेलाटोनिन न दें। अगर बाकी सभी तरीके असरदार साबित न हों, तो ही डॉक्टर से सलाह लेकर मेलाटोनिन की खुराक देना शुरू करें।
यह भी पढ़ें:
बच्चे का बार-बार नींद से जागना – कारण और उपचार
बच्चों की नींद संबंधी समस्याएं और उनसे निपटने के प्रभावी उपाय
गिलहरी की कहानी में बताया गया है कि कैसे एक मुनी ने अपनी विद्या की…
पति कौन है, यह विक्रम बेताल की दूसरी कहानी है। यह कहानी एक गणपति नामक…
इस कहानी में एक ऐसे लकड़हारे के बारे में बताया गया है, जिसकी ईमानदारी और…
खेल हमारे जीवन में बहुत अहम भूमिका निभाते हैं। ये न सिर्फ मनोरंजन का साधन…
ये कहानी सिंदबाद जहाजी की है, जिसमें हिंदबाद नाम के मजदूर की गरीबी के बारे…
यह सही समय है जब आप अपने बच्चे को विभिन्न गतिविधियों से अवगत कराना शुरू…