In this Article
- एन्सेफलाइटिस क्या है?
- बच्चों में एन्सेफलाइटिस होने का क्या कारण होता है?
- बच्चों में पाए जाने वाले एन्सेफलाइटिस के लक्षण क्या हैं?
- एन्सेफलाइटिस का निदान
- एन्सेफलाइटिस से जुड़े जोखिम
- बच्चों में एन्सेफलाइटिस का इलाज कैसे किया जाता है?
- एन्सेफलाइटिस से बचने के उपाय
- डॉक्टर से कब परामर्श करें
- अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
बच्चे अक्सर बीमार पड़ जाते हैं क्योंकि उनकी बीमारी से लड़ने की क्षमता अभी पूरी तरह से विकसित नहीं होती। कुछ बीमारियां समय के साथ खुद ठीक हो जाती हैं, लेकिन कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं जो बहुत गंभीर हो सकती हैं और उन्हें तुरंत डॉक्टर के पास दिखाने की जरूरत होती है। एन्सेफलाइटिस ऐसी ही एक बीमारी है।
एन्सेफलाइटिस क्या है?
एन्सेफलाइटिस एक प्रकार का वायरस से होने वाला संक्रमण है। जब किसी व्यक्ति को यह संक्रमण होता है, इससे तेज बुखार, दिमाग और रीढ़ की हड्डी में सूजन हो जाती है। इस बीमारी को एन्सेफलाइटिस कहते हैं। कभी-कभी दिमाग और रीढ़ की हड्डी को ढकने वाली परतों में भी सूजन हो जाती है, जिसे मेनिनजाइटिस कहते हैं। यह बीमारी बहुत खतरनाक होती हैं और इसमें जान जाने का खतरा होता है। इसलिए, मरीज को तुरंत अच्छे अस्पताल में भर्ती कराना जरूरी है जहां उसे सही इलाज और देखभाल मिल सके। देरी करने पर उसके दिमाग और नसों को हमेशा के लिए नुकसान हो सकता है या मरीज की जान भी जा सकती है।
बच्चों में एन्सेफलाइटिस होने का क्या कारण होता है?
बच्चों में एन्सेफलाइटिस होने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन उनमें से कुछ मुख्य कारण इस प्रकार हैं:
- एन्सेफलाइटिस का मुख्य कारण वायरस होता है। लेकिन रूबेला, मम्प्स और चिकनपॉक्स के खिलाफ टीकाकरण से इन बीमारियों के कारण एन्सेफलाइटिस का खतरा कम हो जाता है।
- लाइम रोग, रेबीज और वेस्ट नाइल वायरस जैसे संक्रमण, जो आमतौर पर मच्छरों, कीटों, जानवरों या कीड़ों के काटने से फैलते हैं, एन्सेफलाइटिस का कारण बन सकते हैं। हर्पीस सिम्पलेक्स वायरस, जो कोल्ड सोर का कारण होता है, से एन्सेफलाइटिस होना बहुत ही दुर्लभ है। चिकनपॉक्स और अन्य कई बीमारियां, खांसी या छींक के दौरान शरीर से निकलने वाले तरल पदार्थों के संपर्क में आने से फैल सकती हैं, और इनसे ठीक होते समय हल्का एन्सेफलाइटिस हो सकता है।
- कुछ वायरस जैसे दस्त, मतली, ऊपरी श्वसन संक्रमण और उल्टी का कारण बनते हैं जो एन्सेफलाइटिस जैसी गंभीर बीमारी को जन्म देती हैं।
- सिफिलिस, लाइम, टीबी, पैरासिटिक टॉक्सोप्लाज्मोसिस जैसी बीमारियों वाले बच्चे एन्सेफलाइटिस के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं।
- कभी-कभी शरीर की ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया दिमाग के ऊतकों पर हमला करती है, जिससे एन्सेफलाइटिस होने का खतरा बढ़ता है।
बच्चों में पाए जाने वाले एन्सेफलाइटिस के लक्षण क्या हैं?
बच्चों में एन्सेफलाइटिस के लक्षणों का पता लगाना थोड़ा मुश्किल होता है और यह बीमारी 3 महीने तक के बच्चों में खतरा बनी रहती है:
- 100.4 फारेनहाइट से अधिक बुखार का होना
- बच्चे का लगातार रोना और त्वचा पर लाल चकत्ते पड़ जाना
- सिर में सूजन या फूला हुआ लगना
- जिद करना, ढीला और कमजोर महसूस होना
- खाना कम खाना और उल्टी करना
- बहुत सुस्ती महसूस होना
आपके बड़े बच्चों में नीचे बताए गए लक्षण दिखाई दें, तो उन्हें नजरअंदाज करने की गलती नहीं करें
- गर्दन में अकड़न और तेज सिरदर्द
- धुंधला दिखना और रोशनी से परेशानी होना
- चलने में लड़खड़ाना, दौरे आना
- हाथ या पैर में अकड़न होना
- संवेदनाओं का कम होना
- व्यक्तित्व में बदलाव, याददाश्त खोना
- बेहोशी, सुस्ती या भ्रम
एन्सेफलाइटिस का निदान
अगर आपके बच्चे में एन्सेफलाइटिस के लक्षण दिखते हैं, तो डॉक्टर इन दिए गए परीक्षणों का उपयोग करके सही निदान कर सकते हैं-
- बच्चे के टीकाकरण का रिकॉर्ड रखना बेहद जरूरी है। इसके अलावा, आप अपने बच्चे की गतिविधियों की जानकारी भी डॉक्टर दें, जैसे अगर बच्चा किसी पालतू जानवर के साथ खेलता है, बगीचे में जाता है जहां उसे कीड़ा काट ले, या उसे पहले मीजल्स, मम्प्स था। ये सभी जानकारी डॉक्टर को देना जरूरी है।
- बच्चे की खून की जांच से प्रतिरक्षा स्तर, संक्रमण के संकेत और एंटीबॉडीज जैसे एनएमडीए रिसेप्टर एंटीबॉडी का परीक्षण किया जाता है।
- पेशाब और मल की जांच से शरीर में मौजूद संक्रमण का पता लगाया जाता है।
- स्पुटम कल्चर की जांच में फेफड़ों के संक्रमण का पता लगाने के लिए खांसी से निकले बलगम का अध्ययन किया जाता है।
- एमआरआई एक दर्द रहित और सर्जरी के बिना किया जाने वाला परिक्षण है, जिसमें रीढ़ और दिमाग की सूजन का पता लगाने के लिए उनकी तस्वीरों का अध्ययन करते हैं।
- सीटी स्कैन भी दर्द और सर्जरी रहित टेस्ट है, जिसमें कंप्यूटराइज्ड टोमोग्राफी इमेज का उपयोग कर अंगों की जांच की जाती है।
- ईईजी परिक्षण दिमाग की गतिविधि की जांच करता है। इस परिक्षण में दर्द और सर्जरी के बिना एन्सेफलाइटिस का पता लगाया जाता है।
- लंबर पंचर टेस्ट में रीढ़ की हड्डी से सिरिंज द्वारा तरल पदार्थ निकाला जाता है ताकि रीढ़ और दिमाग में मौजूद संक्रमण का पता लगाया जा सके और यह प्रक्रिया काफी दर्दनाक होती है।
- ब्रेन बायोप्सी परिक्षण में दिमाग के टिश्यू का नमूना लिया जाता है। यह प्रक्रिया दर्द भरी होती है और केवल जरूरत पड़ने पर ही की जाती है।
एन्सेफलाइटिस से जुड़े जोखिम
बच्चों का नर्वस सिस्टम काफी कमजोर होता है, जिसकी वजह से हल्के एन्सेफलाइटिस के मामलों में बच्चे को पूरी तरह से ठीक होने में मदद मिलती है। लेकिन अगर एन्सेफलाइटिस की स्थिति गंभीर हो, तो दिमाग और तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचता है, जिससे बच्चे को चलने, सोचने, बोलने या हिलने-डुलने में समस्या हो सकती है। ऐसे में फिजियोथेरेपी और नियमित डॉक्टर के पास जाने की सलाह दी जाती है।
बच्चों में एन्सेफलाइटिस का इलाज कैसे किया जाता है?
एन्सेफलाइटिस एक गंभीर बीमारी होती है और इसके लिए तुरंत अस्पताल में भर्ती होना जरूरी है। इलाज का तरीका इसके लक्षणों, जांच, उम्र, और बीमारी की गंभीरता पर निर्भर करता है। इलाज के दौरान डॉक्टर बच्चे की धड़कन, सांस, रक्तचाप और शरीर के तरल पदार्थों पर ध्यान रखते हैं, ताकि सूजन और समस्या न बढ़े।
- अगर बच्चे के फेफड़ों में इन्फेक्शन है, तो उसे सांस लेने में मदद करने के लिए वेंटिलेटर पर रखा जाता है।
- इलाज में दिमाग और रीढ़ की हड्डी में सूजन को कम करने के लिए दवाइयां दी जाती हैं, जिनमें एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-वायरल, और एंटी-कन्वल्सन दवाइयां जैसे-कोर्टिकोस्टेरॉइड, एसिटामिनोफेन, आदि शामिल हैं, जो टैबलेट या इंजेक्शन के रूप में दी जाती हैं।
- जब बच्चा ठीक हो जाता है, तो बोलने और बात करने में आने वाली समस्याओं को फिजियोथेरेपी, स्पीच थेरेपी, और अन्य थेरपी से ठीक किया जाता है। नियमित चेकअप, आगे के परीक्षण, और इलाज जारी रखना बहुत जरूरी होता है ताकि पूरी तरह से ठीक हो सके।
- घर पर देखभाल और सही तरह के व्यायाम भी पूरी तरह से ठीक होने में मदद करते हैं।
- सबसे पहले आप खुद इन इलाजों के फायदे और नुकसान के बारे में समझे और बच्चे को मेन्टल और इमोशनल सपोर्ट जरूर दें। यह अक्सर सबसे बेहतर इलाज माना जाता है जो बच्चे को ठीक होने में मदद करता है।
- 1 साल से कम उम्र के बच्चे और 55 साल से अधिक उम्र के बुजुर्ग में इसके अधिक जोखिम और गंभीर लक्षणों के मिलने की संभावना होती है। जापानी एन्सेफलाइटिस के गंभीर मामले और ऐसे वायरस के हमले कई ज्यादा खतरनाक होते हैं।
एन्सेफलाइटिस से बचने के उपाय
एन्सेफलाइटिस को पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता, लेकिन इसके होने वाले कारणों से बचा जा सकता है:
- बच्चों में सही टीकाकरण से उनको होने वाली कई बीमारियों से बचाया जा सकता है।
- जिस व्यक्ति को एन्सेफलाइटिस है, उनके संपर्क में न आएं, क्योंकि जितना आप खुद का बचाव करेंगे उतना आपके लिए फायदेमंद होगा।
- मच्छर वाले इलाकों में मच्छरदानी का उपयोग करें, कीटनाशक लगाएं, और शाम और सुबह बाहर निकलते समय पूरे आस्तीन के कपड़े और लंबी पैंट पहनें। साथ ही पानी को एक जगह जमा न होने दें ताकि उसमें मच्छर पनप न पाए।
- अपने पालतू जानवरों की जांच करें, बच्चों को मिट्टी और पौधों से दूर रखें और बाहर जाते समय उन्हें हल्के रंग और पूरी आस्तीन के कपड़े पहनाएं।
- सबसे जरूरी आप खुद इस बीमारी के बारे में जानकारी रखें जैसे, टीकाकरण का ध्यान रखने, चिकित्सा रिकॉर्ड मैंटेन रखना, आपातकालीन नंबर और अपने डॉक्टर से टेस्ट के परिणाम और उपचार की जानकारी लें।
डॉक्टर से कब परामर्श करें
अगर आपका बच्चा किसी बीमारी से ठीक हो रहा है, तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें, वह बीमारियां हैं जैसे
- मम्प्स
- चिकनपॉक्स
- मीजल्स
- तेज बुखार
- कोई भी लक्षण जो बहुत लंबे समय से बना हो
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. क्या एन्सेफलाइटिस एक संक्रामक बीमारी है?
एन्सेफलाइटिस एक ऐसी बीमारी है जिसमें बच्चे के दिमाग में सूजन हो जाती है। यह एक संक्रामक बीमारी नहीं है, लेकिन इसे पैदा करने वाले वायरस संक्रामक हो सकते हैं। सभी वायरस से एन्सेफलाइटिस बीमारी नहीं होती है, लेकिन यह वायरस आसानी से फैल सकते हैं। इसलिए, इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति से जितना हो सके दूर रहना सबसे अच्छा है।
2. एन्सेफलाइटिस कितने समय तक रहता है?
आमतौर पर बच्चों में जब एन्सेफलाइटिस की स्थिति एक हफ्ते तक ही रहती है। लेकिन इसे पूरी तरह ठीक होने में कई हफ्ते या महीने भी लग सकते हैं, और कभी-कभी एक साल भी लग जाते हैं, इसलिए समय रहते ही इसका इलाज किया जाना चाहिए।
अगर एन्सेफलाइटिस का इलाज समय पर न हो, तो यह स्थिति खतरनाक हो सकती है। इसलिए इसके लक्षण दिखने पर तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें।