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कल्पना कीजिए अगर किसी दिन आप देखें कि आपका उछल-कूद और मस्ती करने वाला चंचल बच्चा ठीक से चल नहीं पा रहा है या पैरों में बेहद कमजोरी की शिकायत कर रहा है। माता-पिता के तौर अपने बच्चे को ऐसी स्थिति में देखना डरावना हो सकता है। आपको लगेगा कि यह क्या हो रहा है? गुलियन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) नामक बीमारी यही भयावह स्थिति पैदा करती है। यह एक दुर्लभ बीमारी है जिसमें अचानक कमजोरी और यहां तक कि अस्थाई पैरालिसिस यानी लकवा भी हो सकता है। इस वजह से पेरेंट्स होने पर आपके लिए इस बीमारी के बारे में पूरी जानकारी रखना जरूरी हो जाता है।
इस लेख में, हम बच्चों में गुलियन बैरे सिंड्रोम के बारे में जानेंगे कि यह किस कारण से होता है। साथ ही आपको बच्चे में किन लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए और सबसे महत्वपूर्ण बात कि क्या छोटे बच्चों में जीबीएस का इलाज है? इसलिए इस लेख को आखिर तक जरूर पढ़ें ताकि आप किसी भी परिस्थिति से लड़ने के लिए तैयार रहें।
“समय पर निदान और तुरंत इलाज शुरू होने पर, जीबीएस पूरी तरह से ठीक हो जाता है। इसलिए ध्यान रखें और अपने डॉक्टर से जल्द मिलें”
– डॉ. गुंजन बावेजा
गुलियन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) एक दुर्लभ ऑटोइम्यून विकार है जिसमें शरीर का इम्यून सिस्टम यानी प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के बाहर के नसों के नेटवर्क, पेरिफेरल नर्वस सिस्टम पर हमला करती है। यह बीमारी अक्सर तेजी से बढ़ती होती है और मांसपेशियों में कमजोरी, सुन्न होना और गंभीर मामलों में, पैरालिसिस यानी लकवा होने का कारण बन सकती है।
जीबीएस विभिन्न प्रकार के होते हैं, और हर एक में अलग-अलग विशेषताएं होती हैं जो यह कैसे विकसित होता है और उसका इलाज कैसे किया जाता है, इसे प्रभावित करती हैं। नीचे इन प्रकारों के बारे में जानकारी दी गई है –
यह बच्चों में जीबीएस का सबसे आम रूप है। ऐसा तब होता है जब शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली नर्व्स को सुरक्षा देने वाली बाहरी परत माइलिन पर हमला करती है, जिससे कमजोरी, झुनझुनी और कभी-कभी चलने में कठिनाई होती है।
इस प्रकार में मोटर तंत्रिकाओं के केंद्र को नुकसान होता है, जो मांसपेशियों की गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। इससे अचानक कमजोरी या झुनझुनी होने पर बिना कुछ महसूस हुए ही लकवा मार जाता है। इसके मामले एशिया और मध्य अमेरिका के देशों में ज्यादा देखे जाते हैं।
मिलर-फिशर सिंड्रोम जीबीएस का एक दुर्लभ रूप है। यह मुख्य रूप से आंखों की मांसपेशियों को प्रभावित करता है, जिससे रिफ्लेक्स नहीं होते और संतुलन और तालमेल में समस्याएं पैदा होती हैं।
गुलियन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) बच्चों में दुर्लभ है, यह दुनिया भर में हर साल प्रति 1 लाख बच्चों में से केवल 1 या 2 बच्चों को प्रभावित करता है। वैसे तो यह किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन बच्चों के मामले में यह 1 से 5 साल के बच्चों को ज्यादा होता है।
कुछ बच्चों में दूसरों की तुलना में गुलियन बैरे सिंड्रोम विकसित होने की अधिक संभावना होती है। यहां वे कारण दिए गए हैं जो किसी बच्चे को जीबीएस के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकते हैं।
क्या आपने कभी सोचा है कि बच्चों में जीबीएस जैसी बीमारी का क्या कारण हो सकता है? बच्चों में गुलियन बैरे सिंड्रोम के कुछ सबसे आम कारण नीचे दिए गए हैं:
जीबीएस पेरेंट्स के लिए एक भयावह स्थिति हो सकती है, खासकर जब यह बच्चों को प्रभावित करती है। चूंकि लक्षण तेजी से बढ़ सकते हैं, इसलिए चेतावनी संकेतों को जल्दी पहचानना महत्वपूर्ण है। शिशुओं में जीबीएस के आम लक्षणों के लिए नीचे दी गई बातें पढ़ें और यदि आपको इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई दे, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
आमतौर पर पैरों से मांसपेशियों में कमजोरी शुरू होकर ऊपर की ओर फैलती जाती है, यह जीबीएस के शुरुआती लक्षणों में से एक है। इस कमजोरी के कारण बच्चे को चलना या खड़ा होना मुश्किल हो सकता है।
जीबीएस वाले बच्चों में विशेष रूप से घुटनों और टखनों में या तो कम या बिल्कुल भी रिफ्लेक्स अनुभव नहीं होते हैं, जिससे चलने की गति और पैरों में तालमेल नहीं हो पाता है।
बच्चा अपने हाथों व पैरों में झुनझुनी या सुन्न होने की शिकायत कर सकता है, और यह बाद में शरीर के अन्य अंगों में भी हो सकता है।
गंभीर मामलों में, जीबीएस श्वसन प्रक्रिया में शामिल मांसपेशियों को प्रभावित कर सकता है, जिससे सांस लेने में तकलीफ हो सकती है।
जीबीएस से चेहरे की मांसपेशियां भी प्रभावित हो सकती हैं, जिससे बच्चे के लिए मुस्कुराना, खाना खाना या स्पष्ट रूप से बोलना मुश्किल हो सकता है।
गुलियन बैरे सिंड्रोम बच्चों को तकलीफदेह हो सकता है, न केवल लक्षणों के कारण बल्कि इसके कारण होने वाली जटिलताओं की वजह से भी। यह कभी-कभी ऑटोनॉमिक नर्वस सिस्टम को प्रभावित कर सकता है, जो हृदय गति, ब्लड प्रेशर और पाचन जैसे महत्वपूर्ण कामों को नियंत्रित करता है। जब जीबीएस के कारण इनमें गड़बड़ होती है, तो यह गंभीर और घातक जटिलताएं पैदा कर सकता है। इसमें होने वाली सबसे आम जटिलताएं हैं:
अधिकांश बच्चों के लिए, गुलियन बैरे सिंड्रोम की बीमारी कुछ समय तक होकर परेशानियां देती है, और वे समय और उचित देखभाल के साथ पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं। लेकिन कुछ बच्चों को कमजोरी, थकान, या तालमेल में कठिनाई जैसी समस्याओं का सामना लंबे समय करना पड़ सकता है जो महीनों या वर्षों तक बनी रह सकती हैं। यह भावनात्मक रूप से भी कठिन है, खासकर जब बच्चे को रोजमर्रा के कामों के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। अच्छी बात यह है कि लगातार बेहतर देखभाल के साथ, कई बच्चे इन मुश्किलों से पार हो जाते हैं और एक्टिव व स्वस्थ जीवन जीते हैं।
जीबीएस बच्चों और वयस्कों दोनों को प्रभावित करता है, लेकिन यह कैसे प्रभावित करता है इसमें कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं। बच्चों में जीबीएस के लक्षण वयस्कों के समान ही होते हैं, जिनमें कमजोरी, झुनझुनी और मांसपेशियों में दर्द शामिल हैं। पर बच्चों में ये लक्षण अक्सर पैरों में शुरू होते हैं और फिर शरीर के ऊपरी हिस्से तक फैलते हैं, जिससे उनका चलना या हाथ हिलाना मुश्किल हो जाता है।
वयस्कों को भी इन लक्षणों का अनुभव हो सकता है, लेकिन कभी-कभी, लक्षण अधिक गंभीर हो सकते हैं, जिससे उन्हें सांस लेने में परेशानी हो सकती है और तुरंत अस्पताल ले जाने की जरूरत पड़ती है। बच्चों में सांस संबंधी गंभीर समस्याएं विकसित होने का जोखिम कुछ हद तक कम होता है, हालांकि उन्हें भी डॉक्टरों की निगरानी में रखने की आवश्यकता होती है क्योंकि जीबीएस तेजी से बढ़ सकता है।
दोनों में जो सबसे बड़ा अंतर है वह ठीक होने का है। बच्चों में अक्सर उपचार के कुछ हफ्तों के भीतर सुधार होना शुरू हो जाता है, जबकि वयस्कों को पूरी तरह से ठीक होने में महीनों या साल भी लग सकते हैं। जीबीएस बच्चों और वयस्कों दोनों के लिए गंभीर है, लेकिन बच्चों के ठीक होने की संभावना आमतौर पर बेहतर होती है।
बच्चों में गुलियन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) का निदान करना मुश्किल हो सकता है क्योंकि यह एक दुर्लभ बीमारी है और इसके लक्षण बहुत सी दूसरी बीमारियों जैसे लग सकते हैं। बच्चों में जीबीएस की पहचान कैसे होती है इसके लिए नीचे बताया गया है:
बच्चे की मांसपेशियों, रिफ्लेक्स और अंगों में तालमेल जांचने के लिए पूरा शारीरिक परीक्षण आवश्यक होता है। डॉक्टर मांसपेशियों में कमजोरी या चलने-फिरने में कठिनाई के लक्षण जांचते हैं।
इस टेस्ट में देखा जाता है कि नसें मांसपेशियों को कितनी अच्छी तरह संकेत भेज रही हैं। जीबीएस वाले बच्चों में, नर्व संकेत सामान्य से धीमे हो सकते हैं, जो ये बताते हैं कि नसों को नुकसान हुआ है।
लंबर पंचर एक ऐसा टेस्ट है जिसमें रीढ़ की हड्डी से सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड (सीएसएफ) का एक छोटा सा नमूना लिया जाता है। जीबीएस मामलों में, सीएसएफ व्हाइट ब्लड सेल्स की संख्या ज्यादा हुए बिना ही प्रोटीन का बढ़ा हुआ स्तर दिख सकता है।
जीबीएस के लिए कोई बिशेष ब्लड टेस्ट नहीं है, पर खून की जांच अन्य बीमारियों, जैसे इंफेक्शन या ऑटोइम्यून विकारों से निपटने में मदद कर सकती है।
एमआरआई स्कैन से उन समस्याओं की जानकारी मिल सकती है जिनके लक्षण समान होते हैं, जैसे रीढ़ की हड्डी की समस्याएं या अन्य न्यूरोलॉजिकल विकार।
जब किसी बच्चे में जीबीएस का पता चलता है, तो माता-पिता को चिंता होना स्वाभाविक है। भले इसका कोई इलाज नहीं है, लेकिन अच्छी बात यह है कि लक्षणों को नियंत्रित करने से उपचार होता है। यहां बच्चों को इस बीमारी से ठीक करने के लिए डॉक्टर क्या उपाय अपनाते हैं, इसके बारे में दिया गया है:
गुलियन बैरे सिंड्रोम से उबरने में समय लगता है और यह हर बच्चे के लिए अलग होता है। बच्चों में उपचार शुरू होने के बाद अक्सर 2 से 4 हफ्ते के भीतर सुधार के लक्षण दिखाई देते हैं, लेकिन पूरी तरह ठीक होने में कई महीनों से लेकर एक साल तक का समय लग सकता है। अच्छी बात यह है कि आमतौर पर सभी बच्चे पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं।
गुलियन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) एक दुर्लभ बीमारी है, और दुर्भाग्य से, इसे हमेशा रोका नहीं जा सकता है। हालाँकि बच्चों में जीबीएस से बचाव का कोई निश्चित तरीका नहीं है, लेकिन कुछ सावधानीपूर्वक कदम उठाने से बीमारी का जोखिम कम करने में मदद मिल सकती है।
यदि आप अपने बच्चे में गुलियन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के कोई लक्षण देखते हैं तो डॉक्टर को तुरंत दिखाएं। जल्द उपचार से बच्चा बीमारी से होने वाली गंभीर समस्याओं की चपेट में आने बच सकता है और जल्दी ठीक भी हो सकता है। आपको निम्नलिखित स्थितियों में अस्पताल जाना चाहिए:
नहीं, जीबीएस संक्रामक नहीं है। यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसका मतलब है कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता गलती से अपनी ही नसों पर हमला करती है।
नवजात शिशुओं में जीबीएस अत्यंत दुर्लभ है लेकिन असाधारण मामलों में हो सकता है। यह अक्सर माँ को हुए संक्रमण, डिलीवरी के दौरान हुए इंफेक्शन या दुर्लभ मामलों में वैक्सीन लगाने से होता है।
अपने बच्चे को भावनात्मक सहारा देना, डॉक्टर से मिलते रहना और इलाज में मदद करना बीमारी से ठीक होने में मदद कर सकता है। उसकी ताकत और आत्मविश्वास को फिर से लाने के लिए आपका प्रोत्साहन और घर पर सकारात्मक माहौल रखना बेहद महत्वपूर्ण है।
बच्चे को गुलियन बैरे सिंड्रोम हुआ है यह पता लगना उसके और परिवार के लिए एक चिंताजनक स्थिति हो सकती है, लेकिन सही उपचार और मदद से ठीक होने की राह अक्सर सफल होती है। अधिकांश बच्चे स्वस्थ, सक्रिय जीवन जीते हैं और समय के साथ, जीबीएस से पूरी तरह से उबर जाते हैं।
References/Resources:
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