बच्चों में ल्यूकेमिया l Bacchon Mein Leukaemia

बच्चों में ल्यूकेमिया l Bacchon Mein Leukaemia

ल्यूकेमिया यानी ब्लड कैंसर। कैंसर के सबसे आम रूपों में ल्यूकेमिया या खून का कैंसर है। हड्डियों का नरम आंतरिक भाग जिसे अस्थि मज्जा या बोन मैरो कहते हैं, वहां नई रक्त कोशिकाएं बनती हैं, ल्यूकेमिया यहीं विकसित होता है। वयस्कों की तुलना में बच्चों में ल्यूकेमिया के उपचार की दर बहुत अधिक है, लेकिन इस उपचार के कुछ दुष्प्रभाव उनके वयस्क होने तक रहते हैं। इस लेख में, हमने ल्यूकेमिया, इसके कारणों, लक्षणों आदि को थोड़ा और विस्तार से समझाने की कोशिश की है और यह भी कि यह किस प्रकार इसके मरीजों और उनके प्रियजनों के जीवन को प्रभावित कर सकता है। अधिक जानने के लिए पढ़ें।

ल्यूकेमिया क्या है?

ल्यूकेमिया अस्थि मज्जा का कैंसर होता है। हमारी हड्डियों के केंद्र में मुलायम ऊतक होता है जिसे अस्थि मज्जा कहते हैं। यह तीन प्रकार की रक्त कोशिकाएं बनाता है – लाल रक्त कोशिका या रेड ब्लड सेल्स, सफेद रक्त कोशिका या व्हाइट ब्लड सेल्स और प्लेटलेट। सफेद रक्त कोशिका के विभिन्न प्रकारों में से एक को लिम्फोसाइट कहा जाता है। बच्चों में होने वाले कैंसर का सबसे आम रूप एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया है। मूल रूप से, जब एक लिम्फोसाइट खराब हो जाता है, तो यह तेजी से बढ़ने लगता है और अस्थि मज्जा पर हमला करके उस पर फैल जाता है।

बच्चों को ब्लड कैंसर क्यों होता है

बच्चों को ल्यूकेमिया होने का कोई सटीक कारण नहीं बताया जा सकता। हालांकि इसके पीछे की कुछ वजहें निम्नलिखित हो सकती हैं:

  • जन्म से पहले और बाद में आयनाइजिंग रेडिएशन (विशेषतः एक्स-रे) के संपर्क में आना।
  • माता-पिता में से किसी एक का पेस्टीसाइड से संपर्क।
  • इलेक्ट्रो मैग्नेटिक क्षेत्र के संपर्क में आना।
  • बच्चे के अंग प्रत्यारोपण के बाद रोग प्रतिरोधक क्षमता कम करने के लिए दी जाने वाली दवाएं।
  • ऐसे बच्चे जिनके जुड़वां या कोई भाई-बहन इस बीमारी से पीड़ित हों।
  • अगर बच्चा पहले से ही ली-फ्रामेनी सिंड्रोम, डाउन सिंड्रोम, क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम, फैंकोनी एनीमिया, ब्लूम सिंड्रोम, कोस्टमैन सिंड्रोम, न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस और एटैक्सिया टेलैंगिएक्टेसिया जैसे आनुवंशिक विकार से पीड़ित हो।

बच्चों को होने वाले खून के कैंसर के प्रकार

2 से 5 वर्ष की उम्र वाले बच्चों में अधिकतर एक्यूट ल्यूकेमिया देखने को मिलता है। बच्चों में ल्यूकेमिया का लंबे समय तक चलने वाला रूप भी देखने को मिल सकता है लेकिन यह दुर्लभ है। बच्चों में ल्यूकेमिया के कुछ सामान्य प्रकार इस प्रकार हैं।

  • एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (एएलएल): यह बीमारी का तेजी से बढ़ने वाला रूप है जब अस्थि मज्जा बहुत अधिक अपरिपक्व लिम्फोसाइट्स बनाता है।
  • एक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया (एएमएल): इस प्रकार में, अस्थि मज्जा बड़ी संख्या में असामान्य रक्त कोशिकाएं बनाता है।
  • जुवेनाइल मायलोमोनोसाइटिक ल्यूकेमिया (जेएमएल): इस प्रकार के ल्यूकेमिया में, बहुत सारी अस्थि मज्जा स्टेम कोशिकाएं दो प्रकार की सफेद कोशिकाएं बन जाती हैं, जिनमें से कुछ कभी भी परिपक्व सफेद कोशिकाएं नहीं बन पाती हैं।
  • क्रोनिक माइलोजेनस ल्यूकेमिया (सीएमएल): यह ल्यूकेमिया का वह प्रकार है जब बहुत अधिक अस्थि मज्जा स्टेम कोशिकाएं एक प्रकार की सफेद रक्त कोशिका बन जाती हैं जिन्हें ग्रेन्यूलोसाइट्स कहा जाता है। इस प्रकार में यह देखा गया है कि इनमें से कुछ कभी भी परिपक्व सफेद कोशिकाएं बन ही नहीं पाती हैं।

ल्यूकेमिया के संकेत और लक्षण

ल्यूकेमिया के कुछ लक्षण नीचे दिए गए हैं:

1. लाल रक्त कोशिका की कम संख्या (एनीमिया)

लाल रक्त कोशिकाओं का काम शरीर के सभी अंगों तक ऑक्सीजन पहुंचाना है। इसलिए, इनकी कमी के निम्नलिखित परिणाम हो सकते हैं:

  • थकान
  • कमजोरी
  • ठंड लगना
  • चक्कर आना
  • सिर दर्द
  • सांस लेने में कठिनाई
  • त्वचा पीली पड़ना

2. सफेद रक्त कोशिका की कम संख्या

  • सामान्य सफेद रक्त कोशिकाओं की कमी के कारण ऐसे संक्रमण हो सकते हैं जो दूर होते नहीं दिखते। बच्चे को एक के बाद एक संक्रमण हो सकते हैं।
  • बार-बार बुखार आना ल्यूकेमिया का संकेत हो सकता है क्योंकि बुखार के प्राथमिक कारणों में से एक संक्रमण होता है।

3. प्लेटलेट की कम संख्या

प्लेटलेट्स खून के बहाव को रोकने में मदद करते हैं। इसलिए प्लेटलेट्स की कमी निम्न बातों का कारण बन सकती है –

  • आसानी से चोट लगना और खून बहना
  • बार-बार या गंभीर रूप से नाक से खून बहना
  • मसूड़ों से खून बहना

4. अन्य लक्षण

  • हड्डी या जोड़ों का दर्द: यह हड्डी की सतह के पास या जोड़ के अंदर ल्यूकेमिया कोशिकाओं के निर्माण के कारण होता है।
  • पेट में सूजन: ल्यूकेमिया की सेल्स लिवर या प्लीहा में भी एकत्रित हो सकती हैं, और इन अंगों का आकार बढ़ा सकती हैं ।
  • भूख न लगना और वजन में कमी: यदि प्लीहा या लिवर इतना बड़ा हो जाता है कि अन्य अंगों पर दबाव पड़ने लगे तो बच्चे को थोड़ा सा खाने के बाद ही पेट भरा-भरा लग सकता है। इससे भूख कम हो जाती है और अंततः, वजन गिरने लगता है।
  • लिम्फ नोड्स में सूजन: कुछ ल्यूकेमिया कोशिकाएं लिम्फ नोड्स में फैल सकती हैं। इससे शरीर के कुछ हिस्सों जैसे गर्दन, बगल, कॉलरबोन के ऊपर या कमर में त्वचा के नीचे सूजी हुई गांठें महसूस की जा सकती हैं।
  • खांसी या सांस लेने में परेशानी: कुछ प्रकार के ल्यूकेमिया में थाइमस (श्वास नली के सामने का छोटा अंग, श्वास नली जो फेफड़ों तक जाती है) या लिम्फ नोड्स प्रभावित होते हैं और उनमें सूजन आ जाती है। इससे आगे चलकर श्वास नली पर दबाव पड़ता है, जिससे खांसी या सांस लेने में परेशानी होती है। हालाँकि, श्वेत रक्त कोशिका की संख्या ज्यादा संख्या के कारण भी सांस लेने में परेशानी हो सकती है, क्योंकि ऐसी परिस्थिति में, ल्यूकेमिया कोशिकाएं छोटी रक्त वाहिकाओं में जमा होने लगती हैं।
  • चेहरे और बांहों में सूजन: यह तब होता है जब बढ़ा हुआ थाइमस सुपीरियर वेना कावा को दबाता है, जिससे खून नसों में वापस आने लगता है।
  • सिरदर्द, दौरे और उल्टी: जब ल्यूकेमिया मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी तक फैल जाता है, तो बच्चे में सिरदर्द, दौरे और उल्टी के लक्षण दिखने लगते हैं।
  • रैशेज और मसूड़ों की समस्या: जब ल्यूकेमिया कोशिकाएं मसूड़ों में फैलती हैं, तो यह मसूड़ों में सूजन, दर्द और रक्तस्राव का कारण बनती हैं और जब यह त्वचा तक फैलती हैं, तो इनसे रैशेज होते हैं।
  • अत्यधिक कमजोरी और थकान: जब ल्यूकेमिया कोशिकाओं की संख्या ज्यादा होने जाने से रक्त बेहद गाढ़ा हो जाता है और मस्तिष्क की छोटी ब्लड वेसेल से होने वाला रक्त संचार धीमा हो जाता है तब ये लक्षण दिखाई देते हैं।

ब्लड कैंसर का निदान कैसे होता है?

बच्चे का मेडिकल इतिहास, परिवार में कैंसर का इतिहास, बच्चे में दिखने वाले लक्षण और कैंसर कितने समय से है, इन सभी बातों का गहन विश्लेषण करने के बाद, अगर डॉक्टर को ल्यूकेमिया का संदेह होता है, तो वह कुछ टेस्ट कराने के लिए कहते हैं। इन परीक्षणों के परिणाम देखकर डॉक्टर बताते हैं कि ल्यूकेमिया का प्रकार कौन सा है।

1. खून की जांच

रक्त के नमूने आमतौर पर हाथ की एक नस से लिए जाते हैं, लेकिन छोटे बच्चों और शिशुओं में, यह दूसरे अंगों जैसे पैर या खोपड़ी या केवल उंगली से खून लिया जा सकता है।

2. बोन मैरो एस्पिरेशन और बायोप्सी

पेल्विक (कूल्हे) की हड्डियों के पीछे से अस्थि मज्जा का सैंपल लेकर ये दोनों परीक्षण एक साथ किए जाते हैं। एस्पिरेशन के बाद बोन मैरो बायोप्सी की जाती है। इसमें एक थोड़ी बड़ी सुई की मदद से मज्जा और हड्डी का एक छोटा सा हिस्सा निकाला जाता है। इसके लिए सुई हड्डी में अंदर तक डाली जाती है।

3. लंबर पंचर

इसे स्पाइनल टैप के नाम से भी जाना जाता है। यह सेरेब्रोस्पाइनल द्रव में ल्यूकेमिया कोशिकाओं की जांच के लिए किया जाता है। यह टेस्ट रीढ़ की हड्डी निचले हिस्से में किया जाता है।

ल्यूकेमिया का उपचार

कैंसर का उपचार उसके प्रकार और वह किस स्टेज में है, इस बात पर निर्भर करता है। कैंसर के कुछ रूप धीरे-धीरे बढ़ते हैं और उन्हें तत्काल उपचार की आवश्यकता नहीं होती है। हालाँकि, ल्यूकेमिया के इलाज के लिए आमतौर पर निम्नलिखित में से एक या एक से अधिक उपचारों की जरूरत पड़ सकती है।

1. कीमोथेरेपी

कीमोथेरेपी में बीमार सेल्स को मारने के लिए दवाओं का उपयोग किया जाता है। इसमें एक ही दवा या अलग-अलग दवाओं को मिलकर थेरेपी की जाती है।

2. रेडिएशन थेरेपी

ल्यूकेमिया की कोशिकाओं को मारने और फिर से बढ़ने से रोकने के लिए तीव्र एनर्जी वाले रेडिएशन का उपयोग किया जाता है।

3. स्टेम सेल ट्रांसप्लांट

इसमें रोग में जकड़े हुए बोन मैरो को रोगी के खुद के स्वस्थ बोन मैरो या किसी दाता के स्वस्थ बोन मैरो से बदला जाता है।

4. कार टी-सेल थेरेपी

यह सेल थेरेपी का एक नया रूप है जिसमें कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए विशेष रूप से परिवर्तित टी-कोशिकाओं का उपयोग होता है। इस उपचार में रोगी की खुद की प्रतिरक्षा प्रणाली टी-कोशिकाओं के उपयोग से प्रतिरक्षा प्रणाली में मौजूद कैंसर से लड़ने वाली ताकत को तेज और मजबूत करने का प्रयास करती है।

5. सर्जरी

जब कैंसर के इलाज की बात आती है तो सर्जरी एक हद तक ही उपयोगी होती है। कैंसर कोशिकाएं केवल एक ट्यूमर में जमा नहीं होती बल्कि पूरे शरीर में फैल होती हैं इसलिए किसी एक अंग या उसके आसपास के हिस्सों से ट्यूमर हटाने से उपचार पूरा हो यह जरूरी नहीं है

6. इम्यूनोथेरेपी

यह एक ऐसा इलाज है जो शरीर की अपनी प्रतिरोधक क्षमता को कैंसर कोशिकाओं की पहचान करने और उन्हें नष्ट करने के लिए प्रेरित करता है।

ल्यूकेमिया के उपचार के बाद

एक बार उपचार पूरा हो जाने के बाद, बच्चे को होने वाली किसी भी समस्या के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने की आवश्यकता होती है:

1. फिर से जांच

परीक्षणों की मदद से, डॉक्टर ल्यूकेमिया के संभावित लक्षणों के साथ-साथ उपचार के असर पर भी नजर रखेंगे।

2. मेडिकल रिकॉर्ड रखना

अपने बच्चे की बीमारी और इलाज से जुड़े सभी कागजात संभल कर रखना बहुत महत्वपूर्ण है। कल को यदि आप उपचार के लिए दूसरे डॉक्टर के पास जाते हैं इससे उन्हें इस बारे में पूरी जानकारी पाने में मदद मिलेगी।

रक्त कैंसर के उपचार के दौरान और बाद के सामाजिक और भावनात्मक मुद्दे

कैंसर से बचाव होने के बाद कुछ बच्चों को ठीक होने और जीवन के साथ तालमेल बिठाने में कठिनाई हो सकती है। उपचार के बाद चिंता और भावनात्मक तनाव उसके व्यक्तित्व विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। यह रिश्तों, स्कूली जीवन और अन्य पहलुओं में बाधा डाल सकता है। हालांकि, परिवार, दोस्त, डॉक्टर और सपोर्ट ग्रुप की मदद से बच्चा कैंसर से बचने के बाद जीवन में एक अच्छा और लंबा सफर तय कर सकता है।

ब्लड कैंसर से पीड़ित बच्चों के जीवित रहने की दर

अधिकांश बच्चों में ल्यूकेमिया से उबरने की दर बहुत होती है, कुछ में 90% तक, जिसका अर्थ है कि शरीर में कैंसर कोशिकाओं का कोई निशान बाकि नहीं रह गया है। हालांकि, जीवित रहने की दर ल्यूकेमिया अलग-अलग प्रकार में भिन्न होती है। एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया से पीड़ित बच्चों की जीवित रहने की दर एक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया की तुलना में बहुत अधिक है।

ल्यूकेमिया से पीड़ित बच्चों को न केवल सेहत से जुड़ी समस्याओं बल्कि मानसिक और सामाजिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। इसलिए, उन्हें भरपूर सहानुभूति, प्यार और देखभाल दी जानी चाहिए ताकि वे दूसरों की तरह सामान्य जीवन जी सकें।