शिशुओं में निमोनिया: कारण, लक्षण और उपचार

शिशुओं में निमोनिया: कारण, लक्षण और उपचार

हमारे शरीर में निमोनिया का एक या दोनों फेफड़ों पर असर पड़ता है जिसके कारण वायु कोष बलगम, मवाद और अन्य द्रव से भर जाता है और सांस लेने में कठिनाई होती है। शिशुओं को फ्लू के बाद निमोनिया हो सकता है या सर्दी और विषाणु (वायरस) संक्रमण, इसके होने के सबसे आम कारण है। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले शिशुओं में, गंभीर रूप से निमोनिया होने पर यदि उसे अनुपचारित छोड़ दिया जाए तो उनके जीवन के लिए खतरा हो सकता है। विभिन्न प्रकार के निमोनिया के बारे में और इस समस्या के दौरान बच्चे की देखभाल करने के बारे में जानने के लिए आगे पढ़ें।

निमोनिया क्या है?

जब विभिन्न प्रकार के बैक्टीरिया और वायरस फेफड़ों को संक्रमित करके श्वसन प्रणाली को प्रभावित करते हैं, तो इसे निमोनिया कहा जाता है। यह एक या दोनों फेफड़ों पर असर डाल सकता है और किसी भी व्यक्ति को गंभीर रूप से बीमार कर सकता है। फेफड़ों का वायुकोष संक्रमण से सूज जाता है और मवाद व अन्य तरल पदार्थों से भर जाता है जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है। इसका एक सामान्य लक्षण खांसी है, जिसके बाद फेफड़ों से गाढ़ा बलगम (कफ) निकलता है जो हरे, भूरे रंग का या खून से रंगा हो सकता है। लोग सर्दी या फ्लू के बाद और अक्सर सर्दियों के महीनों में निमोनिया से ग्रसित होते हैं।

निमोनिया बिना किसी चेतावनी के एक, दो या कई दिनों के लिए किसी को भी हो सकता है।इसे गलती से सिर्फ तेज जुकाम भी समझा जा सकता है और खांसी इसका सबसे पहला और आम लक्षण होता है।निमोनिया का इलाज घर पर किया जा सकता है और इसे ठीक होने में लगभग 2 से 3 सप्ताह का समय लगता है। यह समस्या शिशुओं, बुजुर्गों और अन्य बीमारियों से जूझते लोगों में गंभीर व खतरनाक साबित हो सकती है। इस समस्या से ग्रसित लोग बहुत बीमार हो सकते हैं और उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना जरूरी हो सकता है।

निमोनिया के विभिन्न प्रकार क्या हैं?

सामान्यतः निमोनिया फेफड़ों में संक्रमण के लिए एक सामान्य शब्द है जो कई अलगअलग जीवों के कारण हो सकता है। इसे मूल रूप से दो श्रेणियों में बांटा गया है: बैक्टीरियल निमोनिया और वायरल निमोनिया। छोटे बच्चों और शिशुओं में निमोनिया का कारण आमतौर पर रेस्पिरेटरी सिनसिशिअल वायरस (आर.एस.वी.) होता है। शिशुओं में निमोनिया समूहबी स्ट्रेप्टोकोकस (जी.बी.एस.) जैसे रोगजनकों (रोगाणुओं) के कारण हो सकता है, जिसमें आमतौर पर एक सामान्य प्रसव के दौरान जन्म के समय ही संक्रमण होता है। बड़े बच्चों में विभिन्न विषाणुओं और जीवाणुओं के कारण फेफड़ों में संक्रमण से निमोनिया हो सकता है।

1. बैक्टीरियल निमोनिया:

अचानक तेज बुखार, खांसी और तेज श्वसन बैक्टीरियल निमोनिया के विशेष लक्षण हैं। इससे ग्रसित शिशु ठीक से खाते नहीं हैं और बहुत बीमार लगते हैं। अन्य लक्षणों में नाड़ी का तेज चलना, होंठ और नाखून नीले होने जैसे लक्षणों के साथसाथ उन्हें सांस लेने में परेशानी भी हो सकती है (छाती और नाक में जकड़न के साथ सांस लेने में तकलीफ)। बैक्टीरियल निमोनिया से ग्रसित होने का कारण क्लैमाइडोफिला निमोनिया, माइकोप्लाज्मा निमोनिया और स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया जैसे जीवाणु भी हो सकते हैं। माइकोप्लाज्मा निमोनिया के कारण होने वाले संक्रमण से कई बार बच्चों में भी मामूली लक्षण दिखते हैं और अक्सर इसे अजातिक या साधारण निमोनिया भी कहा जाता है। यह स्कूल जाते बच्चों में सबसे आम है और यह समस्या इतनी गंभीर नहीं होती है कि बच्चे को बिस्तर पर आराम करना पड़े। यह अक्सर गर्मियों में विकसित होता है और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। यह संक्रमण एंटीबायोटिक दवाओं से ठीक होता है, जिससे रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ने में मदद मिलती है, हालांकि बाद में संक्रमण संभव है।

2. वायरल निमोनिया:

आमतौर पर, वायरल निमोनिया, जुकाम या फ्लू की तरह शुरू होता है और जैसेजैसे दिन बीतते हैं, इसके लक्षण लगातार ज्यादा प्रभावी होते जाते हैं। वायरल निमोनिया मध्यम श्रेणी का होता है और यह बैक्टीरियल की तरह अचानक से नहीं होता है। यह 4 या 5 वर्ष की आयु के बच्चों में ज्यादा पाया जाता है और वायरल निमोनिया से ग्रसित बच्चों में लक्षण अन्य वायरस जैसे होते हैं, जैसे बुखार, गले में खराश, खांसी, नाक में जकड़न, भूख न लगना, दस्त और ऊर्जा की कमी। बुखार 101.5 डिग्री फारेनहाइट तक रहता है और कुछ बच्चों को घरघराहट का अनुभव भी हो सकता है। हालांकि यह बैक्टीरियल निमोनिया की तुलना में कम गंभीर होता है और साथ ही बच्चों को जीवाणुओं की वजह से होनेवाली बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकता है। निमोनिया का कारण बनने वाले वायरस में आमतौर पर फ्लू वायरस, रेस्पिरेटरी सिनसिशिअल वायरस, एडेनोवायरस और पैराइन्फ्लुएंजा वायरस हैं।

निमोनिया होने के क्या कारण हैं?

बैक्टीरिया, वायरस, कवक और परजीवी जैसे विभिन्न प्रकार के रोगजनकों (रोगाणुओं) के कारण निमोनिया हो सकता है। ज्यादातर स्थितियां वायरल और बैक्टीरियल होती हैं। अक्सर यह ऊपरी श्वसन पथ के संक्रमण से शुरू होता है, जो नाक और गले पर असर करता है। लक्षण 2 या 3 दिनों के बाद दिखाई देना शुरू हो जाते हैं और संक्रमण धीरेधीरे फेफड़ों तक पहुँच जाता है। इससे फेफड़ों में सफेद रक्त कोशिकाएं, बलगम और द्रव भरने लगता है, जो फेफड़ों के वायुकोष में इकट्ठा होता है। इस प्रकार होने वाला जमाव हवा के सुगम मार्ग में बाधा डालता है जिससे सांस लेने में कठिनाई होती है।

इस लक्षण से यह संकेत मिलता है कि किस जीव के कारण निमोनिया हो रहा है। बैक्टीरिया के कारण होने वाले निमोनिया में बच्चे अचानक तेज बुखार और तीव्र श्वसन के साथ काफी जल्दी बीमार पड़ते हैं। वायरस के कारण होने वाला निमोनिया अपने लक्षण धीरेधीरे दिखाता है और कम गंभीर होता है।

शिशुओं में निमोनिया के लक्षण

यदि आपको निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं तो शिशु को बाल रोग विशेषज्ञ के पास ले जाएं :

  • कंपकंपी और पसीने के साथ बुखार।
  • गंभीर खांसी के साथ गाढ़ा बलगम जो कि हरा, पीला या खून मिला हुआ होता है।
  • बच्चा आमतौर पर अस्वस्थ होता है और उसे भूख नहीं लगती।

शिशुओं में निमोनिया के लक्षणनिमोनिया के अधिक गंभीर लक्षण जिसके कारण अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता हो सकती है:

  • तेज गहरी सांस लेना: पसलियों के बीच की त्वचा, रिब केज के नीचे और हँसुली की हड्डी के ऊपर की त्वचा, प्रत्येक सांस के साथ आकुंचित होती है।
  • पिछले 24 घंटों में बच्चे ने तरल पदार्थ का सेवन सामान्य मात्रा के आधे से भी कम किया है।
  • घरघराहट की आवाज (प्रत्येक सांस के साथ एक सीटी जैसी ध्वनि)
  • होंठ और नाखून नीले पड़ना।

निमोनिया एक या दो दिन में हो सकता है या इसके होने मेंं कई दिन भी लग सकते हैं, यह उसके कारक जीवों पर भी निर्भर करता है। दोनों ही मामलों में यह जुकाम की तरह लग सकता है और इसके आरंभिक लक्षणों में खांसी होती है। बाल रोग विशेषज्ञ स्टेथोस्कोप का प्रयोग करके छाती के परीक्षण से कर्कश आवाज और तरल पदार्थों की आवाज सुनते हैं। अन्य लक्षणों के निरीक्षण के साथसाथ बच्चे की हृदय गति और श्वास की जांच भी की जाती है। यदि शिशु विशेष रूप से अस्वस्थ लगता है तो फेफड़े पर इसका कितना असर हुआ है, इसकी जांच के लिए छाती का एक्सरे भी किया जा सकता है। रक्त या बलगम परीक्षण यह निर्धारित करने के लिए भी किया जा सकता है कि यह निमोनिया जीवाणु के कारण है या वायरस के कारण।

शिशु में निमोनिया का इलाज कैसे करें?

यदि बाल रोग विशेषज्ञ सोचते हैं कि निमोनिया हल्का है, तो बच्चे का इलाज घर पर किया जा सकता है। वायरस के कारण हुआ निमोनिया आमतौर पर समय के साथ अपने आप ही कम हो जाता है क्योंकि बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली वायरस से लड़ती है। बैक्टीरिया के कारण हुए निमोनिया का इलाज एंटीबायोटिक दवाओं से किया जाता है। यदि बच्चे का इलाज घर पर किया जा रहा है, तो यह बताना मुश्किल हो सकता है कि संक्रमण का कारण जीवाणु है या वायरस है, क्योंकि घर पर किए गए इलाज में जीव को निर्धारित करने के लिए कोई परीक्षण नहीं होता है। ऐसे मामलों में, शिशु को सुरक्षित करने के लिए डॉक्टर एंटीबायोटिक दवा देते हैं।

निमोनिया के लिए चिकित्सकीय उपचार

यदि निमोनिया बैक्टीरिया के कारण होता है, तो बच्चे को एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं और ये दवाएं टैबलेट या तरल रूप में हो सकती हैं। पहले 48 घंटों के भीतर ही आपको बच्चे में महत्वपूर्ण सुधार दिखाई देने लगेंगे, लेकिन कुछ दिनों तक खांसी बनी रहेगी। यह जरूरी है कि एंटीबायोटिक्स का पूरा कोर्स लिया जाए, भले ही बच्चा बेहतर महसूस करने लगा हो।

यदि बच्चा सांस लेने मे कठिनाई महसूस कर रहा है और 48 घंटों के बाद भी उसकी स्थिति में सुधार नहीं होता है और बुखार के गंभीर होने के संकेत मिलते हैं, तो अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होगी साथ ही, 6 महीने से कम उम्र के शिशुओं को भर्ती किए जाने की संभावना अधिक होती है। अस्पताल के डॉक्टर यह सुनिश्चित करते हैं कि बच्चे को बूंदबूंद करके पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ और एंटीबायोटिक मिलें। यदि सांस लेने में परेशानी होती है, तो एक मास्क के माध्यम से बच्चे को अतिरिक्त ऑक्सीजन दी जाती है। निमोनिया की गंभीरता यह निर्धारित करती है कि बच्चा कितने समय तक अस्पताल में रहता है। कई मामलों में, अस्पताल में एक या दो दिन रहने की जरूरत पड़ सकती है जबकि गंभीर मामलों में अस्पताल में पाँच या छह दिन रहने की जरूरत होती है। यदि अस्पताल से डिस्चार्ज हो जाने के बाद बच्चा अच्छी तरह से ठीक हो जाता है, तो अनुवर्ती (फॉलो अप) उपचार की आवश्यकता नहीं होती है। यदि लक्षण बने रहते हैं, तो आगे के मूल्यांकन के लिए छाती का एक्सरे किया जाता है।

अस्पताल में भर्ती होने से पहले इन संकेतों पर नजर रखने की आवश्यकता है:

  • सांस लेने में कठिनाई होती है।
  • बच्चा निर्जलित/डिहाइड्रेट होता है, क्योंकि वह खातापीता नहीं है।
  • मुँह के माध्यम से एंटीबायोटिक लेने के लिए शिशु बहुत छोटा है।
  • रक्त में ऑक्सीजन का स्तर बहुत कम है।
  • हृदय, फेफड़े या प्रतिरक्षा प्रणाली की स्थिति कमजोर होती है।

निमोनिया के लिए घरेलू उपचार

यदि बच्चे में हल्का निमोनिया है या ऐसा निमोनिया है जो वायरल के कारण हुआ है, तो घर पर उपचार संभव हो सकता है। यदि एंटीबायोटिक दवाओं को शुरू करने के 48 घंटों के बाद स्थिति स्थिर हो जाती है, तो बच्चे को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं है।कई अन्य उपचार हैं जो साथ में में दिए जा सकते हैं, ताकि बच्चे की अस्वस्थता को कम किया जा सके। यह महत्वपूर्ण है कि बच्चे को पूरे दिन भरपूर आराम मिले। बुखार कम करने के लिए डॉक्टर की सलाह के अनुसार शिशु पेरासिटामॉल या शिशु आइबुप्रोफेन दिया जा सकता है। दो महीने से अधिक उम्र के शिशु को शिशुओं का विशेष पेरासिटामॉल दिया जा सकता है। यदि वे तीन महीने से अधिक उम्र के हैं और उनका वजन कम से कम 5 किलोग्राम हैं, तो उन्हें शिशुओं का विशेष आइबुप्रोफेन भी दिया जा सकता है। सुनिश्चित करें कि आपने पैकेट पर सही तरीके से खुराक पढ़ी है और यदि आपको संदेह है तो डॉक्टर या फार्मासिस्ट से सलाह लें। इसके अलावा, बच्चे को सर्दी और खांसी के लिए मेडिकल स्टोर में बिकने वाली कोई भी दवाएं देने से बचें। दुष्प्रभावों के जोखिम के कारण येदवाएं छह साल से कम उम्र के बच्चों के लिए अनुपयुक्त होती हैं।

निमोनिया के लिए घरेलू उपचार

  • अगर बच्चे को बैक्टीरियल निमोनिया है, तो कूल मिस्ट ह्यूमिडिफायर चलाने की कोशिश करें।
  • सुनिश्चित करें कि शिशु को भरपूर आराम मिले।
  • भले ही आपके शिशु का ज्यादा भोजन खाने का मन न हो, लेकिन उसे हाइड्रेटेड रखना महत्वपूर्ण है। उसे लगातार थोड़ीथोड़ी मात्रा में पेय पदार्थ दें और यदि संभव हो तो उसे स्तनपान करवाएं ।
  • गीली लंगोट या डायपर एक संकेत है कि शिशु पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ पी रहा है, इसलिए इसकी जांच नियमति रूप से करें।
  • यदि आपके बच्चे के पेट या सीने में दर्द होता है, तो उसे शिशुओं के लिए बने आइबुप्रोफेन या पेरासिटामॉल को दर्द से राहत के लिए दिया जा सकता है।
  • उसे खांसी की दवाइयां देने से बचें क्योंकि ये दवाइयां निमोनिया में मदद नहीं करती हैं।
  • बच्चे के आसपास धूम्रपान न करें या उसे धूल में व बाहर धुंए में सांस न लेने दें।
  • उच्च तापमान और लंबे समय तक बुखार भले ही चिंताजनक हो, पर यह स्वाभाविक है। तापमान को कम करने के लिए पानी से उन्हें स्पंज द्वारा गीला करने की कोशिश न करें।

निमोनिया से बचाव कैसे करें?

  • समय से टीकाकरण करवाते रहें: न्यूमोकॉकल वैक्सीन (पी.सी.वी.) उन रोगजनकों (रोगाणुओं) से बचाने के लिए दिया जाता है जो निमोनिया, सेप्टिसीमिया (रक्त विषाक्तता) और मेनिंजाइटिस का कारण बनते हैं। कई अन्य टीके डिप्थीरिया, एच.आई.बी. (हेमोफाइलस इन्फ्लुएंजा टाइप बी) और काली खांसी के साथसाथ निमोनिया को भी रोकते हैं।

निमोनिया से बचाव कैसे करें?

  • व्यक्तिगत स्वच्छता बनाए रखें: बच्चे को संभालते समय अपने हाथ साफ रखें और अगर आपके यहाँ देखभाल के लिए कोई नौकरानी है, तो सुनिश्चित करें कि वो भी अच्छी सफाई रखे। खांसी होने पर अपना मुँह ढकें और कीटाणुओं से बचाव के लिए अपने हाथों और शिशु के हाथों को अक्सर धोएं। नियमित रूप से खिलौने, बच्चे को दूध पिलाने की बोतलें, बर्तन और अन्य चीजें जिन पर कीटाणु जम सकते हैं, उन्हें अच्छी तरह साफ करें।

  • घर में धुंआ रहित वातावरण बनाएं: यदि आप या आपके साथी धूम्रपान करते हैं, तो उसे छोड़ने या छुड़वाने की कोशिश करें। यदि ऐसा न कर सकें, तो घर से बाहर थोड़ी दूरी पर धूम्रपान करें। अनुसंधान के अनुसार जो बच्चे सिगरेट के धुंए के संपर्क में आते हैं, वे अधिक बार बीमार पड़ते हैं और उनमें दमा, जुकाम, कान का संक्रमण और निमोनिया जैसी बीमारी होने की आशंका अधिक होती है।

  • अच्छा पोषण: बच्चे को अच्छी तरह से पोषण देना महत्वपूर्ण है, जिससे वे संक्रमण से लड़ने में पर्याप्त मजबूत होते हैं। पहले 6 महीनों के लिए शिशु को विशेष रूप से स्तनपान कराना, आपके बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के बेहतर तरीके हैं। माँ के दूध में आपके शरीर द्वारा उत्पादित एंटीबॉडी होते हैं, जो बच्चे को संक्रमण से लड़ने में मदद करते हैं, जबकि इसकी प्रतिरक्षा प्रणाली अभी भी विकसित हो रही है। जैसा कि आप शिशु को धीरेधीरे ठोस खाद्य पदार्थों से परिचित कराते हैं, माँ के दूध को एंटीबॉडी और पोषक तत्वों के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में रखें, जब तक कि वह पूरी तरह से ठीक न हो जाए।

  • अतिरिक्त देखभाल: समय से पहले जन्मे शिशुओं को आरंभ से ही अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है क्योंकि उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है जिससे उन्हें संक्रमण का खतरा होता है।

समय से टीकाकरण, अच्छा पोषण और स्वच्छता के द्वारा निमोनिया से बचाव हो सकता है। यहाँ तक कि अगर आपके बच्चे को निमोनिया हुआ भी है तो समय पर उपचार और देखभाल होने से वह पूरी तरह से ठीक हो सकता है।