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यह कहानी टीकू चिड़िया और उसके परिवार की है, जिसे एक भली महिला रोजाना खाना दिया करती थी। उस महिला की मृत्यु के बाद टीकू और उसके परिवार को खाने के लिए दर दर भटकना पड़ा। पूरे परिवार की खोज के बाद जो खाना जमा होता वो उनको कम पढ़ता। टीकू चिड़िया को यह अहसास हुआ कि कुछ क्षण भर की सुविधा के लिए हम भूल जाते हैं कि हमें अपनी चीजों के लिए खुद ही हाथ-पैर मारना होता है। कोई यदि सहायता कर भी दे तो उस पर ही आश्रित नहीं होना चाहिए, क्योंकि जिस दिन किसी कारण हमें उस व्यक्ति से मदद मिलना बंद हो जाती है उस समय हम खुद को मजबूर और कमजोर महसूस करने लगते हैं। इसलिए सिर्फ अपनी क्षमता पर ही भरोसा करना चाहिए।
बहुत सालों पहले की बात है घंटाघर में एक टीकू नाम की चिड़िया रहती थी। वो अपने माता-पिता और पाँच भाइयों के साथ वहाँ रहती थी। वो बहुत नाजुक सी प्यारी सी चिड़िया थी और उसके पंख बहुत कोमल थे। टीकू की माँ ने घंटाघर की ताल पर ही उसे चहकने का अभ्यास कराया था।
घंटाघर से नजदीक एक घर था, जहाँ एक महिला रहती थी और उसे पक्षियों से बहुत प्यार और लगाव था। वो महिला रोजाना टीकू और उसके घरवालों के लिए रोटी का टुकड़ा डाला करती थी।
एक बार वह महिला बीमार हो गई और बीमारी के चलते उसकी मौत हो गई। महिला के इस दुनिया से चले जाने से टीकू और उसका परिवार भूखा रहने लगा, क्योंकि उसका पूरा परिवार खाने के लिए उस महिला पर ही निर्भर था। अब ना तो टीकू के परिवार के पास खुद कुछ खाने को था ना ही वे खुद अपने लिए खाना ढूँढ पाते थे।
दिन पर दिन भूख से टीकू के परिवार की हालत खराब होने लगी, टीकू के पिता ने कीड़ों का शिकार करने का फैसला किया और बहुत मुश्किलों से उन्हें तीन कीड़े मिले लेकिन इतने बड़े परिवार के लिए यह खाना बहुत कम था।
खाने की तलाश में टीकू उसके भाई और माँ भी जगह-जगह खाने की खोज में निकल पड़े। एक घर की खिड़की के पास टीकू की माँ ने अपनी चोंच से उस खिड़की के पास जाकर खिड़की खोलना चाहा तो वहाँ भी कुछ खाने को भी मिला बल्कि उस मकान के मालिक ने गुस्से में आकर उन पर राख फेंक दी जिससे टीकू की माँ उसके भाई और वो खुद खाकी रंग के हो गए।
दूसरी ओर टीकू के पिता को खाने की खोज करते करते एक ऐसी जगह मिलती है जहां अधिक संख्या में कीड़े थे। पिता खुश थे क्योंकि अब उनके कई दिनों के खाने का प्रबंध हो गया था। वो खाना लेकर बहुत उत्साह के साथ घर पहुँचा तो देखता है कि उसके घर पर कोई भी मौजूद नहीं है। यह देखकर वो बहुत परेशान हो उठा कि आखिर सब गए कहां।
जब टीकू चिड़िया अपनी माँ और भाइयों के साथ घर वापस लौटी तो टीकू के पिता अपने परिवार के ही लोगों को नहीं पहचान पाए और टीकू के लाख समझाने के बाद भी वो नहीं माने और गुस्से में उन्हें वहाँ से निकल जाने के लिए कहा। टीकू चिड़िया कहती रह गई कि हमारे ऊपर किसी ने राख फेंक दी इसलिए आप हमें नहीं पहचान पा रहे पर उसके पिता ने उनकी एक ना सुनी।
पिता को समझा-समझा कर अब सब निराश हो चुके थे और हार मान चुके थे लेकिन टीकू चिड़िया ने हार नहीं मानी, वो अपनी माँ और भाइयों को तालाब लेकर गई और सबसे पानी में जाकर नहाने के लिए कहा जिससे उनके शरीर पर लगी राख साफ हो गई और सब अपने पहले रूप में वापस आ गए। टीकू के पिता को अपने किए पर पछतावा हुआ और उन्होंने टीकू समेत उसकी माँ और अन्य बच्चों से माफी मांगी।
भूखी चिड़िया की इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें पूरी तरह दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए और हमेशा खुद पर ही भरोसा करना चाहिए।
भूखी चिड़िया की कहानी एक पंचतंत्र की कहानी है और इससे एक अच्छी प्रेरणा मिलती है।
इस कहानी की नैतिकता ये है कि यदि आप हमेशा दूसरों पर निर्भर रहेंगे तो विपत्ति आने पर आपको कठिनाई का सामना करना पड़ता है यदि खुद के सामर्थ्य पर ही भरोसा होगा तो समय आने पर आप अपनी सहायता स्वयं कर सकते हैं।
टीकू चिड़िया को रोजाना खाना देने वाली महिला की जब मृत्यु हुई तो टीकू के घर में खाने का अकाल पड़ गया। टीकू चिड़िया को अहसास हुआ कि वो उस महिला पर कितना निर्भर थी कि उसने यह कभी सोचा ही नहीं कि अगर उसे यह खाना नहीं मिला तो वो अपना और परिवार का पेट कैसे भरेगी।
इस कहानी का तात्पर्य यह है कि कोई आपके लिए कुछ करता है तो आप खुद को उसके भरोसे पूरी तरह न छोड़ दें, क्योंकि जिस दिन वो व्यक्ति आपके जीवन से गया आप खुद को असहाय महसूस करने लगते हैं। हमेशा खुद को हर अच्छी बुरी परिस्थिति के लिए तैयार रखें और मुश्किल समय आने पर हिम्मत न हारे।
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