गर्भावस्था

बायकॉर्नुएट (हार्ट शेप) गर्भाशय

कभी-कभी गर्भावस्था में महिलाओं को ऐसे अनुभव हो सकते हैं, जो दुर्लभ और अनसुने हों। किसी महिला के गर्भाशय में प्राकृतिक रूप से अब्नॉर्मलिटी हो सकती है जो गर्भाशय के शेप और स्ट्रक्चर को प्रभवित करती है। महिलाओं को अक्सर गर्भाशय की समस्याओं के बारे में तभी पता चलता है जब वे गर्भवती होती हैं। अक्सर जिन महिलाओं में इंफर्टिलिटी की समस्याएं होती हैं उनमें लगभग 13 महिलाओं में से किसी एक में गर्भाशय से संबंधित समस्या जरूर होती है। इसमें एक समस्या बायकॉर्नुएट गर्भाशय की भी है जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। 

बायकॉर्नुएट गर्भाशय क्या है?

बायकॉर्नुएट गर्भाशय या हार्ट शेप गर्भाशय महिलाओं में एक ऐसी समस्या है जिसमें गर्भाशय का ऊपरी बीच का भाग दबा रहता है और दोनों साइड में हॉर्न जैसे निकले होते हैं। इन दो हॉर्न के बीच में एक पार्टीशन होता है जिसे सेप्टम कहते हैं।  

बायकॉर्नुएट बनाम नॉर्मल गर्भाशय

महिला के गर्भ के ऊपर और गर्भाशय के दोनों साइड में प्रोट्रूशन (यूटराइन प्रोलैप्स) मौजूद होने से बायकॉर्नुएट गर्भाशय का पता चलता है। प्रोट्रूशन से ही गर्भाशय का शेप हार्ट जैसा हो जाता है, इसका मतलब यह नहीं है कि गर्भाशय पूरी तरह से विभाजित हो गया है। गर्भाशय पूर्ण ही रहता है पर अपनी माँ के गर्भ में होने के दौरान ही महिला के गर्भ में फीमेल एम्ब्रियोनिक डेवलपमेंट होते समय इसका आकार बिगड़ जाता है।  

गर्भावस्था के 5वें सप्ताह में फीमेल फीटस में एक नॉर्मल गर्भाशय विकसित होता है। यह निर्माण तब शुरू होता है जब दो अलग-अलग हिस्से जिन्हें हॉर्न्स कहा जाता है, वे पेल्विस की ओर बढ़ते हैं और गर्भाशय बनाने के लिए एक दूसरे से जुड़ जाते हैं। इसके जोड़ को सेप्टम कहा जाता है जो एक गर्भाशय के दो भाग बना देता है। इसी से बाद में अंतर्गर्भाशयी गुहा बनती है। बायकॉर्नुएट गर्भाशय तब बनता है जब हॉर्न्स पेल्विस में मूव करते हैं पर पूरी तरह से जुड़ नहीं पाते हैं। इसका ऊपरी भाग अंदर की ओर घुस जाता है और निचला भाग नॉर्मल ही रहता है।

बायकॉर्नुएट गर्भाशय के साथ गर्भावस्था होना बहुत कठिन है क्योंकि इसमें भ्रूण का विकास दो हॉर्न्स में से किसी एक या उभार में होता है (ऊपरी भाग में या किसी एक साइड में)। ऐसी स्थिति में गर्भावस्था पूर्ण नहीं होती है और इसके परिणामस्वरूप महिला का प्राकृतिक रूप से अबॉर्शन हो सकता है। 

इस समस्या की गंभीरता हर महिला में अलग-अलग होती है। यह कॉम्प्लिकेशन हल्के या गंभीर भी हो सकता है। यद्यपि अपूर्ण बायकॉर्नुएट गर्भाशय होना एक छोटी समस्या है पर गर्भाशय का शेप पूरी तरह से अब्नॉर्मल होना एक गंभीर समस्या होती है। अपूर्ण बायकॉर्नुएट गर्भाशय होने से गर्भाशय का ऊपरी भाग अंदर की ओर घुस जाता है और इससे भ्रूण का विकास धीमा हो सकता है। गर्भाशय का आकार गंभीर रूप से अब्नॉर्मल होने पर गर्भाशय का ऊपरी भाग अंदर की ओर घुसा हुआ होता है और यह यूटरीन कैविटी को दो भाग में बांट देता है जिसकी वजह से भ्रूण का निर्माण होने में कठिनाई होती है। 

बायकॉर्नुएट गर्भाशय होने के क्या कारण हैं?

यह समस्या कई कॉम्प्लेक्स फैक्टर्स की वजह से होती है। हार्ट शेप गर्भाशय होने के क्या कारण हो सकते हैं, आइए जानें;

बायकॉर्नुएट गर्भाशय का निर्माण बच्चे के विकास के दौरान होता है। यह एक एम्ब्र्योजेनेसिस प्रोसेस है और इस प्रोसेस के दौरान यदि कोई भी समस्या होती है तो इसके परिणामस्वरूप बायकॉर्नुएट गर्भाशय हो सकता है। 

एक महिला के शरीर में फैलोपियन ट्यूब, गर्भाशय, सर्विक्स और वजायना का ऊपरी भाग पैरामेसोनेफ्रिक डक्ट्स से विकसित होता है। यह एम्ब्र्यो में दो डक्ट के रूप में रहते हैं जो यूरोजेनिटल रिज (गोनाडल रिज या मूत्रजननांग रिज) तक जुड़े होते हैं। फ्यूजन प्रोसेस के दौरान कोई भी बदलाव होने की वजह से इन डक्ट्स के निर्माण में प्रभाव पड़ता है।

महिला में पैरामेसोनेफ्रिक डक्ट बनते समय कोई भी बदलाव होने की वजह से गर्भाशय का ऊपरी हिस्सा दो भागों में बंट जाता है और निचले हिस्से में कोई भी बदलाव नहीं होता है। 

यह समस्या होने से एक महिला को इंटौक्सिकेटिड और चक्कर आने जैसा महसूस हो सकता है। इसके अलावा गर्भावस्था की पहली तिमाही में महिलाओं को विटामिन की कमी, इन्फेक्शन, गर्भावस्था के दौरान चिंता, भ्रूण में हाइपोक्सिया, एंडोक्राइम समस्याएं या दिल से संबंधित रोग भी हो सकते हैं। 

बायकॉर्नुएट गर्भाशय होने के लक्षण

महिला में बायकॉर्नुएट गर्भाशय के कई लक्षण दिखाई दे सकते हैं। यद्यपि यदि एक महिला को इन लक्षणों का अनुभव होता भी है लेकिन गर्भावस्था से पहले इसे समझ पाना बहुत कठिन है। यहाँ पर हार्ट शेप गर्भाशय के कुछ लक्षण बताए गए हैं, आइए जानें;

  • पेट में दर्द होना
  • अनियमित, बहुत ज्यादा और दर्द के साथ पीरियड्स होना
  • अब्नॉर्मल ब्लीडिंग होना
  • ओवुलेशन के दौरान दर्द होना
  • इंफर्टिलिटी
  • मिसकैरेज

यदि आपको इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई देता है तो आप तुरंत गायनोकोलॉजिस्ट से संपर्क करें और वे इन समस्याओं का पता लगाने के लिए अल्ट्रासाउंड करने की सलाह दे सकते हैं। 

बायकॉर्नुएट गर्भाशय होने से गर्भावस्था के परिणाम पर प्रभाव

यदि किसी महिला का गर्भाशय बायकॉर्नुएट है तो उसे गर्भधारण करने में कठिनाई हो सकती है। यदि कोई महिला कंसीव कर भी लेती है तो गर्भावस्था के दौरान उसे बहुत सारी समस्याएं और कॉम्प्लीकेशंस हो सकती हैं। यदि किसी महिला का गर्भाशय बायकॉर्नुएट है तो उसे निम्नलिखित समस्याएं हो सकती हैं, आइए जानें;

1. गर्भवती होने पर समस्याएं होती हैं

यदि आप बायकॉर्नुएट गर्भाशय से ग्रसित हैं तो आपकी नॉर्मल व हेल्दी गर्भवस्था होना बहुत कठिन है। इस समस्या के कारण आपकी गर्भावस्था में कई सारी समस्याएं आ सकती हैं और गर्भावस्था पूर्ण होने की संभावनाएं भी बहुत कम हैं क्योंकि गर्भ में पल रहे बच्चे का विकास रुक जाता है। 

2. गर्भावस्था पूरी होने की संभावनाएं कम हो जाती हैं

बायकॉर्नुएट गर्भाशय में बच्चे का विकास नहीं होता है। इस वातावरण में भ्रूण के विकसित होने की वजह से गर्भावस्था को खतरा हो सकता है। इस समस्या की वजह से गर्भावस्था बीच में ही खत्म हो सकती है। बायकॉर्नुएट गर्भाशय के मामले में भ्रूण दो हॉर्न्स में से एक में विकसित होता है। जिस वजह से बच्चे को विकसित होने के लिए जगह नहीं मिल पाती है और इसके परिणामस्वरूप मिसकैरेज हो सकता है। आमतौर पर बच्चे के विकास के साथ-साथ नॉर्मल गर्भाशय फैलता है पर बायकॉर्नुएट गर्भाशय बच्चे के विकास के साथ फैलता नहीं है। 

3. बच्चे की पोजीशन अब्नॉर्मल होती है

यदि बायकॉर्नुएट गर्भाशय में भ्रूण बड़ी जगह पर विकसित हो जाता है तो गर्भावस्था पूर्ण हो सकती है। इसके बावजूद भी गर्भ में पल रहे बच्चे की पोजीशन अब्नॉर्मल हो सकती है (ब्रीच या ट्रांस्वर्स पोजीशन)।

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बच्चा डाउनवार्ड पोजीशन में नहीं आ पाता है। गर्भावस्था बढ़ने के साथ-साथ भ्रूण का विकास भी होता है और इस असामान्य पोजीशन की वजह से गर्भ में बच्चे को बहुत ज्यादा असुविधाएं होती हैं। ऐसी स्थिति में 15 से 20% मामलों का परिणाम प्रीमैच्योर जन्म होता है। 

4. बायकॉर्नुएट गर्भावस्था में खतरे होते हैं

यदि आपका गर्भाशय बायकॉर्नुएट है तो डॉक्टर आपको खतरे से सावधान रहने के लिए कहते हैं। वे आपकी पूरी जांच भी करते हैं ताकि इस समस्या का कोई बेहतर इलाज निकाल सकें। 

5. बायकॉर्नुएट गर्भाशय में मिसकैरेज होने की संभावना अधिक होती है

गर्भावस्था के दौरान आधे से ज्यादा अब्नॉर्मल गर्भाशय वाली महिलाओं का मिसकैरेज हो जाता है। 

6. प्री-टर्म डिलीवरी की संभावना अधिक होती है

इस समस्या की वजह से गर्भावस्था पूरी होने की संभावनाएं बहुत कम होती है (लगभग चार में से एक महिला)। प्रीमैच्योर जन्म के मामले में बच्चे को इन्क्यूबेटर में रखा जाता है और देखभाल व ट्रीटमेंट के लिए वह लगातार डॉक्टर की निगरानी में ही रहता है। 

7. गर्भाशय के अब्नॉर्मल शेप में प्रोजेस्ट्रोन की ज्यादा जरूरत पड़ती है

गर्भाशय का अब्नॉर्मल शेप होने की वजह से गर्भाशय की परत में समस्याएं हो सकती हैं। यह प्रीटर्म डिलीवरी के मुख्य कारणों में से एक है। गर्भाशय के अब्नॉर्मल शेप में प्रोजेस्ट्रोन हॉर्मोन की आवश्यकता बहुत ज्यादा मात्रा में होती है जो गर्भाशय की दीवारों या परत को मोटा बना देती हैं। कई मामलों में दर्द को कम करने के लिए महिलाओं को इंजेक्शन दिया जाता है। 

8. बच्चे के जन्म की संभावना कम हो जाती है

गर्भावस्था से पहले बायकॉर्नुएट गर्भाशय के बारे में मालूम होना एक आम बात है। यद्यपि बायकॉर्नुएट गर्भाशय के साथ बच्चे को जन्म देने की संभावनाएं बहुत कम हैं पर ऐसे भी कई मामले हैं जिनमें महिलाओं ने एक हेल्दी बच्चे को जन्म दिया है। वास्तव में ऐसी भी संभावनाएं हो सकती हैं कि आपको अपनी समस्याओं के बारे में पता न हो फिर भी आपने एक हेल्दी बच्चे को जन्म दिया हो। 

9. गर्भावस्था के शुरूआती समय में प्रोजेस्ट्रोन की जरूरत होती है

यदि डॉक्टर के अनुसार आप बायकॉर्नुएट गर्भाशय से ग्रसित हैं तो आपके लिए गर्भावस्था के शुरूआती समय से ही प्रोजेस्ट्रोन के इंजेक्शन लेना बहुत जरूरी है। कई मामलों में यह इंजेक्शन शुरुआती सप्ताह से 36वें सप्ताह तक दिए जाते हैं। गर्भावस्था के 34वें सप्ताह तक आपके शरीर में प्रोजेस्ट्रोन की मात्रा कम हो जाती है। यदि आपका गर्भाशय बायकॉर्नुएट है तो गर्भावस्था का पूरा होना कठिन हो सकता है। ऐसे मामलों में गर्भवस्था की वृद्धि के लिए गर्भवती महिला को प्रोजेस्ट्रोन के इंजेक्शंस दिए जाते हैं। 

10. नॉर्मल डिलीवरी के बजाय सिजेरियन करवाने की जरूरत भी पड़ सकती है

बायकॉर्नुएट गर्भाशय के मामले में डॉक्टर नॉर्मल डिलीवरी के बजाय सी-सेक्शन करवाने की सलाह देते हैं। जन्म के लिए सी-सेक्शन करवाने से कॉप्लिकेशन कम हो जाती है। यदि आप नॉर्मल डिलीवरी करवाती हैं तो इससे कई सारी समस्याएं हो सकती हैं क्योंकि गर्भाशय का शेप अब्नॉर्मल होने की वजह से बच्चे की पोजीशन ब्रीच हो सकती है। 

11. बच्चे का विकास रुक सकता है

गर्भाशय का शेप अब्नॉर्मल होने की वजह से गर्भावस्था के दौरान बच्चे पर प्रभाव पड़ता है जिसकी वजह से उसका विकास धीमा होता है या रुक जाता है। ऐसी स्थिति में जेस्टेशनल आयु के अनुसार गर्भ में पल रहे बच्चे का वजन सामान्य की तुलना में बहुत कम होता है। हालांकि यह समस्या अक्सर नहीं होती है। कई मामलों में महिलाओं को या तो एबॉर्शन करवाना पड़ता है या फिर बच्चे का जन्म बहुत पहले ही हो जाता है। 

बायकॉर्नुएट गर्भाशय का डायग्नोसिस

गर्भावस्था के शुरूआती समय में ही अल्ट्रासाउंड करवा लेने से इस समस्या का पता लग सकता है। इस दौरान महिलाओं का डायग्नोसिस करने के लिए उनके गर्भाशय में इंट्यूबेशन प्रोसेस किया जाता है। इस प्रक्रिया में गर्भाशय का शेप भी देखा जा सकता है और पता लगाया जा सकता है कि महिला का गर्भाशय बायकॉर्नुएट है या नहीं। डॉक्टर द्वारा पेल्विक की जांच या एम.आर.आई. करने से भी बायकॉर्नुएट गर्भाशय का पता लगाया जा सकता है।     

डॉक्टर बायकॉर्नुएट गर्भाशय का पता लगाने के लिए हिस्टेरोसलपिंगोग्राफी (एस.एच.जी.) या हिस्टेरोस्कोपी जांच कर सकते हैं। एच.एस.जी. एक प्रकार का एक्स-रे होता है जिसका उपयोग गर्भाशय और फैलोपियन ट्यूब की जांच के लिए किया जाता है। यह प्रक्रिया नॉन-इन्वेसिव होती है जिसकी मदद से डॉक्टर को समस्या का पता लगाने में आसानी होती है। दूसरी तरफ हिस्टेरोस्कोपी एक इन्वेसिव प्रक्रिया होती है जिससे डॉक्टर सर्विक्स और गर्भाशय के आंतरिक भाग की जांच करते हैं। 

डॉक्टर इस अब्नॉर्मलिटी का पता लगाने के लिए वजायनल, एब्डॉमिनल सेंसर या लेप्रोस्कोपी की मदद से बायकॉर्नुएट गर्भाशय का अल्ट्रासाउंड भी करते हैं। इस डायग्नोसिस को दोबारा से कन्फर्म करना बहुत जरूरी है क्योंकि ऐसा भी हो सकता है कि यह जांच ठीक से न हुई हो। आपको सेप्टेट यूटरी नामक समस्या भी हो सकती है जिसे गलती से बायकॉर्नुएट गर्भाशय समझा जा सकता है। यद्यपि ये दोनों समस्याएं समान ही लगती हैं पर इनका ट्रीटमेंट अलग-अलग तरीके से किया जाता है। एक बार में सही ट्रीटमेंट करवाने से पहले दोबारा जांच कर लेना बेहतर है।

बायकॉर्नुएट गर्भाशय का ट्रीटमेंट

यदि आपका गर्भाशय बायकॉर्नुएट है और आप गर्भधारण करना चाहती हैं तो डॉक्टर आपको रेकंसट्रक्टिव सर्जरी करवाने की सलाह दे सकते हैं। बायकॉर्नुएट गर्भाशय की सर्जरी को मेट्रोप्लास्टी भी कहते हैं और यह गर्भाशय का आकार ठीक कर देती है। 

  • डॉक्टर गर्भाशय में कैविटी को अलग करने के लिए पहले चीरा (इंसीजन) लगाते हैं।
  • एक बार जब कैविटी अलग हो जाती है तो डॉक्टर लेयर्ड क्लोजर का उपयोग करते हैं और वर्टीकल पोजीशन के लिए एक और चीरा लगाते हैं।
  • चीरे का क्लोजर भी सिजेरियन ऑपरेशन की तरह ही किया जाता है।

सर्जरी होने के बाद महिला को गर्भवती होने का प्रयास करने से पहले चीरे के घाव को ठीक होने तक इंतजार करना चाहिए। इसे पूरी तरह से ठीक होने में लगभग 3 से 5 महीने लगते हैं। 

गर्भाशय को हेल्दी रखने के लिए आपको इसकी स्ट्रेंथ, सर्कुलेशन और पोजीशन बनाए रखने की जरूरत है। यदि आपने गर्भावस्था की योजना पहले से ही बना ली है या आप गर्भाशय के अब्नॉर्मल शेप के साथ जन्म व लेबर का सामना करने को तैयार हैं तो यह जरूरी है कि आपका गर्भाशय ठीक रहे। 

हार्ट शेप के गर्भाशय को ठीक करने और इसके फंक्शन को बेहतर बनाए रखने के लिए निम्नलिखित कुछ बेस्ट तरीके बताए गए हैं, आइए जानें;

  • लगातार एक्सरसाइज करें और डायट बनाए रखें: आप होल फूड्स खाएं और न्यूट्रिएंट-युक्त आहार का ही सेवन करें। इसके लिए आप कार्डियो एक्सरसाइज करें, जैसे वॉकिंग, जॉगिंग और फर्टिलिटी योगा। ये एक्सरसाइज आपके गर्भाशय में सुधार करने और इसकी सेहत व पोजीशन को बनाए रखने के लिए बेस्ट हैं।
  • सेल्फ फर्टिलिटी और माया एब्डॉमिनल मालिश करवाएं: इस मालिश से आपका गर्भाशय सही पोजीशन में आ सकता है। यह ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ाने और बनाए रखने में व पीरियड्स को ठीक रखने में मदद करता है। इससे गर्भाशय की मांसपेशियों में मजबूती आती है।
  • हर्ब्स का उपयोग करें: ऐसी बहुत सारी हर्ब्स उपलब्ध हैं जो इन समस्याओं को ठीक कर सकती हैं। यूटराइन टॉनिक से गर्भाशय के संकुचन को कम करने और मांसपेशियों को ठीक रखने में मदद मिलती है। ओवुलेशन को ठीक रखने के लिए आप हर्ब्स का उपयोग रोजाना कर सकती हैं। यूटराइन टॉनिक के रूप में रास्पबेरी की पत्तियां और इवनिंग प्रिमरोज ऑयल का उपयोग किया जा सकता है।

यदि आपका गर्भाशय अब्नॉर्मल शेप का है और आप ऐसे में ही गर्भधारण करना चाहती हैं तो बहुत जरूरी है कि इसके लिए आप पहले से ही एक अच्छा प्लान बनाएं। इससे आपकी गर्भावस्था, लेबर, डिलीवरी और बच्चा हेल्दी होने की संभावनाएं बेहतर हो सकती हैं। 

यह भी पढ़ें:

एंडोमेट्रियम थिकनेस या गर्भाशय की परत मोटी होना

सुरक्षा कटियार

Recent Posts

अ अक्षर से शुरू होने वाले शब्द | A Akshar Se Shuru Hone Wale Shabd

हिंदी वह भाषा है जो हमारे देश में सबसे ज्यादा बोली जाती है। बच्चे की…

2 days ago

6 का पहाड़ा – 6 Ka Table In Hindi

बच्चों को गिनती सिखाने के बाद सबसे पहले हम उन्हें गिनतियों को कैसे जोड़ा और…

2 days ago

गर्भावस्था में मिर्गी के दौरे – Pregnancy Mein Mirgi Ke Daure

गर्भवती होना आसान नहीं होता और यदि कोई महिला गर्भावस्था के दौरान मिर्गी की बीमारी…

2 days ago

9 का पहाड़ा – 9 Ka Table In Hindi

गणित के पाठ्यक्रम में गुणा की समझ बच्चों को गुणनफल को तेजी से याद रखने…

4 days ago

2 से 10 का पहाड़ा – 2-10 Ka Table In Hindi

गणित की बुनियाद को मजबूत बनाने के लिए पहाड़े सीखना बेहद जरूरी है। खासकर बच्चों…

4 days ago

10 का पहाड़ा – 10 Ka Table In Hindi

10 का पहाड़ा बच्चों के लिए गणित के सबसे आसान और महत्वपूर्ण पहाड़ों में से…

4 days ago