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एक माँ के तौर पर, आपके बच्चे का स्वास्थ्य आपके लिए सबसे ज्यादा मायने रखता है! लेकिन क्या हो, अगर आप किसी ऐसी बीमारी से ग्रस्त हो जाएं, जो कि हर किसी में बहुत ही आम है, जैसे चिकन पॉक्स। चिकन पॉक्स, जिसे हम चेचक या छोटी माता के नाम से भी जानते हैं, वैरिसेला-जोस्टर वायरस के कारण होता है और जहाँ यह सबसे अधिक बच्चों को चपेट में लेता है, वहीं, कई बार वयस्क भी इसके शिकार हो जाते हैं। साथ ही, चूंकि यह संक्रामक होता है, इसलिए विशेष रूप से ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली माँओं के लिए यह चिंता का एक विषय बन जाता है।
ऐसे कुछ संकेत हैं, जो कि नई माँ के इस बीमारी से संक्रमित होने को दर्शाते हैं:
यह बहुत ही आम लक्षण है। ये रैश छोटे-छोटे पिगमेंटेशन के रूप में दिखते हैं और फिर आकार में बढ़कर फफोले का रूप ले लेते हैं, जिस पर बाद में पपड़ी पड़ जाती है।
रैशेज के बनने से कुछ दिनों पहले, आपके सिर समेत पूरे शरीर में दर्द होने लगता है।
समय के साथ आपको हल्का बुखार हो जाता है, जो कि यह संकेत देता है, कि अब आपको मेडिकल सलाह ले लेनी चाहिए।
एनर्जी में कमी, थकान और वायरल बीमारी जैसा महसूस होना, इस बीमारी का संकेत देता है।
आमतौर पर, चिकन पॉक्स की पहचान के लिए कोई विशेष टेस्ट करने की जरूरत नहीं होती है। शरीर पर आए रैश को देखकर ही अक्सर डॉक्टर यह बता देते हैं, कि आपको चिकन पॉक्स है या नहीं। कुछ मामलों में स्थिति की गंभीरता और किसी विशेष स्थिति (अगर महिला गर्भवती हो) के आधार पर, डॉक्टर वायरस के लिए ब्लड टेस्ट करने की सलाह दे सकते हैं।
ब्रेस्टफीडिंग के दौरान, चिकन पॉक्स का इलाज करने के लिए, निश्चित रूप से अपने फिजिशियन के निर्देशों का पालन करना सबसे बेहतर है। साथ ही, रैश में होने वाली खुजली से आराम दिलाने के लिए, कैलामाइन लोशन एक अच्छा स्रोत है, जिसे आप सुरक्षित रूप से अपने शरीर पर लगा सकते हैं।
अधिकतर बच्चों और वयस्कों के लिए ओवर द काउंटर दवाएं काम कर सकती हैं, लेकिन, चूंकि आप बच्चे को दूध पिला रही होती हैं, इसलिए ऐसे में, डॉक्टर की दी गई दवाओं का सेवन ही सबसे अच्छा होता है।
ज्यादातर डॉक्टर, एंटीहिस्टामाइन भी प्रिसक्राइब करेंगे, जो कि खुजली वाले रैशेज से आराम दिलाने में मदद करती है। हालांकि जरूरत के अनुसार आपको यह कम लग सकता है, लेकिन ब्रेस्टफीडिंग के दौरान इन्हें लेना ही सबसे अच्छा है।
स्टडीज दर्शाती हैं, कि जब एक नई माँ को डिलीवरी के बाद वैक्सीन लगाई जाती है, तो ऐसे मामलों में, न तो माँ के दूध में वैरिसेला वायरस दिखता है और न ही यह वायरस बच्चे में जा सकता है। डॉक्टर, फिजिशियन को इस बात के लिए प्रोत्साहित करते हैं, कि प्रेगनेंसी के दौरान उन महिलाओं की पहचान की जाए, जिन्हें इस वायरस का खतरा ज्यादा है और उन्हें डिलीवरी के बाद यह वैक्सीन दी जाए। इसलिए ब्रेस्टफीडिंग कराने के दौरान वैक्सीन लेना बिल्कुल सुरक्षित है।
आम धारणा के विपरीत, जिन महिलाओं को चिकन पॉक्स होता है, उनके दूध में चिकन पॉक्स का वायरस नहीं पाया जाता है। बल्कि, ब्रेस्ट मिल्क में जरूरी एंटीबॉडीज होते हैं, जो कि बच्चे को चिकन पॉक्स से सुरक्षित रख सकते हैं।
जहाँ ब्रेस्टफीडिंग के दौरान वैरिसेला वैक्सीन का ट्रांसफर होना संभव नहीं है, वहीं इस बीमारी की संक्रामक प्रवृत्ति के कारण, चिकन पॉक्स होने पर डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी है, क्योंकि, आपका बच्चा भी इसकी चपेट में आ सकता है।
डॉक्टरों के अनुसार, चिकन पॉक्स से ग्रस्त माँ हमेशा की तरह अपने बच्चे को सुरक्षित रूप से ब्रेस्टफीड करा सकती है, लेकिन, अगर इस बीमारी के कारण ब्रेस्ट पर रैशेज या वेसिकल हों, तो बच्चे की सुरक्षा के लिए उसे ढकना जरूरी है।
यदि माँ में, बच्चे के जन्म के बाद 2 दिनों या उससे कम समय में बीमारी के लक्षण दिखने लगते हैं और उस पर तुरंत मेडिकल अटेंशन देने की जरूरत होती है।
रैशेज में लगातार होने वाली खुजली आपको परेशानी में डाल सकती है। प्रिस्क्राइब की गई दवाओं के साथ-साथ नीचे दी गई कुछ घरेलू दवाओं में से किसी का इस्तेमाल करके, इस तकलीफ को कम करने का प्रयास किया जा सकता है:
ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली माँ में चिकन पॉक्स गंभीर चिंता का एक कारण नहीं है और न ही इसमें माँ और बच्चे के रोज के ब्रेस्टफीडिंग रूटीन में बदलाव की कोई जरूरत होती है। सही इलाज के साथ, स्तनपान कराने वाली माँ इस बीमारी के साथ भी अपने बच्चे को सामान्य रूप से ब्रेस्ट फीड करा सकती है।
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