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एक अच्छी और अनुकूल पेरेंटिंग पद्धति को स्थापित करना सबसे कठिन कामों में से एक है। बुरी पेरेंटिंग के कुछ ऐसे उदाहरण देखे गए हैं, जिनके नतीजे बच्चों में लंबे समय तक दिख सकते हैं। ज्यादातर पेरेंट अपनी खुद की परवरिश को पेरेंटिंग के लिए एक ब्लूप्रिंट के तौर पर इस्तेमाल करते हैं, जिसे वातावरण और समाज में आने वाले बदलावों के कारण आज के समय में सही नहीं कहा जा सकता है। यह साबित हो चुका है, कि पेरेंटिंग की कुछ खास बातें आपके बच्चे के लिए फायदेमंद कम और नुकसानदायक अधिक होती है।
बुरी पेरेंटिंग किए जाने वाले कामों की एक श्रृंखला है, जो बच्चे के आचरण और मनोविज्ञान के लिए गंभीर रूप से नुकसानदायक हो सकती हैं। बुरी पेरेंटिंग किसी एक खास एक्शन तक सीमित नहीं है, यह ऐसे एक्शन का एक संग्रह होती है, जो आमतौर पर एक साथ मिलकर बच्चे पर हानिकारक प्रभाव दिखा सकते हैं। बुरी पेरेंटिंग के ज्यादातर मामले अकस्मात होते हैं, लेकिन इससे बच्चे पर पड़ने वाला इसका नकारात्मक प्रभाव कम नहीं हो जाता। कुछ माता-पिता अपनी इन गतिविधियों के नतीजों के प्रति जागरूक नहीं होते हैं और कुछ को तो बल्कि फर्क भी नहीं पड़ता है। बुरी पेरेंटिंग के पीछे, एक बेहतर पैरेंट बनने के बारे में अधिक जानकारी न होना या फिर सही तरीके को सीखने की इच्छा की कमी होना जैसे कारण हो सकते हैं।
आपके बच्चे पर बुरी पेरेंटिंग के कई बुरे प्रभाव दिख सकते हैं। आज के दौर में हमारी लाइफ स्टाइल जितनी तेज है, ऐसे में बच्चे को क्या करना है, यह केवल बता देना ही आसान लग सकता है। लेकिन आपको यह याद रखना चाहिए, कि आपका बच्चा एक अलग इंसान है, जिसे आपके द्वारा देखभाल और पोषण की जरूरत है। पेरेंटिंग ग्रुप्स या फोरम को ज्वाइन करने के लिए समय निकालें और आप जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं उनका जिक्र करें। अन्य पेरेंट्स के साथ एक ईमानदार बातचीत करें और उनकी दी गई किसी सलाह को सुनें। अगर आपके बच्चे में बुरी पेरेंटिंग के प्रभाव के कोई संकेत दिखते हैं, तो एक बाल मनोचिकित्सक से परामर्श लेना सबसे अच्छा होता है।
ऐसे कई एक्शन और घटनाएं होती हैं, जो आपको एक बुरा पेरेंट बना सकती हैं। यहां पर बुरी पेरेंटिंग के कुछ उदाहरण दिए गए हैं, जिनसे आपको किसी भी कीमत पर दूर रहना चाहिए:
अगर आपका बच्चा कुछ गलत करता है और आप उसे उस गलती के लिए बहुत ज्यादा डांटते हैं या फटकार लगाते हैं, तो इससे आपके बच्चे पर नकारात्मक प्रभाव दिख सकते हैं। अगर आपके बच्चे ने ईमानदारी दिखाई है और अपनी गलती को स्वीकार किया है, तब ऐसा करने से इसके बहुत ही बुरे परिणाम दिख सकते हैं।
आप अपना धैर्य खो सकते हैं और दूसरों के सामने अपने बच्चे पर चीख सकते हैं, उसे डांट सकते हैं या फिर उस पर हाथ भी उठा सकते हैं। इससे आपके बच्चे के आत्मविश्वास पर गंभीर असर पड़ता है और अनुशासन के इस तरीके से उठने वाले शर्मिंदगी के एहसास को खत्म करना बहुत कठिन होता है।
आप बच्चे को सपोर्ट के साथ प्रोत्साहन देने के बजाय, दांत साफ करने से लेकर सही कपड़े पहनने तक, हर बात पर सलाह देते हैं, जो कि गलत है।
आप अपने बच्चे को गले से नहीं लगाते हैं और उसे अक्सर आई लव यू नहीं कहते हैं, इससे आपका बच्चा आपसे भावनात्मक रूप से दूरी महसूस करता है।
बच्चों को स्वस्थ व्यक्ति के रूप में बढ़ने के लिए संरचना और सीमाओं की जरूरत होती है। अगर बच्चा अनुशासन के साथ नहीं बढ़ता है, तो वह घर के बाहर के वातावरण की स्थितियों में संघर्ष करेगा।
बच्चों को सहयोग की जरूरत होती है, खासकर तनावपूर्ण समय के दौरान, जैसे स्कूल में किसी परफॉर्मेंस के दौरान या परीक्षाओं के दौरान। आपको अपने काम की चिंता अधिक हो सकती है और इससे आपके बच्चे को सहयोग के बिना घबराहट महसूस हो सकती है।
आप लगातार अपने बच्चे से कहते हैं, कि उसे दूसरे बच्चों की तरह होना चाहिए और उसके अच्छे गुणों की बराबरी करनी चाहिए। यह बुरी पेरेंटिंग का एक संकेत है।
आप अपने बच्चे की उपलब्धियों के लिए उसकी प्रशंसा कभी नहीं करते हैं और उसकी कड़ी मेहनत पर गर्व नहीं करते हैं।
अगर आप ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं, जिससे बच्चे की हर गतिविधि के प्रति आपकी अस्वीकृति दिखती है, तो इससे बच्चे पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
आप अपने बच्चे से बात करने के लिए या उसकी भावनाओं को समझने के लिए समय नहीं निकालते हैं। जब भावनाओं और विचारों की इज्जत नहीं की जाती है और स्वस्थ रूप से इन पर ध्यान नहीं दिया जाता है, तो बच्चे पर इनका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
आपका बच्चा आपकी आदतों और व्यवहार से सीखता है। आपको यह सोचना चाहिए कि आपके बच्चे ने कोई विशेष व्यवहार आपसे क्यों सीखा और कहां सीखा।
आप बच्चे को कोई चुनाव नहीं देते हैं, बल्कि आप उससे केवल आपकी इच्छा के अनुसार काम करने की उम्मीद रखते हैं।
आपको ऐसा लग सकता है, कि आपका बच्चा सबसे खास बच्चा है और दुनिया के बाकी बच्चे आम बच्चे हैं। बच्चे को खास होने का एहसास कराने से उसका व्यवहार बुरा हो सकता है, जिसके कारण वह आगे चलकर सामाजिक रूप से अलग हो सकता है।
आप बच्चे को हरसंभव खतरे से बचाने की कोशिश करते हैं। इससे आपके बच्चे के मन में डर समाहित हो जाता है और वह किसी भी तरह का खतरा उठाने से डरने लगता है, फिर चाहे वह नए दोस्त बनाना हो या फिर कोई नया काम करना।
आप अपने बच्चे को फैसले नहीं लेने देते हैं, क्योंकि आपको यह पूरा विश्वास है, कि उसका फैसला गलत होगा या फिर वह कोई गलत चुनाव करेगा।
आप हमेशा बहुत ज्यादा व्यस्त रहते हैं और बच्चे के साथ बात नहीं करते हैं, आप खेलते नहीं है या फिर आपको इन सब चीजों में कोई दिलचस्पी नहीं है। जब आपका बच्चा आपसे बात कर रहा हो, तब फोन की स्क्रीन से चिपके रहने से बच्चे को उपेक्षित महसूस हो सकता है।
व्यवहार और मनोविज्ञान के संदर्भ में आपके बच्चे पर बुरी पेरेंटिंग के दूरगामी बुरे प्रभाव दिख सकते हैं। यहां पर बुरी पेरेंटिंग के कुछ प्रभाव दिए गए हैं:
जब आपका बच्चा यह नहीं समझता है, कि उसका व्यवहार दूसरों पर कैसा प्रभाव डाल सकता है, तब उसे असामाजिक व्यवहार या समाज विरोधी व्यवहार कहते हैं। इसके गंभीर स्वरूप के कारण मादक पदार्थों का सेवन, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, अपराध और खराब स्वास्थ्य जैसे नतीजे दिख सकते हैं। पेरेंट्स का गलत आदतों का आदी होना, घरेलू हिंसा और मां में डिप्रेशन जैसे पेरेंटिंग के बुरे एक्शन आमतौर पर इस स्थिति में योगदान देते हैं। यह उन बच्चों में भी देखा जाता है, जिनके पेरेंट्स आलोचनात्मक, नकारात्मक और जबरदस्ती जैसे व्यवहार करते हैं।
भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक दु:ख से किस प्रकार निपटा जा सकता है, यह बच्चे अपने पेरेंट्स के कठिनाइयों से निपटने के तरीके को देखकर सीखते हैं। ऐसे में किसी कठिन स्थिति से बच्चे को सुरक्षा न देना या नकारात्मक भावनाओं को संभालने में सक्षम न होना एक तरह से बुरी पेरेंटिंग होती है और इससे बच्चे का नुकसान होता है।
कई अध्ययन यह दर्शाते हैं, कि जिन पेरेंट्स की नेगेटिव अप्रोच होती है, उनके बच्चों में डिप्रेशन की संभावना बहुत अधिक होती है। डिप्रेशन का कारण बनने वाली बुरी पेरेंटिंग की गतिविधियों में भावनात्मक और शारीरिक सपोर्ट का स्तर कम होना, शारीरिक सजा और नकारात्मक भावनाओं का एक अस्वस्थ एक्सप्रेशन शामिल है।
कई अध्ययन यह दर्शाते हैं, कि जो छोटे बच्चे गुस्सैल स्वभाव के होते हैं, अक्सर उनकी मां के साथ उनके संबंध खराब होते हैं। बेबी होने के दौरान उसकी ओर नकारात्मक भावनाएं व्यक्त करना और उसे बुरे व्यवहार के साथ संभालना जैसी नकारात्मक पेरेंटिंग तकनीकें बच्चे के स्वभाव को गुस्सैल बना सकती हैं।
अगर घर पर बच्चे के साथ उदासीन व्यवहार किया जाता है, तो घर के बाहर दूसरों के साथ बच्चे के ऐसे ही व्यवहार की संभावना अधिक होती है।
जो माता-पिता अपने बच्चे को स्वस्थ रूप से अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में मदद नहीं करते हैं, अक्सर देखा जाता है, कि ऐसे बच्चे अपने संबंधों को मेंटेन करने में सक्षम नहीं होते हैं। बुरी पेरेंटिंग के कारण बच्चे में विश्वास को लेकर सवाल पैदा होना और आत्मविश्वास का कम होना भी देखा जाता है।
इसके लिए आप जो सबसे बड़ा कदम उठा सकते हैं, वह है कि आप इस बात को स्वीकार करें, कि आपकी पेरेंटिंग की कुछ तकनीकें बुरी हैं। आप इन छोटी-छोटी कमियों से बाहर आने के नए तरीके कभी भी सीख सकते हैं। यहां पर कुछ टिप्स दिए गए हैं, जिनकी मदद से आप अच्छे पैरेंट्स बनने की ओर अग्रसर हो सकते हैं:
अपने बच्चे के जीवन का हिस्सा बनें और बच्चे को जीवन के कुछ सबसे महत्वपूर्ण पाठ सिखाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर उठाएं। अपने बच्चे के साथ एक भावनात्मक संबंध बनाने पर अपने ध्यान को केंद्रित करें।
बच्चे को डांटने या उस पर चीखने के बजाय शांतिपूर्वक बच्चे को कारण बताने की कोशिश करें। अगर बच्चे गलत व्यवहार कर रहे हों, तो उन्हें समय दें और फिर उनके साथ बैठें, उनकी बात सुनें। सबसे पहले यह जानने की कोशिश करें, कि वे अपसेट क्यों थे। अगर यह बात स्कूल से जुड़ी हुई है, तो शांतिपूर्वक बच्चे से यह जानने की कोशिश करें कि वह किस तरह की समस्या का सामना कर रहा है। अपने बच्चे को यह समझाएं, कि उसका व्यवहार गलत क्यों है और साथ ही उसके बड़े नतीजों के बारे में भी उसे बताएं।
अगर आप अपने बच्चे से कोई काम करवाना चाहते हैं, तो उसे अपने आग्रह के पीछे का कारण बताएं। अगर आप चाहते हैं, कि आपका बच्चा बाहर खेलने से पहले अपने होमवर्क को पूरा करे, तो उसे इसके पीछे का कारण बताएं। इसे एक्सप्लेन करने का सबसे अच्छा तरीका यह हो सकता है, कि “जैसे ही वह पढ़ाई पूरी करेगा वैसे ही उसके खेलने का समय शुरू हो जाएगा”। यह एक मोटिवेशन यानी प्रेरणा की तरह काम करता है।
आपके बच्चे के विकास के लिए संरचना बेहद जरूरी है। हालांकि आप जो भी नए नियम बनाते हैं, उनके बारे में अपने बच्चे के साथ बात अवश्य करें। अगर आप चाहते हैं, कि आपका बच्चा घर का कोई काम करे, तो बच्चे से बात करें, कि घर का ऐसा कौन सा काम है जो वह करना चाहता है और आप उस काम को किस प्रकार से पूरा करना चाहते हैं। इस काम को पूरा करने के लिए बच्चे को एक शेड्यूल बनाने को कहें। इस नए शेड्यूल को बनाए रखने से बच्चे में आत्मसम्मान का विकास होगा।
बच्चे के विभिन्न विकल्पों के बारे में उससे बात करें। यह कोई भी छोटी सी चीज हो सकती है, जैसे “क्या वह अगले दिन आपके साथ पार्क जाना चाहता है?” अपने बच्चे को फैसले लेने की अनुमति देने से उसके मन में निर्णय लेने के प्रति कॉन्फिडेंस आएगा।
पेरेंटिंग के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है – बच्चे की बात सुनना। बच्चा जो कह रहा है अगर वह आपके लिए बिल्कुल मामूली भी है, तो भी उसकी बात सुनें, क्योंकि यह बात उसके लिए बहुत जरूरी हो सकती है।
बच्चे अपने आसपास के लोगों से आदतें और एक्शन सीखते हैं। पैरेंट होने के नाते आपका बच्चा लगभग हर चीज के बारे में सलाह के लिए आपकी ओर देखता है, खासकर शुरुआती वर्षों के दौरान। अच्छी आदतों को अपनाएं और आपका बच्चा निश्चित रूप से उन्हें खुद ही सीख लेगा।
पेरेंटिंग की आपकी पूरी यात्रा के दौरान ऐसा कई बार होगा, जब आपका बच्चा गलत व्यवहार करेगा या बड़े पैमाने पर आप की अवहेलना करेगा, जिससे आपका धैर्य खो सकता है। लेकिन एक गहरी सांस लें और उस पर हाथ उठाने से पहले गिनती करें। शारीरिक हिंसा के कारण बच्चे पर गंभीर मानसिक प्रभाव पड़ सकते हैं। जिससे उसका विकास प्रभावित हो सकता है और साथ ही बच्चे जब खुद पैरेंट बन जाते हैं, तब इसी व्यवहार को अपने बच्चों पर दोहराते हैं।
बच्चे को डिसिप्लिन में रखने के लिए इनाम और सजा बेहतरीन तरीके होते हैं। अच्छे व्यवहार के लिए इनाम देना और बुरे व्यवहार पर सजा देना, बच्चे के विकास के लिए बहुत अच्छे होते हैं। इससे बच्चे को यह पता चलता है कि उसे किस व्यवहार का पालन करना है और किस व्यवहार से बचना है। सजा के लिए हमेशा ऐसे तरीके अपनाएं जिसमें मारपीट न हो।
बच्चे के हर कदम पर लगातार नजर रखने और उसे नियंत्रित करने के बजाए, उसे थोड़ी आजादी का एहसास दें। अगर उसे बुरे व्यवहार के नतीजे पता हैं, तो दी गई आजादी का गलत इस्तेमाल करने की भी संभावना होगी।
बुरी पेरेंटिंग न केवल वर्तमान में आपके बच्चे के लिए नुकसानदायक है, बल्कि आने वाले वर्षों में बच्चे पर इसके लंबे नकारात्मक प्रभाव दिख सकते हैं, जो कि वयस्क होने के बाद भी रह सकते हैं। याद रखें, कि पेरेंटिंग का मतलब केवल बच्चे को ज्ञान देना नहीं है, बल्कि उसे बढ़ने और अपनी खुद की जीवन शैली को समझने की अनुमति देना भी है। इसमें उसकी ऐसी परवरिश करना शामिल है, जिसमें वह अपने एक्शन को स्वीकार करे और अपने किए गए फैसलों की ओर उठाए गए कदम की जिम्मेदारी उठाना सीखे। आप बच्चे को किस प्रकार जानकारी देते हैं और उसे उसकी जिम्मेदारियों के बारे में किस तरह से सिखाते हैं, इस बात का फैसला आपके बच्चे की परवरिश की कुंजी हो सकती है। इसे किसी भी तरह से उस पर थोपा नहीं जाना चाहिए। बच्चे के साथ किस तरह से बात करनी चाहिए, इसके बारे में अपने बच्चे के साइकोलॉजिस्ट से बात करें। पेरेंट्स होने के नाते आपको यह सलाह दी जाती है, कि आप और आपके साथी पेरेंटिंग सेमिनार अटेंड करें, काउंसलर से बात करें और एक पद्धति पर काम करें, जिसमें आपके पेरेंटिंग फिलॉसफी को डेवलप किया जाए और उसे दिशा दी जाए।
पेरेंटिंग फिलॉसफी को विकसित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, ऐसा करने में, विश्वास और विवेक से जुड़ी अनगिनत रुकावटें आपके सामने आ सकती हैं। याद रखें, कि पेरेंटिंग के पुराने तरीकों को आंख बंद करके फॉलो करना सही नहीं है। बल्कि उसे एक आधार मानकर उसमें सकारात्मक बदलाव करना जरूरी है। पुराने समय में बच्चे पर हाथ उठाना स्वीकार्य होता था, लेकिन अध्ययन बताते हैं कि जब बच्चे की परवरिश की बात आती है, तब शारीरिक हिंसा फायदे से ज्यादा नुकसानदायक होती है। एक आपसी सम्मान को स्थापित करना और बातचीत का मार्ग खुला रखना जरूरी है, साथ ही बच्चे को गलतियां करने की अनुमति देना और उसकी गलतियों से सीखने के लिए प्रेरित करना भी जरूरी है। हर पैरेंट को एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए, कि बच्चे पर बंधन लगाकर उसे हतोत्साहित न करें। बच्चे को बचपन का आनंद लेते हुए बड़ा होने दें और समाज का हिस्सा बनने दें। इससे उसके मानसिक स्वास्थ्य को कई तरह के फायदे मिलते हैं।
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