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भारत कृषि प्रधान देश होने के साथ-साथ अपनी संस्कृति व मर्यादाओं के लिए भी प्रसिद्ध है। इस देश में विभिन्न रंग, रूप, धर्म, परंपराओं, रीति-रिवाजों को मान्यता दी गई है और यहाँ का हर त्योहार विशेष रूप से हमारी संस्कृति से बंधा हुआ है। भारत के कई त्योहारों में छठ पूजा भी एक मुख्य त्योहार है जिसे लोग विधि-विधान व नियमों के साथ मनाते हैं। छठ पूजा किसी भी धर्म के आधार पर नहीं की जाती है और यह सनातन धर्म का एक विशेष उदाहरण है। यह जन कल्याण के लिए एक प्राकृतिक अभ्यास है जिसमें लोग ईश्वर से प्रार्थना करते हैं और व्रत करते हैं। छठ पूजा वास्तव में क्या है? इसे कैसे किया जाता है और इसका महत्व क्या है? यह सब जानने के लिए आप इस लेख को पूरा पढ़ें।
4 दिनों का यह त्योहार भारत में विशेषकर बिहार और झारखंड राज्यों में एक नया उत्साह लेकर आता है। इस दिन लोग सूर्य देव की स्तुति करते हैं और साथ ही मीठे व सात्विक पकवान भी पकाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि छठ पूजा एक ऐसा त्योहार है जिसका वर्णन वेदों में भी किया गया है और यह एक सबसे पुरानी प्रथा है। यह पूजा कार्तिक महीने की षष्ठी के दिन होती है जिसे षष्ठी पूजा या सूर्य पूजा भी कहा जाता है। यह त्योहार कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू होता है और सप्तमी को इसका समापन किया जाता है। परंतु इस त्योहार में षष्ठी यानी छठी के दिन छठी मैया की पूजा करते हैं जो सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। इस साल 2023 में छठ पूजा की शुरुआत 17 नवंबर को होगी और यह 20 नवंबर तक चलेगी। हिन्दू धर्म में दिवाली, होली और दशहरा की तरह ही इस पर्व को भी एक बड़ा और मुख्य त्योहार माना जाता है।
इस दिन लोग छठ पूजा छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि छठी मैया भगवान सूर्य की बहन हैं और उनकी पूजा करने के लिए ही छठ का त्योहार मनाया जाता है। छठ देवी को प्रसन्न करने के लिए ही लोग कार्तिक महीने की षष्ठी के दिन सूर्य देवता की स्तुति करते हैं। इस दिन लोग भोर के समय गंगा या यमुना नदी के किनारे या अपने आसपास के नदी या डैम में सूर्य देवता व छठी मैया का स्मरण करते हैं व उनसे प्रार्थना करते हैं। इस त्योहार के चारों दिन शुद्ध शाकाहारी भोजन वो भी बिना लहसुन-प्याज के ही पकाया जाता है।
छठ पूजा के दिन लोग लगातार 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखते हैं और सूर्यास्त के समय नदी तट पर जाकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं। जो व्यक्ति इस व्रत को रखता है उसे छठ व्रती कहते हैं और यह पूजन चार दिनों तक किया जाता है। छठ व्रत में नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य व उषा अर्घ्य की विधि होती है। इन दिनों की विशेषता क्या है, आइए जानें;
छठ पूजा के पहले दिन को नहाय-खाय कहते हैं और इस दिन लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं। फिर पवित्रता के साथ पूर्ण शाकाहारी भोजन जिसमे चने की दाल, अरवा चावल, कद्दू की सब्जी बनती है और इसे ही खाकर छठ व्रती इस व्रत की शुरुआत करते हैं।
छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना कहते हैं। इस दिन चावल की खीर व चावल को गन्ने के रस में बनाकर, चावल का पिट्ठा, ठेकुआ, चुपड़ी रोटी और इत्यादि व्यंजन पकाकर प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। शाम को व्रत का समापन करने के बाद छठव्रती इसी प्रसाद को ग्रहण करते हैं और बाद में घर के सभी सदस्यों और आस पड़ोस के सभी लोगों को यह प्रसाद दिया जाता है।
तीसरे दिन यानी पहले अर्घ्य के दिन शाम के समय छठ व्रती पूजा की सामग्री लेकर नदी के किनारे जाते हैं और सूर्य भगवान की स्तुति करते हैं। इस दिन छठ व्रती सूप या दौरा में कई चीजें जैसे फल, चावल के लड्डू, ठेकुआ, पान पत्ता, सुपाड़ी और इत्यादि चीजें रखकर सरोवर या नदी के किनारे पूजा करते हैं और बहते हुए पानी में सूर्य को दूध से अर्घ्य देते हैं।
चौथे दिन अर्थात अंतिम अर्घ्य के दिन छठ का व्रत रखने वाले लोग सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करते हैं और पवित्र होकर उसी सरोवर में जाते हैं जहाँ वे पहला अर्घ्य देने गए थे। यहाँ पर छठ व्रती सूर्य देव को अंतिम अर्घ्य देते हैं और सुख समृद्धि की कामना करते हैं। इस व्रत के समापन के दिन पूरा परिवार छठ व्रती के साथ सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं और घी का दीपक या कपूर जलाकर भगवान सूर्य का पूजन कर बहते जल में छोड़ देते है और अपने व घर वालों की सुख व समृद्धि की कामना करते हैं।
छठ पूजा या छठ का यह त्योहार नियमों व कठिन व्रत के लिए काफी प्रचलित है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को सफलतापूर्वक पूर्ण करने के लिए व्यक्ति को अपने मन व आत्मा पर पूरा संयम रखने की जरूरत है। भारतीय इतिहास में छठ पूजा करने से संबंधित कई कहानियां हैं जो इस व्रत की महत्ता बताती हैं। पौराणिक शोधों के अनुसार इस व्रत को युगों-युगों तक कई महान लोगों ने किया है। इससे संबंधित कुछ कथाएं निम्नलिखित हैं, आइए जानें;
पौराणिक कथाओं में एक यह भी कथा है जिसमें बताया गया है कि बहुत समय पहले राजा प्रियंवद व रानी मालिनी को कोई भी पुत्र नहीं था जिस कारण वे काफी व्यथित रहते थे। एक दिन महर्षि कश्यप के निर्देशानुसार इस दंपति ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ किया पर दुर्भाग्य से उन्हें मृत बच्चे की प्राप्ति हुई। इस दुःख से ग्रसित होकर राजा प्रियंवद व रानी मालिनी ने अपने प्राण त्याग करने का निर्णय लिया तब भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुई जिनके वरदान स्वरूप राजा ने कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन व्रत रखा व नियमानुसार पूजा की। इस पूजा के फल स्वरूप राजा व रानी को पुत्र की प्राप्ति हुई। इसलिए आज भी कई क्षेत्रों में लोग संतान प्राप्ति के लिए भी यह व्रत रखा जाता है।
ऐसा माना जाता है कि रावण का वध करने के बाद भगवान राम जब अयोध्या वापिस आए थे तब कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन ही अयोध्या में राम राज स्थापित किया गया था। इस दिन भगवान राम और माता सीता ने सूर्य की उपासना की थी और व्रत भी रखा था।
महान ग्रंथों के अनुसार द्वापर युग में महाभारत के समय पर अंगराज कर्ण का जन्म रानी कुंती व सूर्य देवता के पुत्र के रूप में हुआ था। कर्ण में शुरू से ही सूर्य देवता के लिए एक अद्भुत आकर्षण था और वे सूर्य देव की स्तुति विशेष तरीके से करते थे। अंग प्रदेश के राजा कर्ण रोज सुबह सरोवर के बीच में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने के बाद दान-पुण्य करते थे और साथ ही षष्ठी व सप्तमी के दिन वे सूर्य की विशेष स्तुति करते थे। ऐसा माना जाता है कि अपने राजा से प्रभावित होकर अंग प्रदेश की प्रजा भी सूर्य देवता की स्तुति पूरे नियमों व विधि के साथ करने लगी। आज के समय में अंग प्रदेश को भागलपुर नाम से प्रसिद्ध है।
ऐसी मान्यता है कि महाभारत के समय में ही कौरवों से अपना पूरा राज्य हार जाने के बाद पांडव वन में अपना जीवन व्यतीत करने लगे थे। उस समय द्रौपदी ने अपने दुखों व कष्टों को दूर करने के लिए छठ पूजा की थी और यह व्रत रखा था। इस कथा से भी प्रभावित होकर लोगों ने छठ पूजा रखना प्रारंभ किया था।
छठ पूजा में साफ-सफाई का भी बहुत महत्व है। इस दिन विशेषकर भारत के गावों में बहुत साफ सफाई होती है और सरोवर व नदियों के तटों को साफ व शुद्ध किया जाता है। वास्तव में छठ पूजा प्रकृति की पूजा है और इस दिन विशेष सूर्य भगवान की पूजा इसलिए ही की जाती है क्योंकि सूर्य देव ही एक ऐसे देव हैं जो हमें वास्तविक रूप से दिखाई देते हैं और इन्हें विशेष पंच महादेवों में ही पूजा जाता है। छठ के दिन लोग सूर्य भगवान को उनकी कृपा बनाए रखने व जीवन प्रदान करने के लिए भी धन्यवाद करते हैं। इस दिन नदियों, तालाबों व सरोवरों के किनारे पूजा की जाती है इसलिए इन जगहों को भी प्रदूषण मुक्त व साफ किया जाता है जो साफ-सफाई का भी एक प्रतीक है। इस त्योहार के दिन वनस्पति के सम्मान के लिए गन्ने, सेब, केले व अन्य कई फलों की भी पूजा होती है और इन्हें प्रसाद में चढ़ाया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि सूर्य को जल चढ़ाते समय शरीर पर पड़ने वाले प्रकाश से शरीर के आंतरिक अंग संतुलित हो जाते हैं। जल में किरणों के रिफ्लेक्शन से निकलने वाले रंग हमारे शरीर को प्रभावित करते हैं और इससे प्रतिरोधात्मक शक्ति बढ़ती है। सूर्य के प्रकाश से शरीर में इन्फेक्शन होने की संभावना भी कम होती है व त्वचा रोग-मुक्त रहती है।
छठ पूजा पूरे विधि-विधान और नियमों के साथ की जाती है। इस दिन के व्रत की बहुत ज्यादा मान्यता है और इस दिन को लोग अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। इसलिए इस व्रत को करने से पहले आप कुछ निम्नलिखित बातों पर ध्यान जरूर दें;
छठ पूजा एक विशेष पर्व है और यह पर्व पूरे अनुष्ठान से मनाया जाता है इसलिए इसके नियम व रिवाजों को जानना भी बहुत जरूरी है। छठ पूजा के बारे में जानकारी के लिए आप इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
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