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छत्रपति शिवाजी महाराज को भारतीय इतिहास में मराठा साम्राज्य के संस्थापक के तौर पर जाना जाता है। वह 17वीं शताब्दी के एक महान राजा थे जिन्होंने केवल 16 वर्ष की आयु में अपना पहला युद्ध जीतते हुए शत्रु के किले पर कब्जा कर लिया था। यहां से दक्षिण भारत में आदिलशाही, निजामशाही और मुगल शासन से त्रस्त जनता ने एक अद्भुत नेतृत्व क्षमता वाले राजा का उदय होते हुए देखा जिसने ‘स्वराज्य’ यानी स्वतंत्रता के लिए अनगिनत लड़ाइयां लड़ी।
शिवाजी महाराज एक बेहद लोकप्रिय शासक थे। वह न केवल राजनीति और युद्ध रणनीति में कुशल थे बल्कि एक उदार, सभी धर्मों का आदर करने वाले और सुशासन को महत्व देने वाले राजा भी थे। उनके बारे में बच्चों को अधिक से अधिक तथ्य और बातें बताना जरूरी है ताकि वह शिवाजी महाराज जैसे आदर्श चरित्र वाले ऐतिहासिक व्यक्तित्व के बारे में जान सकें।
महाराष्ट्र के शिवनेरी दुर्ग में मराठा सरदार शहाजी भोसले और जीजाबाई के घर 19 फरवरी 1630 को एक पुत्र ने जन्म लिया जिसका नाम शिवाजी रखा गया। आगे चलकर वह इतिहास में महान मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम से प्रसिद्ध हुए। शिवाजी महाराज ने स्थापित किया हुआ मराठा साम्राज्य आगे चलकर देश के सबसे शक्तिशाली राजघरानों में से एक बना जिसने लगभग 150 वर्षों तक भारत के बहुत बड़े भाग पर राज किया।
बालक शिवाजी अपनी माँ से रामायण और महाभारत की कहानियां सुनकर बड़ा हो रहा था जिसने उसके अंदर साहस, देशप्रेम और सत्य आचरण भर दिया और आगे चलकर चरित्र निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाई। शिवाजी बालक के रूप में भी सामान्य बच्चों की तरह नहीं थे और बहुत कम उम्र में उन्होंने अपनी नेतृत्व क्षमता दिखाना शुरू कर दिया था। बचपन से ही उन्होंने घुड़सवारी व युद्ध कौशल की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी। वह पुणे में अपनी माँ जीजाबाई और निष्ठावान प्रशासक दादोजी कोंडदेव की छत्रछाया में पल रहे थे। उनके पिता बीजापुर सल्तनत के लिए काम करते थे जो शिवाजी को मन ही मन अच्छा नहीं लगता था।
राजनीतिक गठबंधन और राज्य विस्तार के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज ने आठ बार विवाह किया। यह उस समय भारत में राजाओं और योद्धाओं के लिए आम बात थी। उनका पहला विवाह 1640 में सई निम्बालकर के साथ हुआ जिनसे उन्हें तीन पुत्रियां और एक पुत्र संभाजी राजे हुए। संभाजी राजे ही आगे चलकर शिवाजी महाराज के उत्तराधिकारी बने। सईबाई का बीमारी के कारण जल्द निधन हो गया था। इसके अलावा उनकी दूसरी पत्नी सोयराबाई से उन्हें पुत्र राजाराम हुआ जिन्होंने संभाजी राजे बाद मराठा साम्राज्य की गद्दी संभाली। उनकी अन्य पत्नियों में पुतलाबाई, गुणवंताबाई, लक्ष्मीबाई, सगुणाबाई काशीबाई और सकवरबाई के नाम आते हैं जिनसे उन्हें अन्य संतानें हुईं।
6 जून 1674 को रायगढ़ के किले में शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ और उन्होंने छत्रपति की उपाधि धारण की। सुशासन के प्रति दृढ़निश्चय से उन्होंने राजनितिक और प्रशासनिक मामलों के लिए आठ मंत्रियों की परिषद स्थापित की थी जिसमें से एक पेशवा थे जिन्होंने मराठा साम्राज्य को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
शिवाजी महराज ने केवल 16 वर्ष की आयु में बीजापुर के कब्जे वाले तोरणा किले पर हमला कर उसे जीत लिया था। यह उनकी स्वराज्य के लिए दक्षिण में आदिलशाही, निजामशाही और दिल्ली में मुगलों के खिलाफ जंग की शुरुआत थी। इसके बाद उन्होंने कोंढाणा, पुरंदर, रायगढ़ और समुद्र के बीच बने सिंधुदुर्ग सहित कई किलों पर नियंत्रण कर लिया। वह बेहद दूरदर्शी व कुशल शासक थे। उन्हें ‘भारतीय नौसेना का जनक’ भी कहा जाता है क्योंकि तटीय क्षेत्रों की रक्षा के लिए उन्होंने मजबूत नौसैनिक बल खड़ा किया था।
शिवाजी महाराज गुरिल्ला युद्ध नीति का उपयोग करते थे। उनकी जमीनी सेना विशेष शारीरिक यष्टि, घने जंगलों में युद्ध करने और पहाड़ियों पर चढ़ने में निपुण ‘मावले’ कहलाने वाले सैनिकों की थी। उन्होंने अपने से कहीं बड़ी और ताकतवर आदिलशाही व मुगल सेना के खिलाफ कई युद्ध जीते। 1659 में प्रतापगढ़ में अपने से शक्तिशाली अफजल खान का ‘बाघनख’ की मदद से किया गया वध, 1663 में पुणे में रात के अँधेरे में उनके अपने घर ‘लाल महल’ में डेरा डालने वाले शाइस्ता खान पर हमला करके उसकी उँगलियाँ काटना और 1666 में आगरा में औरंगजेब की कैद से साहसिक तरीके से निकल जाना उनकी सबसे प्रसिद्ध उपलब्धियों में से एक है।
रायगढ़ के किले में शिवाजी महाराज का 50 वर्ष की आयु में 3 अप्रैल, 1680 को बीमारी से निधन हो गया। इतिहासकार उनके निधन के सटीक कारण को लेकर एकमत नहीं हैं। कुछ के अनुसार उन्हें गंभीर बुखार हुआ था जबकि कुछ आतंरिक अंगों में बीमारी के कारण खून बहने से हुई मृत्यु कहते हैं। वहीं कुछ के अनुसार पारिवारिक कलह से हुआ तनाव भी इसकी वजह हो सकता है।
स्वराज्य की स्थापना करने वाले शिवाजी महाराज मृत्यु के लगभग 350 वर्षों बाद भी भारतीय जनमानस और विशेषतः महाराष्ट्र के लोगों के आराध्य बने हुए हैं। उनकी जन्मतिथि पर हर साल उन्हें याद किया जाता है।
अधिकतर इतिहासकारों के अनुसार शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को हुआ था। इसलिए प्रत्येक वर्ष 19 फरवरी शिवाजी जयंती के रूप में मनाई जाती है।
शिवाजी जयंती मनाने का उद्देश्य नई पीढ़ी को उनके आदर्शों और देश के लिए किए गए उनके कार्यों की याद दिलाना होता है। इस दिन को उत्सव की तरह मनाने से उनकी वीरता, अद्भुत नेतृत्व क्षमता और देशभक्ति की भावना का सम्मान किया जाता है।
शिवाजी जयंती पर विभिन्न जगहों पर शिवाजी महाराज के सम्मान में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। विशेषतः महाराष्ट्र के सरकारी ऑफिस, स्कूल, कॉलेज, सोसायटी और अन्य संगठन नाटक, भाषण, चर्चा आदि के द्वारा छत्रपति शिवाजी महाराज की शौर्य गाथा आम आदमी तक पहुंचाते हैं। इसके अलावा उनके किलों और दुर्ग, जैसे शिवनेरी, रायगढ़ आदि पर ऐतिहासिक यात्राएं, भव्य जुलूस, सांस्कृतिक कार्यक्रम, कथा सत्र और कभी-कभी मार्शल आर्ट का प्रदर्शन भी होता है जिसमें उनके समय की युद्ध तकनीक की प्रतीकात्मक प्रस्तुति दी जाती है।
छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में जानकर बच्चे साहस, वीरता, देशभक्ति के गुणों के साथ-साथ अपने धर्म का पालन करते हुए दूसरे के धर्म का सम्मान करना सीख सकते हैं जो आज के समय में बहुत जरूरी है। वह एक कुशल राजनीतिज्ञ, दूरदर्शी नेता और अद्वितीय योद्धा थे। इतने गुणों के बावजूद उनका चरित्र बेदाग था। वह महिलाओं के सम्मान को लेकर बेहद सजग थे और उनके सैनिकों को शत्रु पक्ष की किसी भी महिला का आदर रखने का आदेश था। वह एक उदारता, दयालु और समानता की भावना रखने वाले राजा थे।
शिवाजी महाराज को छापेमारी की गुरिल्ला युद्ध नीति के लिए जाना जाता है।
शिवाजी महाराज के पहले गुरु दादोजी कोंडदेव थे।
मुगल बादशाह अकबर ने शिवाजी महाराज को आगरा में कैद किया था।
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