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एक नवजात शिशु का इम्यून सिस्टम पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ होता है और यह अभी भी डेवलपमेंट प्रोसेस में ही होता है, जिसके कारण वो उन्हें वायरल और बैक्टीरिया के प्रति और भी ज्यादा सेंसिटिव हो जाते हैं। टाइफाइड एक बैक्टीरियल इन्फेक्शन है जो साल्मोनेला टाइफी नाम के बैक्टीरिया के कारण होता है, जिससे दस्त, बुखार और उल्टी आदि की समस्या पैदा होती है और यदि समय पर इसका इलाज नहीं किया जाता है, तो यह छोटे बच्चों के लिए घातक हो सकता है। इस आर्टिकल में, हम बच्चों में होने वाले टाइफाइड, इसके लक्षण, कारण, उपचार और बचाव के बारे में चर्चा करेंगे।
टाइफाइड एक बैक्टीरियल इन्फेक्शन है जो साल्मोनेला टाइफी (एस टाइफी) बैक्टीरिया के कारण होता है, फैमिली साल्मोनेला (फूड पॉइजनिंग का कारण बनता है) जिससे बच्चे को टाइफाइड बुखार आने लगता है। ये बैक्टीरियल इंसानों में जिन्दा रहते हैं और मूत्र या मल के माध्यम से निकलते हैं। जब बैक्टीरिया शरीर में प्रवेश करते हैं, तो यह तेजी से बढ़ने लगते हैं और ब्लड फ्लो के जरिए पूरे शरीर में फैलने लगते हैं। बच्चों में टाइफाइड फिवर को लेकर लापरवाही करने और इन्फेक्टेड भोजन और पानी के संपर्क में आने के कारण हो सकता है। देखे गए लक्षण हल्के से लेकर गंभीर हो सकते हैं और ट्रीटमेंट शुरू होने के 5 दिनों के अंदर ये लक्षण खत्म होने लगते हैं। रिकवरी के बाद, भी बच्चे के जरिए इस बैक्टीरिया का दूसरे लोगों में फैलने का खतरा होता है।
साल्मोनेला टाइफी बैक्टीरिया सेंट्रल सर्कुलेटरी सिस्टम पर हमला करते हैं और दोगुना बढ़ना शुरू हो जाते हैं। टाइफाइड एक बहुत संक्रामक रोग है, जो तेजी से फैलता है और नीचे बताए गए इन प्रमुख कारणों से हो सकता है:
हालांकि दो से पाँच साल के बच्चों में टाइफाइड होना कॉमन है, वहीं छोटे बच्चे और बच्चों में भी यह फैल सकता है। टॉडलर्स और छोटे बच्चों में देखे जाने वाले इसके लक्षण से आप अन्य बीमारियों को लेकर पहचानने में कंफ्यूज हो सकती हैं। केवल ब्रेस्टफीडिंग करने वाले बच्चों का इससे इन्फेक्शन होना कॉमन नहीं होता है, क्योंकि माँ के दूध के माध्यम से बच्चे इम्युनिटी प्राप्त कर रहे होते हैं और उनके कंटामिनटेड फूड से दूर रहते हैं।
बच्चों में टाइफाइड के लक्षण उसके दूषित भोजन या पानी का सेवन करने के संपर्क में के एक या दो सप्ताह के भीतर विकसित हो जाते हैं। ये लक्षण 4 सप्ताह या उससे अधिक समय तक रह सकते हैं। बच्चों में दिखने वाले टाइफाइड के लक्षण इस प्रकार शामिल हैं:
ये लक्षण बच्चे की हेल्थ, ऐज, वैक्सीनेशन हिस्ट्री के आधार पर माइल्ड से सीवियर भी हो सकते हैं।
टाइफाइड का निदान करना काफी मुश्किल हो सकता है। यदि डॉक्टर को संदेह है कि एक बच्चे को टाइफाइड का इन्फेक्शन है, तो डॉक्टर स्लो हार्टबीट, स्प्लीहा में सूजन और लिवर की जाँच करेंगे। हो सकता है कि बच्चे का ब्लड और मल सैंपल भी लिया जाए और लैब में जाँच के लिए भेजा जाए। टेस्ट के रिजल्ट आने पर, डॉक्टर पुष्टि कर सकते हैं कि बच्चे को टाइफाइड का इन्फेक्शन है या नहीं।
हालांकि एक टाइफी-डॉट-टेस्ट नामक टेस्ट होता है, जिसका का उपयोग ज्यादा नहीं किया जाता है। इसके बजाय, बीमारी के निदान के लिए ब्लड कल्चर का उपयोग किया जाता है। इसका रिजल्ट आने में कुछ समय लगता है, यही कारण है कि डॉक्टर पेचिश, मलेरिया या निमोनिया जैसे अन्य इन्फेक्शनों को दूर करने के लिए भी फिजिकल टेस्ट करेंगे।
ब्लड और स्टूल के लिए गए सैंपल का रिजल्ट आने में कुछ समय लग सकता है, इस बात की काफी संभावना है कि डॉक्टर एंटीबॉडी प्रिस्क्राइब कर सकते हैं। मेडिसिन या ट्रीटमेंट में देर करने से कॉम्प्लीकेशन बढ़ सकते हैं इसलिए ट्रीटमेंट को लेकर कोई लापरवाही न बरतें।
यदि आपका शिशु तेज बुखार, बेचैनी, लगातार उल्टी और दस्त के लक्षण दिखाता है, तो आपको डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। भले ही लक्षण हल्के हों, यह सलाह दी जाती है कि कली में किसी भी इन्फेक्शन को दूर करने के लिए डॉक्टर से मिलें।
यदि टाइफाइड के बुखार का तुरंत इलाज नहीं किया जाता है, तो इससे कई कॉम्प्लिकेशन हो सकते हैं, खासकर अगर बच्चा दो सप्ताह से या अधिक समय के लिए से बीमार है। टाइफाइड के इन्फेक्शन का समय रहते इलाज न किया जाए तो यह जानलेवा भी साबित हो सकता है। बच्चों में टाइफाइड के कारण होने वाले कुछ कम्प्लीकेशन इस प्रकार शामिल हैं:
एक बार टाइफाइड का निदान हो जाने के बाद, डॉक्टर बैक्टीरिया को मारने के लिए एंटीबायोटिक दवाएं लिख सकते हैं। बच्चों में टाइफाइड ट्रीटमेंट और दवाएं दो सप्ताह तक जारी रखी जाएंगी। आपको यह सलाह दी जाती है कि इन एंटीबायोटिक दवाओं को ओवर दा काउंटर या खुद से इलाज करने के रूप में न खरीदें। डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन यह सुनिश्चित करता है कि आपके बच्चे उसकी उम्र और वजन के हिसाब से सही प्रकार की दवा और डोज मिले।
अगर आपका बच्चा गंभीर रूप से बीमार है और खा-पी नहीं सकता है, तो डॉक्टर उसे हॉस्पिटल में भर्ती होने की सलाह देंगे। ड्रिप के जरिए बच्चे को तरल पदार्थ, एंटीबायोटिक्स और न्यूट्रिएंट दिए जाएंगे। हालांकि, ज्यादातर बच्चे सही देखभाल करने पर घर में ही ठीक हो जाते हैं। लेकिन यह ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि आपके बच्चे को एंटीबायोटिक का पूरा कोर्स दिया जाए। घर पर रहते हुए, यदि आप इन टिप्स का पालन करती हैं तो आपका बच्चा तेजी से ठीक हो सकता है:
भारत सरकार ने इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के साथ मिलकर टाइफाइड से बचाव के लिए एक वैक्सीन रिकमेंड की है। यह 9 से 12 महीने की उम्र के बच्चों को दिया जाता है। दो बूस्टर इंजेक्शन दो साल की अवधि में, 4 से 6 साल के बीच दिए जाते हैं। हालांकि वैक्सीन इससे बचने का एक बेहतरीन उपाय है, लेकिन इसके आलावा भी कुछ ऐसी चीजें हैं जो बच्चों को टाइफाइड से बचाने में मदद करते हैं।
टाइफाइड इंडिया, साउथ ईस्ट एशिया और पापुआ न्यू गिनी में काफी आम बीमारी है। अगर आप इन देशों की यात्रा कर रही हैं या उनमें रहते हैं, तो आपके बच्चे को इस बीमारी के होने का खतरा ज्यादा हो सकता है। सही प्रकार का टीकाकरण आपके बच्चे को साल्मोनेला टाइफी बैक्टीरिया से इन्फेक्टेड होने से बचाएगा। बच्चों के लिए उपलब्ध दो प्रकार के टीके में शामिल हैं:
यह वैक्सीन बच्चे को तीन साल तक की प्रोटेक्ट करते हैं। ध्यान दी कि जब बच्चे को उसके डेवलेपमेंट के दौरान शुरूआती टीके लगाए जा रहे हों, तो उसे इसकी वैक्सीन भी लगवाएं ताकि बच्चे को इन्फेक्शन से बचाया जा सके।
यदि टाइफाइड का सही समय पर निदान किया जाता है, तो आपके बच्चे के ठीक होने की संभावना ज्यादा होती है। ट्रीटमेंट देर में किए जाने से टाइफाइड की बीमारी जानलेवा हो सकती है। इसलिए, किसी भी कॉम्प्लिकेशन से बचने के लिए डॉक्टर के पास जाएं और बच्चे की हेल्थ से जुड़ी अपनी सभी परेशानी को डिस्कस करें। इसके अलावा यह बहुत जरूरी है कि आप अपने बच्चे की देखभाल अच्छी तरह से करें, ताकि बच्चा जल्द से जल्द ठीक हो सके।
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