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क्लिकी हिप्स एक ऐसी समस्या है जिसे हिप्स का डेवलपमेंटल डिस्प्लेसिया (डीडीएच) भी कहते हैं। वैसे तो इसमें बच्चे को दर्द नहीं होता है पर यह एक गंभीर समस्या हो सकती है जो बाद में चलने के तरीके व आकार को प्रभावित कर सकती है। आप बच्चे का ट्रीटमेंट जितना जल्दी कराएंगी उतनी ही जल्दी यह समस्या ठीक होगी।
हिप्स का डेवलपमेंटल डिस्प्लेसिया या क्लिकी हिप्स एक ऐसी समस्या है जो हिप्स के जोड़ों से संबंधित है। यह जॉइंट शरीर के ऊपरी धड़ व निचले धड़ को मुख्य रूप से जोड़ता है।
हिप्स का जॉइंट सॉकेट और बॉल जैसा होता है। जांघों की ऊपरी हड्डी पेल्विस के इस सॉकेट में अच्छी तरह से फिट हो जाती है। जब हिप्स जॉइंट के बॉल और सॉकेट में समस्या होती है तो पूरे शरीर में अस्थिरता होती है।
निम्नलिखित समस्याएं होने से डीडीएच हो सकता है, जैसे;
छोटे बच्चों में डेवलपमेंटल डिस्प्लेसिया अक्सर पेल्विस और जांघों से जुड़ा हिप जॉइंट स्थिर या सुरक्षित न होने की वजह से होता है। डेवलपमेंटल डिस्प्लेसिया हिप्स के एक या दोनों जोड़ों को प्रभावित कर सकता है। बाद के मामले में इसके संकेतों को समझ पाना कठिन है। यह मुख्य रूप से इसलिए होता है क्योंकि जब बच्चे के दोनों जॉइंट्स डैमेज हो जाते हैं तो पेरेंट्स को हिप्स में अब्नॉर्मलिटी का कोई भी संकेत नहीं दिखाई देता है। यदि डेवलपमेंटल डिस्प्लेसिया जैसी समस्या का डायग्नोसिस या ट्रीटमेंट समय से न किया जाए तो इससे बाद में कई गंभीर कॉम्प्लिकेशंस भी हो सकते हैं, जैसे जांघ के ऊपरी हिस्से की हिप से जुड़ी हड्डी हमेशा के लिए डैमेज हो जाना, हड्डी खिसक जाना, हिप के जोड़ों में दर्द व असुविधा होना और साथ ही जोड़ों में दर्द व जकड़न होना।
हर 1000 शिशुओं में 5 – 10 मामलों में हिप की थोड़ी-बहुत अस्थिरता देखी गई है पर हर 1000 बच्चों में एक या दो मामले ही डीडीएच के होते हैं जिसमें इलाज की जरूरत होती है। इसके ज्यादातर मामले जन्म के बाद पहले महीने में खुद ही ठीक हो जाते हैं।
नोट: यह सलाह दी जाती है कि जो पेरेंट्स बच्चे में क्लिकी हिप्स के लक्षण देखते हैं उन्हें इसका डायग्नोसिस और ट्रीटमेंट कराने के लिए पीडियाट्रिक स्पेशलिस्ट से बात करनी चाहिए।
माँ के गर्भ में जिन शिशुओं की पोजीशन ब्रीच (उलटी पोजीशन) होती है उन्हें यह समस्या होने का खतरा ज्यादा है। लड़कों की तुलना में लड़कियों में यह समस्या ज्यादा (लगभग 80%) होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि माँ के हॉर्मोन्स लड़कों के बजाय लड़कियों के लिगामेंट्स को ढीला कर देते हैं। कुछ रिसर्चर्स के अनुसार यह समस्या जेनेटिक भी होती है पर इसका कोई भी प्रमाण नहीं है।
बच्चे में डीडीएच का डायग्नोसिस होने से पहले कई दूसरे फैक्टर्स के बारे में भी विचार किया जाता है। जिन पेरेंट्स के पहले बच्चों को यह समस्या रही है, उन्हें यह सलाह दी जाती है कि वे बेबी पर पूरा ध्यान दें और डॉक्टर से इसके लक्षणों के बारे में पूरी बात बताएं।
वैसे तो हिप्स के डेवलपमेंटल डिस्प्लेसिया में जेनेटिक कारण होते हैं पर यह इसका मुख्य कारण नहीं है। यदि बड़े भाई-बहनों को यह समस्या रह चुकी है तो छोटे बच्चे को इसकी संभावना ज्यादा होती है।
डॉक्टर को सिर्फ अपनी मेडिकल हिस्ट्री के बारे में ही नहीं बल्कि बच्चे के भाई-बहनों की मेडिकल हिस्ट्री के बारे में भी बताएं।
नोट: ऊपर दिए गए आंकड़े http://hipdysplasia.org/developmental-dysplasia-of-the-hip/causes-of-ddh/ से लिए गए हैं
बच्चों में हिप्स का डेवलपमेंटल डिस्प्लेसिया होने का कोई भी विशेष कारण नहीं है। निम्नलिखित कुछ फैक्टर्स की वजह से यह समस्या हो सकती है, आइए जानें;
बड़ों की तरह बच्चों के हिप्स का जॉइंट मजबूत हड्डी से नहीं बना होता है। यह एक सॉफ्ट कार्टिलेज है जो समय के साथ मजबूत होता है। इसलिए आपको बेबी के हाथ पैरों की मालिश करनी चाहिए और उन्हें मूव करना चाहिए।
नवजात शिशुओं में हिप डिस्प्लेसिया की समस्या अक्सर देखी जाती है। हालांकि डॉक्टर बच्चे में इस अब्नॉर्मलिटी की जांच करने के लिए निम्नलिखित टेस्ट कराने की सलाह दे सकते हैं, जैसे;
ऊपर बताई हुई बातें आप भी चेक कर सकती हैं।
बच्चे के दोनों पैरों पर ध्यान दें और देखें कि दोनों का मूवमेंट और ताकत एक जैसी है। जैसे, आप बच्चे का डायपर बदलते समय चेक करें कि उसके दोनों पैर एक समान मूव करते हैं या नहीं।
जब बच्चा क्रॉल करने जितना बड़ा हो जाए तो डीडीएच का एक आम संकेत है कि बच्चा एक पैर जमीन में रगड़ कर चलेगा।
डीडीएच का एक संकेत अजीब ढंग से चलना भी है। यदि दोनों हिप्स प्रभावित हैं तो इससे चलने का तरीका अजीब हो जाता है। इस समस्या में बच्चा अपने पंजे पर भी चल सकता है।
बच्चा पैरों का कितना उपयोग करता है और बढ़ती उम्र के साथ पैरों के विकास पर पूरी तरह से ध्यान दें। यदि आप किसी भी अब्नॉर्मलिटी को नोटिस करती हैं तो डॉक्टर से बात करना न भूलें।
जब डॉक्टर बच्चे की जांच करते हैं तो उन्हें क्लिक की आवाज सुनाई या महसूस हो सकती है। यह अक्सर डीडीएच का संकेत होता है। वास्तव में यह एलाइनमेंट से जॉइंट के इधर-उधर खिसकने या मूव होने का संकेत है। इस समस्या में बच्चे को दर्द महसूस नहीं होता है।
इस अब्नॉर्मलिटी का सही कारण पता करने के लिए डॉक्टर हिप्स का अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह दे सकते हैं। बड़े बच्चों में डीडीएच का पता करने के लिए एक्स-रे कराया जाता है क्योंकि छोटे बच्चों की हड्डियों में उतना वॉल्यूम नहीं होता है कि वह एक्स-रे में दिखाई दे सके।
बच्चे में हिप्स के डेवलपमेंटल डिस्प्लेसिया के ट्रीटमेंट में उपयोग किए हुए कास्ट को 2 से 3 महीने तक रखा जाता है। डॉक्टर हर बार जोड़ों का नियमित एक्स रे स्क्रीनिंग करने के बाद कास्ट को बदल देते हैं।
नवजात शिशुओं के हिप डिस्प्लेसिया के ट्रीटमेंट में पैव्लिक हार्नेस भी शामिल है। यह हार्नेस बहुत सॉफ्ट होता है जो बच्चे के हिप्स के जोड़ों को नेचुरल पोजीशन में रखते हुए मूवमेंट में मदद करता है। यह हार्नेस सिर्फ मेडिकल प्रोफेशनल ही लगा या निकाल सकते हैं। यह हार्नेस हिप्स के जोड़ों के लिगामेंट्स को मजबूत बनाता है। इसमें बच्चे का डायपर कैसे बदलना चाहिए, उसे कम्फर्टेबल तरीके से कैसे पकड़ना चाहिए और हार्नेस को साफ कैसे करना चाहिए यह आपको डॉक्टर ही बता सकते हैं। इस हार्नेस का उपयोग सिर्फ एक या दो महीने तक करने की ही सलाह दी जाती है।
यदि हार्नेस बहुत ज्यादा प्रभावी नहीं है तो डॉक्टर बच्चे को थोड़ा सख्त हार्नेस लगा सकते हैं जिसे ऐबडक्शन हार्नेस भी कहा जाता है। डॉक्टर क्रॉस रिडक्शन तरीके का उपयोग कर सकते हैं जिसमें वे जांघ ही हड्डी को आराम से मूव करके सॉकेट में बॉल लगाते हैं और फिर बाद में जोड़ों को स्पीका कास्ट में रखते हैं। इसमें कास्ट की स्पेशल देखभाल करने की जरूरत है और डॉक्टर बताएंगे कि आप इसकी देखभाल कैसे कर सकती हैं और समस्याओं को कैसे पहचान सकती हैं।
जिन बच्चों की उम्र 6 महीने से ज्यादा होती है उनका ट्रीटमेंट क्लोज्ड रिडक्शन और कास्ट से किया जाता है। बड़े बच्चों में हिप की हड्डी के आस-पास की स्किन ट्रैक्शन किया जाता है ताकि जोड़ों की पोजीशन को बदला जा सके।
कुछ मामलों में 6 महीने से बड़े बच्चों में डेवलपमेंटल डिस्प्लेसिया को ठीक करने के लिए हिप डिस्प्लेसिया सर्जरी कराने की सलाह दी जाती है। इसमें एक चीरा लगाया जाता है और फिर हड्डी को सॉकेट में फिट किया जाता है। अन्य कुछ मामलों में जांघ की हड्डी की लंबाई को कम करके सॉकेट में फिट किया जाता है। सर्जरी के बाद जोड़ों को कास्ट में सेट करते हैं और कुछ समय के बाद यह समस्या ठीक हो जाती है। हिप डिस्प्लेसिया सर्जरी होने के बाद बच्चे की देखभाल के लिए आप पूरी तरह से फिजिशयन की सलाह को मानें।
डॉक्टर आपको 4 प्रकार की सर्जरी रेकमेंड कर सकते हैं, जैसे;
नोट: जिन बच्चों को क्लिकी हिप्स या डेवलपमेंटल डिस्प्लेसिया हुआ है उनके पेरेंट्स को इसके ट्रीटमेंट के साथ सावधानी बरतने और डॉक्टर से सभी मुद्दों के बारे में जानने की जरूरत है। इस समस्या से रिकवरी के लिए पूरा समय देना ही बेहतर विकल्प है।
जिन बच्चों में यह समस्या होती है वे देरी से चलना शुरू करते हैं। हालांकि एक बार कास्ट के हट जाने के बाद सही दर में विकास होने लगता है।
कभी-कभी हार्नेस से त्वचा में रैशेस हो सकते हैं जिससे बच्चे को दर्द होता है। हार्नेस से बच्चे के हाथ-पैरों की लंबाई पर अंतर नहीं पड़ता है और यह एक ऐसी समस्या है जो भविष्य में भी हो सकती है। हार्नेस की बिना जांच किए इसका उपयोग करने से हिप जॉइंट और फीमर हड्डियों की आपूर्ति करने वाली नर्व्स और ब्लड वेसल डैमेज हो सकते हैं।
ट्रीटमेंट और देखभाल के बाद भी यह समस्या हो सकती है। ऐसे मामले में बचपन में ही बेबी के जॉइंट की एनाटॉमी को ठीक करने के लिए सर्जरी की करने की जरूरत पड़ती है।
हिप्स के डेवलपमेंटल डिस्प्लेसिया के ट्रीटमेंट में कास्ट को दो से तीन महीनों तक रखना पड़ता है। डॉक्टर नियमित रूप से एक्स-रे स्क्रीनिंग में जॉइंट्स की जांच करने के बाद इसे बदल सकते हैं।
डिस्क्लेमर: इसकी रिकवरी का समय एवरेज तौर पर बताया गया है। रिकवरी का निश्चित समय हर मामले में अलग-अलग हो सकता है। बच्चे की पूर्ण रिकवरी के बारे में जानने के लिए डॉक्टर से बात करें।
दुर्भाग्य से बच्चों में हिप्स का डेवलपमेंटल डिस्प्लेसिया होने का सटीक कारण अब भी अनजान हैं इसलिए इससे बचाव करना मुमकिन नहीं है। हालांकि आप निम्नलिखित कुछ सावधानियां बरत सकती हैं, जैसे;
गलत तरीके से स्वैडलिंग करने से बचें – इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे की स्वैडलिंग करते समय उसके हिप्स व पैरों का मूवमेंट होने दें। बच्चे के पैर बहुत ज्यादा टाइट नहीं बंधे होने चाहिए।
नोट: पेरेंट्स को यह सलाह दी जाती है कि वे बच्चे की स्वैडलिंग का तरीका सीखने के लिए एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें।
बेबी वियरिंग का अभ्यास करें – हिप डिस्प्लेसिया से बचाव के लिए नेशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) भी बच्चे को उठाने का पारंपरिक तरीका अपनाने की सलाह देते हैं। इस तरीके में बच्चा अपने हिप्स को आपकी कमर के दोनों ओर रखता है। यह बच्चे के हिप्स की नेचुरल पोजीशन है। क्लिकी हिप्स एनएचएस गाइडलाइन्स के बारे में ज्यादा जानने के लिए डॉक्टर से बात करें।
पैरों के नेचुरल पोस्चर के लिए उपकरणों का उपयोग करें – यदि विशेषकर आप बड़े बच्चे के हिप्स की समस्याओं के लिए चिंतित हैं तो उसके हिप्स हेल्दी हैं यह सुनिश्चित करने के लिए हमेशा कैरियर, सीट और अन्य उपकरणों का उपयोग करें जो पैरों के नेचुरल पोस्चर के लिए बेहतरीन है। उपकरणों के ब्रांड के बारे में जानने के लिए डॉक्टर से बात करें ताकि बच्चे के हिप्स उचित प्रकार से रह सकें।
बच्चों में हिप डिस्प्लेसिया वह समस्या है जो लंबे समय के लिए आपके बेबी के मूवमेंट को प्रभावित कर सकती है। पेरेंट्स को डॉक्टर से डेवलपमेंटल डिस्प्लेसिया से संबंधित हर मुद्दे के बारे में खुल कर बात करने की सलाह दी जाती है।
डिस्क्लेमर: बच्चे को डेवलपमेंटल डिस्प्लेसिया की दवा देने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
निष्कर्ष: यह सलाह दी जाती है कि पेरेंट्स हिप्स के डेवलपमेंटल डिस्प्लेसिया जैसी बीमारियों के लिए कोई अन्य दवा न लें। यदि वे यह चुनते हैं तो पहले पूरी जानकारी लें और नियमित रूप से डॉक्टर से इस बारे में चर्चा करें। यदि आप अपने बच्चे में क्लिकी हिप्स की समस्या ठीक करना चाहती हैं तो आपको इसकी पूरी जानकारी होना जरूरी है। यह सलाह दी जाती है कि बच्चे को इसका ट्रीटमेंट और इसकी दवाएं अंत तक देनी चाहिए और इसमें होने वाले बदलाव डॉक्टर आपको नियमित रूप से बताते रहेंगे।
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