शिशु

शिशुओं में हाइड्रोसेफेलस

हाइड्रोसेफेलस एक ऐसी स्थिति है, जो कि आमतौर पर जन्म से ही बच्चे के मस्तिष्क को प्रभावित करती है। यह सेंट्रल नर्वस सिस्टम को प्रभावित करने वाली सबसे आम बीमारियों में से एक है और एक हजार में से लगभग 2 बच्चों में यह स्थिति देखी जाती है। इस लेख में, हम हाइड्रोसेफेलस के बारे में विस्तार से जानेंगे और यह क्यों होता है, माता-पिता इसे कैसे ठीक कर सकते हैं और इस स्थिति के बावजूद बच्चे की देखभाल कैसे कर सकते हैं, यह समझेंगे। 

छोटे बच्चों में हाइड्रोसेफेलस क्या है?

हाइड्रोसेफेलस एक जटिल स्थिति है, जो कि नवजात शिशुओं को प्रभावित करती है और यह बहुत ही दुर्लभ होती है। कम उम्र से ही मस्तिष्क में समस्याएं होने के कारण, हाइड्रोसेफेलस के साथ जन्म लेने वाले बच्चों के सिर बड़े होते हैं। सेरेब्रॉस्पाइनल फ्लुइड (सीएसएफ) शरीर का एक प्राकृतिक हिस्सा होता है, जो कि पोषक तत्वों को मस्तिष्क तक पहुंचाने में मदद करता है और उसे तैरता हुआ रखकर, शॉक अब्जॉर्बर की तरह, सभी तरह के झटकों से सुरक्षित रखता है। मस्तिष्क खोपड़ी के अंदर स्थित इस सेरेब्रॉस्पाइनल फ्लुइड में तैरता रहता है, जिससे यह खोपड़ी की दीवारों पर होने वाले प्रभाव से सुरक्षित रहता है। खोपड़ी के अंदर अतिरिक्त फ्लुइड के रिटेंशन के कारण शिशु के मस्तिष्क में बहुत सूजन हो जाती है। 

मस्तिष्क में कोरोइड प्लेक्सस में सीएसएफ का उत्पादन होता है और यह उसके अच्छे स्वास्थ्य और सही विकास में मदद के लिए बहुत जरूरी होता है। लेकिन अगर यह खोपड़ी के अंदर इकट्ठा होने लगे, तो मस्तिष्क में सूजन आ सकती है। मस्तिष्क में वेंट्रीकल्स नामक चैनल होते हैं और ये खोपड़ी में तरल पदार्थ की मात्रा को कम करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। सीएसएफ की अतिरिक्त मात्रा ब्लड स्ट्रीम में छोड़ दी जाती है। लेकिन इस बीमारी से ग्रस्त बच्चों में ऐसा नहीं होता है, इसलिए खोपड़ी के अंदर सूजन आ जाती है और इस स्थिति को सुधारने के लिए सर्जरी ही एकमात्र तरीका होता है। 

हाइड्रोसेफेलस के प्रकार

हाइड्रोसेफेलस दो प्रकार के होते हैं, जो कि नवजात शिशुओं को प्रभावित करते हैं: 

  • कंजेनिटल हाइड्रोसेफेलस, यानी इस बीमारी के साथ बच्चे का जन्म होना। यह स्थिति स्पाइनल कॉर्ड के डीफॉर्मेशन जैसी समस्या के कारण हो सकती है या फिर मस्तिष्क में चैनल और वेंट्रीकल की चौड़ाई पर्याप्त न होने से ब्लड स्ट्रीम में तरल पदार्थ की ड्रेनिंग सही तरह से न होने के कारण हो सकती है।
  • एक्वायर्ड हाइड्रोसेफेलस, आमतौर पर बच्चे के जन्म के बाद होती है और यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है। कई मामलों में यह 60 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति को प्रभावित करती है। ट्रॉमा या चोट लगने के कारण, मस्तिष्क में ब्लीडिंग होने से इस तरह का हाइड्रोसेफेलस हो सकता है। कभी-कभी मस्तिष्क में इंफेक्शन या ट्यूमर के कारण भी बच्चों में हाइड्रोसेफेलस हो सकता है। कई बार हाइड्रोसेफेलस के सही कारण का पता लगाना मुश्किल हो जाता है।

बच्चों में हाइड्रोसेफेलस के कारण

जहां हाइड्रोसेफेलस खोपड़ी के अंदर अतिरिक्त सीएसएफ के इकट्ठे होने के कारण होता है, वहीं यह इकट्ठा क्यों होता है, इसका कारण हाइड्रोसेफेलस के प्रकार पर निर्भर करता है। 

1. कंजेनिटल हाइड्रोसेफेलस के कारण

  • वेंट्रीकुलोमेगली: इस स्थिति में फ्लुइड को ड्रेन करने वाले चैनल सामान्य से अधिक बड़े होते हैं। इसके कारण सीएसएफ के मैनेजमेंट के तरीके में अनियमितता आ जाती है और हाइड्रोसेफेलस हो जाता है।
  • एक्वेडक्टल स्टेनोसिस: मस्तिष्क के अंदर वेंट्रीकल्स को कनेक्ट करने वाले चैनल बहुत संकरे हो जाते हैं, जिससे सीएसएफ आसानी से निकल नहीं पाता है, जिसके कारण खोपड़ी में यह इकट्ठा होने लगता है।
  • एरेक्नोइड सिस्ट: एरेक्नोइड लेयर मस्तिष्क को ढकने वाली मेंब्रेन की विभिन्न परतों में से एक होती है और इस परत में सिस्ट हो सकता है। ये सिस्ट सीएसएफ से भरे होते हैं, जो कि फ्लुइड के कारण मस्तिष्क पर पड़ने वाले दबाव को बढ़ाते हैं।
  • स्पाइना बिफिडा: स्पाइना बिफिडा में स्पाइनल कॉर्ड और नर्वस सिस्टम के हिस्सों की बनावट में खराबी के कारण सीएसएफ इकट्ठा होता है। यह इसलिए होता है, क्योंकि बच्चे की हड्डियां सही तरह से फ्यूज नहीं हो पाती हैं, जिससे नर्वस सिस्टम के विकास में रुकावट पैदा होती है।

  • इंफेक्शन: यदि गर्भावस्था के दौरान मां को कोई गंभीर और जटिल इंफेक्शन हो, तो बच्चे में हाइड्रोसेफेलस हो सकता है। नवजात शिशुओं में रूबेला और मम्प्स जैसी कुछ बीमारियों का हाइड्रोसेफेलस से सीधा संबंध देखा गया है।

2. एक्वायर्ड हाइड्रोसेफेलस के कारण

  • इंट्रावेंट्रिकुलर हैमरेज: इस स्थिति में बच्चे के मस्तिष्क में ब्लीडिंग होने लगती है। इससे वेंट्रीकल के अंदर खून बहने लगता है और वहां पहले से मौजूद सीएसएफ से मिल जाता है। जिसके कारण मस्तिष्क पर दबाव बढता है और सूजन पैदा हो जाती है। जिन नवजात शिशुओं का मस्तिष्क पूरी तरह से विकसित नहीं होता है, उनके मस्तिष्क के अंदर ब्लड वेसेल्स अचानक रप्चर हो जाती हैं, जिससे यह स्थिति पैदा होती है।
  • ट्रॉमा: यदि बच्चे के सिर पर चोट हो, तो खोपड़ी में ब्लीडिंग हो सकती है। इससे एक मिलता-जुलता नतीजा हो सकता है और खून और सीएसएफ के मिश्रण के कारण मस्तिष्क के आसपास तरल पदार्थ का दबाव बढ़ने लगता है।
  • इंफेक्शन: सेंट्रल नर्वस सिस्टम को प्रभावित करने वाले कुछ संक्रमण, मस्तिष्क के आसपास के मेंब्रेन के इन्फ्लेमेशन का कारण हो सकते हैं। जिसके कारण खोपड़ी के अंदर सीएसएफ की चैनलिंग खराब हो सकती है। इसलिए मस्तिष्क फ्लुइड को फिर से सोख पाने में सक्षम नहीं होता है और यह दबाव बढ़ता रहता है।
  • ट्यूमर: अगर मस्तिष्क के आसपास खोपड़ी के अंदर सिस्ट या सीएसएफ से भरे ट्यूमर हों, तो इससे भी बच्चे में हाइड्रोसेफेलस हो सकता है। इसे नॉन-कम्युनिकेटिंग हाइड्रोसेफेलस भी कहा जाता है।
  • कम्युनिकेटिंग हाइड्रोसेफेलस: यदि मस्तिष्क में सीएसएफ के ट्रांसपोर्ट में कोई समस्या ना भी हो, तो भी सीएसएफ के खून से मिलने के बाद समस्याएं हो सकती हैं। इससे सिर में तरल पदार्थ इकट्ठा होने लगता है, चूंकि वेंट्रीकल उन्हें बाहर निकाल नहीं पाते हैं, तो इसके कारण कम्युनिकेटिंग हाइड्रोसेफेलस हो जाता है।

छोटे बच्चों में हाइड्रोसेफेलस के शुरुआती संकेत क्या होते हैं?

शिशुओं में हाइड्रोसेफेलस के लक्षण आसानी से देखे जा सकते हैं, उनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं: 

1. सिर में सूजन

सिर का आकार दिन प्रतिदिन एक अप्राकृतिक ढंग से बढ़ता जाता है। बच्चे के सिर पर ऊपर की ओर आपको एक मुलायम स्पॉट महसूस होगा और हर दिन इस स्पॉट का आकार बढ़ता जाएगा। जल्द ही सिर का आकार बाकी के शरीर की तुलना में बेमेल लगने लगेगा। 

2. सीम्स

जब दिमाग के फैलने के कारण बच्चे की खोपड़ी स्प्लिट हो जाती है, तब पेरेंट्स सिर के ऊपर टांकों जैसे सीम्स नोटिस कर सकते हैं। ये टाँकें भी कुछ दिनों के बाद चौड़े होते हुए नजर आते हैं। 

3. आंखों का झुका होना

बच्चे की आंखें स्थाई रूप से झुकी हुई दिखती हैं और बच्चा हमेशा नीचे देखता रहता है और आंखों को अधिक घुमाता नहीं है। 

4. भूख की कमी

जब मस्तिष्क की सूजन अपनी गति पकड़ लेती है, तब बच्चे को भूख कम लगती है। जिसके कारण उसके खाने-पीने की आदतों में बदलाव देखा जाता है। इस स्तर पर अगर आप उसे खिलाने की कोशिश करती हैं, तो उसे तुरंत उल्टी आने लगती है। 

5. चिड़चिड़ापन

आपका बच्चा अधिक चिड़चिड़ा होने लगता है और कम उम्र में ही दौरे भी एक आम स्थिति बनने लगती है। 

अगर आपको अपने बच्चे में ऊपर दिए गए लक्षण नजर आते हैं, तो जितनी जल्दी हो सके, उसे डॉक्टर के पास लेकर जाना चाहिए। 

पहचान और टेस्ट

जब बच्चे को डॉक्टर के पास ले  जाता हैं, तो वह कुछ टेस्ट की मदद से सही नतीजे पर पहुंच पाते हैं और बीमारी की पहचान कर पाते हैं। ये टेस्ट नीचे दिए गए हैं: 

1. शारीरिक जांच

डॉक्टर के द्वारा लिया जाने वाला पहला कदम होगा, बच्चे के सिर का आकार मापना और यह देखना कि इस उम्र के लिए यह आकार सामान्य है या नहीं, आंखों के झुकाव की भी जांच की जाएगी और सिर की पूरी जांच की जाएगी। सिर के ऊपर मुलायम स्पॉट और सूजन की भी जांच की जाएगी। 

2. अल्ट्रासाउंड

सिर के ऊपर अल्ट्रासाउंड प्रोब रखकर, डॉक्टर खोपड़ी के अंदर मस्तिष्क की तस्वीर लेने में सक्षम हो पाएंगे। इससे उन्हें तरल पदार्थ के जमाव की मात्रा के बारे में समझने में मदद मिलेगी। 

3. कंप्यूटराइज्ड टोमोग्राफी

आमतौर पर, सीटी स्कैन के नाम से प्रसिद्ध, इस टेस्ट में अलग-अलग एंगल से एक्स-रे लिया जाता है, ताकि मस्तिष्क की 3डी तस्वीर मिल सके। बच्चे को बेहोश किया जा सकता है, ताकि स्कैन के दौरान वह स्थिर रहे (यह प्रक्रिया 20 मिनट तक चल सकती है)। 

4. मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग

रेडियो वेव्स के माध्यम से डॉक्टर मस्तिष्क की मौजूदा स्थिति की बेहद सटीक तस्वीरें ले पाएंगे। इस्तेमाल की गई मशीन के अनुसार इसमें 5 मिनट या फिर 1 घंटे तक का समय भी लग सकता है। 

5. एम्नियोसेंटेसिस

ऊपर दिए गए टेस्ट जन्म के बाद बच्चे में हाइड्रोसेफेलस की पहचान के लिए होते हैं, वहीं एम्नियोसेंटेसिस बच्चे के जन्म से पहले इस स्थिति को पहचानने में डॉक्टर्स की मदद कर सकता है। एमनियोटिक सैक से फ्लूइड लेकर डॉक्टर किसी प्रकार के जेनेटिक म्यूटेशन की जांच कर सकते हैं, जिससे बच्चे के जन्म से पहले बच्चे में वेंट्रीकुलोमेगली जैसी स्थिति का संकेत मिल सकता है। इस प्रकार माता-पिता बच्चे के जन्म के बाद तुरंत इस स्थिति से निपटने के लिए तैयार रह सकते हैं। 

हाइड्रोसेफेलस से ग्रस्त बेबी का इलाज

चाहे शिशु हो या बुजुर्ग, किसी के लिए भी हाइड्रोसेफेलस का नॉन-इनवेसिव इलाज उपलब्ध नहीं है। सिर के अंदर के दबाव को खत्म करने की जरूरत होती है, इसलिए यह प्रक्रिया निश्चित रूप से चीरे युक्त बड़ी सर्जरी होती है। बच्चों में हाइड्रोसेफेलस के इलाज के दो तरीके होते हैं: 

1. वेंट्रीक्यूलोस्टॉमी

इस प्रक्रिया में वेंट्रीकल्स के नीचे की ओर एक होल बनाया जाता है, ताकि सिर में मौजूद अतिरिक्त सीएसएफ को मस्तिष्क से बाहर निकाला जा सके। चैनल्स के बीच मूवमेंट को आसान बनाने के लिए वेंट्रीकल्स के बीच भी छेद किए जा सकते हैं। आमतौर पर इसे शंट में एक वैकल्पिक इलाज की विधि के रूप में किया जाता है। 

2. शंट इंसर्ट करना

शिशुओं में हाइड्रोसेफेलस के इलाज के लिए इसी तरीके को प्राथमिकता दी जाती है। शंट एक लंबी नली होती है, जिसमें एक वाल्व होता है, इसके इस्तेमाल से नली के द्वारा फ्लुइड के बहाव को नियंत्रित किया जाता है। इसे ऑपरेशन के माध्यम से मस्तिष्क में इन्सर्ट किया जाता है और यह सामान्य दर पर सही दिशा में सीएसएफ के बहाव में मदद करता है। इस शंट का दूसरा सिरा एब्डोमिनल कैविटी या चेस्ट में डाला जाता है, जहां सीएसएफ अधिक तेज गति से ब्लड स्ट्रीम में अब्जॉर्ब हो जाता है। इसलिए, ऐसे मामलों में, सीएसएफ मस्तिष्क से निकल कर सीधा एब्डोमिनल कैविटी में चला जाता है। यदि बच्चे में, शंट इंप्लांट किया जाए, तो उसकी स्थिति को मॉनिटर करने के लिए, नियमित रूप से डॉक्टर के पास चेकअप के लिए ले जाया जाता है, यदि यह प्लांट परमानेंट हो तब भी। 

पहचान के बाद इलाज के अन्य विकल्प

चूंकि शंट इनवेसिव प्रक्रिया होती है और काफी खतरनाक भी होती है, इसलिए इलाज के कुछ अन्य विकल्प भी होते हैं, जो आपके बच्चे की स्थिति के अनुसार काम कर सकते हैं। ये नीचे दिए गए हैं:

  • एंडोस्कोपी: की-होल सर्जरी बहुत ही कम इनवेसिव होते हैं और अगर हाइड्रोसेफेलस सिर में ट्रॉमा के कारण हुआ हो, तो यह इलाज उचित होता है। तीसरी वेंट्रीकल के फ्लोर में छोटा चीरा लगाया जाता है, ताकि बिना किसी ब्लॉकेज के मस्तिष्क से फ्लुइड बाहर निकल सके।

  • मस्तिष्क में सीएसएफ की मात्रा को कम करने में मदद के लिए, सर्जन मस्तिष्क में सीएसएफ बनाने वाले टिशू- कोरोइड प्लेक्सस को खत्म कर सकते हैं। कोरोइड प्लेक्सस कोएगुलेशन नामक एक प्रक्रिया में इलेक्ट्रिकल करंट के इस्तेमाल से कोरोइड प्लेक्सस को खत्म करके मस्तिष्क में सीएसएफ का उत्पादन बड़े पैमाने पर कम किया जा सकता है और हाइड्रोसेफेलस से बचा जा सकता है।
  • कई शिशुओं के मामलों में एंडोस्कोपिक थर्ड वेंट्रीक्यूलोस्टॉमी और कोरोइड प्लेक्सस कोएगुलेशन एक साथ मिलकर, शंट ट्रीटमेंट का एक अच्छा विकल्प हो सकते हैं। जो बच्चे स्पाइन के डीफॉर्मेशन और कुछ अन्य स्थितियों से प्रभावित होते हैं, उनमें शंट के इन्सर्ट करने के बजाय, इस तरीके का इस्तेमाल करके उनका इलाज प्रभावी ढंग से किया जा सकता है।
  • एंडोस्कोपी के बाद भी स्थिति की प्रोग्रेस को मॉनिटर करने के लिए नियमित चेकअप की जरूरत होती है। अगर हाइड्रोसेफेलस फिर से होने लगता है, तो मस्तिष्क में एक शंट को इंसर्ट करना पड़ता है, क्योंकि ऐसे मामलों में एंडोस्कोपी काम नहीं करती है।

बेबी हाइड्रोसेफेलस के साथ जुड़े कॉम्प्लिकेशंस और खतरे

किसी इंवेसिव सर्जिकल प्रक्रिया के मामले की तरह, शिशुओं में हाइड्रोसेफेलस के इलाज से कई खतरे जुड़े होते हैं। इनमें से कुछ खतरे और सीमाएं नीचे दी गई हैं: 

सर्जिकल ट्रीटमेंट के कारण कॉम्प्लिकेशंस

  • बच्चों में सर्जिकल प्रक्रिया के पूरे होने के बाद भी, हाइड्रोसेफेलस दोबारा हो सकता है। ब्रेन सीएसएफ का उत्पादन बंद नहीं करता है, क्योंकि यह सेंट्रल नर्वस सिस्टम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हाइड्रोसेफेलस के बावजूद, प्रक्रिया के बाद बच्चे का विकास प्रभावित नहीं होता है और वह अपना बाकी का जीवन आराम से व्यतीत करने में सक्षम होता है।
  • यदि वेंट्रीकल्स के ब्लॉकेज न हों, तो शंट प्रक्रिया हाइड्रोसेफेलस के इलाज का एकमात्र तरीका है। शंट को इंसर्ट करना एक बेहद जटिल प्रक्रिया है और इसमें लगभग 3 या 4 दिनों के लिए हॉस्पिटल में रहना पड़ता है, जो कि बच्चे के लिए मुश्किल हो सकता है।
  • कुछ सालों के बाद शंट को बदलने की जरूरत होती है और बार-बार इसे मॉनिटर करना पड़ता है।
  • चूंकि शंट मैकेनिकल डिवाइस होते हैं, तो ऐसे में इनके फेल होने की संभावना भी अधिक होती है। इनमें बैक्टीरियल इंफेक्शन का खतरा भी होता है और यदि कोई संक्रमण हो, तो इसे पूरी तरह से बदलने की जरूरत भी पड़ सकती है।

सर्जरी के बाद घर पर बच्चे की देखभाल कैसे करें?

बच्चे में हाइड्रोसेफेलस की पहचान, चाहे गर्भावस्था के दौरान हुई हो या जन्म के बाद, इसका इलाज एक ही होता है। हालांकि आपको यह सुनिश्चित करना पड़ता है, कि इलाज के बाद घर पर वह अच्छी तरह से रिकवर हो जाए, ताकि वह बिना किसी नुकसान के अच्छी तरह से बढ़ सके: 

  • सर्जरी के दर्द को मैनेज करने के लिए उसे टायलेनॉल दे सकती हैं। लेकिन उसे कोई भी दवा देने से पहले, उसकी सही खुराक जानने के लिए अपने डॉक्टर से बात करना न भूलें। यदि उसकी उम्र 4 साल से अधिक है, तो डॉक्टर दर्द को कम करने के लिए कोडेइन के साथ-साथ टायलेनॉल भी प्रिसक्राइब कर सकते हैं।

  • सर्जरी के मामले में, बच्चे की आयु और स्थिति के अनुसार खानपान से संबंधित प्रतिबंध में शामिल होते हैं। लेकिन यदि डॉक्टर ने इजाजत दी हो, तो सर्जरी के बाद घर आने पर, आप उसे उसका मनचाहा खाना खाने को दे सकती हैं।
  • हर दिन सर्जरी के घाव को आपको सौम्यता से साफ करना होगा। इससे जब तक घाव पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाता, तब तक किसी तरह के संक्रमण से उसका बचाव होगा। धोने के दौरान इस बात का ख्याल रखें, कि उसपर अधिक दबाव न डालें, क्योंकि इससे बच्चे को दर्द हो सकता है।
  • अगर बच्चा अच्छा महसूस कर रहा है, तो उसके रोज की दिनचर्या को दोबारा शुरू करने दें।
  • दवाओं के अलावा डॉक्टर कोई अन्य दवा बच्चे को देने से आमतौर पर बचेंगे।
  • जब तक उसका घाव पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाता और त्वचा जुड़ नहीं जाती, तब तक आपको लंबे समय के लिए बच्चे को पानी में नहीं रहने देना चाहिए। पानी घाव के अंदर जा सकता है और उसके खुले हिस्से में संक्रमण हो सकता है।
  • ठीक होने के लगभग दो सप्ताह के बाद, आपको रूटीन चेकअप के लिए बच्चे को डॉक्टर के पास ले कर जाना होगा।

बच्चों में हाइड्रोसेफेलस सबसे कठिन स्थितियों में से एक है। लेकिन अगर शुरुआत में इसका इलाज हो जाए, तो बच्चे बड़े होकर सामान्य जीवन जी सकते हैं। हालांकि शंट को मेंटेन करना आसान नहीं है, पर फिर भी यह आपके बच्चे के जीवन के किसी अन्य पहलुओं पर कोई प्रभाव नहीं डालता है। इसलिए अगर आपको बच्चे के विकास या उसके व्यवहार में कुछ भी गलत महसूस होता है, तो उसे डॉक्टर के पास लेकर जाएं। 

यह भी पढ़ें: 

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पूजा ठाकुर

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