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शिशुओं में हाइड्रोनेफ्रोसिस: कारण, लक्षण और इलाज

हाइड्रोनेफ्रोसिस किडनी यानी गुर्दे से संबंधित एक समस्या है, जो कि अत्यधिक दर्द भरी होती है और यह किसी को भी प्रभावित कर सकती है, जिनमें बच्चे भी शामिल हैं। अगर आपका बेबी पेशाब करने के दौरान रोता है या परेशान नजर आता है, तो अपने पेडिअट्रिशन से संपर्क करना सबसे बेहतर है। इस स्थिति को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसके खतरनाक प्रभाव हो सकते हैं। आइए हाइड्रोनेफ्रोसिस के बारे में गहराई से चर्चा करते हैं। 

हाइड्रोनेफ्रोसिस क्या है?

हाइड्रोनेफ्रोसिस रीनल सिस्टम की एक समस्या है, जिसमें पेशाब बाहर नहीं निकल पाता है, जिससे पेशाब करने के दौरान दर्द होता है। पेशाब किडनी की ओर वापस चला जाता है और किडनी के टिशू पर दबाव डालकर सूजन पैदा करता है। आमतौर पर, यह ब्लॉकेज यूरेटर में स्थित होता है। यूरेटर किडनी को ब्लैडर से जोड़ने वाले ट्यूब होते हैं। शिशुओं में यह ज्यादातर रीनल सिस्टम की जन्मजात बीमारी के कारण होता है। यह बीमारी एक या दोनों किडनी को प्रभावित कर सकती है। बाद वाली स्थिति शिशुओं में बाइलेटरल हाइड्रोनेफ्रोसिस के नाम से जानी जाती है। 

बेबी हाइड्रोनेफ्रोसिस के कारण

जन्मजात हाइड्रोनेफ्रोसिस होने के अलावा आपके बच्चे की इस बीमारी के पीछे कई तरह के कारण हो सकते हैं, जो कि नीचे दिए गए हैं; 

  • हाइड्रोनेफ्रोसिस के मुख्य कारणों में से एक है, किडनी स्टोन की मौजूदगी। अगर यह स्टोन बहुत बड़ा हो, तो यह यूरेटर को ब्लॉक कर सकता है, जिसके कारण पेशाब इकट्ठा होता है और किडनी में सूजन आ जाती है।
  • हाइड्रोनेफ्रोसिस किसी ट्यूमर या सिस्ट की मौजूदगी के कारण भी हो सकता है, जिससे यूरेटर पर दबाव पड़ता है और ब्लॉकेज बन जाता है।
  • अन्य प्रमुख कारण है, ब्लड क्लॉट या स्कार टिशु की मौजूदगी। आमतौर पर बच्चों में स्कारिंग तब तक नहीं देखा जाता, जब तक उन्हें पहले कोई रीनल डैमेज न हुआ हो।
  • कुछ बच्चे प्राकृतिक रूप से संकरे यूरेटर के साथ जन्म लेते हैं। ऐसे मामलों में यूरेटर में ब्लॉकेज होने की संभावना अधिक होती है।

छोटे बच्चों में हाइड्रोनेफ्रोसिस के लक्षण

इस स्थिति के कई लक्षण होते हैं, जिन्हें आप देख सकती हैं। इनमें से कुछ लक्षण नीचे दिए गए हैं: 

  • पेशाब करने के दौरान रोना, जो कि दर्द होने को दर्शाता है।
  • पेट के निचले हिस्से में दर्द। उस क्षेत्र पर दबाने या हल्के हाथों से टटोलने से बच्चे के रोने पर पता चल सकता है।
  • सामान्य से अधिक बार पेशाब करना
  • बड़े बच्चों में मतली
  • उल्टी
  • बुखार

इस बात का ध्यान रखें, कि यह स्थिति जितने लंबे समय तक बिना इलाज के रहती है, इसके लक्षण उतने ही बिगड़ सकते हैं। इसलिए इन लक्षणों को ढूंढें और अगर इनमें से कोई संकेत दिखें, तो जितनी जल्दी हो सके अपने बेबी के पेडिअट्रिशन से मिलकर इलाज की शुरुआत करें। 

हाइड्रोनेफ्रोसिस के सबसे आम साइड इफेक्ट्स में से एक होता है, यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन या यूटीआई का विकास। इस संक्रमण के कुछ आम लक्षण इस प्रकार हैं:

  • पीठ में दर्द
  • बुखार
  • झागदार पेशाब
  • पेशाब के दौरान दर्द, जिसका पता रोने या छटपटाहट से चल सकता है

पहचान

चूंकि हाइड्रोनेफ्रोसिस अपने आप में एक बीमारी नहीं है, बल्कि दूसरे फैक्टर्स के कारण होने वाली एक स्थिति है, इसलिए इसकी पहचान दो आयामी होती है। पहला स्टेप होता है, आपके बच्चे में इस स्थिति की मौजूदगी की पहचान और दूसरा कदम होता है, इस ब्लॉकेज के कारण का पता लगाना। 

इस स्थिति की पहचान आपकी प्रेगनेंसी के दौरान या उसके बाद हो सकती है। 

प्रेगनेंसी के दौरान टेस्टिंग

आपकी गर्भावस्था के दौरान आमतौर पर नियमित प्रीनेटल अल्ट्रासाउंड टेस्ट के द्वारा हाइड्रोनेफ्रोसिस की पहचान की जाती है। अगर बच्चे की किडनी का आकार और एमनियोटिक फ्लूइड का स्तर देखकर किसी गड़बड़ी का अंदेशा होता है, तो डॉक्टर आपके गर्भ में बच्चे की किडनी के स्वास्थ्य को मॉनिटर करने के लिए बार-बार चेकअप करने के लिए आपको बुलाएंगे। 

डिलीवरी के बाद टेस्टिंग

डॉक्टरों के पास एडवांस उपकरण और टेस्ट होते हैं, जिनसे आपके बेबी की किडनी में होने वाली परेशानियों का सही-सही पता लगाया जा सकता है। इस स्थिति को पहचानने के लिए, डॉक्टर नीचे दिए गए टेस्ट में से एक, एक से अधिक या सभी टेस्ट कराने की सलाह दे सकते हैं। 

  • रीनल अल्ट्रासाउंड (आरयूएस): यह अल्ट्रासाउंड आपके बच्चे के रीनल सिस्टम पर सीधा फोकस करता है, जिससे डॉक्टर को किडनी की स्थिति की बेहतर और पूरी तस्वीर मिलती है।
  • वॉइडिंग सिस्टॉरेथ्रोग्राम (वीसीयूजी): इस टेस्ट में एक कैथेटर के इस्तेमाल से बच्चे के ब्लैडर में एक लिक्विड डाय इंजेक्ट किया जाता है। जब बच्चा पेशाब करता है, तो डाय के फ्लो को एक्स-रे के माध्यम से देखा जाता है।
  • रीनल स्कैन (एमएजी3): इस टेस्ट में बच्चे के ब्लड स्ट्रीम में रेडियो आइसोटोप की थोड़ी सी मात्रा डाली जाती है। जब वह रीनल सिस्टम तक पहुंच जाता है, तब एक विशेष गामा कैमरा रेडियो आइसोटोप की तस्वीरें लेता है। इस टेस्ट के साथ डॉक्टर दोनों किडनी की फंक्शनिंग की तुलना करने में सक्षम हो पाते हैं और साथ ही ब्लॉकेज का भी पता लगा पाते हैं।

कॉम्प्लिकेशंस

अगर हाइड्रोनेफ्रोसिस का इलाज न किया जाए या उचित मेडिकल केयर न मिले, तो आपके बच्चे की किडनी गंभीर रूप से खराब हो सकती है। खून को फिल्टर करना, टॉक्सिंस को बाहर निकालना, गंदगी को बाहर निकालना, आरबीसी रेगुलेशन, रेगुलर यूरिनेशन जैसे नियमित फंक्शन के रुकने के साथ-साथ, उनमें इंफेक्शन हो सकता है और वे स्थाई रूप से खराब भी हो सकती हैं। 

कई बार ऐसा भी होता है, कि बच्चे को हाइड्रोनेफ्रोसिस हो और सही समय पर मेडिकल इंटरवेंशन के बावजूद इसका इलाज निराशाजनक रह जाता है। 

छोटे बच्चों में हाइड्रोनेफ्रोसिस का इलाज

इलाज की प्रकृति और प्रक्रिया बच्चे में हाइड्रोनेफ्रोसिस के स्टेज या प्रकार पर निर्भर करती है। इसके इलाज के कुछ विकल्प इस प्रकार हैं:

  • फीटल इंटरवेंशन: अगर किडनी और बाकी के रीनल सिस्टम की स्थिति गंभीर लगती है, तो डॉक्टर तुरंत उसके इलाज की शुरुआत करेंगे। इसमें नियोनेटल सर्जरी और मेटरनल फीटल मेडिसिन शामिल हैं।
  • ऑब्जर्वेशन: हाइड्रोनेफ्रोसिस के सौम्य से मध्यम स्थिति के मामलों में पेडिअट्रिशन रीनल सिस्टम के ऑब्जर्वेशन को इलाज का सही तरीका मानने की सलाह देंगे, क्योंकि यह अपने आप ही ठीक हो सकता है। बच्चे को एंटीबायोटिक की थोड़ी खुराक दी जा सकती है, जिससे यूरिनरी ट्रैक्ट के किसी इंफेक्शन से बचाव होगा।
  • सर्जरी: केवल सबसे गंभीर मामलों में ही हाइड्रोनेफ्रोसिस को ठीक करने के लिए डॉक्टर सर्जरी की सलाह देंगे। ऐसी कई तरह की सर्जरी हैं, जो की जा सकती हैं, जैसे यदि ब्लॉकेज के कारण किडनी स्टोन हो तो उसे निकालना। पाईलोप्लास्टी सबसे आम सर्जरी में से एक है, जिसमें यूरेटर के जिस हिस्से में ब्लॉकेज होता है, उसे निकाल दिया जाता है।

हाइड्रोनेफ्रोसिस रीनल सिस्टम की एक ऐसी स्थिति है, जिसके कारण दर्द के अलावा कई गंभीर परेशानियां हो सकती हैं। हाइड्रोनेफ्रोसिस के गंभीर और मुश्किल मामलों से बचने के लिए, आपको सलाह दी जाती है कि कुछ शुरुआती संकेत दिखने पर जितनी जल्दी हो सके अपने बेबी के पेडिअट्रिशन से संपर्क करें और परामर्श लें। इस बात का हमेशा ध्यान रखें, कि कंजेनिटल हाइड्रोनेफ्रोसिस के ज्यादातर मामले अपने आप ठीक हो सकते हैं और जब तक डॉक्टर इसकी सलाह न दें, तब तक सर्जरी करने की कोई जरूरत नहीं होती है। इस बात का ध्यान रखें, कि सभी जरूरी टेस्ट समय पर कराएं और समय-समय पर बेबी का पेडिअट्रिशन से चेकअप कराती रहें और कोई भी अपॉइंटमेंट मिस न करें। 

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पूजा ठाकुर

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