शिशु

बेबी में मेनिनजाइटिस: कारण, लक्षण और उपचार

मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड के साथ मेनिनजीयल कवरिंग सेंट्रल नर्वस सिस्टम तैयार करते हैं। पाया मेटर, एरेक्नोइड और ड्यूरा मेटर एक साथ मिलकर मेनिनजेस बनाते हैं, जो कि अंदरूनी नर्वस टिशु के लिए शॉक अब्जॉर्बर और लुब्रिकेशन की तरह काम करता है। इन परतों में से किसी की भी सूजन को मेनिनजाइटिस कहते हैं। मेनिनजाइटिस और इसके इलाज के बारे में अधिक जानकारी के लिए आगे पढ़ें। 

मेनिनजाइटिस क्या है?

मेनिनजाइटिस एक ऐसा सिंड्रोम है, जिसमें मस्तिष्क या स्पाइनल कॉर्ड को ढकने वाली मेनिंजेस में सूजन हो जाती है। यह उन नवजात शिशुओं, छोटे बच्चों या वयस्कों को प्रभावित कर सकता है, जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर हो। इससे बचाव और इसका इलाज संभव है, फिर भी यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे गंभीर न्यूरोलॉजिकल जटिलताएं हो सकती हैं, खासकर बेबी मेनिनजाइटिस। 

मेनिनजाइटिस के प्रकार

मेनिनजाइटिस किस ऑर्गेनेज्म से हुआ है, इस आधार पर इसका वर्गीकरण किया जा सकता है:

1. बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस

बच्चों और बड़ों में मेनिनजाइटिस के लिए कई तरह के बैक्टीरिया जिम्मेदार हो सकते हैं, जैसे स्ट्रैप्टॉकोक्कस निमोनिया, मेनिनगोकोक्कुस और स्टेफिलोकोक्कस। 

2. वायरल मेनिनजाइटिस

हिमोफिलस इनफ्लुएंजा जैसे वायरस नवजात शिशु और छोटे बच्चों में मेनिनजाइटिस का कारण माने जाते हैं। विकासशील देशों में छोटे बच्चों में वायरल मेनिनजाइटिस एक गंभीर समस्या है। 

3. ट्यूबरक्लोस मेनिनजाइटिस

माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस के कारण मेनिंजेस का ट्यूबरक्लोसिस होता है। 

4. फंगल मेनिनजाइटिस

यह मेनिनजाइटिस का एक दुर्लभ प्रकार है। आमतौर पर यह एचआईवी और एड्स जैसी बीमारियों से ग्रस्त लोगों में देखी जाती है। 

क्या एक छोटे बच्चे को मेनिनजाइटिस हो सकता है?

मेनिनजाइटिस स्वस्थ नवजात बच्चों और शिशुओं को प्रभावित कर सकता है। निम्नलिखित स्थितियों में छोटे बच्चे और शिशु इसके खतरे में अधिक होते हैं:

  • प्रीमैच्योरिटी, इंट्रायूटरिन ग्रोथ न होना और जन्म के समय कम वजन
  • रूबेला और मीजल्स जैसे इन्फेक्शन
  • माँ में ट्यूबरक्लोसिस (टीबी)
  • जटिल लेबर के साथ वैक्यूम या फोरसेप डिलीवरी जैसी रिप्रोडक्टिव तकनीकों का इस्तेमाल
  • अन्य जन्मजात न्यूरोलॉजिकल समस्याएं
  • सफाई की कमी और गंदे माहौल में रहना
  • बच्चे में पहले किसी तरह के न्यूरो सर्जिकल इंटरवेंशन होना

छोटे बच्चों में मेनिनजाइटिस का कारण क्या होता है?

शिशुओं में मेनिनजाइटिस के कारण यहां पर दिए गए हैं:

1. बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस

आमतौर पर मेनिनजाइटिस निम्नलिखित बैक्टीरिया के कारण होता है:

  • स्ट्रैप्टॉकोक्कस निमोनिया या नीमोकोकस
  • एच.इन्फ्लूएंजा – टाइप बी (नवजात शिशुओं में प्रचलित)
  • नेसीरिया मेनिनजाइटिडिस या मेनिनगोकोक्कुस-मेनिंगोकोकल सेप्टीसीमिया विस्तृत पेटेचिए और पुरपुरा से जुड़ा होता है।
  • ई-कोली
  • ग्रुप बी स्ट्रैप्टॉकोक्कल स्ट्रेन (नवजात शिशुओं में भी प्रचलित)

2. वायरल मेनिनजाइटिस

बच्चों में असेप्टिक मेनिनजाइटिस के ज्यादातर मामलों के लिए एंटेरोवायरस जिम्मेदार होते हैं। ये गर्मियों में और ट्रॉपिकल देशों में अधिक आम होते हैं। 

वायरल या एसेप्टिक मेनिनजाइटिस आमतौर पर पूरे ग्रुप के अलावा निम्नलिखित वायरस के कारण भी होता है:

छोटे बच्चों में मेनिनजाइटिस के संकेत और लक्षण

आयु वर्ग के आधार पर मेनिनजाइटिस कई तरह से दिख सकता है:

शिशुओं में मेनिनजाइटिस के कारण निम्नलिखित लक्षण दिख सकते हैं। लेकिन बच्चों में ये लक्षण केवल मेनिनजाइटिस के ही नहीं होते हैं और अन्य सिस्टमैटिक इंफेक्शन के कारण भी मौजूद हो सकते हैं: 

  • चिड़चिड़ापन
  • फीडिंग में दिक्कतें
  • लगातार रहने वाला बुखार या पायरेक्सिया
  • मतली और उल्टी
  • फॉन्टेनल उभार- इंट्राक्रेनियल टेंशन के बढ़ने के कारण

टॉडलर्स या बच्चों (डेढ़ वर्ष से कम) में निम्नलिखित लक्षण दिख सकते हैं:

  • अत्यधिक रोना और चिड़चिड़ापन
  • तेज बुखार
  • जनरलाइज्ड या पार्शियल सीजर (दौरे)
  • अत्यधिक नींद आना
  • अत्यधिक सुस्ती
  • प्रोजेक्टाइल उल्टियां
  • फॉन्टेनल उभार
  • गर्दन में दर्द और टेंडर्नेस, खासकर निष्क्रिय नेक मूवमेंट्स के दौरान

बड़े बच्चों में आमतौर पर गर्दन में दर्द के साथ निम्नलिखित में से कोई एक लक्षण, मुख्य लक्षण के तौर पर दिखता है:

  • सेंसोरियम की बदली हुई स्थिति
  • दौरे
  • पायरेक्सिया
  • तेज सिर दर्द
  • फोटोफोबिया
  • मतली और उल्टी

मेनिनजाइटिस की पहचान

मेनिनजाइटिस की पहचान में मुख्य रूप से निम्नलिखित बातें शामिल होती हैं:

  • क्लीनिकल लक्षणों का एक विस्तृत इतिहास: बुखार, गर्दन में दर्द या सीजर के साथ-साथ किसी भी तरह के अन्य लक्षण की शुरुआत और अवधि का इतिहास।
  • संपूर्ण शारीरिक जांच: सेंट्रल नर्वस सिस्टम की जांच
  • लंबर पंक्चर और सीएसएफ एनालिसिस: रूटीन और माइक्रोस्कोपी के लिए सेरेब्रोस्पाइनल फ्लुइड की जांच के द्वारा कारक ऑर्गेनेज्म की पहचान, सीएसएफ प्रोटीन लेवल और सीएसएफ शुगर
  • न्यूरोलॉजिकल इमेजिंग: सीटी स्कैन और मस्तिष्क के एमआरआई के द्वारा मेनिनजीयल एनहैंसमेंट और ट्यूबरक्लोसिस मेनिनजीओमस की पहचान हो सकती है

रूटीन ब्लड टेस्ट

  • कंप्लीट और डिफरेंशियल ब्लड काउंट
  • सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम और मैग्नीशियम लेवल जैसे इलेक्ट्रोलाइट
  • ब्लड ग्लूकोज
  • लिवर फंक्शन और किडनी फंक्शन की जांच
  • एरिथ्रोसाइट सेडिमेंटेशन रेट

अन्य जांच

  • वायरोलॉजिकल स्टडीज (सीएसएफ के लिए पीसीआर)
  • सेरोलॉजिकल स्टडीज (सिफलिस के लिए वीडीआरएल)

टंबलर टेस्ट

मेनिंगोकोक्केमिया जैसे मेनिनजाइटिस के कुछ खास संक्रामक कारक, एक अनोखे रैश और बुखार के साथ दिख सकते हैं। टंबलर टेस्ट में एक कांच के गिलास को रैश के ऊपर दबाया जाता है और अगर यह रैश स्पष्ट होने लगे, तो इसे पॉजिटिव माना जाता है। 

बच्चों में मेनिनजाइटिस का उपचार

मेनिनजाइटिस के लिए आम उपचार संबंधी गाइडलाइन्स यहां पर दी गई हैं:

  • जब क्लिनिकली मेनिनजाइटिस का संदेह हो जाता है, तब एक सीएसएफ जांच के द्वारा इसके लिए संभव कारक या जिम्मेदार ऑर्गेनेज्म की पहचान में मदद मिलती है। उचित एंटीमाइक्रोबॉयल थेरेपी प्रोवाइड की जाती है।
  • इलाज के साथ शिशुओं के लिए मेनिनजाइटिस की वैक्सीन भी दी जाती है।
  • आईसीटी – आईवी ऑस्मोटिक ड्यूरेटिक के लिए इलाज जैसे मैनीटॉल इन्फ्यूजन।
  • सीजर के लिए थेरेपी – फिनायटोइन और फेनोबर्बिटोन जैसी एंट्रीएपिलेप्टिक दवाएं।

वायरल मेनिनजाइटिस का उपचार

1. हरपीज सिंपलेक्स मेनिनजाइटिस

चूंकि वायरल या असेप्टिक मेनिनजाइटिस के कोई लक्षण नहीं दिखते हैं, ऐसे में इलाज में केवल कंजरवेटिव मैनेजमेंट को शामिल किया जाता है और एंटीवायरल थेरेपी का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, बशर्ते यह इंसेफलाइटिस से जुड़ा हो। एसाइक्लोवीर एंटीवायरल एजेंट (इंट्रावेनस एक-दो सप्ताह के लिए 10 मिलीग्राम/ किलोग्राम हर 8 घंटे में) एचएसवी एक और दो मैनिंजाइटिस के लिए मुख्य इलाज होता है। 

2. साइटोमेगालोवायरस मेनिनजाइटिस

गेंसीक्लोवीर और फोस्कार्नेट कमजोर इम्यूनिटी वाले मरीजों में सीएमवी के लिए एंटीवायरल के विकल्प होते हैं। 

बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस का उपचार

बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस में तुरंत अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत होती है। जल्द पहचान और इलाज से मस्तिष्क के डैमेज और मृत्यु से बचा जा सकता है। बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस का इलाज इंट्रावेनस एंटीबायोटिक के द्वारा किया जाता है। बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस के लिए कोई विशेष एंटीबायोटिक नहीं होते हैं। यह इसके जिम्मेदार बैक्टीरिया के ऊपर निर्भर करता है। 

फंगल मेनिनजाइटिस का उपचार

फंगल मेनिनजाइटिस का इलाज एंटीफंगल एजेंट्स के द्वारा किया जाता है। 

पैरासाइटिक मेनिनजाइटिस का उपचार

पैरासाइटिक मेनिनजाइटिस में या तो केवल लक्षणों का इलाज किया जाता है या सीधे संक्रमण को ठीक करने की कोशिश की जाती है। कारण के आधार पर यह प्रकार एंटीबायोटिक के बिना बेहतर हो सकता है, लेकिन अगर यह बिगड़ जाए तो आपके डॉक्टर इन्फेक्शन को ठीक करने की कोशिश कर सकते हैं। 

वायरल मेनिनजाइटिस अपने आप ठीक हो सकता है। लेकिन वायरल मेनिनजाइटिस के कुछ कारण इंट्रावेनस एंटीवायरल दवाओं के साथ ठीक किए जाते हैं। 

मेनिनजाइटिस की जटिलताएं

शिशुओं और बच्चों में मेनिनजाइटिस के कारण निम्नलिखित गंभीर लक्षण दिख सकते हैं:

  • सीजर डिसऑर्डर
  • सेरेब्रल फोड़े
  • सेंसोरियम समस्याएं जिनमें तीव्रता में कमी और कोमा शामिल हैं

चूंकि शिशु और छोटे बच्चे बढ़ रहे होते हैं, ऐसे में लॉन्ग टर्म में मेनिनजाइटिस उनके न्यूरो संबंधी विकास को प्रभावित कर सकता है और निम्नलिखित स्थितियों का कारण बन सकता है:

  • सुनने में समस्याएं: सुनने वाली नस मेनिनजाइटिस में आम तौर पर शामिल हो सकती है।
  • सीखने में कठिनाई: यह बच्चे के जनरल आईक्यू और बोध ज्ञान गुणों को प्रभावित कर सकता है।
  • मोटर फंक्शन: शिशुओं में मेनिनजाइटिस मोटर सिस्टम को प्रभावित कर सकता है और यह असामान्य चाल के रूप में दिख सकता है।

क्या मेनिनजाइटिस संक्रामक है और यह कैसे फैलता है?

मेनिनजाइटिस एक संक्रामक बीमारी है और यह करीबी संपर्क और समाज में फैल सकता है। 

स्ट्रैप्टॉकोक्कस और हिमोफिलस इनफ्लुएंजा जैसे पैथोजन मेनिनजाइटिस से प्रभावित होने के पहले से ही मरीज के नेसल पैसेज और कंठ में मौजूद होते हैं और ये खांसने, छींकने, थूकने या चूमने से भी फैल सकते हैं। वायरल मेनिनजाइटिस मीजल्स और मम्प्स जैसी बच्चों को होने वाली बीमारियों के बाद हो सकते हैं और ये बच्चों के बीच इसी तरह से फैल भी सकते हैं। 

डॉक्टर से कब मिलें?

अगर आप अपने बच्चे में निम्नलिखित में से कोई भी लक्षण देखते हैं, तो आपको डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए:

  • रैश के साथ बुखार की मौजूदगी या गैर मौजूदगी
  • तेज बुखार, आमतौर पर यह रूटीन दवाओं का इन पर कोई असर नहीं होता है
  • अत्यधिक नींद आना या अत्यधिक चिड़चिड़ापन जैसे असामान्य लक्षण
  • गर्दन में दर्द या देखने में दिक्कतें
  • सीजर
  • स्कूल में मेनिनजाइटिस से करीबी संपर्क होना

मेनिनजाइटिस से बचाव

यहां पर बचाव के कुछ तरीके दिए गए हैं, जिनसे मेनिनजाइटिस को दूर रखा जा सकता है: 

1. वैक्सीनेशन

चूंकि मेनिनजाइटिस के ज्यादातर मामले नीमोकोकस, मेनिनगोकोक्कुस या एच. इनफ्लुएंजा के कारण होते हैं, ऐसे में इन ऑर्गेनेज्म के लिए उपलब्ध वैक्सीन के इस्तेमाल से मेनिनजाइटिस से बचाव संभव है। 

2. एचआईबी (हीमोफिलस इनफ्लुएंजा टाइप बी) वैक्सीन

हालांकि हीमोफिलस इनफ्लुएंजा टाइप बी वैक्सीन को अनिवार्य वैक्सीन के रूप में नेशनल इम्यूनाइजेशन शेड्यूल में शामिल नहीं किया गया है, लेकिन संदेहास्पद आबादी के साथ-साथ 2 महीने से 15 महीने से लेकर 5 वर्ष तक के बच्चों को कैच-अप वैक्सीनेशन की सख्त सलाह दी जाती है। इसे इंट्रा मस्कुलर इंजेक्शन के रूप में 6 सप्ताह से 12 महीने की उम्र में 2-3 खुराकों में प्राइमरी वैक्सीनेशन के रूप में दिया जाता है। वहीं तीसरी या चौथी खुराक या बूस्टर 12 से 15 महीने की उम्र में दी जाती है। 

3. निमोकोकल वैक्सीन

पीसीवी13 (13-वैलेंट निमोकोकल कन्ज्यूगेट वैक्सीन) 0.5 मिलीलीटर इंट्रा मस्कुलर इंजेक्शन 2, 4, 6 और 12 महीने की उम्र में चार खुराकों में दिए जाते हैं। 

पॉलीवैलेंट पीपीएसवी23 (23-वैलेंट निमोकोकल पॉलिसैचेराइड वैक्सीन) इंट्रामस्कुलर वैक्सीन केवल 2 वर्ष से ऊपर के बच्चों को दी जाती है। इसे 0.5 मिलीलीटर इंट्रा मस्कुलर इंजेक्शन के द्वारा केवल अधिक खतरे वाले मरीजों (फेफड़ों या किडनी की लंबी बीमारी, स्ट्राइड थेरेपी से ग्रस्त) को रूटीन पीसीवी-13 वैक्सीन के साथ दी जाती है। 

4. मेनिंगोकोकल वैक्सीन

मेनिंगोकोकल वैक्सीन नेसीरिया मेनिनजाइटिडिस के ए, सी, वाय और डब्लू-135 नामक सभी चार स्ट्रेन से सुरक्षा देता है। इसकी सलाह केवल 2 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों को दी जाती है। यह 0.5 मिलीलीटर की एक त्वचा के नीचे की खुराक के रूप में दी जाती है। 

10 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों को मेनिंगोकोकल ग्रुप बी वैक्सीन को रूटीन टेट्रावेलेंट वैक्सीन के साथ देने की सलाह दी जाती है। इसे 0.5 मिलीलीटर इंट्रा मस्कुलर खुराक के रूप में 0, 2 और 6 महीनों में दिया जाता है। 

5. कीटाणुओं से बचाव

कीटाणुओं से बचने के लिए साफ-सफाई का ध्यान रखना सबसे बेहतर तरीका है। इसमें बार-बार हाथ धोना, नियमित रूप से नहाना, थूकने से बचना, संक्रामक बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति से दूर रहना जैसी आदतें शामिल हैं। छोटे बच्चे और वयस्क जो ऐसे किसी संक्रमित व्यक्ति (परिवार के सदस्य या हेल्थ केयर अटेंडेंट) के करीबी संपर्क में रहते हैं, उन्हें सुरक्षात्मक बचाव के लिए डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए। 

हालांकि मेनिनजाइटिस एक गंभीर बीमारी है, पर इसकी पहचान आसानी से हो सकती है और जागरूकता और उचित इलाज के माध्यम से इसे ठीक किया जा सकता है। लॉन्ग टर्म न्यूरोलॉजिकल जटिलताओं से बचने के लिए वैक्सीन के माध्यम से शिशुओं और छोटे बच्चों में मेनिनजाइटिस से बचाव जरूरी है। 

यह भी पढ़ें: 

पूजा ठाकुर

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