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रोसियोला या सिक्स्थ डिजीज, एक बहुत ही संक्रामक बीमारी है, जो कि शिशुओं और छोटे बच्चों को प्रभावित करती है। यह बीमारी वयस्कों को भी हो सकती है, लेकिन इसकी संख्या कम होती है। यह शिशुओं में आम होता है और आमतौर पर सौम्य होता है और आसानी से इसका इलाज किया जा सकता है।
रोसियोला एक माइल्ड इंफेक्शन है, जो कि हर्पीस वायरस के दो स्ट्रेंस से होता है। यह 3 से 5 दिनों तक रहता है और पूरे शरीर पर फैले हुए लाल रैशेस और तेज बुखार इसके सबसे आम संकेत हैं।
जैसा कि ऊपर बताया गया है, सिक्स्थ डिजीज या रोसियोला, एक बेहद इनफेक्शियस बीमारी है, जो कि 9 महीने से लेकर 5 साल तक के आयु वर्ग के बच्चों में आमतौर पर पाई जाती है। यह संक्रामक बीमारी हालांकि सौम्य होती है और हर्पीस जैसे ही वायरस से होती है। वायरस का यह प्रकार आमतौर पर ह्यूमन हर्पीस वायरस 6 या ह्यूमन हर्पीस वायरस 7 से होता है।
बच्चों में यह संक्रमण होने का सबसे आम माध्यम है, या तो गर्भावस्था के दौरान मां के द्वारा या शिशु के सलाइवा के द्वारा। रोसियोला की मौजूदगी तेज बुखार और रैशेस जैसे लक्षणों के द्वारा या कभी-कभी ब्लड टेस्ट के द्वारा सुनिश्चित की जाती है।
अधिकतर मामलों में रोसियोला ह्यूमन हर्पीस वायरस 6 के कारण होता है। अन्य वायरस जिसके कारण रोसियोला हो सकता है, वह है ह्यूमन हर्पीस वायरस 7। इन्हें कलेक्टिव रूप से रोसियोलोवायरस के नाम से जाना जाता है। जैसा कि पहले बताया गया है, यह इंफेक्शन ज्यादातर सौम्य होता है, लेकिन ज्यादातर मामलों में यह काफी संक्रामक होता है। रोसियोला होने का सबसे आम कारण होता है, बच्चे के रहने या खेलने की जगह में पहले से ही मौजूद वायरस से संपर्क होना। लार या रेस्पिरेटरी सिस्टम आमतौर पर बच्चों में इस वायरस से संपर्क के लिए जिम्मेदार होते हैं। चूंकि रोसियोला ज्यादातर व्यक्तिगत संपर्क के माध्यम से फैलता है, ऐसे में यदि स्वस्थ शिशु और संक्रमित शिशु दोनों एक ही खिलौने को चबाकर खेलते हैं, तो ऐसे में यह वायरस फैल सकता है।
कुछ मामलों में, रोसियोला से संपर्क होने पर रैश और बुखार के बजाय केवल बुखार होता है। माता-पिता और देखभाल करने वाले लोगों को सावधान रहना चाहिए, विशेषकर अगर बच्चा रोसियोला से संक्रमित किसी अन्य बच्चे के संपर्क में आया हो तो।
रोसियोला के लक्षण नीचे दिए गए हैं:
शिशुओं में रोसियोला के सबसे आम लक्षणों में बुखार (अक्सर 103 डिग्री फारेनहाइट तक) शामिल है, जो कि अचानक होता है और शरीर को कमजोर बना सकता है। रोसियोला आमतौर पर 3 से 5 दिनों तक रहता है।
पूरे शरीर में या किस खास जगह में होने वाला रैश इसका एक अन्य लक्षण है। लाल या गुलाबी रंग का यह रैश ठीक होने में समय ले सकता है। आमतौर पर शुरुआत में यह रैश छाती पर दिखता है, जो कि धीरे-धीरे बच्चे के पेट और पीठ तक फैलते हुए, अंत में हाथों और गर्दन तक भी पहुंच जाता है।
कई रिपोर्टेड मामलों में रोसियोला के बिल्कुल भिन्न लक्षण दिखते हैं। भिन्न का मतलब यहां पर है – गैरमौजूदगी। बुखार और रैश, जो कि इस संक्रमण को परिभाषित करने वाले आम लक्षण हैं, कभी-कभी बिल्कुल भी नहीं दिखते हैं, जिससे इस बीमारी की पहचान करना मुश्किल हो जाता है।
अगर आपका बच्चा सिक्स्थ डिजीज से ग्रस्त बच्चे के संपर्क में आया हो, तो आपको रोसियोला के लिए इन पर भी ध्यान देना चाहिए। कई बार यदि तेज बुखार या रैश ना दिखें, तो अन्य संकेतों में बहती हुई नाक, गले में दर्द, बच्चों में चिड़चिड़ापन, खांसी, लिम्फ नोड्स में सूजन, भूख की कमी और डायरिया के मामले दिख सकते हैं।
अगर स्थिति गंभीर हो जाए, तो फीवर फिट या फेब्राइल सीजर इस बीमारी के अन्य लक्षण हैं। अगर रोसियोला गंभीरता के इस स्तर पर पहुंच जाए, तो आपको तुरंत डॉक्टर की मदद लेनी चाहिए।
चूंकि शिशुओं में रोसियोला का इलाज करने के लिए कोई विशेष तरीका उपलब्ध नहीं है, इसलिए ऐसे में इसे खुद ही ठीक होने देना चाहिए।
लेकिन, चूंकि आपका बच्चा लक्षणों के कारण चिड़चिड़ा और कमजोर महसूस कर सकता है, इसलिए यह आपके ऊपर है, कि आप हर संभव प्रयास करके अपने बच्चे को आराम महसूस कराएं।
हालांकि रैशेस ठीक होने का कोई निश्चित समय नहीं है। मां 7 से 10 दिनों के अंदर रैश के ठीक होने की उम्मीद कर सकती है। इसके अलावा त्वचा की सेंसिटिविटी के साथ-साथ इलाज का स्तर भी यह निर्धारित करता है, कि रैश कब तक रहेगा।
हां, रोसियोला खतरनाक हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है, लेकिन यह बहुत ही संक्रामक होता है। संक्रमित सतहों से संपर्क, त्वचा से त्वचा के संपर्क, सलाइवा के साथ-साथ रेस्पिरेटरी सिक्रेशन से संपर्क होने से यह बीमारी फैल सकती है।
रोसियोला का इनक्यूबेशन पीरियड आमतौर पर हर बच्चे में भिन्न हो सकता है। हालांकि अधिकतर स्टडीज यह दर्शाती हैं, कि शिशुओं में गंभीर मामलों में रोसियोला का इनक्यूबेशन पीरियड 14 दिनों तक हो सकता है, तो वहीं सौम्य मामलों में यह 5 से 7 दिनों तक होता है।
रोसियोला उन बीमारियों में से एक है, जिसे न तो दवाओं के साथ ठीक किया जा सकता है और न ही इसके लिए किसी तरह की वैक्सीन उपलब्ध है, जो कि वायरस से होने वाले संक्रमण को रोक सके। लेकिन कुछ बेसिक सावधानियां बरतकर, इस वायरस से काफी हद तक बचा जा सकता है।
इसके लिए इस बात का ध्यान रखना चाहिए, कि आपका बच्चा किसी ऐसे बच्चे के संपर्क में न आए, जो कि पहले से ही रोसियोला से संक्रमित हो। अगर आपके बच्चे को इस वायरस का संक्रमण हो जाता है, तो उसे वातावरण की कठोर परिस्थितियों से दूर रखें, क्योंकि इससे आगे चलकर उसकी इम्यूनिटी खराब हो सकती है। पूरे घर में स्वस्थ आदतों को अपनाकर वायरस से बचने में मदद मिल सकती है।
रोसियोला के संक्रमण के शुरुआती संकेत दिखने पर ही, डॉक्टर को बुला लेना सबसे अच्छा होता है। इसकी शुरुआत पर आपको निम्नलिखित संकेत दिख सकते हैं:
रोसियोला बच्चों में होने वाली एक आम बीमारी है, जो कि आमतौर पर गंभीर खतरा पैदा नहीं करती है। लेकिन बच्चे पर ध्यान पूर्वक नजर रखना जरूरी है और अगर लक्षण गंभीर होने लगे, तो डॉक्टर से सलाह लेना भी जरूरी है।
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