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चींटी और टिड्डा की कहानी ग्रीक कहानीकार ईसप की प्रसिद्ध दंतकथाओं में से एक है। यह एक बेहद शिक्षाप्रद कहनी है। यह कहानी एक मेहनती चींटी और लापरवाह टिड्डे की है। इसमें बताया गया है कि चींटी आने वाली सर्दियों के लिए खाना जमा करती रहती है जबकि उसका दोस्त टिड्डा पूरा समय बस गाने और आराम करने में बिता देता है। जब सर्दियां आती हैं तो ठंड और भूख से बेहाल टिड्डा क्या करता है और उसके क्या सबक मिलता है यह जानने के लिए पूरी कहानी पढ़ें।
नैतिक शिक्षा देने वाली इस कहानी के 2 मुख्य पात्र हैं –
बहुत समय पहले की बात है, अनाज के खेतों के पास एक बगीचे में एक चींटी और एक टिड्डा रहते थे। टिड्डा खुशमिजाज लेकिन लापरवाह स्वभाव का था और पूरा समय गाना गाने और आराम करने में बिताता था। दूसरी ओर उसकी दोस्त चींटी हमेशा काम में व्यस्त रहती थी। गर्मी के दिन थे, चींटी रोज काम करती रहती। वह खेत से अनाज लेती, अपनी पीठ पर लादकर लाती और फिर अपने घर में सुरक्षित रखती। टिड्डा हमेशा मेहनती चींटी का मजाक उड़ाता था।
वह अक्सर उससे यह सब काम छोड़कर गाने और नाचने के लिए कहता था। एक दिन उसने चींटी से पूछा –
“दोस्त, रोज इस तरह गर्मी की धूप में पसीना बहाने की क्या जरूरत है? क्यों रोज तुम अनाज लाकर अपने घर में जमा कर रही हो? आओ जीवन का मजा उठाते हैं, नाचते हैं, गाते हैं।”
चींटी ने उत्तर दिया –
“मैं सर्दियों की तैयारी कर रही हूं। क्योंकि जब ठंड आएगी तो अनाज नहीं मिलेगा।”
ऐसा कहकर चींटी ने टिड्डे के साथ मौज-मस्ती करने से इनकार कर दिया और अनाज इकट्ठा करना जारी रखा। उसने सोच लिया था कि आने वाली कठोर सर्दियों के लिए अनाज जमा करना है क्योंकि तब बाहर निकलना मुश्किल होगा। टिड्डा चींटी की बात पर हंसने लगा और उससे बोला कि वहाँ पूरे जीवन भर के लिए पर्याप्त खाना उपलब्ध है।
हालाँकि, चींटी ने पूरी गर्मियों में कभी भी काम करना बंद नहीं किया। उसके साथ बाकी की चीटियां भी अपना-अपना खाना जमा करने में लगी थीं। जबकि टिड्डा बगीचे के पेड़ों की छाया में बैठा खुशी से गाने गाता रहता था। धीरे-धीरे गर्मी खत्म हो गई, लेकिन टिड्डे पर इसका कोई असर नहीं हुआ।
एक दिन चींटी से रहा नहीं गया और वह उसने टिड्डे को सलाह दी कि वह अपने लिए भी सर्दियों के लिए भोजन का भंडारण करना शुरू कर दे। टिड्डा केवल मुस्कुराया और चींटी से बोला कि सर्दियां आने में बहुत समय बाकी है। उसकी बात सुनकर चींटी ने कुछ नहीं कहा और वापस अपने काम में लग गई।
जल्दी ही ऋतुएँ बदल गईं। सर्दियों आ गईं और कड़ाके की ठंड पड़ने लगी। टिड्डे को एहसास हुआ कि उसके पास न तो घर है और न ही खाना। उसने हर तरफ ढूंढा पर सब कुछ बर्फ से ढंका हुआ था। ठंड और भूख के कारण टिड्डा कंपकंपाने लगा। तभी उसे अपनी अच्छी दोस्त, चींटी की याद आई और उसने मन ही मन सोचा, वह जरूर उसकी मदद करेगी क्योंकि उसने काफी खाना जमा किया है। टिड्डा कड़कड़ाती ठंड में अकड़े हुए अपने पैरों को घसीटते हुए चींटी के घर तक गया और उसका दरवाजा खटखटाया।
टिड्डे ने चींटी को आवाज दी –
“दोस्त मुझे अंदर आने दो, मैं ठंड से कंपकंपा रहा हूँ और भूखा हूँ।”
चींटी ने जरा सा दरवाजा खोला। उसने टिड्डे को अंदर नहीं आने दिया। उसने उसे खाना देने से भी इनकार कर दिया। ठंडा और भूखा टिड्डा कमजोर था। वह विनती करते हुए कहने लगा –
“मैं तुम्हारे लिए मुफ्त में गाऊंगा, दोस्त बस मेरी मदद कर दो।”
चींटी उसकी बात सुनकर बोली –
“क्या तुम्हें याद है कि मैंने गर्मी के दिनों में कितनी मेहनत की थी? मैंने ठंड के मौसम में खाना उपलब्ध रखें के लिए ऐसा किया। मैंने तुमसे भी ऐसा ही करने को कहा था। पर तुमने मेरी बातों को नजरअंदाज कर दिया और इसके बजाय मुझ पर हंसे। मुझे खेद है, लेकिन मेरे पास केवल अपने लिए ही पर्याप्त अनाज है।”
चींटी की बात सुनकर टिड्डे को एहसास हुआ कि उससे बहुत बड़ी गलती हो गई। उसे गाने और बगीचे में आराम करने में अपना समय बर्बाद करने के बजाय उसका सही उपयोग करना चाहिए था। लेकिन अब पछताने से कुछ नहीं हो सकता था।
चींटी और टिड्डा की कहानी से यह सीख मिलती है कि हमें अपने समय का सदुपयोग करना चाहिए और आज का काम कल पर नहीं टालना चाहिए। शौक जरूर होने चाहिए लेकिन उन्हें तभी पूरा करना चाहिए जब हम अपने जरूरी काम और कर्तव्य कर लें। साथ ही, यदि हम अपने जीवन में कोई उद्देश्य रखेंगे और अपने समय का सही इस्तेमाल करेंगे तो हमें शौक पूरे करने के लिए भी हमेशा समय मिलेगा। समय बहुत कीमती होता है और हमें सकारात्मक दिशा में काम करके इसका ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाना चाहिए।
चींटी और टिड्डा की यह कहानी शिक्षाप्रद नैतिक कहानियों के अंतर्गत आती है। यह कहानी हमें बताती है कि जीवन का उद्देश्य सिर्फ मजे करना नहीं है बल्कि हमें जीवन में अच्छे और सकारात्मक काम करके इसे सार्थक बनाना चाहिए।
चींटी और टिड्डा की कहानी ईसप फेबल्स से ली गई है।
चींटी और टिड्डा की कहानी में मेहनती स्वभाव की चींटी सिखाती है कि आज का काम पर टालने के बजाय भविष्य के लिए पहले से ही तयारी करके रखनी चाहिए।
चींटी और टिड्डा की कहानी का नैतिक है कि अगर हम समय का सही उपयोग नहीं करेंगे बाद में पछताना पड़ेगा।
ईसप की दंतकथाओं का पूरा संग्रह नैतिकता और जीवन के मूल्यों के बारे में शिक्षा देता है। दिलचस्प बात यह है कि ये कहानियां मूल रूप से वयस्कों के लिए थीं, लेकिन अपने सरल नैतिक दृष्टिकोण के कारण वे बच्चों के बीच लोकप्रिय हो गईं। ईसप की बाकी कहानियों की तरह, यह कहानी भी एक महत्वपूर्ण सबक देती है जिसे हमारे रोजमर्रा के जीवन में लागू किया जाना चाहिए।
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