बड़े बच्चे (5-8 वर्ष)

शिशुओं और बच्चों में कंजंक्टिवाइटिस (पिंक आई)

कंजंक्टिवाइटिस, जिसे पिंक आई के नाम से भी जाना जाता है, आँखों का एक इंफेक्शन होता है, जो बच्चों और वयस्कों में एक आम बात है। जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, यह इंफेक्शन आँखों के सफेद हिस्से को गुलाबी या लाल रंग में बदल देता है। बैक्टीरिया या वायरस के माध्यम से होने पर यह बहुत ही संक्रामक होता है और यह बच्चों में आसानी से फैल सकता है। 

कंजंक्टिवाइटिस क्या होता है?

यह आँखों के सफेद हिस्से कंजेक्टिवा और आईलिड की अंदरूनी सतह में सूजन है और यह किसी इंफेक्शन या किसी एलर्जिक रिएक्शन के कारण होता है। यह इंफेक्शन बैक्टीरिया या वायरस के कारण हो सकता है और यह देखने में बुरा तो लगता है, पर असल में अधिकतर बच्चों में यह कोई गंभीर बीमारी नहीं होती है। जब बच्चों को कंजंक्टिवाइटिस होता है, तो आँखों के सफेद हिस्से में मौजूद ब्लड वेसल्स में सूजन आ जाती है, जिससे यह देखने में लाल या गुलाबी हो जाती है। इसके साथ ही जलन के साथ खुजली और आँखों में किरकिरी होती है और साथ ही डिस्चार्ज भी हो सकता है। 

कंजंक्टिवाइटिस कितने तरह का होता है?

कंजंक्टिवाइटिस मुख्य रूप से 4 तरह के होते हैं: 

  • वायरल: यह इंफेक्शन वायरस के माध्यम से होता है और यह सर्दी और खांसी जैसे अन्य लक्षणों के साथ होता है।
  • बैक्टीरियल: यह बैक्टीरिया के कारण होता है और इसमें आईलिड में सूजन और आँखों से गाढ़ा पीला डिस्चार्ज होता है, जिससे आईलिड्स आपस में चिपक जाते हैं।
  • एलर्जिक: यह धूल-मिट्टी, पॉलन, माइट्स और पालतू जानवरों जैसे एलर्जिक तत्वों के संपर्क में आने से होता है।
  • इरिटेंट: यह आँखों और आईलिड को इरिटेट करने वाले किसी भी तत्व के कारण हो सकता है, जैसे – स्विमिंग पूल में मौजूद क्लोरीन या हवा में मौजूद पोल्यूटेंट्स।

क्या पिंक आई संक्रामक होता है?

एक आम गलतफहमी है, कि पिंक आई से ग्रसित व्यक्ति को केवल देखने पर यह फैल सकता है, यह सच नहीं है।  पिंक आई केवल तब ही फैलता है, जब बच्चे किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आते हैं। 

कंजंक्टिवाइटिस केवल तब ही संक्रामक होता है, जब यह एक माइक्रोऑर्गेनिज्म से हुआ हो। दवाओं का कोर्स खत्म होने पर, इसके संक्रमण का समय खत्म हो जाता है और इसके सारे लक्षण भी खत्म हो जाते हैं। 

  • वायरल

वायरल कंजंक्टिवाइटिस बहुत अधिक संक्रामक होता है और यह उसी तरह के वायरस के कारण होता है, जिससे आम सर्दी-जुकाम होते हैं। यह हवा, पानी और सीधे संपर्क से आसानी से फैल सकता है। एडिनोवायरस से होने वाला एक तरह का वायरल कंजंक्टिवाइटिस, पहले लक्षण दिखने के बाद हफ्तों तक संक्रामक रह सकता है। इसके कारण, यह अक्सर स्कूलों और डे केयर आदि में फैल सकता है और लक्षणों के उपस्थित रहने तक इंफेक्शन कर सकता है। 

  • बैक्टीरियल

बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस भी काफी संक्रामक होता है और यह छूने और संक्रमित बच्चे के साथ खिलौने जैसी चीजें शेयर करने पर आसानी से फैल सकता है। 

  • एलर्जिक

एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस हर बच्चे में किसी विशेष कारण से होता है और यह उन तत्वों से हो सकता है, जिनसे उन्हें एलर्जी होती है। यह बैक्टीरियल और वायरल कंजंक्टिवाइटिस की तरह नहीं फैलता है। 

कंजंक्टिवाइटिस के कारण

कंजंक्टिवाइटिस पैदा करने वाले माइक्रोऑर्गेनिज्म, एलर्जिक पदार्थ या केमिकल इरिटेंट जब आँखों के संपर्क में आते हैं, तब कंजंक्टिवाइटिस होता है। जब बच्चे अपनी आँख या नाक को ऐसे ही किसी पदार्थ युक्त गंदे हाथों से छूते हैं, तब तुरंत इंफेक्शन हो सकता है। वहीं, बैक्टीरियल और वायरल इनफेक्शन मुख्य रूप से नीचे दिए गए कारणों से फैलते हैं: 

  • सीधा संपर्क: जब कंजंक्टिवाइटिस से संक्रमित बच्चा अपनी आँखों को हाथ लगाए या रगड़े और फिर दूसरे बच्चे को छुए।
  • अप्रत्यक्ष संपर्क: जब एक टिशू या टॉवल जैसी कोई संक्रमित वस्तु बच्चे की आँख से छू जाए या बच्चे के द्वारा इस्तेमाल की जाए। संक्रमित खिलौनों और दूसरी चीजों के साथ भी ऐसा ही हो सकता है।
  • बूंदें: जब सर्दी-जुकाम के साथ कंजंक्टिवाइटिस हो, तो छींक में निकलने वाली बूंदों से यह फैल सकता है।
  • सेक्सुअल ट्रांसमिशन: इस तरह के कंजंक्टिवाइटिस नवजात शिशुओं में आमतौर पर देखे जाते हैं। अगर माँ सेक्सुअली ट्रांसमिटेड बीमारी से ग्रस्त हो और उसकी वजाइनल डिलीवरी हो, तो बच्चे को पिंक आई की समस्या हो सकती है।

बच्चों में पिंक आई के आम लक्षण

कंजंक्टिवाइटिस के बहुत ही साफ लक्षण होते हैं, जिन्हें आसानी से देखा जा सकता है, जैसे: 

  • सूजन के कारण आँखों का रंग लाल या गुलाबी हो जाना। अगर यह बैक्टीरियल हो, तो यह एक आँख में हो सकता है और यदि यह वायरल हो तो दोनों आँखों में हो सकता है।
  • आईलिड के अंदरूनी हिस्से और आँखों के सफेद हिस्से को ढकने वाली पतली परत में सूजन।
  • आँखों से अधिक पानी निकलना और पस निकलना, जिसका रंग हरा-पीला (बैक्टीरियल इनफेक्शन में) होता है।
  • आँखों को रगड़ने की इच्छा और आँखों में कुछ अटके होने का एहसास होना।
  • सोने के बाद पलकों और आईलिड का कड़ा हो जाना, खासकर सुबह उठने के बाद।
  • एलर्जी, जुकाम या किसी अन्य रेस्पिरेट्री इनफेक्शन के लक्षण।
  • कान के सामने लिंफ नोड का बड़ा होना या नरम हो जाना, जिसे छूने पर गांठ जैसा महसूस हो।
  • रोशनी से तकलीफ होना।

कंजंक्टिवाइटिस की पहचान

कंजंक्टिवाइटिस को इसके लक्षणों से पहचाना जा सकता है और पेडिअट्रिशन सही कारण को पहचान सकते हैं। चूंकि, हे फीवर जैसी अन्य स्थितियों में भी ऐसे ही लक्षण दिख सकते हैं, इसलिए जितनी जल्दी हो सके डॉक्टर से परामर्श लेना जरूरी हो जाता है। 

इलाज

कंजंक्टिवाइटिस का इलाज इसके प्रकार और इंफेक्शन की गंभीरता पर निर्भर करता है। कभी-कभी पिंक आई कुछ दिनों के अंदर अपने आप ही ठीक हो जाता है। 

  • बैक्टीरियल पिंक आई: बैक्टीरियल इनफेक्शन आमतौर पर एंटीबायोटिक्स के द्वारा ठीक किए जाते हैं, जो कि आई ड्रॉप या ऑइंटमेंट के रूप में आते हैं। अगर बच्चा साथ दे, तो इन्हें सीधे आँखों में लगाना चाहिए या फिर इन्हें आँखों के कोनों में डाल दें, वहाँ से यह अपने आप ही आँखों में चला जाएगा।
  • वायरल पिंक आई: वायरल पिंक आई को अपने आप ही ठीक होने के लिए छोड़ना पड़ता है, क्योंकि उसके लिए किसी तरह के एंटीबायोटिक नहीं होते हैं। आराम के लिए डॉक्टर एक लुब्रिकेंट दे सकते हैं और आँखों को साफ रखने और ठंडे पैक लगाने की सलाह दे सकते हैं।
  • एलर्जिक पिंक आई: एलर्जिक पिंक आई को ठीक करने के लिए एंटीहिस्टामाइन आई ड्रॉप्स के इस्तेमाल से सूजन को कम किया जाता है। इंफेक्शन के कारण का पता भी लगाया जा सकता है और आगे उससे बचा भी जा सकता है, जैसे – घर के नजदीक स्थित कोई पेड़ या फूलों से भरा कोई झाड़ आदि।

बचाव

  • पिंक आई को फैलने से बचाने के लिए साफ-सफाई का ध्यान रखना सबसे कारगर है। अपने बच्चे के हाथों को बार-बार धुलवाएं और उसे बताएं कि बार-बार आँखों को न छुएं।
  • अगर परिवार के किसी सदस्य को यह इंफेक्शन है, तो जब तक उसके लक्षण समाप्त नहीं हो जाते, तब तक उससे जितना संभव हो सके बच्चे से दूर रखने के लिए कहें। उसके कपड़े, तौलिए, रुमाल आदि भी बच्चे के कपड़ों से अलग धोने चाहिए।
  • इस बात का ध्यान रखें, कि घर पर या डे केयर में टॉवल, नैपकिन, तकिए, टिशु या आई मेकअप एक दूसरे से शेयर न किए जाएं। सबसे अच्छा है, कि हर सदस्य का अपना एक अलग सामान हो।
  • बच्चे के कपड़े, तौलिए, चादर आदि को नियमित रूप से धोएं और उन्हें अच्छी तरह से सुखाएं। बारिश के दिनों में उन्हें घर के अंदर सुखाएं और नमी को खत्म करने के लिए उस पर आयरन का इस्तेमाल करें।
  • अपने बच्चे को खिलाने या छूने से पहले अपने हाथों को साबुन से अच्छी तरह से धोएं। खासकर अगर आप  कहीं बाहर से आ रहे हों, तो।
  • बच्चे की दोनों आँखों को साफ करने के लिए अलग-अलग फ्रेश कॉटन बॉल्स का इस्तेमाल करें, जिससे यह इंफेक्शन एक आँख से दूसरी आँख में न फैले।
  • अगर आपको जानकारी है, कि आपका बच्चा किसी खास पॉलन या धूल या किसी अन्य केमिकल के प्रति एलर्जिक है, तो बच्चे को इन विशेष चीजों से बचाएं। इसके लिए आप खिड़कियों को बंद रख सकती हैं, कार्पेट को नियमित रूप से वैक्युम कर सकती हैं, आदि।
  • न्यूबॉर्न बच्चों में पिंक आई से बचाव के लिए, गर्भवती स्त्रियों की एसटीडी के लिए स्क्रीनिंग और इलाज किया जाना चाहिए।

आपको डॉक्टर से कब मिलना चाहिए?

अगर बच्चा एक महीने से कम उम्र का हो, तो कंजंक्टिवाइटिस से उसमें कॉम्प्लीकेशंस पैदा हो सकते हैं। न्यूबॉर्न बेबीज में कंजंक्टिवाइटिस आमतौर पर अविकसित टियर डक्ट के कारण होता है, पर अगर यह माँ के द्वारा एसटीडी के कारण हुआ हो, तो यह गंभीर हो सकता है। ऐसे मामले में, आपको तुरंत अपने डॉक्टर को बुलाना चाहिए। 

बच्चों में नीचे दिए गए लक्षण दिखने पर डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए: 

  • इलाज के बावजूद तीन-चार दिनों के बाद भी इंफेक्शन ठीक न हो।
  • बच्चे को देखने में दिक्कत आ रही हो।
  • बच्चे को बुखार हो, ठीक से खा-पी नहीं रहा हो और बहुत कमजोर हो।
  • आँखों के आसपास की त्वचा या आई लिड सूजे हुए हों, लाल हों और उनमें दर्द हो रहा हो।

क्या पिंक आई से ग्रस्त बच्चा डे केयर में जा सकता है?

बेहतर यही है, कि अगर बच्चे को पिंक आई है, तो उसे डे केयर में न भेजा जाए, क्योंकि वहाँ इसके फैलने का बहुत ज्यादा खतरा होता है। कंजंक्टिवाइटिस अगर एलर्जिक हो, तो भी इसके लक्षण दिखने की स्थिति में, हो सकता है कि आपका डे-केयर बच्चे को अटेंड करने की इजाजत न दे। अगर आपके बच्चे को वायरल या बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस है, तो निश्चित तौर पर उसे डे केयर में नहीं भेजना चाहिए। 

हालांकि, यह बहुत ही चिंताजनक दिख सकता है, लेकिन बच्चों में पिंक आई कोई बहुत गंभीर समस्या नहीं है। साफ-सफाई का अच्छा ध्यान रखकर और बचाव करके इंफेक्शन के खतरे को कम किया जा सकता है। 

यह भी पढ़ें: 

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पूजा ठाकुर

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