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अगर आप अपने बच्चे की पॉटी में खून देखकर हैरान हो गए हैं, तो आप अकेले नहीं हैं। अधिकतर पेरेंट्स अपने बच्चे की पॉटी में खून देखकर परेशान हो जाते हैं और यह स्वाभाविक है। हालांकि, जो खून जैसा दिख रहा है, वह खान-पान में हल्के फुल्के बदलाव के कारण पॉटी के रंग में आने वाला एक बदलाव भी हो सकता है। लेकिन सबसे बेहतर यही है, कि बच्चे के मल में खून के रंग को नजरअंदाज न किया जाए और तुरंत अपने पेडिअट्रिशन को बताया जाए।
आपके बच्चे की पॉटी में खून को कई लाल धारियों के रूप में देखा जा सकता है, जो कि अलग-अलग होती हैं। बच्चे की पॉटी में छोटे धब्बे भी हो सकते हैं। इसके लिए आप अपने बच्चे के डायपर की सफेद लाइनिंग को भी देख सकते हैं, यह आसानी से दिख जाता है। ध्यान रखें, कि यह पॉटी के रंग से काफी अलग होता है। रेक्टम या कोलोन से आने वाला खून आमतौर पर चमकीला लाल होता है और इसे पॉटी में बाहर की ओर एक सिंगल धारी के रूप में देखा जा सकता है। वहीं अगर खून का रंग गहरा भूरा, काला या मैरून हो और यह मल के साथ मिला हुआ दिखे, तो यह खून गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट से निकला हुआ हो सकता है।
बच्चे की पॉटी में दिखने वाला खून दो तरह का हो सकता है। यह नंगी आंख से दिख सकता है और पॉटी में लाल धब्बे की तरह दिखता है, जिसे केमिकल एनालिसिस या माइक्रोस्कोपिक एग्जामिनेशन के द्वारा पहचाना जा सकता है। पेट के अंदर ब्लीडिंग होने से मल का रंग गहरा दिखता है, क्योंकि इसमें खून डाइजेस्ट हो जाता है।
आपके बच्चे के मल में खून आने के कुछ संभावित कारण इस प्रकार हैं:
बच्चे के मल में खून और खूनी म्यूकस के कारणों में से एक है – किसी खास खाद्य पदार्थ से एलर्जी। अगर आपके बच्चे ने हाल ही में सेमी सॉलिड खाना खाने की शुरुआत की है, तो उसे गाय के दूध, मिल्क पाउडर, ओट्स, बार्ले या गेहूं से एलर्जी हो सकती है। अगर आपके बच्चे के द्वारा सेवन किए जाने वाले सप्लीमेंट्स में ग्लूटेन भी शामिल है,
तो उससे भी यह स्थिति पैदा हो सकती है। बार्ले माल्ट विटामिन सप्लीमेंट का एक जरूरी इनग्रेडिएंट है, जिसमें ग्लूटेन होता है। एलर्जिक कोलाइटिस और इंटेरो कोलाइटिस सिंड्रोम जैसी स्थितियां, फूड एलर्जी का कारण बन सकती हैं। इन स्थितियों के कारण आपके बच्चे को उल्टियां भी हो सकती हैं।
शिशुओं में देखी जाने वाली इस स्थिति को पेडिएट्रिक क्रॉन्स डिजीज के नाम से जाना जाता है, जो कि बड़ी आंत में सूजन पैदा करने वाली एक बीमारी होती है। ऐसा माना जाता है, कि यह वंशानुगत म्यूटेशन के कारण होता है, जिसके कारण की जानकारी उपलब्ध नहीं है। अगर आपके परिवार में किसी को क्रॉन्स डिजीज है, तो आपके बच्चे को भी यह बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है।
कोलोन (बड़ी आंत) की अंदरूनी सतह की सूजन को कोलाइटिस कहा जाता है। इस स्थिति में कोलोन में छोटे जख्म पैदा हो जाते हैं, जिससे बच्चे को दर्द हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है। हालांकि इन जख्मों के कारण आपके बच्चे के मल में खून देखा जा सकता है। कोलाइटिस भी वंशानुगत कारणों से हो सकता है।
यह बीमारी प्रीमैच्योर बच्चों को प्रभावित करती है। एक प्रीमैच्योर बच्चे का इम्यून सिस्टम पूरी तरह से विकसित नहीं होता है, जिसके कारण इनके अंदरूनी अंगों पर इन्फेक्शन का खतरा अधिक होता है। आंतों की दीवारों पर बैक्टीरिया आसानी से हमला कर देते हैं, जिससे बैक्टीरियल डेटेरियोरेशन और इन्फ्लेमेशन हो सकती है, जिससे प्रीमैच्योर बच्चे के मल में खून आ सकता है।
आपके बच्चे के मल में खून आने के पीछे के कारण कई तरह के गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल इन्फेक्शन हो सकते हैं। जब डायरिया के साथ बच्चे के मल में खून आता है, तो इसके कारण साल्मोनेला, कैंपाइलोबेक्टर या शिगेल्ला जैसे बैक्टीरिया हो सकते हैं। यह बैक्टीरिया आंतों की सूजन का कारण होता है और बारीक रप्चर्स पैदा कर सकता है, जिससे बच्चे के मल में खून आ सकता है। स्ट्रैप्टोकोकस नामक एक बैक्टीरिया मलद्वार को प्रभावित करता है, जिससे इन्फ्लेमेशन और फिर दरारें आ सकती हैं।
जब बच्चे के मलद्वार की अंदरुनी म्यूकस परत में हल्की दरार आ जाती है, तो इससे ब्लीडिंग हो सकती है। जो शिशु डायरिया से जूझते हैं, उनमें इस स्थिति से प्रभावित होने की संभावना अधिक होती है, क्योंकि उनकी नाजुक म्यूकस परत प्रभावित हो जाती है। कब्ज की स्थिति में बच्चे सख्त और गोली के आकार की पॉटी पास करते हैं। उनका एनल पैसेज और उसके आसपास की मांसपेशियां क्षमता से अधिक फैलती हैं और यही कारण है, कि आप उनके मल में खून देख सकते हैं। अगर पहले से ही एनल फिशर्स मौजूद हो, तो सख्त मल त्याग करते समय यह बिगड़ सकता है।
जब माँ अत्यधिक मात्रा में ब्रेस्टमिल्क का प्रोडक्शन करती है, तो बच्चे इसका सेवन भी अधिक कर लेते हैं। इससे कुछ मामलों में आंतों में इन्फेक्शन और लेक्टोज इन्टॉलरेंस भी हो सकता है।
कभी-कभी बच्चे के मल के रंग में बदलाव होने पर आपको उसमें खून की मौजूदगी महसूस हो सकती है। यह एक फॉल्स अलार्म हो सकता है, क्योंकि मल का यह लाल या गहरा भूरा रंग, किसी खास खाद्य पदार्थ के कारण भी हो सकता है। जरूरी नहीं है, कि यह अकल्ट ब्लड ही हो।
टमाटर, क्रैनबेरी, बीटरूट और लाल जिलेटिन जैसे खाद्य पदार्थ, आमतौर पर बच्चे के मल के रंग के बदलाव के जिम्मेदार हो सकते हैं। अगर आपके या आपके बच्चे के शरीर में आयरन की कमी है, तो डॉक्टर आपको आयरन के सप्लीमेंट की सलाह दे सकते हैं। इसके कारण भी मल का रंग गहरा भूरा, लाल या काला हो सकता है। हालांकि, यह सामान्य है, फिर भी अगर आपको इस स्थिति के बारे में कोई संदेह हो, तो अपने डॉक्टर से बात करें।
अगर आपने बच्चे के मल में अकल्ट ब्लड या खून देखा है, तो आपको तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। नीचे दिए गए टेस्ट आपको इसके कारण का पता लगाने में और स्थिति की गंभीरता को जानने में मदद करेंगे:
आपके डॉक्टर के द्वारा लिया जाने वाला पहला कदम होगा, बच्चे के मल की पैथोलॉजिकल जांच। इससे आपके बच्चे के मल की जांच होगी और उसमें वायरस, म्यूकस या बैक्टीरिया की मौजूदगी का पता चलेगा। साथ ही इसमें खून की वास्तविक मात्रा का भी पता चलेगा। यह अकल्ट ब्लड की जांच में भी कारगर होता है।
अगर किसी इन्फेक्शन के कारण बच्चे के मल में खून आ रहा है, तो इसका पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट बहुत जरूरी है और इसे तुरंत किया जाना चाहिए।
सही जांच के लिए डॉक्टर मल में खून के साथ-साथ बच्चे के कई अन्य लक्षणों की जांच भी करेंगे। बहुत ही दुर्लभ मामलों में, अगर डॉक्टर को स्थिति गंभीर लगती है, तो वे सर्जिकली-रिमूव्ड-टिशू के नमूने का इस्तेमाल करके बायोप्सी का चुनाव भी कर सकते हैं।
बच्चे के मल में खून को नजरअंदाज करने से आगे चलकर स्थिति और भी गंभीर हो सकती है और इससे दूसरे कई कॉम्प्लीकेशंस पैदा हो सकते हैं। इसके कारण होने वाली कुछ परेशानियां इस प्रकार है:
जब क्रॉन्स डिजीज और कोलाइटिस के कारण आंतों की अंदरूनी सतह में सूजन आ जाती है, तो खाने को एक चिकना रास्ता नहीं मिलता है और पाचन प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है। जिससे बच्चे के दूध पीने के रूटीन पर प्रभाव पड़ता है।
बार-बार होने वाले फिशर्स के कारण मलद्वार के आसपास की जगह डैमेज हो सकती है। मल त्याग के कारण होने वाली रगड़ से आगे चलकर त्वचा घिस सकती है।
यह खराब डाइजेशन का सीधा नतीजा है, क्योंकि आंतों में इन्फ्लेमेशन होने के कारण फूड अब्जॉर्प्शन नहीं हो पाता है। साथ ही, चूंकि मल के साथ थोड़ा खून आता रहता है, तो इससे एनीमिया भी हो सकता है।
स्किन बैक्टीरिया फिशर्स पर प्रतिक्रिया देते हैं और बच्चे को पॉटी करते समय अत्यधिक तकलीफ का अनुभव करना पड़ता है और साथ ही इससे इन्फ्लेमेशन भी हो सकता है। अगर यह इन्फेक्शन जेनिटल जैसे आसपास के क्षेत्रों तक फैल जाए, तो इससे स्थिति और भी बिगड़ सकती है।
क्रॉन्स डिजीज मुँह और डाइजेस्टिव सिस्टम में लेसन जैसे अल्सर का वाहक हो सकता है। ऐसे अल्सर के इन्फेक्टेड होने की संभावना अधिक होती है और इससे कई तरह के कॉम्प्लीकेशंस हो सकते हैं।
बच्चे के मन में आने वाले खून को नीचे दिए गए तरीकों से ठीक किया जा सकता है:
विस्तृत जांच के बाद डॉक्टर सबसे पहले ब्लीडिंग को रोकने की कोशिश करेंगे। इसके बाद इसे दोबारा होने से रोकने के लिए वे उचित दवाएं देंगे। दवाओं की मदद से मल नरम होगा, जिससे तनाव में कमी आएगी।
अगर आपका बच्चा जुवेनाइल पॉलिप्स से ग्रसित पाया गया है, तो उसे निकालने से ब्लीडिंग बंद हो जाएगी। आमतौर पर नॉन-इनवेसिव प्रक्रिया होने के कारण एंडोस्कोपी की प्रक्रिया को अपनाया जाता है। इसमें ब्लीडिंग को रोकने के लिए प्रभावित क्षेत्र पर इस दवा को सीधा इंजेक्ट किया जाता है।
एंडोस्कोप की मदद से यह प्रक्रिया की जाती है और इस स्थिति के इलाज का यह एक आसान और असरदार तरीका है। प्रभावित जगह को ठीक करने के लिए एंडोस्कोप के साथ ही लगे एक हीटर प्रोब का भी इस्तेमाल किया जाता है।
जब ब्लीडिंग को रोकने में एंडोस्कोपी नाकाम हो जाए, तो डॉक्टर सर्जरी का चुनाव करते हैं।
आपके बच्चे के मल में खून आने की संभावना से बचने के लिए आपको निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:
इस बात को सुनिश्चित करें, कि शुरुआती छह महीनों के दौरान बच्चे को अपना दूध पिलाएं और इससे उसकी इम्यून सिस्टम के काम में बढ़ोतरी आएगी। ब्रेस्टमिल्क में मौजूद एंटीबॉडीज के कारण, बच्चे के गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट को इससे बहुत फायदा मिलता है। इससे इन्फेक्शन दूर रहते हैं और बच्चा स्वस्थ रहता है।
सप्ताह में एक बार बच्चे के एनल एरिया और उसकी ओपनिंग की जांच करना बहुत जरूरी है। किसी संभव इन्फेक्शन या दरार के संकेतों की जांच करें। अगर आपको ऐसे कुछ संकेत दिखें, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
अगर आपके डॉक्टर को किसी तरह की एलर्जी का पता चलता है, तो हमेशा अपने बच्चे को उससे बचाएं। अगर आपने कुछ ऐसा खाया है, जिससे बच्चे को एलर्जी हो सकती है, तो थोड़े समय के लिए बच्चे को अपना दूध न पिलाएं। फूड एलर्जी को मैनेज करने के लिए मेडिकल परामर्श लें और नियमित रूप से उसका अनुसरण करें।
अगर आप अपने बेबी के मल में खून देखते हैं, तो आपको तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। हालांकि किसी तरह की इमरजेंसी होने स्थिति में, आपके बच्चे के बर्ताव को देखकर ही आपको इसका पता चल जाएगा। अगर बच्चा सामान्य है और उसमें किसी तकलीफ के संकेत नहीं दिख रहे हैं, तो डॉक्टर के साथ अपॉइंटमेंट फिक्स करें और मल में मौजूद खून की मौजूदगी के बारे में बात करें। पेट में बेहद दर्द (इसे दिखाने के लिए बच्चा रोएगा), डायरिया, उल्टी और पॉटी में खून की अधिक मात्रा की स्थिति में तुरंत मेडिकल मदद लेनी चाहिए।
अगर आपके शिशु के मल में लगातार खून आ रहा है, तो इसकी सावधानीपूर्वक निगरानी करने की जरूरत है और अगर यह केवल एक-दो बार ही हुआ है, तो इस पर नजर रखें और इस बात का ध्यान रखें, कि बच्चे की फीडिंग में फाइबर की जरूरी मात्रा हो। मल के गहरे रंग या सख्त मल जैसे किसी भी तरह के बदलाव की स्थिति में डॉक्टर से सलाह लेते रहें।
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